संपादकीय

सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
'ऐसे ठोस उदाहरण दीजिए, जहां किसी राज्य में कम आबादी होने के बावजूद हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा मांगने पर न मिला हो': सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग वाली याचिका पर कहा

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को हिंदुओं को अल्पसंख्यक (Hindu Minority) का दर्जा देने की मांग वाली याचिका पर कहा कि आप ऐसे ठोस उदाहरण दीजिए, जहां किसी राज्य में कम आबादी होने के बावजूद हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा मांगने पर न मिला हो।जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने मौखिक रूप से कहा,"अगर कोई ठोस मामला है कि मिजोरम या कश्मीर में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने से इनकार किया गया है, तो हम इस पर विचार कर सकते हैं। जब तक हमें कोई ठोस स्थिति नहीं...

सुप्रीम कोर्ट ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग की पूजा के अधिकार की मांग वाली याचिका पर 21 जुलाई को सुनवाई करेगा
सुप्रीम कोर्ट ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग की पूजा के अधिकार की मांग वाली याचिका पर 21 जुलाई को सुनवाई करेगा

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) सोमवार को 21 जुलाई को उस याचिका को सूचीबद्ध करने पर सहमत हो गया, जिसमें उसके सर्वेक्षण के दौरान ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Case) के परिसर में पाए जाने वाले शिवलिंग की पूजा की अनुमति देने की मांग की गई थी।एडवोकेट विष्णु शंकर जैन ने 21 जुलाई को मामले को सूचीबद्ध करने के लिए भारत के चीफ जस्टिस के समक्ष भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका का उल्लेख किया। वकील ने कहा कि अंजुमन इंटेजेमिया मस्जिद समिति (जो ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करती है) द्वारा...

सिर्फ मकान मालिक-किरायेदार के रिश्ते को नकारकर प्रतिवादी किराया जमा किए बिना वाद के लंबित रहने के दौरान संपत्ति का आनंद नहीं ले सकता : सुप्रीम कोर्ट
सिर्फ मकान मालिक-किरायेदार के रिश्ते को नकारकर प्रतिवादी किराया जमा किए बिना वाद के लंबित रहने के दौरान संपत्ति का आनंद नहीं ले सकता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कोई प्रतिवादी सिर्फ मकान मालिक-किरायेदार/पट्टादाता- पट्टेदार के रिश्ते को नकारकर किराए/नुकसान की राशि जमा किए बिना वाद के लंबित रहने के दौरान संपत्ति का आनंद नहीं ले सकता है।जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और अनिरुद्ध बोस की बेंच ने अपील की अनुमति देते हुए कहा, "वादी के टाईटल से इनकार करने और वादी और प्रतिवादी के बीच मकान मालिक और किरायेदार के संबंध से इनकार करने के प्रस्ताव के संदर्भ में, हम यह भी कह सकते हैं कि इस तरह का इनकार सरलीकृत पट्टेदार/किरायेदार बकाया जमा करने के...

सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
अनुच्छेद 136 के तहत विशेष अनुमति द्वारा आपराधिक अपील का दायरा : सुप्रीम कोर्ट ने समझाया

एक आपराधिक अपील को खारिज करते हुए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत विशेष अनुमति द्वारा आपराधिक अपील के दायरे को समझाया।अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 136 के तहत शक्ति का प्रयोग तभी किया जा सकता है जब यह न्यायालय संतुष्ट हो कि न्याय के गंभीर या संगीन पतन को रोकने के लिए हस्तक्षेप करना आवश्यक है। पहले के फैसलों का जिक्र करते हुए जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने निम्नलिखित टिप्पणियां कीं:न्याय के गंभीर या संगीन पतन को रोकने के लिए असाधारण...

कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के लंबित रहने पर भी सेना के अधिकारियों को निलंबित करने से पहले सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के लंबित रहने पर भी सेना के अधिकारियों को निलंबित करने से पहले सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के लंबित रहने पर भी उन्हें निलंबित करने से पहले सेना (Army) के अधिकारियों को सुनवाई का अवसर देने की आवश्यकता नहीं है।जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने कहा,"यहां तक कि रेगुलेशन 349 के तहत भी, इस तरह की प्रक्रिया का पालन करने की कोई आवश्यकता नहीं है।"रेगुलेशन 349 का प्रासंगिक भाग निम्नानुसार पढ़ता है: एक अधिकारी को उसके ओसी या किसी अन्य वरिष्ठ प्राधिकारी द्वारा ड्यूटी से (गिरफ्तारी से स्वतंत्र) निलंबित किया जा सकता है, न...

हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रक्रिया ही सजा बन गई है: सीजेआई एनवी रमना
हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रक्रिया ही सजा बन गई है: सीजेआई एनवी रमना

भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने जल्दबाजी में अंधाधुंध गिरफ्तारी और जमानत पाने में कठिनाई पर जोर देते हुए शनिवार को कहा कि जिस प्रक्रिया के कारण विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक जेल में रखा गया, उस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। सीजेआई ने कहा," हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में, प्रक्रिया ही सजा है। जल्दबाजी में हुई अंधाधुंध गिरफ्तारी से लेकर जमानत पाने में कठिनाई तक, विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक जेल में रखने की प्रक्रिया पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। "जयपुर में 18वीं अखिल भारतीय...

सिर्फ अंग्रेज़ी बोलेने वाले वकीलों को अधिक फीस, अधिक केस नहीं मिलने चाहिए : कानून मंत्री ने अदालतों में क्षेत्रीय भाषाओं के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया
"सिर्फ अंग्रेज़ी बोलेने वाले वकीलों को अधिक फीस, अधिक केस नहीं मिलने चाहिए" : कानून मंत्री ने अदालतों में क्षेत्रीय भाषाओं के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया

केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों से प्रयास करने की अपील की ताकि भारत की स्वतंत्रता के 75वें साल के दिन 15 अगस्त, 2022 तक अधिकतम विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जा सके।कानून मंत्री ने कहा,"मैं सभी राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों से अपील करता हूं कि वे विचाराधीन कैदियों को कानूनी सलाह/सहायता प्रदान करने के अपने प्रयासों को और तेज करें ताकि 15 अगस्त 2022 को या उससे पहले आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए अधिकतम संख्या में विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जा...

सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 : केवल इसलिए कि हथियार की खोज आरोपी के कहने पर हुई थी, इसका मतलब यह नहीं है कि उसने इसे छुपाया या इस्तेमाल किया : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केवल इसलिए कि हथियार की खोज आरोपी के कहने पर हुई थी, इसका मतलब यह नहीं है कि उसने इसे छुपाया या इस्तेमाल किया।पीठ ने हत्या के दोषी द्वारा दायर एक अपील पर विचार करते हुए इस प्रकार कहा, जिसकी धारा 302 आईपीसी के तहत सजा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था। अपीलकर्ता द्वारा उठाए गए तर्कों में से एक यह था कि इस मामले में चश्मदीद गवाह अविश्वसनीय गवाह हैं।अपील में, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि दोनों अदालतों ने दो चश्मदीद गवाहों पर सही विश्वास किया। हालांकि, इसने निचली अदालत...

सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्तिपरक राय या संतुष्टि के आधार पर प्रशासनिक प्राधिकरण की कार्रवाई की न्यायिक समीक्षा के दायरे की व्याख्या की
सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्तिपरक राय या संतुष्टि के आधार पर प्रशासनिक प्राधिकरण की कार्रवाई की न्यायिक समीक्षा के दायरे की व्याख्या की

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी व्यक्तिपरक राय या संतुष्टि के आधार पर प्रशासनिक प्राधिकरण की कार्रवाई की न्यायिक समीक्षा के दायरे की व्याख्या की।बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला शामिल थे,ने कहा, "व्यक्तिपरक राय या संतुष्टि के आधार पर कार्रवाई की न्यायिक रूप से समीक्षा की जा सकती है ताकि तथ्यों या परिस्थितियों के अस्तित्व का पता लगाया जा सके जिसके आधार पर प्राधिकरण पर राय बनाने का आरोप लगाया गया है।"गुवाहाटी हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका में असम राइफल्स में राइफलमैन ने लेफ्टिनेंट कर्नल...

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए असहमति की आवाज जरूरी है, सिर्फ राजनीतिक दलों की आलोचना आईपीसी की धारा 153ए और 295ए लागू करने का कोई आधार नहीं हो सकती: जुबैर की जमानत पर दिल्ली कोर्ट
स्वस्थ लोकतंत्र के लिए असहमति की आवाज जरूरी है, सिर्फ राजनीतिक दलों की आलोचना आईपीसी की धारा 153ए और 295ए लागू करने का कोई आधार नहीं हो सकती: जुबैर की जमानत पर दिल्ली कोर्ट

दिल्ली की एक अदालत ने ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को जमानत देते हुए कहा,"स्वस्थ लोकतंत्र के लिए असहमति की आवाज जरूरी है। इसलिए, किसी भी राजनीतिक दल की आलोचना के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 ए और 295 ए को लागू करना उचित नहीं है।"हाल ही में 2018 में किए गए अपने ट्वीट से धार्मिक भावनाओं को आहत करने और दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में दिल्ली पुलिस द्वारा जुबैर के खिलाफ दर्ज एफआईआर पर सुनवाई के दैरान यह घटनाक्रम सामने आया।यह टिप्पणी इस आरोप के संदर्भ में की गई कि जुबैर ने...

बीसीसीआई ने सुप्रीम कोर्ट से संविधान में संशोधन की अनुमति की मांग वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई करने का अनुरोध किया
बीसीसीआई ने सुप्रीम कोर्ट से संविधान में संशोधन की अनुमति की मांग वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई करने का अनुरोध किया

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से अपने संविधान में संशोधन की अनुमति की मांग वाली याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया है।इस मामले का उल्लेख सीनियर एडवोकेट पीएस पटवालिया ने शुक्रवार को भारत के चीफ जस्टिस के समक्ष किया।मामले को सूचीबद्ध करने के लिए पीठ से आग्रह करते हुए पटवालिया ने कहा,"आवेदन 2 साल पहले दायर किया गया था और यह अप्रैल में दाखिल किया था। निर्देश इसे 2 सप्ताह के बाद सूचीबद्ध करने के लिए थे, लेकिन फिर COVID आ गया। फैसले के बाद संशोधन लंबित...

[ज्ञानवापी] कोर्ट ऐतिहासिक गलती का निर्णय मौजूदा शासन में कर सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट में भगवान विश्वेश्वर की ओर से पेश वकील का तर्क
[ज्ञानवापी] कोर्ट ऐतिहासिक गलती का निर्णय मौजूदा शासन में कर सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट में भगवान विश्वेश्वर की ओर से पेश वकील का तर्क

काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद (Vishwanath temple-Gyanvapi Mosque) के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के समक्ष चल रही सुनवाई में, भगवान विश्वेश्वर की ओऱ से पेश वकील (नेक्स्ट फ्रेंड) और मामले में प्रतिवादी में से एक ने बुधवार को तर्क दिया कि यदि पूर्व में संप्रभु शासन द्वारा ऐतिहासिक गलती की गई तो इस मामले का निर्णय वर्तमान संप्रभु शासन में मुंसिपल कोर्ट द्वारा किया जा सकता है।जस्टिस प्रकाश पाडिया की पीठ के समक्ष आगे यह तर्क दिया गया कि वारेन हेस्टिंग्स [1772-1785...