संपादकीय

दोषसिद्धि के खिलाफ पहले से ही स्वीकृत आपराधिक अपील को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि आरोपी फरार है: सुप्रीम कोर्ट
दोषसिद्धि के खिलाफ पहले से ही स्वीकृत आपराधिक अपील को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि आरोपी फरार है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दोषसिद्धि के खिलाफ पहले से स्वीकृत अपील को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि आरोपी फरार है।इस मामले में, आरोपी को ट्रायल कोर्ट द्वारा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 और 120बी और आर्म्स एक्ट, 1959 की धारा 27(1) के तहत दोषी ठहराया गया था। उसने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 374 की उप-धारा (2) के तहत हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने 29 अक्टूबर 2009 को सुनवाई के लिए अपील स्वीकार की। जब आरोपी-अपीलकर्ता द्वारा दायर सजा के निलंबन अर्जी...

सच्चाई का घेरा : सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामले में आंखों देखे साक्ष्य की सराहना के लिए सिद्धांत निर्धारित किए
"सच्चाई का घेरा" : सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मामले में आंखों देखे साक्ष्य की सराहना के लिए सिद्धांत निर्धारित किए

सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक अपील में दिए गए फैसले में, किसी आपराधिक मामले में आंखों देखे साक्ष्य की सराहना के लिए सिद्धांत निर्धारित किए।जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा, "चश्मदीद गवाहों के साक्ष्य के मूल्य का आकलन करने में, दो प्रमुख विचार हैं (1) क्या, मामले की परिस्थितियों में, घटना स्थल पर उनकी उपस्थिति पर विश्वास करना संभव है या ऐसी स्थितियों में जो उनके द्वारा तथ्यों पेश करना संभव हो सके और (2) क्या उनके साक्ष्य में स्वाभाविक रूप से कुछ भी असंभव या अविश्वसनीय है।"अदालत...

धारा 211 आईपीसी प्रारंभिक आरोप को संदर्भित करती है, आपराधिक ट्रायल  के दौरान जोड़े गए झूठे सबूत या झूठे बयान को नहीं : सुप्रीम कोर्ट
धारा 211 आईपीसी प्रारंभिक आरोप को संदर्भित करती है, आपराधिक ट्रायल के दौरान जोड़े गए झूठे सबूत या झूठे बयान को नहीं : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 211 में 'झूठे आरोप' की अभिव्यक्ति प्रारंभिक आरोप को संदर्भित करती है जो आपराधिक जांच को गति प्रदान करती है, न कि आपराधिक ट्रायल के दौरान जोड़े गए झूठे सबूत या झूठे बयानों को। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि आपराधिक कानून को गति देने के इरादे और उद्देश्य से दिया गया बयान प्रावधान के तहत 'आरोप' का गठन करेगा ।आईपीसी की धारा 211 इस प्रकार है -" धारा 211। चोट पहुंचाने के इरादे से किए गए अपराध का झूठा आरोप। - जो कोई भी, किसी भी...

महिलाओं के खिलाफ अपराध : क्या हैं कानूनी प्रावधान और कैसे इनका सहारा ले सकते हैं (वीडियो)
महिलाओं के खिलाफ अपराध : क्या हैं कानूनी प्रावधान और कैसे इनका सहारा ले सकते हैं (वीडियो)

दुनिया भर में समय-समय पर महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठती रही है। भारत में महिलाएं सामाजिक रीति-रिवाजों द्वारा शोषित और दमित होती रही हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पूर्व भी महिलाओं पर अत्याचारों की संख्याओं में कोई कमी नहीं थी तथा स्वतंत्रता के बाद भी महिलाओं के संबंध में अत्याचार और अपराध निरंतर घटित हो रहे थे। इन अपराधों के निवारण में कमी एवं इन पर रोक हेतु सशक्त विधान की आवश्यकता थी तथा भारतीय संसद में महिलाओं के संबंध में ऐसे विधान को बनाने से तनिक भी संकोच नहीं किया है। समय-समय पर भारतीय...

किशोर पर बालिग की तरह ट्रायल चलाने के लिए प्रारंभिक मूल्यांकन : जेजेबी को मनोवैज्ञानिकों/ मनोसामाजिक कार्यकर्ताओं की सहायता लेना अनिवार्य : सुप्रीम कोर्ट
किशोर पर बालिग की तरह ट्रायल चलाने के लिए प्रारंभिक मूल्यांकन : जेजेबी को मनोवैज्ञानिकों/ मनोसामाजिक कार्यकर्ताओं की सहायता लेना अनिवार्य : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि जब किशोर न्याय बोर्ड में बाल मनोविज्ञान या बाल मनोरोग में डिग्री के साथ अभ्यास करने वाले पेशेवर शामिल नहीं होते हैं, तो यह किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (अधिनियम) की धारा 15 (1) के प्रावधान के तहत अनुभवी मनोवैज्ञानिकों या मनोसामाजिक कार्यकर्ताओं या अन्य विशेषज्ञों की सहायता लेने के लिए बाध्य होगा। प्रारंभ में 18 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को किशोर माना जाना था और बोर्ड द्वारा उन पर ट्रायल चलाया जाना था। 2015 के अधिनियम के लागू होने...

सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने यूएपीए मामले में जमानत बरकरार रखते हुए एनआईए से कहा- ऐसा लगता है कि आपको किसी व्यक्ति के न्यूज पेपर पढ़ने में भी दिक्कत है

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने यूएपीए (UAPA) मामले में आरोपी को दी गई जमानत के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा दायर याचिका को खारिज करते हुए मौखिक रूप से टिप्पणी की,"जिस तरह से आप कर रहे हैं, ऐसा लगता है कि आपको किसी व्यक्ति के न्यूज पेपर पढ़ने में भी दिक्कत है।एनआईए ने झारखंड हाईकोर्ट द्वारा यूएपीए मामले में एक कंपनी के महाप्रबंधक को कथित तौर पर जबरन वसूली के लिए तृतीया प्रस्तुति समिति (टीपीसी) नामक एक माओवादी खंडित समूह के साथ संबद्ध होने के लिए जमानत के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का...

अटॉर्नी जनरल ने नूपुर शर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर सवाल उठाने वाले सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज और दो सीनियर एडवोकेट के खिलाफ अवमानना कार्रवाई के लिए मंजूरी देने से इनकार किया
अटॉर्नी जनरल ने नूपुर शर्मा मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर सवाल उठाने वाले सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज और दो सीनियर एडवोकेट के खिलाफ अवमानना कार्रवाई के लिए मंजूरी देने से इनकार किया

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल (K K Venugopal ने नूपुर शर्मा मामले (Nupur Sharma Case) में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की टिप्पणियों पर सवाल उठाने वाले सेवानिवृत्त हाईकोर्ट जज एसएन ढींगरा और सीनियर एडवोकेट अमन लेखी और के रामकुमार के खिलाफ अवमानना कार्रवाई के लिए मंजूरी देने से इनकार किया।एजी ने एडवोकेट सीआर जया स्किन द्वारा मांगी गई मंजूरी को अस्वीकार कर दिया, जिन्होंने आरोप लगाया कि टिप्पणियां प्रकृति में अवमानना थीं। एजी ने कहा कि व्यक्तियों द्वारा की गई टिप्पणियां "निष्पक्ष टिप्पणी" के दायरे...

सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों के हाथों आदिवासियों की हत्या की जांच की मांग वाली याचिका खारिज की; याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया
सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों के हाथों आदिवासियों की हत्या की जांच की मांग वाली याचिका खारिज की; याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों के हाथों आदिवासियों की हत्या की जांच की मांग वाली साल 2009 में दाखिल याचिका खारिज किया। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने 2009 में एक हिमांशु कुमार और 12 अन्य द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुनाया। बेंच ने 19 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था।प्रथम याचिकाकर्ता हिमांशु कुमार पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट विधिक सेवा समिति...

आईपीसी 121 ए के तहत अपराध के लिए हत्या या शारीरिक चोट का खतरा   आवश्यक नहीं : सुप्रीम कोर्ट ने आईआईएससी आतंकी हमले में आजीवन कारावास बरकरार रखा
आईपीसी 121 ए के तहत अपराध के लिए हत्या या शारीरिक चोट का खतरा आवश्यक नहीं : सुप्रीम कोर्ट ने आईआईएससी आतंकी हमले में आजीवन कारावास बरकरार रखा

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिसंबर, 2005 में बेंगलुरु में भारतीय विज्ञान संस्थान पर आतंकी हमले के लिए चार लोगों की दोषसिद्धि और उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा। जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस एस रवींद्र भट की तीन जजों की बेंच ने कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 121 ए के तहत [भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए दंडनीय अपराध करने की साजिश], अभिव्यक्ति "आतंकित" करना है और ये "एक आशंका या अलार्म की स्थिति का गठन होगा और यह आवश्यक नहीं होगा कि खतरा हत्या या शारीरिक चोट का होना चाहिए।इस...

बीमा कंपनी को सिर्फ दावा खारिज करने में देरी के लिए सेवा में कमी का दोषी नहीं ठहराया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
बीमा कंपनी को सिर्फ दावा खारिज करने में देरी के लिए सेवा में कमी का दोषी नहीं ठहराया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बीमाकर्ता (insurer) को केवल दावे के प्रोसेसिंग में देरी और अस्वीकृति में देरी के लिए सेवा में कमी का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा," वे (प्रोसेसिंग में देरी और अस्वीकृति में देरी) बीमाकर्ता को सेवा में कमी का दोषी ठहराने के लिए कई कारकों में से एक हो सकते हैं। लेकिन यह एकमात्र कारक नहीं हो सकता।"अदालत ने इस प्रकार देखा कि न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के खिलाफ...

मद्रास हाईकोर्ट
पत्नी का पति के चरित्र पर शक करना और सहकर्मियों के सामने एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के आरोप लगाना क्रूरता के समान : मद्रास हाईकोर्ट

मद्रास हाईकोर्ट ने पत्नी द्वारा की गई क्रूरता के आधार पर एक पति के पक्ष में तलाक की डिक्री जारी करते हुए हाल ही में कहा कि पत्नी का अपने पति के चरित्र पर संदेह करना और उसके सहयोगियों की उपस्थिति में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के आरोप लगाना मानसिक क्रूरता के समान है।जस्टिस वीएम वेलुमणि और जस्टिस एस सौंथर की पीठ ने कहा किः ''प्रतिवादी/पत्नी उस कॉलेज में गई जिसमें अपीलकर्ता/पति काम करता है और उसने अन्य स्टाफ सदस्यों और छात्रों की उपस्थिति में अपीलकर्ता का नाम एक अन्य महिला शिक्षिका के साथ जोड़कर वहां...

क्या बुलडोजर की कार्रवाई के खिलाफ सर्वव्यापी आदेश पारित किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर की कार्रवाई को चुनौती देने वाली जमीयत की याचिका पर कहा
क्या बुलडोजर की कार्रवाई के खिलाफ सर्वव्यापी आदेश पारित किया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर की कार्रवाई को चुनौती देने वाली जमीयत की याचिका पर कहा

जमीयत उलेमा-ए-हिंद (Jamiat Ulema-i-Hind) द्वारा दायर जनहित याचिका में आरोप लगाया गया कि यूपी और एमपी जैसे राज्यों में अधिकारियों ने दंगों जैसे मामलों में आरोपी व्यक्तियों के घरों को तोड़ने के लिए बुलडोजर (Bulldozer) की कार्रवाई का सहारा लिया है। इस पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार को मौखिक रूप से पूछा कि क्या अनाधिकृत निर्माणों को गिराने पर रोक लगाने के लिए सर्वव्यापी आदेश पारित किया जा सकता है?जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच ने मौखिक रूप से कहा, "कानून के शासन का...

सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने राम सेतु को राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा देने की मांग वाली भाजपा के पूर्व सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका पर 26 जुलाई को सुनवाई के लिए सहमति जताई

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राम सेतु (Ram Setu) को राष्ट्रीय धरोहर का दर्जा देने की मांग वाली भाजपा के पूर्व सांसद सुब्रमण्यम स्वामी (Subramanian Swamy) की याचिका पर 26 जुलाई ,2022 जुलाई को सुनवाई के लिए सहमति जताई।सीजेआई रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की तीन-जजों की खंडपीठ ने यह निर्देश तब जारी किया जब राज्यसभा सांसद डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने राम सेतु को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के लिए केंद्र को निर्देश देने के लिए उनकी याचिका पर तत्काल सुनवाई की मांग की।सुब्रमण्यम स्वामी...

मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 34 या 37 के तहत, न्यायालय मध्यस्थ द्वारा पारित निर्णय को संशोधित नहीं कर सकता, सिर्फ रिमांड कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट
मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 34 या 37 के तहत, न्यायालय मध्यस्थ द्वारा पारित निर्णय को संशोधित नहीं कर सकता, सिर्फ रिमांड कर सकता है : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 34 या 37 के तहत, कोई न्यायालय मध्यस्थ द्वारा पारित निर्णय को संशोधित नहीं कर सकता है।जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा कि विकल्प यह होगा कि अवार्ड को रद्द कर दिया जाए और मामले को रिमांड किया जाए।अदालत भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ('एनएचएआई') द्वारा दायर अपीलों पर विचार कर रही थी, जिसमें कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें उपायुक्त और मध्यस्थ, राष्ट्रीय राजमार्ग - 275 (भूमि अधिग्रहण) और...

अगर वाद की प्रकृति में बदलाव की संभावना है तो वादी को संशोधन की अनुमति नहीं दी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट
अगर वाद की प्रकृति में बदलाव की संभावना है तो वादी को संशोधन की अनुमति नहीं दी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर वाद की प्रकृति में बदलाव की संभावना है तो वादी को संशोधन की अनुमति देने में अदालत उचित नहीं होगी।जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने यह भी कहा कि वादी को प्रतिवादी के रूप में किसी भी पक्ष में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जो आवश्यक नहीं हो सकता है और / या इस आधार पर उचित पक्ष हो सकता है कि वादी डोमिनिस लिटिस यानी वाद का मास्टर है। इस मामले में, दिल्ली हाईकोर्ट ने सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 1 नियम 10 और आदेश 6 नियम 17 के तहत...

बेंगलुरु कोर्ट ने सोशल मीडिया को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस परदीवाला के खिलाफ मानहानि पोस्ट हटाने का निर्देश दिया
बेंगलुरु कोर्ट ने सोशल मीडिया को जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस परदीवाला के खिलाफ मानहानि पोस्ट हटाने का निर्देश दिया

बेंगलुरु में अतिरिक्त सिटी सिविल एंड सेशन कोर्ट ने मंगलवार को एक "जॉन डो" आदेश पारित किया, जिसमें सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर, फेसबुक, लिंक्डइन, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप को व्यापक रूप से प्रसारित एक तस्वीर को हटाने का निर्देश दिया गया, जिसका इस्तेमाल सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्य कांत (Justice Surya Kant) और जस्टिस परदीवाला (Justice Pardiwala) के खिलाफ झूठे और मानहानिकारक दावे करने के लिए किया गया जा रहा है।जस्टिस परदीवाला द्वारा बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा (Nupur Sharma) के खिलाफ...