केरल हाईकोर्ट

S.84 BSA | विदेशी नोटरी के समक्ष निष्पादित पावर-ऑफ-अटॉर्नी तभी मान्य होती है, जब देश नोटरी अधिनियम के तहत पारस्परिक हो: केरल हाईकोर्ट
S.84 BSA | विदेशी नोटरी के समक्ष निष्पादित पावर-ऑफ-अटॉर्नी तभी मान्य होती है, जब देश नोटरी अधिनियम के तहत 'पारस्परिक' हो: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में यह व्यवस्था दी है कि किसी विदेशी देश को पारस्परिक देश के रूप में मान्यता देने वाली अधिसूचना के अभाव में, कोई भारतीय न्यायालय किसी विदेशी नोटरी पब्लिक द्वारा निष्पादित मुख्तारनामा को मान्यता नहीं दे सकता। ज‌स्टिस के बाबू ने कहा,"मेरा यह सुविचारित मत है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 57(6) का यह आदेश कि न्यायालय नोटरी पब्लिक की मुहरों का न्यायिक संज्ञान लेगा, किसी विदेशी देश में नोटरी पब्लिक के समक्ष निष्पादित मुख्तारनामा पर तभी लागू हो सकता है जब वह विदेशी देश...

लॉ ग्रेजुएट ने दहेज की शिकायतों में जवाबदेही के लिए PIL दायर की, केरल हाईकोर्ट ने कार्रवाई के आंकड़ों के प्रकाशन पर राज्य का रुख पूछा
लॉ ग्रेजुएट ने दहेज की शिकायतों में जवाबदेही के लिए PIL दायर की, केरल हाईकोर्ट ने कार्रवाई के आंकड़ों के प्रकाशन पर राज्य का रुख पूछा

एक विधि स्नातक और लोक नीति पेशेवर ने केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर कर राज्य को केरल दहेज निषेध नियम, 2004 के नियम 5 के तहत की गई शिकायतों और उन पर की गई कार्रवाई के संबंध में जवाबदेही सुनिश्चित करने का निर्देश देने की मांग की है। नियम 5 में पक्षकार, माता-पिता या रिश्तेदार द्वारा क्षेत्रीय दहेज निषेध अधिकारी के समक्ष शिकायत दर्ज कराने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है।यह जनहित याचिका दहेज जैसी सामाजिक बुराई को रोकने के उद्देश्य से दायर की गई थी। याचिका के अनुसार, दहेज निषेध अधिनियम की धारा 3, जो...

Cheque Dishonor | यदि अभियुक्त NI एक्ट की धारा 138 के तहत नोटिस न देने का अनुरोध करता है तो जानकारी साबित करने का भार शिकायतकर्ता पर आ जाता है: केरल हाईकोर्ट
Cheque Dishonor | यदि अभियुक्त NI एक्ट की धारा 138 के तहत नोटिस न देने का अनुरोध करता है तो जानकारी साबित करने का भार शिकायतकर्ता पर आ जाता है: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने दोहराया है कि चेक अनादर की मांग करने वाले अभियुक्त के रिश्तेदार को नोटिस की तामील, परक्राम्य लिखत अधिनियम की धारा 138 के तहत कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि अभियुक्त को ऐसे नोटिस की जानकारी थी। ऐसा करते हुए न्यायालय ने साजू बनाम शालीमार हार्डवेयर (2025) में हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित धारा 138 के तहत नोटिस की तामील संबंधी कानून की पुष्टि की। चेक अनादर के लिए दोषसिद्धि के विरुद्ध अभियुक्त की याचिका को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति पी.वी....

Sec. 223 BNSS| शिकायत के आधार पर मजिस्ट्रेट द्वारा अपराध का संज्ञान लेने से पहले आरोपी को सुनना जरूरी: केरल हाईकोर्ट
Sec. 223 BNSS| शिकायत के आधार पर मजिस्ट्रेट द्वारा अपराध का संज्ञान लेने से पहले आरोपी को सुनना जरूरी: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा था कि एक शिकायत के आधार पर अपराध का संज्ञान लेने से पहले एक मजिस्ट्रेट को आरोपी व्यक्ति को सुनवाई का अवसर देना चाहिए। न्यायालय ने पाया कि यह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 233 के परंतुक के तहत एक जनादेश है।जस्टिस बधारुद्दीन ने कहा,"इस प्रकार, धारा 223 (1) का महत्वपूर्ण पहलू पहला परंतुक है, जो यह कहता है कि मजिस्ट्रेट आरोपी को सुनवाई का अवसर दिए बिना अपराध का संज्ञान नहीं ले सकता है। यह सीआरपीसी के प्रावधानों से एक महत्वपूर्ण प्रस्थान है, जिसने...

BNSS की धारा 223 | शिकायत के आधार पर मजिस्ट्रेट के आरोप तय करने से पहले अभियुक्त को सुनवाई का मौका देना अनिवार्य: केरल हाईकोर्ट
BNSS की धारा 223 | शिकायत के आधार पर मजिस्ट्रेट के आरोप तय करने से पहले अभियुक्त को सुनवाई का मौका देना अनिवार्य: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि यदि किसी शिकायत के आधार पर किसी अपराध पर विचार (Cognizance) लिया जाना है तो मजिस्ट्रेट को पहले अभियुक्त को सुनवाई का अवसर देना आवश्यक है। यह प्रावधान भारत के नए दंड प्रक्रिया कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 की धारा 223 की पहली व्याख्या में शामिल है।जस्टिस बदरुद्दीन ने अपने फैसले में कहा,“धारा 223(1) का महत्वपूर्ण पहलू इसका पहला प्रावधान है, जो स्पष्ट रूप से यह अनिवार्य करता है कि मजिस्ट्रेट तब तक अपराध पर संज्ञान नहीं ले...

साक्ष्य के लिए ई-साक्ष्य का इस्तेमाल करें, पुलिस BNSS के डिजिटल नियम अपनाए: केरल हाईकोर्ट
साक्ष्य के लिए 'ई-साक्ष्य' का इस्तेमाल करें, पुलिस BNSS के डिजिटल नियम अपनाए: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने राज्य पुलिस को निर्देश दिया है कि वह 'भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023' के अनुरूप अपनी जांच प्रक्रियाओं में त्वरित और व्यापक सुधार करे। कोर्ट ने हत्या जैसे गंभीर अपराधों में फूलप्रूफ जांच की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए कहा कि पुलिस को अपनी जांच क्षमताओं को आधुनिक प्रशिक्षण, अपडेटेड प्रोटोकॉल और फॉरेंसिक तकनीक में रणनीतिक निवेश के माध्यम से उन्नत करना चाहिए।जस्टिस राजा विजयराघवन वी और जस्टिस के वी जयकुमार की पीठ ने यह टिप्पणी एक हत्या के मामले में आरोपी को बरी...

BREAKING- S.138 NI Act | 20,000 रुपये से अधिक के नकद ऋण के लिए चेक अनादर का मामला वैध स्पष्टीकरण के बिना मान्य नहीं: केरल हाईकोर्ट
BREAKING- S.138 NI Act | 20,000 रुपये से अधिक के नकद ऋण के लिए चेक अनादर का मामला वैध स्पष्टीकरण के बिना मान्य नहीं: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक निर्णय पारित किया, जिसमें कहा गया कि आयकर अधिनियम, 1961 (IT Act) का उल्लंघन करते हुए बीस हज़ार रुपये से अधिक के नकद लेनदेन से उत्पन्न ऋण को तब तक कानूनी रूप से प्रवर्तनीय ऋण नहीं माना जा सकता जब तक कि उसके लिए कोई वैध स्पष्टीकरण न हो।जस्टिस पी.वी. कुन्हीकृष्णन ने स्पष्ट किया कि फिर भी, परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 के तहत अपराध के आरोपी व्यक्ति को ऐसे लेनदेन को साक्ष्य के रूप में चुनौती देनी होगी और NI Act की धारा 139 के तहत अनुमान का खंडन करना...

अगर मोटरबाइक का इस्तेमाल मानव शरीर को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाए तो वह IPC की धारा 324 के तहत खतरनाक हथियार बन जाती है: केरल हाईकोर्ट
अगर मोटरबाइक का इस्तेमाल मानव शरीर को नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाए तो वह IPC की धारा 324 के तहत 'खतरनाक हथियार' बन जाती है: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अगर किसी मोटरसाइकिल का इस्तेमाल जानबूझकर नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाता है तो उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 324 के तहत 'खतरनाक हथियार' मानी जा सकती है। जस्टिस कौसर एडप्पागथ ने उस प्रावधान की व्याख्या करते हुए फैसला सुनाया जो "खतरनाक हथियारों या साधनों से जानबूझकर चोट पहुंचाने" के अपराध को दंडित करता है।याचिकाकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 324 के तहत दोषी पाया गया था और प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत ने उसे उक्त अपराध के लिए दोषी ठहराया था। सत्र...

वसीयत में एक उत्तराधिकारी को दूसरे पर तरजीह देना अस्वाभाविक नहीं; अदालत वसीयतकर्ता की मंशा की लगातार जांच नहीं कर सकती: केरल हाईकोर्ट
वसीयत में एक उत्तराधिकारी को दूसरे पर तरजीह देना अस्वाभाविक नहीं; अदालत वसीयतकर्ता की मंशा की लगातार जांच नहीं कर सकती: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि किसी कानूनी उत्तराधिकारी को दूसरे उत्तराधिकारी पर वरीयता देना अस्वाभाविक नहीं माना जा सकता और इससे वसीयत का निष्पादन संदिग्ध नहीं होता। न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रथम अपीलीय न्यायालय, जब मुकदमे में निचली अदालत के समक्ष ऐसी कोई दलील या मुद्दा नहीं उठाया गया हो, तो स्वयं ही वसीयत की प्रामाणिकता का प्रश्न नहीं उठा सकता।जस्टिस ईश्वरन एस. प्रथम अपीलीय न्यायालय के उस निर्णय को चुनौती देने पर विचार कर रहे थे, जिसमें स्वतः संज्ञान लेते हुए कुछ बिंदुओं को तैयार किया...

ससुराल वालों को सौंपे गए सोने को वापस पाने के लिए विवाहित महिला को देना होगा सबूत? हाईकोर्ट ने किया फैसला
ससुराल वालों को सौंपे गए सोने को वापस पाने के लिए विवाहित महिला को देना होगा सबूत? हाईकोर्ट ने किया फैसला

केरल हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अदालतें शादी के समय अपने ससुराल वालों को सौंपे गए सोने के आभूषणों का दावा करने वाली महिला से सख्त सबूत की मांग नहीं कर सकतीं।जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस एम.बी. स्नेहलता की खंडपीठ ने कहा,“ज़्यादातर भारतीय घरों में, दुल्हन द्वारा अपने ससुराल वालों को सोने के आभूषण सौंपना वैवाहिक घर की चारदीवारी के भीतर होता है। नवविवाहित महिला अपने पति या ससुराल वालों को आभूषण सौंपते समय रसीद या स्वतंत्र गवाहों की मांग करने की स्थिति में नहीं होगी। ऐसे लेन-देन की घरेलू और...

चेक बाउंस मामला | केरल हाईकोर्ट का फैसला: आरोपी के रिश्तेदार को नोटिस देना तब तक वैध नहीं, जब तक आरोपी को जानकारी न हो
चेक बाउंस मामला | केरल हाईकोर्ट का फैसला: आरोपी के रिश्तेदार को नोटिस देना तब तक वैध नहीं, जब तक आरोपी को जानकारी न हो

केरल हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि चेक बाउंस होने पर भेजा गया वैधानिक नोटिस आरोपी के किसी रिश्तेदार को दिया गया हो तो उसे NI Act की धारा 138 के तहत कार्यवाही शुरू करने के लिए तब तक वैध नहीं माना जा सकता, जब तक यह साबित न हो कि आरोपी को उस नोटिस की जानकारी थी।जस्टिस पी. वी. कुन्हिकृष्णन ने कहा,"अगर शिकायतकर्ता की ओर से यह साबित नहीं किया जाता कि आरोपी को नोटिस के रिश्तेदार द्वारा प्राप्त किए जाने की जानकारी थी तो यह माना जाएगा कि आरोपी को धारा 138(b) के तहत आवश्यक नोटिस की सेवा नहीं हुई है।"यह...

हिरासत में यातना सरकारी कर्तव्य का हिस्सा नहीं: हाईकोर्ट ने बिना अनुमति पुलिसकर्मियों के खिलाफ आरोप तय करने का दिया आदेश
हिरासत में यातना सरकारी कर्तव्य का हिस्सा नहीं: हाईकोर्ट ने बिना 'अनुमति' पुलिसकर्मियों के खिलाफ आरोप तय करने का दिया आदेश

केरल हाईकोर्ट ने निचली अदालत को महिला से कथित चोरी के मामले में पूछताछ के दौरान हिरासत में यातना देने के आरोपी चार पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश दिया।जस्टिस डॉ. कौसर एडप्पागथ ने निचली अदालत का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें आरोपी पुलिस अधिकारियों को यह कहते हुए बरी कर दिया गया था कि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 197 के तहत पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी।न्यायालय ने पाया कि CrPC की धारा 197 के तहत संरक्षण लोक सेवकों द्वारा की गई आपराधिक गतिविधियों पर लागू नहीं होता है। इसके...

20 दिसंबर 2004 के बाद मरे हिंदू की बेटी केरल में HUF के बराबर हिस्से की हकदार; केरल संयुक्त परिवार उन्मूलन अधिनियम की धाराएं HSA के प्रतिकूल: केरल हाईकोर्ट
20 दिसंबर 2004 के बाद मरे हिंदू की बेटी केरल में HUF के बराबर हिस्से की हकदार; केरल संयुक्त परिवार उन्मूलन अधिनियम की धाराएं HSA के प्रतिकूल: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को एक फैसले में कहा कि केरल संयुक्त हिंदू परिवार व्यवस्था (उन्मूलन) अधिनियम, 1975 की धारा 3 और 4, हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 की धारा 6 के प्रतिकूल हैं और इसलिए मान्य नहीं हो सकतीं। केरल संयुक्त हिंदू परिवार व्यवस्था (उन्मूलन) अधिनियम की धारा 3 के अनुसार, कोई भी व्यक्ति पैतृक संपत्ति में जन्मसिद्ध अधिकार का दावा नहीं कर सकता। अधिनियम की धारा 4 के अनुसार, केरल में एक हिंदू अविभाजित परिवार विभाजित माना जाता है और उसे साझा किरायेदारी में परिवर्तित कर दिया जाता...

शिक्षकों द्वारा छात्रों को बेंत से पीटना या शारीरिक दंड देना अपराध नहीं, हालांकि अतिवादी/क्रूर कृत्य अपराध माना जाएगा: केरल हाईकोर्ट
शिक्षकों द्वारा छात्रों को बेंत से पीटना या शारीरिक दंड देना अपराध नहीं, हालांकि अतिवादी/क्रूर कृत्य अपराध माना जाएगा: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने कहा है कि शिक्षकों द्वारा छात्रों को बेंत से पीटना या शारीरिक दंड देना, वर्तमान क़ानून के अनुसार, BNS और किशोर न्याय अधिनियम, (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। हालांकि, न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वह ऐसे मामलों को बाहर नहीं कर रहा है जहां बच्चे के शरीर के किसी भी "महत्वपूर्ण अंग पर शारीरिक दंड" दिया गया हो, न ही वह शिक्षकों द्वारा प्रदर्शित किसी भी "दुष्ट प्रवृत्ति" को बाहर कर रहा है। न्यायालय ने कहा कि ये असाधारण परिस्थितियां...

BCI ने तदर्थ समिति की शक्ति सीमित करने वाले केरल हाईकोर्ट के आदेश पर दोबारा विचार की मांग की
BCI ने तदर्थ समिति की शक्ति सीमित करने वाले केरल हाईकोर्ट के आदेश पर दोबारा विचार की मांग की

बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने केरल हाईकोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की है जिसमें यशवंत शेनॉय बनाम केरल बार काउंसिल और अन्य बनाम केरल कोर्ट ने स्टेट बार काउंसिल द्वारा एडवोकेट यशवंत शेनॉय (अपीलकर्ता) के खिलाफ शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही को रद्द कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि उसके पास ऐसी कार्यवाही शुरू करने की कोई शक्ति नहीं है।फैसले में, न्यायालय ने कहा कि बार काउंसिल ऑफ केरल का वर्तमान कोरम एक निकाय था जो कानून का उल्लंघन कर रहा था क्योंकि इसके सदस्यों की अवधि समाप्त हो गई थी और उसके बाद,...

BNSS की धारा 360 के तहत अभियोजन वापस लेने की सहमति देने से इनकार करने पर आरोपी ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दे सकता है: केरल हाईकोर्ट
BNSS की धारा 360 के तहत अभियोजन वापस लेने की सहमति देने से इनकार करने पर आरोपी ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दे सकता है: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि कोई आरोपी ट्रायल कोर्ट के उस 'मनमाने और तर्कहीन' आदेश को चुनौती दे सकता है, जिसमें भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 360/ CrPC की धारा 321 के तहत उसके खिलाफ अभियोजन वापस लेने के लिए राज्य को सहमति देने से इनकार किया गया, भले ही राज्य ने ऐसे आदेशों को चुनौती न देने का विकल्प चुना हो।यह आदेश जस्टिस कौसर एडापागथ ने पारित किया।मामले की पृष्ठभूमियह मामला दो पुनर्विचार याचिकाओं से उत्पन्न हुआ, जिसमें से एक में कई आरोपी शामिल थे, जिन पर IPC, आर्म्स एक्ट,...

रैगिंग पर वर्तमान कानून कैंपस के भीतर और बाहर दोनों जगह रोक लगाने का उद्देश्य रखता है: केरल हाईकोर्ट
रैगिंग पर वर्तमान कानून कैंपस के भीतर और बाहर दोनों जगह रोक लगाने का उद्देश्य रखता है: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने केरल रैगिंग निषेध अधिनियम 1998 में संशोधन के लिए सुझाव देने के लिए गठित कार्य समिति से कहा कि वह किसी शैक्षणिक संस्थान के परिसर के भीतर और बाहर रैगिंग पर रोक लगाने की विधायिका की मंशा को ध्यान में रखे।हालांकि अधिनियम के तहत 'शैक्षणिक संस्थान' शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन मुख्य न्यायाधीश नितिन जामदार और न्यायमूर्ति सी जयचंद्रन की विशेष पीठ ने कहा कि धारा 3 में न केवल शैक्षणिक संस्थान के अंदर बल्कि उसके परिसर के बाहर भी रैगिंग पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान है। यह तब...