स्वस्थ लोकतंत्र के लिए असहमति की आवाज जरूरी है, सिर्फ राजनीतिक दलों की आलोचना आईपीसी की धारा 153ए और 295ए लागू करने का कोई आधार नहीं हो सकती: जुबैर की जमानत पर दिल्ली कोर्ट

Shahadat

15 July 2022 11:18 AM GMT

  • स्वस्थ लोकतंत्र के लिए असहमति की आवाज जरूरी है, सिर्फ राजनीतिक दलों की आलोचना आईपीसी की धारा 153ए और 295ए लागू करने का कोई आधार नहीं हो सकती: जुबैर की जमानत पर दिल्ली कोर्ट

    दिल्ली की एक अदालत ने ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को जमानत देते हुए कहा,

    "स्वस्थ लोकतंत्र के लिए असहमति की आवाज जरूरी है। इसलिए, किसी भी राजनीतिक दल की आलोचना के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153 ए और 295 ए को लागू करना उचित नहीं है।"

    हाल ही में 2018 में किए गए अपने ट्वीट से धार्मिक भावनाओं को आहत करने और दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में दिल्ली पुलिस द्वारा जुबैर के खिलाफ दर्ज एफआईआर पर सुनवाई के दैरान यह घटनाक्रम सामने आया।

    यह टिप्पणी इस आरोप के संदर्भ में की गई कि जुबैर ने "2014 से पहले" और "2014 के बाद" दो शब्दों के साथ तस्वीर ट्वीट की थी।

    एसपीपी ने तर्क दिया कि "2014 से पहले" और "2014 के बाद" शब्द सत्तारूढ़ राजनीतिक दल की ओर इशारा करते हुए पूर्वाग्रही तरीके से स्थिति को दिखाने के लिए है।

    पटियाला हाउस कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश देवेंद्र कुमार जांगला ने कहा,

    "भारतीय लोकतंत्र में राजनैतिक दल अपनी आलोचना के लिए खुले हैं। राजनीतिक दल अपनी नीतियों की आलोचना का सामना करने के लिए जनता से पीछे नहीं हट रहे हैं।"

    अदालत का यह भी विचार था कि पुलिस उक्त ट्विटर यूजर की पहचान करने में विफल रही है, जिसने आरोपी के ट्वीट से आहत महसूस किया। इसके अलावा, 2018 से आज तक कोई अन्य शिकायत प्राप्त नहीं हुई थी कि ट्वीट आपत्तिजनक था।

    दिल्ली पुलिस के अनुसार, अज्ञात ट्विटर हैंडल से शिकायत प्राप्त होने के बाद मामला दर्ज किया गया। इसमें आरोप लगाया गया कि जुबैर ने "विशेष धर्म के भगवान का जानबूझकर अपमान करने के उद्देश्य से संदिग्ध छवि" ट्वीट की थी।

    एफआईआर के अनुसार, हिंदू भगवान हनुमान के नाम पर 'हनीमून होटल' का नाम बदलने पर 2018 से जुबैर का ट्वीट उनके धर्म का अपमान था।

    कोर्ट ने कहा,

    "इस पीड़ित व्यक्ति/गवाह का सीआरपीसी की धारा 161 के तहत बयान अभी तक दर्ज नहीं किया गया है। पुलिस किसी अन्य व्यक्ति के बयान को दर्ज करने में विफल रही है, जिसने आरोपी के ट्वीट से आहत महसूस किया है।"

    इसमें कहा गया,

    "भारतीय दंड संहिता के अपराध की जांच आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी), 1973 में निर्धारित सिद्धांत द्वारा शासित होती है। पुलिस अधिकारी सीआरपीसी के प्रावधानों के अनुसार जांच में आगे बढ़ने के लिए बाध्य हैं।"

    आगे यह देखते हुए कि लोकतंत्र खुली चर्चा के माध्यम से लोगों द्वारा शासित है, कोर्ट ने कहा कि जब तक लोग अपने विचारों को खुले आम जाहिर नहीं करेंगे तब तक लोकतंत्र न तो काम कर सकता है और न ही समृद्ध हो सकता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "विचारों का मुक्त आदान-प्रदान बिना किसी रोक-टोक के सूचना का प्रसार, ज्ञान का प्रसार, विभिन्न दृष्टिकोणों का प्रसारण, बहस करना और अपने विचार बनाना और उन्हें व्यक्त करना स्वतंत्र समाज के मूल संकेतक हैं। यह स्वतंत्रता अकेले लोगों के लिए अपने स्वयं के विचारों और विचारों को उचित आधार पर तैयार करने और एक स्वतंत्र समाज में अपने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अधिकारों का एक सूचित तरीके से प्रयोग करने के लिए संभव बनाती है।"

    कोर्ट ने आगे कहा कि हिंदू धर्म सबसे पुराने और सबसे सहिष्णु धर्मों में से एक है और हिंदू धर्म के अनुयायी भी सहिष्णु हैं।

    कोर्ट ने कहा,

    "हिंदू धर्म इतना सहिष्णु है कि अनुयायी गर्व से संस्था/संगठन/सुविधाओं का नाम अपने पवित्र भगवान या देवी के नाम पर रखते हैं। बड़ी संख्या में हिंदू गर्व से अपने बच्चों का नाम अपने पवित्र भगवान और देवी के नाम पर रखते हैं। कॉर्पोरेट मंत्रालय की वेबसाइ, भारत सरकार से पता चलता है कि पवित्र हिंदू भगवान या देवी के नाम पर कई कंपनियां हैं।"

    इसमें कहा गया है,

    "इसलिए किसी संस्थान, सुविधा या संगठन या बच्चे का नाम हिंदू देवता के नाम पर रखना आईपीसी की धारा 153ए और 295ए का उल्लंघन नहीं है, जब तक कि ऐसा द्वेष/दोषी इरादे से नहीं किया जाता। कथित कृत्य अपराध की श्रेणी में तभी आते हैं जब यह दोषी इरादे से किया गया हो।"

    इस पहलू पर कि जुबैर ने वर्ष 1983 में रिलीज़ हुई फिल्म "किसी से न कहना" के दृश्य की तस्वीर पोस्ट की थी, अदालत ने इस प्रकार कहा:

    "इस फिल्म को केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा प्रमाणित किया गया है, जो भारत सरकार का वैधानिक निकाय है और तब से जनता के देखने के लिए उपलब्ध है। आज तक कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई है कि फिल्म के उक्त दृश्य से समाज के विशेष समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंची है।"

    कोर्ट ने कहा कि सभी सबूत दस्तावेजी प्रकृति के हैं और जुबैर को पहले ही पांच दिनों की पुलिस हिरासत में लिया गया है और अब वह न्यायिक हिरासत में है। इसलिए, कोर्ट का विचार है कि आगे और पूछताछ की आवश्यकता नहीं है।

    अदालत ने कहा,

    "बरामदगी पहले ही हो चुकी है, इसलिए आवेदक/अभियुक्त को सलाखों के पीछे रखने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होने वाला है।"

    जुबैर को 27 जून को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह हिरासत में है।

    मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट स्निग्धा सरवरिया द्वारा दो जुलाई को जमानत देने से इनकार करने के बाद उन्होंने सत्र न्यायालय का रुख किया था।

    जुबैर को भारतीय दंड संहिता की धारा 153ए और धारा 295 के तहत गिरफ्तार किया गया था।

    बाद में आईपीसी की धारा 295A के साथ धारा 201 और 120बी और विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 की धारा 35 लागू की गई।

    जुबैर के खिलाफ एफसीआरए की धारा 35 के आह्वान पर कोर्ट ने देखा कि जुबैर ने रिकॉर्ड में रखा है कि उसकी वेबसाइट (ऑल्ट न्यूज़) पर यह विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि केवल भारतीय बैंक खातों वाले भारतीय नागरिकों को योगदान देना चाहिए।

    अदालत ने कहा,

    "यह कहा गया कि आरोपी ने किसी भी विदेशी योगदान की प्राप्ति को रोकने के लिए सभी सुरक्षा उपाय किए हैं। आरोपी द्वारा रिकॉर्ड पर रखी गई सामग्री प्रथम दृष्टया एफसीआरए की धारा 39 के अनुसार उसके द्वारा किए गए उचित परिश्रम को दर्शाती है।"

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