जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने सहकारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट आयु 58 से 60 वर्ष करने की याचिका खारिज की

Amir Ahmad

28 Aug 2025 4:20 PM IST

  • जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने सहकारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट आयु 58 से 60 वर्ष करने की याचिका खारिज की

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि सहकारी समितियों के कर्मचारियों की सेवा से निवृत्ति की आयु 58 वर्ष ही रहेगी, जैसा कि एसआरओ 233 ऑफ 1988 में निर्धारित है। अदालत ने कहा कि केवल विभागीय प्रस्तावों, ड्राफ्ट संशोधनों या सिफारिशों के आधार पर इस आयु को 60 वर्ष तक नहीं बढ़ाया जा सकता।

    जस्टिस सिंधु शर्मा और जस्टिस शहज़ाद अज़ीम की खंडपीठ ने दो सहकारी कर्मचारियों की अपीलों को खारिज करते हुए कहा,

    "जब तक एसआरओ 233 ऑफ 1988 प्रभावी है, सहकारी समितियों के कर्मचारियों की सेवा शर्तें किसी भी सिफारिश/प्रस्ताव से नहीं बदली जा सकतीं।"

    यह मामला पुलवामा कोऑपरेटिव सुपरमार्केट के सहायक प्रबंधक और सोपोर कोऑपरेटिव मार्केटिंग सोसाइटी के एक प्रबंधक से जुड़ा था, जिन्होंने 58 वर्ष की आयु में सेवानिवृत्ति नोटिस को चुनौती दी थी। उनका तर्क था कि सरकार ने 2014 के एसआरओ 164 द्वारा सरकारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट आयु 60 वर्ष की। इसलिए उन्हें भी समान लाभ मिलना चाहिए। उन्होंने रजिस्ट्रार सहकारी समितियों की 2019 की सिफारिश और ड्राफ्ट संशोधन नियमों का हवाला भी दिया।

    अदालत ने इसे भ्रमित करने वाला मानते हुए कहा कि केवल सिफारिशें या मसौदा नियम वैधानिक बल नहीं रखते और न ही अदालत उन्हें लागू कर सकती है। साथ ही एसआरओ 164 ऑफ 2014 केवल सरकारी सेवकों पर लागू होता है सहकारी समितियों के कर्मचारियों पर नहीं।

    खंडपीठ ने यह भी कहा,

    "हमें कहीं नहीं मिला कि सहकारी कर्मचारियों की रिटायरमेंट आयु बदलने का अधिकार प्रतिवादियों को सौंपा गया।"

    व्यक्तिगत मामलों में अदालत ने पाया कि सहायक प्रबंधक 58 वर्ष के बाद काम पर नहीं रहे, इसलिए वे अतिरिक्त वेतन नहीं पा सकते। जबकि प्रबंधक ने दिसंबर 2022 तक काम किया था लेकिन वह भी केवल अंतरिम आदेश के आधार पर और अपने ही जोखिम पर। अदालत ने साफ किया कि चूंकि नियम सेवा जारी रखने की अनुमति नहीं देते इसलिए वह भी वेतन पाने के हकदार नहीं हैं।

    अंततः अदालत ने निर्णय दिया कि सेवानिवृत्ति आयु में कोई भी बदलाव केवल वैधानिक संशोधन द्वारा ही किया जा सकता है।

    केस टाइटल: मोहम्‍मद यूसुफ मीर बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर

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