न्यायिक रिक्तियों को न भरना मामलों के लंबित होने का प्रमुख कारण : सीजेआई एन वी रमना
Sharafat
16 July 2022 8:30 PM IST
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने शनिवार को देश में बड़े पैमाने पर केस बैकलॉग के बारे में केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा व्यक्त की गई चिंताओं के जवाब में दोहराया कि देश में न्यायिक रिक्तियों (judicial vacancies) को न भरना मामलों के लंबित होने का प्रमुख कारण है।
विधि मंत्री और मुख्य न्यायाधीश जयपुर में अखिल भारतीय कानूनी सेवा प्राधिकरण बैठक में भाग ले रहे थे।
अपने संबोधन में कानून मंत्री ने कहा कि यह चिंता का विषय है कि आजादी के 75वें वर्ष में देश भर की अदालतों में 5 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं।
मंत्री ने लंबित मामलों को कम करने के लिए न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों के समन्वित प्रयासों का आह्वान किया।
कानून मंत्री ने कहा,
" हमारे देश में लम्बित मामलों की संख्या 5 करोड़ को छू रही है। 25 साल बाद क्या स्थिति होगी? लोग मुझसे कानून मंत्री के रूप में पूछते हैं। कल मैंने अपने विभाग के अधिकारियों से बात की कि यह संख्या अगले दो साल में दो करोड़ से नीचे आनी चाहिए।"
उन्होंने कहा,
"हमारे अमृत काल में हमारे पास एक ऐसी न्याय प्रणाली होनी चाहिए जो तेज और सुलभ हो।"
भारत के मुख्य न्यायाधीश ने अपना संबोधन पूरा करने के बाद कहा कि लंबित मामलों के संबंध में कानून मंत्री की टिप्पणियों का जवाब देना उनकी जिम्मेदारी है।
सीजेआई ने कहा,
" यह मेरी जिम्मेदारी है कि मैं एक या दो चीजों पर प्रतिक्रिया दूं जिनका कानून मंत्री ने उल्लेख किया है। मुझे खुशी है कि उन्होंने पेंडेंसी के मुद्दे को उठाया है। हम जज भी इस पर बात करते हैं, जब हम देश से बाहर जाते हैं, तो हम भी एक ही सवाल का सामना करते हैं, केस कितने साल चलेगा? आप सभी जानते हैं कि पेंडेंसी के कारण क्या हैं।
मुझे इसके बारे में विस्तार से बताने की जरूरत नहीं है। मैंने पिछले मुख्य न्यायाधीशों-मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में पहले ही इसका संकेत दिया था। आप सभी जानते हैं कि प्रमुख महत्वपूर्ण कारण गैर- न्यायिक रिक्तियों को भरना और न्यायिक बुनियादी ढांचे में सुधार नहीं करना है।"
मुख्य न्यायाधीश ने राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नालसा) का उदाहरण दिया जिसने पिछले साल लगभग 2 करोड़ मुकदमेबाजी और 1 करोड़ लंबित मामले निपटाए।
नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष जस्टिस यूयू ललित के प्रयासों की सराहना करते हुए सीजेआई ने कहा कि न्यायाधीशों और अधिकारियों ने इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए अतिरिक्त घंटे काम किया।
सीजेआई ने कहा,
" न्यायपालिका इन सभी मुद्दों को हल करने की कोशिश में हमेशा आगे है। केवल मेरा अनुरोध है कि, सरकार को रिक्तियों को भरने के साथ-साथ बुनियादी ढांचा प्रदान करना होगा।
नालसा सबसे अच्छा मॉडल है। यह एक सफलता की कहानी है। तो उसी तर्ज पर हमने पिछले मुख्य न्यायाधीशों की कॉन्फ्रेंस में एक न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण (Judicial Infrastructure Authority) का सुझाव दिया था। दुर्भाग्य से इसे नहीं लिया गया।
हालांकि, मुझे उम्मीद है और विश्वास है कि इस मुद्दे पर फिर से विचार किया जाएगा।"
सीजेआई इससे पहले भी कई मौकों पर यही चिंता जता चुके हैं। 30 अप्रैल को नई दिल्ली में राज्यों के मुख्यमंत्रियों और हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन में भी उन्होंने लंबित मामलों के मुद्दे और इंफ्रास्ट्रक्चर बढ़ाने पर अपने विचार रखे थे।
उस मंच पर सीजेआई ने कहा था,
" यदि अधिकारी कानून के अनुसार अपना कार्य कर रहे हैं, तो लोग अदालतों का दरवाजा नहीं खटखटाएंगे।"
सीजेआई ने कहा था कि लंबित मामलों के लिए न्यायपालिका को जिम्मेदार ठहराया जाता है, लेकिन रिक्त पदों को भरने और न्यायाधीशों की स्वीकृत संख्या बढ़ाने के मुद्दे पर चर्चा की जरूरत है।
सीजेआई ने कहा,
"स्वीकृत संख्या के अनुसार, हमारे पास प्रति 10 लाख की आबादी पर लगभग 20 न्यायाधीश हैं, जो चिंताजनक है।"
उन्होंने कहा था,
"मैं माननीय मुख्यमंत्रियों से मुख्य न्यायाधीशों को जिला न्यायपालिका को मजबूत करने के उनके प्रयास में पूरे दिल से सहयोग करने का आग्रह करना चाहता हूं ... जब तक नींव मजबूत नहीं है, स्ट्रक्चर को कायम नहीं रखा जा सकता। कृपया उदार रहें अधिक पद सृजित करें और उन्हें भरें।"