पति की मृत्यु पर मुआवजे का दावा करने वाली एक विधवा का अधिकार पुनर्विवाह पर समाप्त नहीं होगा : दिल्ली हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

20 Dec 2019 4:00 AM GMT

  • पति की मृत्यु पर मुआवजे का दावा करने वाली एक विधवा का अधिकार पुनर्विवाह पर समाप्त नहीं होगा :  दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली उच्च न्यायालय ने माना है कि मोटर वाहन दुर्घटना के कारण पति की मृत्यु पर मुआवजे का दावा करने वाली एक विधवा का अधिकार पुनर्विवाह पर समाप्त नहीं होगा और वह मृतक के माता-पिता के समान ही अधिकार की हकदार है।

    ट्रिब्यूनल ने मृतक के दावेदार अर्थात, उसकी विधवा और उसके माता-पिता को रुपए 1,68,39,642 दिए गए। हालांकि मृतक की विधवा को केवल 3,91,054.47 रुपए ही मिले।

    अदालत ने कहा कि ट्रिब्यूनल ने पत्नी को "प्यार और आकर्षण की हानि" और "सह व्यवस्था और सहयोग के नुकसान" के लिए मुआवजा नहीं दिया। न्यायमूर्ति वजीरी ने टिप्पणी करते हुए कहा, "विधवा के खिलाफ सख्त अपमानजनक अपील के लिए दिए गए आदेश में कोई प्रेरक कारण नहीं बताया गया है।"

    इस प्रकार हाईकोर्ट ने उसका हिस्सा बढ़ाकर ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए 3,00,000 रुपए से 56,00,000 कर दिया गया।

    न्यायमूर्ति नजमी वजीरी ने कहा कि एक विधवा के पुन: विवाह का उसके पति के अप्राकृतिक निधन के कारण हुए नुकसान के लिए मुआवजे के अधिकार और मुआवजे के दावे के साथ कोई लेना-देना नहीं है। विधवा को मृतक के माता-पिता के बराबर हिस्सा दिया गया।

    मैग्मा जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम नानू राम @ चुहरु राम और अन्य के मामले पर विश्वास जताया गया।

    अदालत ने निर्देश दिया कि विधवा को मृतक के माता पिता के समान मुआवजा यानी मुआवजा राशि की 1 / 3 हिस्सेदारी दी जाए। अदालत ने इस प्रकार मुआवजे की कुल राशि 1,68,39,642 / में से 56,13,214 रुपए का मुआवजा निम्नलिखित तर्क पर मृतक की विधवा को देने का निर्देश दिया।

    "निर्भरता के नुकसान की गणना उसके मृत पति पर निर्भरता के आधार पर थी। उसका नुकसान उसके सास-ससुर द्वारा सहन की गई निर्भरता के नुकसान के बराबर है। फिर से शादी करने का उसका निर्णय पूरी तरह से उसकी व्यक्तिगत पसंद थी, जिसके बारे में किसी के पास कोई बात नहीं हो सकती है। मुआवजे का दावा करने का उसका अधिकार मोटर दुर्घटना में उसके पति के जीवन को दुखद रूप से छीन लिया गया है। सिर्फ इसलिए कि उसने अब शादी कर ली है, उसका दावा कम नहीं होगा।

    कौन यह निर्धारित कर सकता है कि क्या दूसरी शादी उसकी व्यक्तिगत परिस्थितियों के कारण एक समझौता नहीं थी? और क्या पहली शादी के रूप में भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से समान मूल्य होगा। जब निर्भरता की गणना की गई थी, तो उसका हक़ पूरा हुआ। इसलिए एक पीड़ित विधवा के रूप में वह अपने माता-पिता, जिन्होंने अपने बेटे को खो दिया था, के बराबर राशि के मुआवजे की निर्भरता के नुकसान" के हिस्से की हकदार होगी।"

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