कैसा रहा सुप्रीम कोर्ट में पिछला सप्ताह, वीकली राउंड अप में प्रमुख ऑर्डर, जजमेंट पर एक नज़र
LiveLaw News Network
16 Dec 2019 12:36 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने 9 दिसंबर से 13 दिसंबर तक के सप्ताह में कई अहम ऑर्डर, जजमेंट पास किए। आइए वीकली राउंड अप में प्रमुक ऑर्डर, जजमेंट पर एक नज़र डालते हैं।
मध्यस्थता अवार्ड की अपील दाखिल करने में 120 दिनों से ज्यादा की देरी माफी लायक नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 37 के तहत अपील दायर करने में 120 दिनों से अधिक की देरी को माफ नहीं किया जा सकता है। M/S एन वी इंटरनेशनल बनाम स्टेट ऑफ़ असम में मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 37 के तहत एक अपील दायर की गई थी, जिसमें जिला जज के एक आदेश को चुनौती देते हुए धारा 34 के तहत मध्यस्थता अवार्ड को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था। अपील दायर करने में 189 दिन की देरी हुई और उक्त आधार पर अपील खारिज कर दी गई थी।
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सीआरपीसी की धारा 362 आदेश को रोकने की हाईकोर्ट की निहित शक्ति पर रोक नहीं लगाती: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट के पास दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत एक आदेश को वापस लेने की अंतर्निहित शक्ति है और सीआरपीसी की धारा 362 के प्रावधान ऐसी शक्तियों के प्रयोग से रोक नहीं सकते।
इस मामले में हाईकोर्ट ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए के तहत दोषी ठहराए जाने से किसी व्यक्ति के करियर पर असर नहीं पड़ेगा। नियोक्ता ने आदेश वापस लेने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत एक आवेदन दायर किया था, जिसमें दलील दी गई थी कि नियोक्ता को कर्मचारी के किसी भी कदाचार, जिसके कारण कोर्ट ने उसे दोषी ठहराया हो, को ध्यान में रखने का अधिकार है, नियोक्ता की पीठ के पीछे आनुशंगिक कार्यवाही में नहीं ले जाया जा सकता है। इस आवेदन को हाईकोर्ट ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि सीआरपीसी की धारा 362 के प्रावधानों के मद्देनजर समीक्षा बरकरार नहीं रखी जा सकती है।
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सुनवाई के न्यूनतम अवसर दिए बिना प्रतिकूल आदेश से किसी को सज़ा नहीं सुनाई जा सकती, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला
किसी भी व्यक्ति को सुनवाई के न्यूनतम अवसर दिए बिना एक प्रतिकूल आदेश से सज़ा नहीं सुनाई जा सकती। चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग द्वारा दवा आपूर्तिकर्ता डेफोडिल्स से स्थानीय खरीद को रोकने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की। यह आदेश यूपी सरकार के प्रधान सचिव द्वारा जारी किया गया था। यह कहते हुए कि डैफोडिल्स के खिलाफ पहली सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि इसने अपराध किया है और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) इस मुद्दे पर पूछताछ कर रही थी।
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ओवैसी और कांग्रेस सांसद टीएन प्रतापन ने नागरिकता संशोधन अधिनियम की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी
लोकसभा सांसद और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट में नागरिकता संशोधन अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कहा कि यह जबरन धर्म परिवर्तन को बढ़ावा देता है, धर्म के आधार पर भेदभाव करता है और अवैध रूप से प्रवासियों को विभाजित करता है।
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, आरोपी नशे के कारण बेहोशी की हालत में न हो तो नहीं कम होती अपराध की गंभीरता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर आरोपी अत्यधिक नशे के कारण अक्षम हालात में न हो तो नशे को अपराध की गंभीरता कम करने का कारक नहीं माना जा सकता है। सूरज जगन्नाथ जाधव बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह की खंडपीठ के समक्ष विवाद था कि आरोपी ने जब अपनी पत्नी पर केरोसिन डालकर माचिस से आग लगाई थी, तब वह शराब के नशे में था। उसकी हालत ऐसी थी कि वह समझ नहीं पा रहा था कि वह क्या कर रहा है। यह दलील दी गई कि उसने मर चुकी पत्नी को बचाने की कोशिश की, उसे बचाने के लिए उस पर पानी भी डाला और ऐसा करते हुए उसे चोट भी लगी।
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अदालतों के लिए समर्पित सुरक्षा बल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राज्यों, BCI और SCBA को नोटिस जारी कर जवाब मांगा
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को देश के सभी न्यायालयों, जजों, वकीलों, वादियों और गवाहों को "फुलप्रपूफ सुरक्षा" देने के लिए एक समर्पित और विशेष सुरक्षा बल की स्थापना के लिए केंद्र और सभी राज्यों से प्रतिक्रिया मांगी है। जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने अपने सहयोगी करुणाकर महलिक की ओर से वकील दुर्गा दत्त द्वारा दायर जनहित याचिका पर अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल, बार काउंसिल ऑफ इंडिया और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन को भी नोटिस जारी किया।
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एडीआर और कॉमन कॉज़ ने लोकसभा चुनाव परिणामों की विसंगतियों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और कॉमन कॉज़ ने संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है और अपनी याचिका में शीर्ष अदालत से मांग की है कि 17 वीं लोकसभा के चुनाव परिणामों में हुई कथित विसंगतियों की जांच करने के निर्देश दिए जाएं। अदालत ने रजिस्ट्री को टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा द्वारा दायर याचिका के साथ इस याचिका को टैग करने के लिए कहा है। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने अदालत में उक्त चुनावों में मतदाता मतदान और अंतिम मतों के विवरण के प्रकाशन की मांग की थी।
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नागरिकता संशोधन कानून : सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली दर्जन भर याचिकाएं दाखिल
नागरिकता संशोधन कानून लागू होते ही सुप्रीम कोर्ट में करीब 12 याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं। सभी याचिकाओं में इस कानून को असंवैधानिक, मनमाना और भेदभावपूर्ण करार देते हुए रद्द करने का अनुरोध किया गया है। इस मामले में TMC सासंद महुआ मोइत्रा के अलावा कांग्रेसी नेता जयराम रमेश ने भी याचिका दाखिल की है। जयराम रमेश ने याचिका में कहा है कि ये कानून भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान का उल्लंघन करता है। भेदभाव के रूप में यह मुस्लिम प्रवासियों को बाहर निकालता है और केवल हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, ईसाइयों, पारसियों और जैनियों को नागरिकता देता है।
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न्यायिक अधिकारी के आचरण को निर्धारित करने के लिए पैमाने सख्त हों : सुप्रीम कोर्ट
न्यायिक अधिकारी पर लगाई गई अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा को बरकरार रखते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि न्यायिक अधिकारी के आचरण को निर्धारित करने के लिए मानक या पैमाने सख्त होने चाहिए। न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने कहा कि जनता को न्यायिक कार्य करने वाले किसी व्यक्ति से लगभग अप्रासंगिक आचरण की मांग करने का अधिकार है। दरअसल मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के रूप में तैनात राम मूर्ति यादव के खिलाफ एक व्यक्ति द्वारा शिकायत के संबंध में अभियुक्त को बरी करने के खिलाफ जांच शुरू की गई थी। जांच के बाद उनको आरोपों का दोषी पाया गया और उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सजा दी गई।
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दया याचिका के निपटारे की समय सीमा तय करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका
राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका के निपटारे के लिए विशिष्ट प्रक्रिया, नियम और समय सीमा तय करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई है। वकील शिव कुमार त्रिपाठी ने दाखिल याचिका में कहा है कि राष्ट्रपति के पास दायर होनी वाली दया याचिका का निपटारा करने की कोई समय सीमा या नियम या कोई प्रक्रिया तय नहीं की गई है। इसकी वजह से याचिकाएं काफी वक्त तक लटकी रहती हैं। याचिका में कहा गया है कि कई मामलों में देरी की वजह से मौत की सजा पाने वाले दोषी अपनी सजा कम कर उम्रकैद में बदलवाने में सफल हो जाते हैं। इसे पीड़ित और उसका परिवार खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं।
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" जब दिल्ली के प्रदूषण से जिंदगी छोटी हो रही है तो मृत्युदंड क्यों ? " : निर्भया के एक दोषी ने सुप्रीम कोर्ट में लगाई पुनर्विचार याचिका
2012 के निर्भया गैंगरेप और हत्या मामले में मौत की सजा पाने वाले चार दोषियों में से एक अक्षय सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में 5 मई, 2017 को शीर्ष अदालत द्वारा दिए गए फैसले पर सवाल उठाते हुए पुनर्विचार याचिका दाखिल की है, जिसमें मौत की सजा को बरकरार रखा गया है। फैसले के खिलाफ दलीलों के अलावा, इस याचिका में कुछ अजीबोगरीब दलीलें भी दी हैं। उसके अनुसार , मौत की सजा अनावश्यक है क्योंकि दिल्ली की बिगड़ती हवा और पानी की गुणवत्ता खराब हो चुकी है। "यहां यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि दिल्ली-एनसीआर और मेट्रो शहर की वायु गुणवत्ता एक गैस चेंबर की तरह है। इतना ही नहीं, दिल्ली-एनसीआर का पानी भी जहर से भरा है।
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