फैक्ट चेक : मद्रास हाईकोर्ट के "मंगलसूत्र" के फैसले के बारे में मीडिया रिपोर्ट गलत
LiveLaw News Network
17 July 2022 9:49 AM IST
मीडिया द्वारा रिपोर्ट किए गए मामले में, हाईकोर्ट ने यह नहीं माना है कि पत्नी द्वारा मंगलसूत्र हटाना अपने आप में मानसिक क्रूरता होगी।
तलाक के एक मामले में फैसले को लेकर कुछ समाचार रिपोर्टों के बाद सोशल मीडिया पर मद्रास हाईकोर्ट के खिलाफ सोशल मीडिया पर भयानक आक्रोश उत्पन्न हो चुका है। कई रिपोर्टों के अनुसार, हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि पत्नी द्वारा थाली (मंगलसूत्र) को हटाना पति के खिलाफ अव्वल दर्जे की क्रूरता है। बहुत से लोगों ने इस कथित फैसले पर भौंहें चढ़ा ली हैं और हाईकोर्ट की आलोचना के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है।
ये रिपोर्ट पांच जुलाई को 'सी शिवकुमार बनाम ए श्रीविद्या' मामले में हाईकोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले से संबंधित हैं। हालांकि, फैसले को पढ़ने से पता चलेगा कि ऐसी रिपोर्ट गलत और अतिरंजित हैं (निर्णय के बारे में हमारी रिपोर्ट यहां पढ़ी जा सकती है)। इस मामले में हाईकोर्ट ने यह नहीं कहा है कि पत्नी द्वारा मंगलसूत्र को खुद से हटाना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आएगा। दरअसल, हाईकोर्ट ने इसके विपरीत कहा था। कोर्ट ने कहा कि मंगलसूत्र को अपने आप हटाना मानसिक क्रूरता मानने का आधार नहीं हो सकता।
फ़ैमिली कोर्ट के उस आदेश के ख़िलाफ़ एक पति द्वारा दायर अपील में यह फ़ैसला सुनाया गया, जिसने पत्नी को तलाक़ देने की उसकी याचिका को खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने कई तथ्यों को ध्यान में रखते हुए पति की तलाक की अपील मंजूर की, यथा- पत्नी को पति के चरित्र पर संदेह करना, अपने सहयोगियों के सामने उसके खिलाफ विवाहेतर संबंध के आरोप लगाना आदि। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि पत्नी ने बिना किसी आधार के पति के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। इन तथ्यों की पृष्ठभूमि में पत्नी द्वारा मंगलसूत्र को हटाने का आकलन कोर्ट द्वारा किया गया था। तथ्यों के समग्र मूल्यांकन पर, हाईकोर्ट ने माना कि पत्नी का आचरण "मानसिक क्रूरता" के बराबर है।
कोर्ट ने वास्तव में जो कहा वह यह था कि पत्नी द्वारा मंगलसूत्र को हटाना दोनों पक्षों के इरादे के बारे में अनुमान लगाने का एक सबूत है। अन्य तथ्यों के साथ ही पत्नी द्वारा मंगलसूत्र को हटाने से कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि दोनों पक्षों का झगड़ा समाप्त करने और विवाह बंधन को जारी रखने का कोई इरादा नहीं है।
जस्टिस वीएम वेलुमणि और जस्टिस एस सौंथर की पीठ ने निम्न टिप्पणियां की :
" मंगलसूत्र चेन को हटाने को अक्सर एक अनौपचारिक कृत्य के रूप में माना जाता है। हम एक पल के लिए भी यह नहीं कहते कि मंगलसूत्र चेन को हटाना वैवाहिक बंधन को समाप्त करने के लिए पर्याप्त है, लेकिन प्रतिवादी का उक्त कृत्य दोनों पक्षों के इरादों के बारे में अनुमान लगाने की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण सबूत है। रिकॉर्ड पर उपलब्ध विभिन्न अन्य साक्ष्यों के साथ-साथ मंगलसूत्र को हटाने का प्रतिवादी का कार्य, हमें एक निश्चित निष्कर्ष पर आने के लिए मजबूर करता है कि पार्टियों का झगड़ा समाप्त करने और अपने वैवाहिक बंधन को जारी रखने का कोई इरादा नहीं है।"
ऐसा कहने के बाद कोर्ट ने एक कोऑर्डिनेट बेंच के एक अन्य फैसले के एक अंश का हवाला दिया, जिसमें यह कहा गया था कि मंगलसूत्र को हटाना मानसिक क्रूरता की श्रेणी में आता है।
कोर्ट ने कहा कि 2016 में 'वल्लभी बनाम आर. राजसबाही' मामले में एक कोऑर्डिनेट बेंच ने इसी तरह के उदाहरण पर कहा था, ''याचिकाकर्ता/पत्नी द्वारा 'मंगलसूत्र' हटाने को एक ऐसा कार्य कहा जा सकता है जो अव्वल दर्जे की मानसिक क्रूरता को दर्शाता है, क्योंकि यह पीड़ा का कारण हो सकता था और प्रतिवादी की भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता था।''
कुछ मीडिया संस्थानों ने 2016 के इस फैसले से "मंगलसूत्र" संबंधी टिप्पणी को शीर्षक बनाया गया और इससे फैसले के बारे में काफी प्रचार-प्रसार हुआ, जिसके कारण आम जनता गुमराह हुई है।