सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

17 July 2022 12:00 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (11 जुलाई, 2022 से 15 जुलाई, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    अग्रिम जमानत आवेदनों की जांच आवेदक के मामले तक सीमित होनी चाहिए, इसे तीसरे पक्ष के खिलाफ निर्देशित नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि हाईकोर्ट के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के तहत शक्तियों के प्रयोग में तीसरे पक्ष के खिलाफ अभियोग चलाना खुला नहीं है। उक्त प्रावधान अग्रिम जमानत से संबंधित है।

    पटना हाईकोर्ट के एक अंतरिम आदेश में प्रमोद कुमार सैनी नामक एक व्यक्ति और सह-आरोपियों की अग्रिम जमानत की कार्यवाही में सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय की उपस्थिति के लिए नोटिस जारी किया गया था। आदेश के खिलाफ दायर या‌चिका में जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कहा, "हम मानते हैं कि हाईकोर्ट के लिए यह खुला नहीं है कि वह धारा 438 सीआरपीसी के तहत शक्तियों का प्रयोग करने के लिए कार्यवाही में तीसरे पक्ष को जोड़े, जैसे कि यह सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश एक नियम 10 के तहत शक्तियों का आह्वान कर रहा है।"

    केस टाइटल: सुब्रत रॉय सहारा बनाम प्रमोद कुमार सैनी और अन्य

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    साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 : केवल इसलिए कि हथियार की खोज आरोपी के कहने पर हुई थी, इसका मतलब यह नहीं है कि उसने इसे छुपाया या इस्तेमाल किया : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केवल इसलिए कि हथियार की खोज आरोपी के कहने पर हुई थी, इसका मतलब यह नहीं है कि उसने इसे छुपाया या इस्तेमाल किया। पीठ ने हत्या के दोषी द्वारा दायर एक अपील पर विचार करते हुए इस प्रकार कहा, जिसकी धारा 302 आईपीसी के तहत सजा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बरकरार रखा था।

    अपीलकर्ता द्वारा उठाए गए तर्कों में से एक यह था कि इस मामले में चश्मदीद गवाह अविश्वसनीय गवाह हैं। अपील में, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि दोनों अदालतों ने दो चश्मदीद गवाहों पर सही विश्वास किया। हालांकि, इसने निचली अदालत द्वारा सौंपे गए तर्कों में एक गंभीर कमी देखी, जैसा कि हाईकोर्ट द्वारा पुष्टि की गई थी, जहां तक अधिनियम की धारा 27 के तहत अपराध के हथियार की खोज के संबंध में कानून की स्थिति का संबंध है।

    मामला- शाहजा @ शाहजन इस्माइल मो. शेख बनाम महाराष्ट्र राज्य | 2022 लाइव लॉ ( SC) 596 | सीआरए 739/ 2017 का | 14 जुलाई 2022

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    सुप्रीम कोर्ट ने 1964 में दायर मुकदमे में अपील 16 साल बाद नए फैसले के लिए हाईकोर्ट में भेजी

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में एक संपत्ति विवाद (Property Dispute) में 1964 में दायर एक मुकदमे से उत्पन्न एक अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) में भेज दी। मुकदमे में दूसरी अपील 1975 में हाईकोर्ट के समक्ष दायर की गई थी।

    हाईकोर्ट ने 31 साल बाद 2006 में दूसरी अपील का फैसला किया था। हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील 2006 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर की गई थी। 16 वर्षों के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने अब यह देखते हुए हाईकोर्ट में अपील को वापस भेज दिया है कि कुछ अस्वीकार्य साक्ष्य पर भरोसा किया गया था और प्रासंगिक सामग्रियों की अनदेखी की गई थी।

    केस टाइटल : कानूनी प्रतिनिधियों के माध्यम से फारूकी बेगम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

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    'जब महिला सालों से पुरुष के साथ रह रही है तो रिश्ता टूटने पर बार- बार बलात्कार की एफआईआर का कोई आधार नहीं ' : सुप्रीम कोर्ट

    यह टिप्पणी करते हुए कि जहां एक महिला स्वेच्छा से एक पुरुष के साथ रह रही है और उसके साथ संबंध रखती है, और यदि संबंध अभी नहीं चल रहा है, तो वह एक ही महिला पर बार-बार बलात्कार करने (धारा 376 (2) (एन)) के अपराध के लिए प्राथमिकी दर्ज करने का आधार नहीं हो सकता है, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को शादी करने का वादा पूरा करने में विफल रहने पर पूर्व-गिरफ्तारी जमानत दे दी, जिस रिश्ते में एक बच्चा भी पैदा हुआ था।

    केस: अंसार मोहम्मद बनाम राजस्थान राज्य और अन्य

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    दोषसिद्धि के खिलाफ पहले से ही स्वीकृत आपराधिक अपील को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि आरोपी फरार है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दोषसिद्धि के खिलाफ पहले से स्वीकृत अपील को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि आरोपी फरार है। इस मामले में, आरोपी को ट्रायल कोर्ट द्वारा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 और 120बी और आर्म्स एक्ट, 1959 की धारा 27(1) के तहत दोषी ठहराया गया था। उसने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 374 की उप-धारा (2) के तहत हाईकोर्ट में अपील दायर की थी। हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने 29 अक्टूबर 2009 को सुनवाई के लिए अपील स्वीकार की। जब आरोपी-अपीलकर्ता द्वारा दायर सजा के निलंबन अर्जी उसके सामने सुनवाई के लिए आई, तो अदालत के संज्ञान में लाया गया कि आरोपी फरार है।

    धनंजय राय उर्फ गुड्डू राय बनाम बिहार सरकार | 2022 लाइव लॉ (एससी) 597 | सीआरए 803/2017| 14 जुलाई 2022

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    [गुजरात स्लम-निवासी बेदखली] प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत भुगतान समय-सीमा को पूरा करने में असमर्थ आबंटित संबंधित अधिकारियों से अनुरोध कर सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करने वाली याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पुनर्वास के पात्र हैं। लेकिन भुगतान समय-सीमा को पूरा करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, इसके लिए संबंधित अधिकारियों से संपर्क कर सकते हैं। गुजरात हाईकोर्ट ने अपने उक्त आदेश में सितंबर 2020 में गांधीनगर रेलवे स्टेशन क्षेत्र से सरकारी अधिकारियों द्वारा बेदखल किए गए झुग्गीवासियों को राहत देने से इनकार कर दिया था।

    [मामला टाइटल: उतरन से बेस्टन रेलवे झोपडपट्टी विकास मंडल बनाम भारत सरकार और अन्य जुड़े मामले]

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    धारा 211 आईपीसी प्रारंभिक आरोप को संदर्भित करती है, आपराधिक ट्रायल के दौरान जोड़े गए झूठे सबूत या झूठे बयान को नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 211 में 'झूठे आरोप' की अभिव्यक्ति प्रारंभिक आरोप को संदर्भित करती है जो आपराधिक जांच को गति प्रदान करती है, न कि आपराधिक ट्रायल के दौरान जोड़े गए झूठे सबूत या झूठे बयानों को। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि आपराधिक कानून को गति देने के इरादे और उद्देश्य से दिया गया बयान प्रावधान के तहत 'आरोप' का गठन करेगा ।

    केस : हिमांशु कुमार और अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य।

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    किशोर पर बालिग की तरह ट्रायल चलाने के लिए प्रारंभिक मूल्यांकन : जेजेबी को मनोवैज्ञानिकों/ मनोसामाजिक कार्यकर्ताओं की सहायता लेना अनिवार्य : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि जब किशोर न्याय बोर्ड में बाल मनोविज्ञान या बाल मनोरोग में डिग्री के साथ अभ्यास करने वाले पेशेवर शामिल नहीं होते हैं, तो यह किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 (अधिनियम) की धारा 15 (1) के प्रावधान के तहत अनुभवी मनोवैज्ञानिकों या मनोसामाजिक कार्यकर्ताओं या अन्य विशेषज्ञों की सहायता लेने के लिए बाध्य होगा।

    प्रारंभ में 18 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों को किशोर माना जाना था और बोर्ड द्वारा उन पर ट्रायल चलाया जाना था। 2015 के अधिनियम के लागू होने के बाद ही, जघन्य अपराध में शामिल 16 से 18 वर्ष के बीच के किशोरों के लिए एक अलग श्रेणी का चयन किया गया था, जो यह सुनिश्चित करने के लिए प्रारंभिक मूल्यांकन के अधीन थे कि क्या?

    केस : बरुण चंद्र ठाकुर बनाम मास्टर भोलू और अन्य

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    सलाह है कि बहस पूरी होने के बाद हाईकोर्ट जल्द से जल्द फैसला सुनाएं: सुप्रीम कोर्ट

    एक आपराधिक अपील पर विचार करते हुए जहां हाईकोर्ट ने छह महीने तक इसे सुरक्षित रखने के बाद फैसला सुनाया था, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह हमेशा सलाह दी जाती है कि हाईकोर्ट दलीलों के समापन के बाद और फैसला सुरक्षित रखने के बाद जल्द से जल्द फैसला सुनाए।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने धोखाधड़ी के मामले में पूरी आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए यह बात कही।

    केस: यूपी राज्य और अन्य बनाम अखिल शारदा | 2022 की आपराधिक अपील संख्या 840

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    बीमा कंपनी को सिर्फ दावा खारिज करने में देरी के लिए सेवा में कमी का दोषी नहीं ठहराया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक बीमाकर्ता (insurer) को केवल दावे के प्रोसेसिंग में देरी और अस्वीकृति में देरी के लिए सेवा में कमी का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

    जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा, " वे (प्रोसेसिंग में देरी और अस्वीकृति में देरी) बीमाकर्ता को सेवा में कमी का दोषी ठहराने के लिए कई कारकों में से एक हो सकते हैं। लेकिन यह एकमात्र कारक नहीं हो सकता।" अदालत ने इस प्रकार देखा कि न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के खिलाफ दायर अपील की अनुमति देते हुए उन्हें बीमाकर्ता को समुद्री बीमा पॉलिसी के तहत बीमा राशि का भुगतान करने का निर्देश दिया गया।

    न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम शशिकला जे अयाची

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    सीपीसी आदेश XXII नियम 4 - अपील महज इसलिए पूरी तरह से समाप्त नहीं होती क्योंकि कुछ मृत प्रतिवादियों के कानूनी प्रतिनिधियों को रिकॉर्ड में नहीं लाया गया था: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अपील के लंबित रहने के दौरान मर चुके कुछ प्रतिवादियों के कानूनी प्रतिनिधि को प्रतिस्थापित करने में महज विफलता के लिए एक अपील को समग्र रूप से समाप्त नहीं माना जा सकता है।

    यह विचार करते हुए कि क्या वादी/प्रतिवादियों के कानूनी प्रतिनिधियों को सामने नहीं लाने के कारण मुकदमा/अपील समाप्त हो गई है या नहीं, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि कोर्ट को यह जांचना होगा कि क्या जीवित प्रतिवादियों के खिलाफ मुकदमा चलाने का अधिकार जीवित है?

    दिल्ली विकास प्राधिकरण बनाम दीवान चंद आनंद | 2022 लाइव लॉ (एससी) 581 | सीए 2397/2022 | 11 जुलाई 2022

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    अगर वाद की प्रकृति में बदलाव की संभावना है तो वादी को संशोधन की अनुमति नहीं दी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर वाद की प्रकृति में बदलाव की संभावना है तो वादी को संशोधन की अनुमति देने में अदालत उचित नहीं होगी। जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने यह भी कहा कि वादी को प्रतिवादी के रूप में किसी भी पक्ष में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जो आवश्यक नहीं हो सकता है और / या इस आधार पर उचित पक्ष हो सकता है कि वादी डोमिनिस लिटिस यानी वाद का मास्टर है।

    एशियन होटल्स (नॉर्थ) लिमिटेड बनाम आलोक कुमार लोढ़ा | 2022 लाइव लॉ ( SC) 585 | सीए 3703-3750/ 2022 | 12 जुलाई 2022

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    अपील के माध्यम से वैधानिक वैकल्पिक उपाय उपलब्ध होने पर संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत याचिका पर विचार नहीं किया जाएगा: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत एक रिट याचिका/पुनरीक्षण याचिका पर तब विचार नहीं किया जाना चाहिए, जब अपील के माध्यम से एक वैधानिक वैकल्पिक उपाय उपलब्ध हो।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की अनुमति देते हुए इस प्रकार देखा, जिसने भारत के संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित एकपक्षीय निर्णय और डिक्री को रद्द कर दिया था।

    मोहम्मद अली बनाम वी जया | 2022 लाइव लॉ (एससी) 574 | 2022 का सीए 4113 | 11 जुलाई 2022

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    एकपक्षीय डिक्री रद्द करने पर, प्रतिवादी को मुकदमे की कार्यवाही में भाग लेने और गवाहों से क्रॉस एग्जामिन करने की अनुमति दी जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि एकपक्षीय डिक्री को रद्द करने पर, प्रतिवादियों को मुकदमे की कार्यवाही में भाग लेने और गवाहों से क्रॉस एग्जामिन करने की अनुमति दी जा सकती है। इस मामले में, प्रतिवादी को ट्रायल कोर्ट द्वारा एकपक्षीय आदेश दिया गया था। आदेश IX नियम 13 के तहत उनका आवेदन भी निचली अदालत ने खारिज कर दिया था।

    प्रथम अपीलीय कोर्ट ने प्रतिवादियों द्वारा दायर अपील की अनुमति दी और एकपक्षीय निर्णय और डिक्री को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि मुकदमे की बहाली पर पक्षों को उनके संबंधित साक्ष्य और खंडन साक्ष्य पेश करने का अवसर देने के बाद उनका निपटारा किया जाएगा।

    नंदा दुलाल प्रधान बनाम दिबाकर प्रधान | 2022 लाइव लॉ (एससी) 579 | सीए 4151 ऑफ 2022 | 11 जुलाई 2022

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    जब आरोपी धारा 88, 170, 204 और 209 सीआरपीसी के तहत मजिस्ट्रेट के सामने है तो अलग जमानत आवेदन पर जोर देने की जरूरत नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 88, 170, 204 और 209 के तहत आवेदन पर विचार करते समय एक अलग जमानत आवेदन पर जोर देने की जरूरत नहीं है।

    जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने आदेश दिया, "संहिता की धारा 88, 170, 204 और 209 के तहत आवेदन पर विचार करते समय जमानत आवेदन पर जोर देने की जरूरत नहीं है।"

    सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो | 2022 लाइव लॉ (SC ) 577 |एमए 1849/ 2021 | 11 जुलाई 2022

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    झूठे हलफनामे और अंडरटेकिंग देना कोर्ट की अवमानना के समान हो सकता हैः सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हलफनामे और अंडरटेकिंग में झूठा बयान देना अदालत की अवमानना होगी। जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा, एक व्यक्ति जो कोर्ट झूठा बयान देता है और कोर्ट को धोखा देने का प्रयास करता है, वह न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप करता है और कोर्ट की अवमानना का दोषी है।

    पिछले साल, अदालत ने भारतीय मूल के केन्याई नागरिक को एक बच्चे की कस्टडी देने के एक आदेश को वापस ले लिया था। कोर्ट ने पाया था कि उसने अदालत के साथ धोखाधड़ी की थी। भौतिक तथ्यों को छुपाकर "मैले हाथों" से कोर्ट से संपर्क किया था। कोर्ट ने अंडरटेकिंग का उल्लंघन करने के कारण एक पक्ष के खिलाफ अवमानना कार्यवाही भी शुरू की थी।

    मामलाः पेरी कंसाग्रा के संदर्भ में| 2022 लाइव लॉ (SC)576 | SMC (C) 3 ऑफ 2021| 11 जुलाई 2022

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    ट्रायल, अपील या पुनरीक्षण के खत्म होने में एक अस्पष्ट, परिहार्य और लंबे समय तक देरी जमानत पर विचार करने के लिए एक कारक होगी : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को देश में प्रचलित जमानत प्रणाली के संबंध में जांच एजेंसी के साथ-साथ न्यायालयों को कई दिशा-निर्देश पारित करते हुए कहा कि एक ट्रायल, अपील या पुनरीक्षण के खत्म होने में एक अस्पष्ट, परिहार्य और लंबे समय तक देरी जमानत पर विचार करने के लिए एक कारक होगी।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एम एम सुंदरेश ने कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि अदालतें सीआरपीसी की धारा 309 का पालन करेंगी, जो हालांकि दिन-प्रतिदिन के आधार पर कार्यवाही करने पर विचार करती है, अपवादों को कम करती है और अदालतों को कार्यवाही स्थगित या टालने की शक्ति प्रदान करती है। हालांकि, बेंच का विचार था कि किसी भी अनुचित देरी के मामले में, आरोपी को इसका लाभ मिलना चाहिए, भले ही वह लाभ जो आरोपी को संहिता की धारा 436 ए (निर्णय के पैरा 41) के तहत मिल सकता है।

    सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो | 2022 लाइव लॉ ( SC) 577 | एमए 1849/ 2021 | 11 जुलाई 2022

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    यदि सीआरपीसी की धारा 41, 41ए का उल्लंघन करते हुए गिरफ्तारी हुई है तो आरोपी जमानत का हकदार : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी के समय आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 41 और 41 ए का पालन न करने पर आरोपी को जमानत मिल जाएगी।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने कहा कि धारा 41 और 41 ए भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के पहलू हैं। अदालत ने कहा, "जांच एजेंसियां और उनके अधिकारी संहिता की धारा 41 और 41 ए के आदेश और अर्नेश कुमार के फैसले में जारी निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं। उनकी ओर से किसी भी तरह की लापरवाही को उच्च अधिकारियों के संज्ञान में लाया जाना चाहिए।"

    सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो | 2022 लाइव लॉ (एससी) 577 | 2021 का एमए 1849 | 11 जुलाई 2022

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    विचारों में भिन्नता की संभावना संविधान के अनुच्छेद 139 ए के तहत ट्रांसफर का आधार नहीं हो सकती : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विचारों में भिन्नता की संभावना भारत के संविधान के अनुच्छेद 139 ए के तहत ट्रांसफर का आधार नहीं हो सकती है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने भारत संघ और अन्य पक्षों द्वारा दायर सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013 के आदेश XL के साथ पठित अनुच्छेद 139A (1) के तहत स्थानांतरण याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिन्होंने विभिन्न हाईकोर्ट समक्ष लंबित बोनस भुगतान (संशोधन) अधिनियम, 2015 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली विभिन्न रिट याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर करने के लिए प्रार्थना की थी।

    भारत संघ बनाम यूनाइटेड प्लांटर्स एसोसिएशन ऑफ सदर्न इंडिया |

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    झूठे जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नियुक्ति पाने वाले व्यक्ति को गलत नियुक्ति का लाभ बरकरार रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब कोई व्यक्ति झूठे जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नियुक्ति प्राप्त करता है तो उसे गलत नियुक्ति का लाभ बरकरार रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इस मामले में, कर्मचारी ने डिप्टी कलेक्टर, दुर्ग से "हलबा" अनुसूचित जनजाति का एक जाति प्रमाण पत्र प्राप्त किया और उक्त प्रमाण पत्र के आधार पर, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) के भिलाई स्टील प्लांट में अनुसूचित जनजाति कोटा रिक्ति के खिलाफ प्रबंधन प्रशिक्षु (तकनीकी) के रूप में सेवा में शामिल हो गया।

    बाद में, उच्च स्तरीय जाति जांच समिति, रायपुर ने उसके जाति प्रमाण पत्र को इस अवलोकन के साथ रद्द कर दिया कि वह वर्ष 1950 से पहले के दस्तावेजों को हलबा के रूप में दिखाने में विफल रहा।

    मुख्य कार्यकारी अधिकारी भिलाई स्टील प्लांट भिलाई बनाम महेश कुमार गोनाडे | 2022 लाइव लॉ (SC) 572 | सीए 4990/ 2021 | 11 जुलाई 2022

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    बॉम्बे ब्लास्ट मामले के दोषी अबू सलेम को पुर्तगाल सरकार के साथ प्रत्यर्पण संधि के तहत 25 साल की जेल के बाद रिहा किया जाए : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को माना कि 1993 के बॉम्बे ब्लास्ट मामले में अबू सलेम को दी गई आजीवन कारावास की सजा को भारत में उसके प्रत्यर्पण की तारीख से 25 साल पूरे होने पर माफ किया जाना चाहिए, जैसा कि भारत द्वारा संप्रभु आश्वासन दिया गया है। भारत सरकार ने सलेम को भारत प्रत्यर्पित करते समय पुर्तगाल गणराज्य को यह आश्वासन दिया था कि उसकी सजा 25 वर्ष से अधिक नहीं होगी।

    कोर्ट ने आदेश दिया, "अपीलकर्ता की 25 वर्ष की सजा पूरी करने पर, केंद्र सरकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत शक्तियों के प्रयोग के लिए भारत के राष्ट्रपति को सलाह देने और राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के साथ-साथ अदालतों के आदेशों के पालन करने सिद्धांत के आधार पर अपीलकर्ता को रिहा करने के लिए बाध्य है।

    [मामला : अबू सलेम अब्दुल कय्यूम अंसारी बनाम महाराष्ट्र राज्य आपराधिक अपील सं. 679/ 2015 ]

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