दोषसिद्धि के खिलाफ पहले से ही स्वीकृत आपराधिक अपील को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि आरोपी फरार है: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

15 July 2022 5:18 AM GMT

  • दोषसिद्धि के खिलाफ पहले से ही स्वीकृत आपराधिक अपील को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि आरोपी फरार है: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दोषसिद्धि के खिलाफ पहले से स्वीकृत अपील को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है कि आरोपी फरार है।

    इस मामले में, आरोपी को ट्रायल कोर्ट द्वारा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 और 120बी और आर्म्स एक्ट, 1959 की धारा 27(1) के तहत दोषी ठहराया गया था। उसने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 374 की उप-धारा (2) के तहत हाईकोर्ट में अपील दायर की थी।

    हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने 29 अक्टूबर 2009 को सुनवाई के लिए अपील स्वीकार की। जब आरोपी-अपीलकर्ता द्वारा दायर सजा के निलंबन अर्जी उसके सामने सुनवाई के लिए आई, तो अदालत के संज्ञान में लाया गया कि आरोपी फरार है।

    इसके बाद आरोपी के खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया। बाद में, हाईकोर्ट ने यह कहते हुए अपील को खारिज कर दिया कि, हालांकि अपील का रास्ता एक मूल्यवान अधिकार है, लेकिन अपीलकर्ता-आरोपी ने हिरासत से भागते ही अपील करने का अपना अधिकार खो दिया और कानून की प्रक्रिया का खुले तौर पर दुरुपयोग किया। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यह कानून के स्थापित सिद्धांत से विलग है कि एक बार अपीलीय अदालत ने अपील को सरसरी तौर पर खारिज करने से इनकार कर दिया है, तो इसे गुण-दोष के आधार पर सुना जाना चाहिए।

    अपील में, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने 'दया शंकर सिंह और अन्य बनाम बिहार सरकार' मामले में अपने पहले के फैसले पर भरोसा जताया, जो पटना हाईकोर्ट नियमावली के अध्याय XII के नियम 8 पर आधारित था।

    उक्त नियम में प्रावधान है कि दोषसिद्धि के विरुद्ध कोई अपील सुनवाई की स्वीकृति के वास्ते तब तक नहीं सुनी जाएगी, जब तक कि अभियुक्त ने उसे कारावास की सजा सुनाने वाले ट्रायल कोर्ट सामने आत्मसमर्पण नहीं कर दिया हो। इसमें अपवाद केवल उस मामले के लिए है, जहां अपीलकर्ता को निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराते हुए जमानत पर रिहा कर दिया गया है।

    पीठ ने कहा,

    "मौजूदा मामले में, अपील पहले ही 29 अक्टूबर 2009 को सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली गई थी। इसलिए, उक्त नियम, जो पूर्व-प्रवेश चरण पर लागू होता है, इस मामले में लागू नहीं था।"

    अपील की अनुमति देते हुए, पीठ ने कहा:

    अपीलकर्ता के फरार होने और न्याय प्रशासन को धता बताने की निर्मम कार्रवाई को लेकर खंडपीठ द्वारा व्यक्त की गई पीड़ा को अच्छी तरह समझा जा सकता है। हालांकि, यह दोषसिद्धि के खिलाफ अपील खारिज करने का कोई आधार नहीं है, जिसे पहले ही गैर-अभियोजन के लिए बिना गुण-दोष के अंतिम सुनवाई के वास्ते स्वीकार कर लिया गया था। इसलिए, आक्षेपित निर्णय को निरस्त करना होगा और अपील को गुणदोष के आधार पर विचार के लिए हाईकोर्ट के पास वापस भेजना होगा।

    मामले का विवरण

    धनंजय राय उर्फ गुड्डू राय बनाम बिहार सरकार | 2022 लाइव लॉ (एससी) 597 | सीआरए 803/2017| 14 जुलाई 2022

    कोरम: जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस एमएम सुंदरेश

    हेडनोट्स: दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 374(2) - दोषसिद्धि के विरुद्ध पहले से स्वीकृत अपील को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि आरोपी फरार है। (पैरा 8)

    पटना हाईकोर्ट नियमावली- अध्याय XII का नियम 8 – दोषसिद्धि के विरुद्ध कोई अपील सुनवाई की स्वीकृति के वास्ते तब तक नहीं सुनी जाएगी, जब तक कि अभियुक्त ने उसे कारावास की सजा सुनाने वाले ट्रायल कोर्ट सामने आत्मसमर्पण नहीं कर दिया हो। इसमें अपवाद केवल उस मामले के लिए है, जहां अपीलकर्ता को निचली अदालत द्वारा दोषी ठहराते हुए जमानत पर रिहा कर दिया गया है। यह नियम सुनवाई की स्वीकृति के पहले के चरण पर लागू होता है, बाद में नहीं। (पैरा 7)

    सारांश : पटना उच्च न्यायालय ने दोषसिद्धि के खिलाफ दायर एक अपील को इस आधार पर खारिज कर दिया कि अपीलकर्ता आरोपी फरार है - अपील की अनुमति देते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा: अपीलकर्ता के फरार होने और न्याय प्रशासन को धता बताने की निर्मम कार्रवाई को लेकर खंडपीठ द्वारा व्यक्त की गई पीड़ा को अच्छी तरह समझा जा सकता है। हालांकि, यह दोषसिद्धि के खिलाफ अपील खारिज करने का कोई आधार नहीं है, जिसे पहले ही गैर-अभियोजन के लिए बिना गुण-दोष के अंतिम सुनवाई के वास्ते स्वीकार कर लिया गया था। इसलिए, आक्षेपित निर्णय को निरस्त कर दिया गया और अपील को गुणदोष के आधार पर विचार के लिए हाईकोर्ट के पास वापस भेजा गया।

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