महिला घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत राहत लेने की हकदार, भले ही मामला CrPC की धारा 488(3) के तहत चल रहा हो: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

Amir Ahmad

28 July 2025 11:47 AM IST

  • महिला घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत राहत लेने की हकदार, भले ही मामला CrPC की धारा 488(3) के तहत चल रहा हो: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के संरक्षणकारी दायरे को व्यापक रूप से स्वीकार करते हुए जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला J&K CrPC की धारा 488(3) (जो CrPC की धारा 125 के समरूप है) के तहत चल रही भरण-पोषण की अनुपालन कार्यवाही के दौरान भी अधिनियम की धारा 26 का सहारा लेते हुए अधिनियम की धाराओं 18 से 22 के अंतर्गत निवास या अन्य राहत मांग सकती है।

    जस्टिस संजय धर ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 26 में प्रयुक्त कानूनी कार्यवाही शब्द को उदारतापूर्वक रूप से व्याख्यायित किया जाना चाहिए ताकि अधिनियम का उद्देश्य घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं का संरक्षण पूरा हो सके।

    मामले की पृष्ठभूमि

    यह विवाद उस समय उत्पन्न हुआ, जब याचिकाकर्ता मुबाशिर अहमद वानी की पत्नी (प्रतिवादी सं. 2) और नाबालिग बेटी (प्रतिवादी सं. 1) ने J&K CrPC की धारा 488 के तहत भरण-पोषण याचिका दायर की। मजिस्ट्रेट ने आदेश दिया कि बेटी को 3000 माह और पत्नी को 5000 माह दिए जाएं।

    बाद में इस आदेश की अनुपालन कार्यवाही के दौरान पत्नी और बेटी ने घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 26 और 19 के तहत निवास आदेश की मांग करते हुए आवेदन दिया। लेकिन ट्रायल मजिस्ट्रेट ने यह कहते हुए इस आवेदन को खारिज कर दिया कि धारा 19 के तहत राहत केवल DV Act की धारा 12 के अंतर्गत दाखिल याचिका में ही दी जा सकती है।

    इस आदेश के विरुद्ध प्रतिवादियों ने DV Act की धारा 29 के तहत प्रिंसिपल सेशन जज अनंतनाग के समक्ष अपील की, जिन्होंने मजिस्ट्रेट का आदेश रद्द कर दिया और यह माना कि धारा 26 के तहत ऐसी राहतें ली जा सकती हैं। इसके खिलाफ पति ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

    पक्षकारों की दलीलें

    याचिकाकर्ता की ओर से वकील असवद अत्तर ने तर्क दिया कि DV Act की धारा 26 केवल एक सक्षमकारी प्रावधान है, न कि किसी अदालत को अधिनियम की धाराओं 18 से 22 के तहत राहत देने की स्वतंत्र अधिकारिता प्रदान करता है। विशेषकर जब कार्यवाही DV Act के तहत शुरू ही नहीं हुई हो।

    प्रतिवादियों की ओर से वकील रिजवान-उल-जमां भट ने कहा कि धारा 26 स्पष्ट रूप से यह अनुमति देती है कि कोई भी पक्ष किसी भी चल रही कानूनी कार्यवाही के दौरान DV Act के अंतर्गत राहत मांग सकता है, चाहे वह CrPC की धारा 488 या उसकी अनुपालन प्रक्रिया ही क्यों न हो।

    कोर्ट के विचार एवं निष्कर्ष

    जस्टिस धर ने कहा कि DV Act की धारा 26 यह स्पष्ट करती है कि कोई भी पीड़ित पक्ष किसी भी कानूनी कार्यवाही में चाहे वह अधिनियम से पहले शुरू हुई हो या बाद में धाराओं 18 से 22 के अंतर्गत राहत की मांग कर सकता है।

    सुप्रीम कोर्ट के फैसलों जैसे Hiral P. Harsora v. Kusum Narottamdas Harsora (2016), Vaishali Abhimanyu Joshi v. Nanasaheb Gopal Joshi (2017) और Satish Chander Ahuja v. Sneha Ahuja (2021) का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने माना कि धारा 26 को अधिनियम के उद्देश्य को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए व्यापक रूप से पढ़ा जाना चाहिए।

    हाईकोर्ट ने कहा,

    “यह स्पष्ट है कि J&K CrPC की धारा 488(3) जैसी कार्यवाही भी DV Act की धारा 26 में निहित 'कानूनी कार्यवाही' की परिभाषा में आती है, अतः ऐसी कार्यवाही के दौरान भी पीड़ित पक्ष DV अधिनियम की धारा 19 के तहत राहत मांग सकता है।”

    अपील या पुनर्विचार का प्रश्न

    हाईकोर्ट ने माना कि चूंकि ट्रायल मजिस्ट्रेट का आदेश CrPC की धारा 488 के तहत पारित हुआ था, अतः DV Act की धारा 29 के तहत अपील नहीं की जा सकती थी। इस आदेश को CrPC की धारा 435 (जो CrPC की धारा 397 के समरूप है) के तहत पुनरीक्षण में ही चुनौती दी जा सकती थी।

    सेशन कोर्ट को DV Act के तहत अपील और CrPC के तहत पुनर्विचार दोनों सुनने का अधिकार है, इसलिए हाईकोर्ट ने केवल प्रक्रिया संबंधी तकनीकी आधार पर मामले को वापस भेजने से इनकार कर दिया।

    निष्कर्ष

    हाईकोर्ट ने कहा,

    “मामले को केवल इस औपचारिकता के आधार पर वापस भेजना कि सेशन जज को अपील की नहीं, पुनर्विचार की शक्ति थी, यह एक अनावश्यक औपचारिकता होगी।”

    न्यायालय ने अंततः ट्रायल मजिस्ट्रेट का 02.02.2021 का आदेश रद्द कर दिया और उन्हें निर्देश दिया कि DV Act की धारा 19 के तहत प्रतिवादियों के आवेदन पर विधि अनुसार निर्णय लिया जाए।

    केस टाइटल: परवीन बनो बनाम मुबाशिर अहमद वानी एवं अन्य

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