संपादकीय

भारत के कड़े अधिनियमों में से एक अधिनियम है एनडीपीएस एक्ट 1985, जानिए प्रमुख बातें
भारत के कड़े अधिनियमों में से एक अधिनियम है एनडीपीएस एक्ट 1985, जानिए प्रमुख बातें

भारतीय संसद में 1985 में एनडीपीएस एक्ट पारित किया गया, जिसका पूरा नाम नारकोटिक्स ड्रग्स साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट 1985 है। नारकोटिक्स का अर्थ नींद से है और साइकोट्रोपिक का अर्थ उन पदार्थों से है जो मस्तिष्क के कार्यक्रम को परिवर्तित कर देता है। कुछ ड्रग और पदार्थ ऐसे है जिनका उत्पादन और विक्रय ज़रूरी है, लेकिन उनका अनियमित उत्पादन तथा विक्रय नहीं किया जा सकता। उन पर सरकार का कड़ा प्रतिबंध होता है और रेगुलेशन है, क्योंकि ये पदार्थ अत्यधिक मात्रा में उपयोग में लाने से नशे में प्रयोग होने लगते...

 एक मामले में दी गई जमानत अन्य मामले में दर्ज FIR के आधार पर रद्द नहीं हो सकती : कर्नाटक हाईकोर्ट
 एक मामले में दी गई जमानत अन्य मामले में दर्ज FIR के आधार पर रद्द नहीं हो सकती : कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ ताजा एफआईआर दर्ज करना, किसी अन्य मामले में पहले से दी गई अग्रिम जमानत को रद्द करने का आधार नहीं हो सकता जहां पहले से ही ट्रायल चल रहा है। न्यायमूर्ति बीए पाटिल ने कहा, "एकमात्र आधार जो बनाया गया है वह यह है कि दो नए आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं। ट्रायल के रास्ते में उक्त मामले किस तरह से आते हैं, यह भी नहीं बताया गया है। ऐसी परिस्थितियों में, जमानत रद्द करने का ये आदेश कानून में ठहरने वाला नहीं है। " दरअसल खाजिम @ खजिमुल्ला खान ने सत्र...

सीएए विरोधी प्रदर्शन: जानिए प्रदर्शनों को दबाने के लिए बल प्रयोग करने की कानूनी वैधता
सीएए विरोधी प्रदर्शन: जानिए प्रदर्शनों को दबाने के लिए बल प्रयोग करने की कानूनी वैधता

शाश्वत अवस्थी एवं अनुष्का सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसम्बर 2019 को नागरिकता संशोधन कानून, 2019 के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के छात्रों के विरुद्ध पुलिस की दमनात्मक कार्रवाई की जांच अदालत की निगरानी में कराये जाने की अर्जी संबंधित उच्च न्यायालयों के समक्ष दायर करने का याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया। शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप न करने का मुख्य कारण स्थापित तथ्यों की अनुपस्थिति में उसकी अनिच्छा (तथ्य का पता लगाना अनिवार्य तौर पर...

प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंंचाने के मामलों पर क्या कहता है कानून?
प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंंचाने के मामलों पर क्या कहता है कानून?

कई बार देश में विरोध प्रदर्शन, हिंसक हो जाते हैं और जिसके परिणामस्वरूप लोक संपत्ति को काफी नुकसान पहुचंता है। हाल के समय में उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और असम के कुछ हिस्सों में इसी प्रकार की हिंसा देखने को मिली, जहाँ लोक संपत्ति को नुकसान पहुंंचाया गया। हम एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते यह समझते हैं कि इस तरह की हिंसा में न केवल लोक संपत्ति को नुकसान पहुंंचता है, बल्कि टैक्स अदा करने वाले नागरिकों के धन का नुकसान होता है, सरकार के खर्चों पर बोझ बढ़ता है, अशांति फैलती है और आमजन का जीवन...

पति की मृत्यु पर मुआवजे का दावा करने वाली एक विधवा का अधिकार पुनर्विवाह पर समाप्त नहीं होगा :  दिल्ली हाईकोर्ट
पति की मृत्यु पर मुआवजे का दावा करने वाली एक विधवा का अधिकार पुनर्विवाह पर समाप्त नहीं होगा : दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना है कि मोटर वाहन दुर्घटना के कारण पति की मृत्यु पर मुआवजे का दावा करने वाली एक विधवा का अधिकार पुनर्विवाह पर समाप्त नहीं होगा और वह मृतक के माता-पिता के समान ही अधिकार की हकदार है। ट्रिब्यूनल ने मृतक के दावेदार अर्थात, उसकी विधवा और उसके माता-पिता को रुपए 1,68,39,642 दिए गए। हालांकि मृतक की विधवा को केवल 3,91,054.47 रुपए ही मिले। अदालत ने कहा कि ट्रिब्यूनल ने पत्नी को "प्यार और आकर्षण की हानि" और "सह व्यवस्था और सहयोग के नुकसान" के लिए मुआवजा नहीं दिया।...

क्या पुलिस विश्वविद्यालय/कॉलेज परिसर में बिना अनुमति के प्रवेश कर सकती है?
क्या पुलिस विश्वविद्यालय/कॉलेज परिसर में बिना अनुमति के प्रवेश कर सकती है?

इस बात को लेकर हर कहीं बहस छिड़ी हुई है कि क्या पुलिस को किसी कॉलेज या विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश करने से पहले कॉलेज/विश्वविद्यालय प्रशासन या किसी अन्य प्राधिकरण से अनुमति लेने की आवश्यकता होती है? दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी एवं उत्तर प्रदेश के अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पुलिस द्वारा प्रवेश किये जाने के बाद यह सवाल सोशल मीडिया से लेकर आम चर्चा में छाया हुआ है। जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में प्रवेश करने को लेकर पुलिस ने यह कहा है कि वे स्थिति को नियंत्रित करने के...

मरने से पहले दिया गया बयान केवल इसलिए अविश्वसनीय नहीं होगा क्योंकि इसे कार्यकारी मजिस्ट्रेट ने दर्ज किया है : दिल्ली हाईकोर्ट
मरने से पहले दिया गया बयान केवल इसलिए अविश्वसनीय नहीं होगा क्योंकि इसे कार्यकारी मजिस्ट्रेट ने दर्ज किया है : दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने माना है कि मरने से पहले दिया गया बयान (dying declaration) केवल इसलिए अविश्वसनीय नहीं होगा, क्योंकि इसे न्यायिक मजिस्ट्रेट के बजाय एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया है। न्यायमूर्ति आईएस मेहता की एकल पीठ ने उल्लेख किया है कि जैसे ही यह मालूम हो कि मरने से पहले स्वेच्छा से बयान दिया गया है और यह सत्य है तो इसकी प्रासंगिकता इस बात से प्रभावित नहीं होगी कि एक कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा इस बयान को दर्ज किया गया है। वर्तमान मामले में आरोपी व्यक्तियों द्वारा कई...

अपनी नवजात बच्ची की हत्या करने की आरोपी मां को सुप्रीम कोर्ट ने बरी किया, पढ़ें फैसला
अपनी नवजात बच्ची की हत्या करने की आरोपी मां को सुप्रीम कोर्ट ने बरी किया, पढ़ें फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी नवजात बच्ची की गला दबाकर हत्या करने के आरोपी एक महिला को बरी कर दिया है। ट्रायल कोर्ट ने अभियोजन के मामले को बरकरार रखा था कि मंजू ने अपने नवजात जन्मे बच्चे की हत्या इसलिए कर दी, क्योंकि वह एक लड़की थी। उच्च न्यायालय ने धारा 302 आईपीसी और सजा के तहत सजा की पुष्टि की थी। मंजू ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की जिस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति मोहन एम शांतनगौदर और न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि आरोपी ने नवजात बच्ची का गला इसलिए...

मध्यस्थता अवार्ड की अपील दाखिल करने में 120 दिनों से ज्यादा की देरी माफी लायक नहीं : सुप्रीम कोर्ट
मध्यस्थता अवार्ड की अपील दाखिल करने में 120 दिनों से ज्यादा की देरी माफी लायक नहीं : सुप्रीम कोर्ट

 सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 37 के तहत अपील दायर करने में 120 दिनों से अधिक की देरी को माफ नहीं किया जा सकता है। M/S एन वी इंटरनेशनल बनाम स्टेट ऑफ़ असम में मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 37 के तहत एक अपील दायर की गई थी, जिसमें जिला जज के एक आदेश को चुनौती देते हुए धारा 34 के तहत मध्यस्थता अवार्ड को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था। अपील दायर करने में 189 दिन की देरी हुई और उक्त आधार पर अपील खारिज कर दी गई थी। शीर्ष अदालत के समक्ष तर्क...