संपादकीय
अनुच्छेद 136 के तहत विशेष अनुमति द्वारा आपराधिक अपील का दायरा : सुप्रीम कोर्ट ने समझाया
एक आपराधिक अपील को खारिज करते हुए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत विशेष अनुमति द्वारा आपराधिक अपील के दायरे को समझाया।अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 136 के तहत शक्ति का प्रयोग तभी किया जा सकता है जब यह न्यायालय संतुष्ट हो कि न्याय के गंभीर या संगीन पतन को रोकने के लिए हस्तक्षेप करना आवश्यक है। पहले के फैसलों का जिक्र करते हुए जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने निम्नलिखित टिप्पणियां कीं:न्याय के गंभीर या संगीन पतन को रोकने के लिए असाधारण...
कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के लंबित रहने पर भी सेना के अधिकारियों को निलंबित करने से पहले सुनवाई का अवसर देना अनिवार्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के लंबित रहने पर भी उन्हें निलंबित करने से पहले सेना (Army) के अधिकारियों को सुनवाई का अवसर देने की आवश्यकता नहीं है।जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने कहा,"यहां तक कि रेगुलेशन 349 के तहत भी, इस तरह की प्रक्रिया का पालन करने की कोई आवश्यकता नहीं है।"रेगुलेशन 349 का प्रासंगिक भाग निम्नानुसार पढ़ता है: एक अधिकारी को उसके ओसी या किसी अन्य वरिष्ठ प्राधिकारी द्वारा ड्यूटी से (गिरफ्तारी से स्वतंत्र) निलंबित किया जा सकता है, न...
सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (11 जुलाई, 2022 से 15 जुलाई, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।अग्रिम जमानत आवेदनों की जांच आवेदक के मामले तक सीमित होनी चाहिए, इसे तीसरे पक्ष के खिलाफ निर्देशित नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्टसुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि हाईकोर्ट के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के तहत शक्तियों के प्रयोग में तीसरे पक्ष के खिलाफ अभियोग चलाना खुला नहीं है। उक्त...
हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (11 जुलाई, 2022 से 15 जुलाई, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।एक ही तथ्य पर अभियुक्त के खिलाफ धारा 420 आईपीसी और धारा 138 एनआई एक्ट के तहत अभियोजन "दोहरा खतरा" नहीं: जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्टजम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि संविधान के अनुच्छेद 20 (2) के तहत गारंटीकृत "दोहरे खतरे" के खिलाफ मौलिक अधिकार का पता लगाने और उसे बनाए...
न्यायिक रिक्तियों को न भरना मामलों के लंबित होने का प्रमुख कारण : सीजेआई एन वी रमना
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने शनिवार को देश में बड़े पैमाने पर केस बैकलॉग के बारे में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं के जवाब में दोहराया कि देश में न्यायिक रिक्तियों (judicial vacancies) को न भरना मामलों के लंबित होने का प्रमुख कारण है।विधि मंत्री और मुख्य न्यायाधीश जयपुर में अखिल भारतीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बैठक में भाग ले रहे थे।अपने संबोधन में कानून मंत्री ने कहा कि यह चिंता का विषय है कि आजादी के 75वें वर्ष में देश भर की अदालतों में 5 करोड़ से...
हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रक्रिया ही सजा बन गई है: सीजेआई एनवी रमना
भारत के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना ने जल्दबाजी में अंधाधुंध गिरफ्तारी और जमानत पाने में कठिनाई पर जोर देते हुए शनिवार को कहा कि जिस प्रक्रिया के कारण विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक जेल में रखा गया, उस पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। सीजेआई ने कहा," हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में, प्रक्रिया ही सजा है। जल्दबाजी में हुई अंधाधुंध गिरफ्तारी से लेकर जमानत पाने में कठिनाई तक, विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक जेल में रखने की प्रक्रिया पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है। "जयपुर में 18वीं अखिल भारतीय...
"सिर्फ अंग्रेज़ी बोलेने वाले वकीलों को अधिक फीस, अधिक केस नहीं मिलने चाहिए" : कानून मंत्री ने अदालतों में क्षेत्रीय भाषाओं के इस्तेमाल पर ज़ोर दिया
केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू ने राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों से प्रयास करने की अपील की ताकि भारत की स्वतंत्रता के 75वें साल के दिन 15 अगस्त, 2022 तक अधिकतम विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जा सके।कानून मंत्री ने कहा,"मैं सभी राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरणों से अपील करता हूं कि वे विचाराधीन कैदियों को कानूनी सलाह/सहायता प्रदान करने के अपने प्रयासों को और तेज करें ताकि 15 अगस्त 2022 को या उससे पहले आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए अधिकतम संख्या में विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जा...
साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 : केवल इसलिए कि हथियार की खोज आरोपी के कहने पर हुई थी, इसका मतलब यह नहीं है कि उसने इसे छुपाया या इस्तेमाल किया : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केवल इसलिए कि हथियार की खोज आरोपी के कहने पर हुई थी, इसका मतलब यह नहीं है कि उसने इसे छुपाया या इस्तेमाल किया।पीठ ने हत्या के दोषी द्वारा दायर एक अपील पर विचार करते हुए इस प्रकार कहा, जिसकी धारा 302 आईपीसी के तहत सजा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था। अपीलकर्ता द्वारा उठाए गए तर्कों में से एक यह था कि इस मामले में चश्मदीद गवाह अविश्वसनीय गवाह हैं।अपील में, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि दोनों अदालतों ने दो चश्मदीद गवाहों पर सही विश्वास किया। हालांकि, इसने निचली अदालत...
सुप्रीम कोर्ट ने व्यक्तिपरक राय या संतुष्टि के आधार पर प्रशासनिक प्राधिकरण की कार्रवाई की न्यायिक समीक्षा के दायरे की व्याख्या की
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी व्यक्तिपरक राय या संतुष्टि के आधार पर प्रशासनिक प्राधिकरण की कार्रवाई की न्यायिक समीक्षा के दायरे की व्याख्या की।बेंच, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला शामिल थे,ने कहा, "व्यक्तिपरक राय या संतुष्टि के आधार पर कार्रवाई की न्यायिक रूप से समीक्षा की जा सकती है ताकि तथ्यों या परिस्थितियों के अस्तित्व का पता लगाया जा सके जिसके आधार पर प्राधिकरण पर राय बनाने का आरोप लगाया गया है।"गुवाहाटी हाईकोर्ट के समक्ष रिट याचिका में असम राइफल्स में राइफलमैन ने लेफ्टिनेंट कर्नल...
पुलिस का घर जाना, राउडी शीट खोलना, थाने में बुलाना, निजता का उल्लंघन : एपी हाईकोर्ट
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में माना कि उपद्रवी (Rowdy) के रूप में ब्रांड लोगों की शीट खोलना, उनकी तस्वीरें जमा करके उनका प्रदर्शन करना, अउनके घर जाना और मौजूदा पुलिस सरकारी आदेश के अनुसार पुलिस स्टेशन को समन करना " निजता के अधिकार का सीधा उल्लंघन" है। कोर्ट ने माना कि पुलिस के आदेश अनुच्छेद 21 के अर्थ में "कानून" के रूप में योग्य नहीं हैं और कानून की मंजूरी के बिना, पुलिस लोगों की व्यक्तिगत जानकारी एकत्र नहीं कर सकती और उनके घर जा सकती है।जस्टिस डीवीएसएस सोमजायुलु की एकल पीठ...
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 भाग 18: पॉक्सो अपराधों में रिपोर्ट करने की रीति
लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (The Protection Of Children From Sexual Offences Act, 2012) की धारा 19 पॉक्सो अधिनियम में रिपोर्ट करने की रीति निर्धारित करती है। इस आलेख में धारा 19 पर टिप्पणी प्रस्तुत की जा रही है।यह अधिनियम में प्रस्तुत धारा का मूल रूप हैधारा 19अपराधों की रिपोर्ट करना(1) दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी कोई व्यक्ति (जिसके अंतर्गत बालक भी हैं) जिसे यह आशंका है कि इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किए जाने की संभावना है...
स्वस्थ लोकतंत्र के लिए असहमति की आवाज जरूरी है, सिर्फ राजनीतिक दलों की आलोचना आईपीसी की धारा 153ए और 295ए लागू करने का कोई आधार नहीं हो सकती: जुबैर की जमानत पर दिल्ली कोर्ट
दिल्ली की एक अदालत ने ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को जमानत देते हुए कहा,"स्वस्थ लोकतंत्र के लिए असहमति की आवाज जरूरी है। इसलिए, किसी भी राजनीतिक दल की आलोचना के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 ए और 295 ए को लागू करना उचित नहीं है।"हाल ही में 2018 में किए गए अपने ट्वीट से धार्मिक भावनाओं को आहत करने और दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में दिल्ली पुलिस द्वारा जुबैर के खिलाफ दर्ज एफआईआर पर सुनवाई के दैरान यह घटनाक्रम सामने आया।यह टिप्पणी इस आरोप के संदर्भ में की गई कि जुबैर ने...
"अगर हमारे बच्चे सुबह 7 बजे स्कूल जा सकते हैं, तो हम 9 बजे कोर्ट क्यों नहीं आ सकते?" जस्टिस ललित ने कहा
जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की बेंच ने बेंच के नियमित बैठने के समय से एक घंटे पहले आज सुबह 9.30 बजे अपनी बैठक शुरू की।सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने एक मामले में पेश होने के बाद इस समय व्यवस्था की सराहना की और टिप्पणी की कि यह अधिक सुविधाजनक है।जस्टिस ललित (Justice Lalit) ने कहा,"अगर हमारे बच्चे सुबह 7 बजे स्कूल जा सकते हैं, तो हम 9 बजे कोर्ट क्यों नहीं आ सकते?"जस्टिस ललित ने कहा कि यह एक प्रयोग है। जस्टिस ललित ...
बीसीसीआई ने सुप्रीम कोर्ट से संविधान में संशोधन की अनुमति की मांग वाली याचिका पर तत्काल सुनवाई करने का अनुरोध किया
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से अपने संविधान में संशोधन की अनुमति की मांग वाली याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया है।इस मामले का उल्लेख सीनियर एडवोकेट पीएस पटवालिया ने शुक्रवार को भारत के चीफ जस्टिस के समक्ष किया।मामले को सूचीबद्ध करने के लिए पीठ से आग्रह करते हुए पटवालिया ने कहा,"आवेदन 2 साल पहले दायर किया गया था और यह अप्रैल में दाखिल किया था। निर्देश इसे 2 सप्ताह के बाद सूचीबद्ध करने के लिए थे, लेकिन फिर COVID आ गया। फैसले के बाद संशोधन लंबित...
[ज्ञानवापी] कोर्ट ऐतिहासिक गलती का निर्णय मौजूदा शासन में कर सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट में भगवान विश्वेश्वर की ओर से पेश वकील का तर्क
काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद (Vishwanath temple-Gyanvapi Mosque) के संबंध में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) के समक्ष चल रही सुनवाई में, भगवान विश्वेश्वर की ओऱ से पेश वकील (नेक्स्ट फ्रेंड) और मामले में प्रतिवादी में से एक ने बुधवार को तर्क दिया कि यदि पूर्व में संप्रभु शासन द्वारा ऐतिहासिक गलती की गई तो इस मामले का निर्णय वर्तमान संप्रभु शासन में मुंसिपल कोर्ट द्वारा किया जा सकता है।जस्टिस प्रकाश पाडिया की पीठ के समक्ष आगे यह तर्क दिया गया कि वारेन हेस्टिंग्स [1772-1785...
दोषसिद्धि के खिलाफ पहले से ही स्वीकृत आपराधिक अपील को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि आरोपी फरार है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दोषसिद्धि के खिलाफ पहले से स्वीकृत अपील को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि आरोपी फरार है।इस मामले में, आरोपी को ट्रायल कोर्ट द्वारा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 और 120बी और आर्म्स एक्ट, 1959 की धारा 27(1) के तहत दोषी ठहराया गया था। उसने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 374 की उप-धारा (2) के तहत हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने 29 अक्टूबर 2009 को सुनवाई के लिए अपील स्वीकार की। जब आरोपी-अपीलकर्ता द्वारा दायर सजा के निलंबन अर्जी...
"सच्चाई का घेरा" : सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामले में आंखों देखे साक्ष्य की सराहना के लिए सिद्धांत निर्धारित किए
सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक अपील में दिए गए फैसले में, किसी आपराधिक मामले में आंखों देखे साक्ष्य की सराहना के लिए सिद्धांत निर्धारित किए।जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा, "चश्मदीद गवाहों के साक्ष्य के मूल्य का आकलन करने में, दो प्रमुख विचार हैं (1) क्या, मामले की परिस्थितियों में, घटना स्थल पर उनकी उपस्थिति पर विश्वास करना संभव है या ऐसी स्थितियों में जो उनके द्वारा तथ्यों पेश करना संभव हो सके और (2) क्या उनके साक्ष्य में स्वाभाविक रूप से कुछ भी असंभव या अविश्वसनीय है।"अदालत...
धारा 211 आईपीसी प्रारंभिक आरोप को संदर्भित करती है, आपराधिक ट्रायल के दौरान जोड़े गए झूठे सबूत या झूठे बयान को नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 211 में 'झूठे आरोप' की अभिव्यक्ति प्रारंभिक आरोप को संदर्भित करती है जो आपराधिक जांच को गति प्रदान करती है, न कि आपराधिक ट्रायल के दौरान जोड़े गए झूठे सबूत या झूठे बयानों को। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि आपराधिक कानून को गति देने के इरादे और उद्देश्य से दिया गया बयान प्रावधान के तहत 'आरोप' का गठन करेगा ।आईपीसी की धारा 211 इस प्रकार है -" धारा 211। चोट पहुंचाने के इरादे से किए गए अपराध का झूठा आरोप। - जो कोई भी, किसी भी...
महिलाओं के खिलाफ अपराध : क्या हैं कानूनी प्रावधान और कैसे इनका सहारा ले सकते हैं (वीडियो)
दुनिया भर में समय-समय पर महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठती रही है। भारत में महिलाएं सामाजिक रीति-रिवाजों द्वारा शोषित और दमित होती रही हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व भी महिलाओं पर अत्याचारों की संख्याओं में कोई कमी नहीं थी तथा स्वतंत्रता के बाद भी महिलाओं के संबंध में अत्याचार और अपराध निरंतर घटित हो रहे थे। इन अपराधों के निवारण में कमी एवं इन पर रोक हेतु सशक्त विधान की आवश्यकता थी तथा भारतीय संसद में महिलाओं के संबंध में ऐसे विधान को बनाने से तनिक भी संकोच नहीं किया है। समय-समय पर भारतीय...