क्या पुलिस विश्वविद्यालय/कॉलेज परिसर में बिना अनुमति के प्रवेश कर सकती है?
SPARSH UPADHYAY
20 Dec 2019 8:00 AM IST
इस बात को लेकर हर कहीं बहस छिड़ी हुई है कि क्या पुलिस को किसी कॉलेज या विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश करने से पहले कॉलेज/विश्वविद्यालय प्रशासन या किसी अन्य प्राधिकरण से अनुमति लेने की आवश्यकता होती है? दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी एवं उत्तर प्रदेश के अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पुलिस द्वारा प्रवेश किये जाने के बाद यह सवाल सोशल मीडिया से लेकर आम चर्चा में छाया हुआ है। जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में प्रवेश करने को लेकर पुलिस ने यह कहा है कि वे स्थिति को नियंत्रित करने के लिए ही विश्वविद्यालय परिसर में घुसे थे, जब प्रदर्शनकारियों ने दक्षिणी दिल्ली में न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी इलाके के पास हिंसा की थी।
इसके अलावा पुलिस सूत्रों की ओर से यह भी बताया गया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ एक प्रदर्शन के दौरान, दक्षिणी दिल्ली में हिंसा भड़कने के तुरंत बाद, पुलिस ने जामिया मिलिया इस्लामिया परिसर में प्रवेश किया और विश्वविद्यालय के द्वार को बंद कर दिया जिससे कुछ "बाहरी लोगों" को, जो छिपने के लिए परिसर में घुस गए थे, पकड़ा जा सके। इस लेख में हम इस सवाल पर चर्चा करेंगे की क्या पुलिस को ऐसे कॉलेज/यूनिवर्सिटी परिसर में प्रवेश करने के लिए किसी की अनुमति लेने की आवश्यकता होती है अथवा नहीं और क्या हैं इससे सबंधित पुलिस के अन्य अधिकार।
अनुमति लेने की नहीं है कोई आवश्यकता
यदि एक वाक्य में इस सवाल का जवाब दिया जाना हो तो यह कहा जा सकता है कि, 'नहीं, पुलिस को किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी में प्रवेश करने के लिए किसी से भी अनुमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं होती है।' देश में ऐसा कोई कानून नहीं है जो पुलिस को आवश्यकता पड़ने पर किसी भी स्थान में प्रवेश करने से रोकता हो (इसमें विश्वविद्यालय/कॉलेज परिसर भी शामिल हैं)। कानूनी रूप से, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 41 के अनुसार, एक पुलिस अधिकारी, किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए, किसी भी स्थान (कॉलेज और विश्वविद्यालय सहित) में प्रवेश कर सकता है। साथ ही, विश्वविद्यालय प्रशासन को इस प्रक्रिया में पुलिस अधिकारियों की मदद करने की भी आवश्यकता होती है।
इसके अलावा, वर्ष 2016 की शुरुआत में विश्वविद्यालय परिसरों के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) द्वारा जारी किये गए सुरक्षा दिशानिर्देश यह कहते हैं कि रात में कैंपस में गश्त करने के लिए पुलिस को आमंत्रित किया जा सकता है। यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) के इस दिशा-निर्देश में भी यूनिवर्सिटी कैंपस में प्रवेश करने को लेकर पुलिस पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। पुलिस की वर्तमान एसओपी (स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर/मानक सञ्चालन प्रक्रिया) के अंतर्गत भी, कैंपस में प्रवेश करने से पूर्व अनुमति लेना, केवल स्थानीय पुलिस और विश्वविद्यालय के बीच एक समझ भर है और इसको लेकर पुलिस पर कोई बाध्यता नहीं है।
गौरतलब है कि अगर कोई विश्वविद्यालय/कॉलेज प्रशासन, ऐसा कोई नियम बनाता है जिसके अंतर्गत पुलिस को कैंपस में प्रवेश करने से पूर्व अनुमति लेनी होगी, तो ऐसा नियम निरर्थक साबित होगा क्योंकि दंड प्रक्रिया सहित, 1973 के अंतर्गत पुलिस को किसी भी स्थान में प्रवेश करने का अधिकार है। किन परिस्थितियों में पुलिस ऐसा कर सकती है इसे हम आगे समझेंगे।
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के अंतर्गत पुलिस की शक्तियां
गौरतलब है कि विजयकुमार बनाम केरल राज्य 2004 (2) KLT 627 के मामले में केरल उच्च न्यायालय ने यह माना था कि यदि परिस्थितियां ऐसी बनती हैं तो पुलिस, बिना किसी के अनुरोध या अनुमति के कॉलेज परिसर में प्रवेश कर सकती है, ताकि किसी भी प्रकार की आपराधिक गतिविधियों को रोका जा सके या अपराध करने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई की जा सके। केरल उच्च न्यायालय का यह निर्णय, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की विभिन्न धाराओं के साथ दिखाई पड़ता है।
जैसा कि हम जानते हैं, सामान्य तौर पर, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 41, पुलिस को गिरफ्तारी करने के लिए अधिकृत करती है। सीआरपीसी, मजिस्ट्रेट से प्राप्त वारंट के साथ या उसके बिना भी, पुलिस को गिरफ्तारी की विस्तृत शक्तियां प्रदान करती है। सीआरपीसी में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जो किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के सम्बन्ध में पुलिस को किसी भी स्थान पर प्रवेश करने से प्रतिबंधित करता हो। इसके विपरीत, सीआरपीसी की धारा 48, स्पष्ट रूप से यह कहती है कि "एक पुलिस अधिकारी ऐसे किसी व्यक्ति को, जिसे गिरफ्तार करने के लिए वह प्राधिकृत है, वारंट के बिना गिरफ्तार करने के प्रयोजन से भारत के किसी स्थान में उस व्यक्ति का पीछा कर सकता है।" इस प्रकार, यदि कोई पुलिस अधिकारी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए अधिकृत है, तो वह ऐसे व्यक्ति का, भारत में किसी भी स्थान तक पीछा कर सकता है, भले ही वह स्थान उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर हो।
यही नहीं, यदि ऐसे किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाना है और पुलिस अधिकारी के लिए यह विश्वास करने का कारण मौजूद है कि ऐसा व्यक्ति, किसी स्थान (कॉलेज/यूनिवर्सिटी कैंपस सहित) में प्रवेश कर चुका है तो वह पुलिस अधिकारी उस स्थान में प्रवेश कर सकता है [धारा 47 (1)]। यही नहीं, उस स्थान का कण्ट्रोल रखने वाले व्यक्ति को, पुलिस को उस स्थान में प्रवेश करने देना होगा और पुलिस द्वारा तलाशी के लिए उचित सुविधाएँ देनी होंगी। इसके अलावा दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 47 (2) भी, पुलिस को उस स्थान के भीतरी द्वार या खिड़की को तोड़कर प्रवेश करने की इजाजत देती है (जहाँ धारा 47 (1) के अंतर्गत प्रवेश प्राप्त करना संभव नहीं हो सका है)
सीआरपीसी की धारा 47 (1) यह कहती है कि,
"यदि गिरफ्तारी के वारंट के अधीन कार्य करने वाले व्यक्ति को, या गिरफ्तारी करने के लिए प्राधिकृत किसी पुलिस अधिकारी को, यह विश्वास करने का कारण है कि वह व्यक्ति जिसे गिरफ्तार किया जाना है, किसी स्थान में प्रविष्ट हुआ है, या उसके अन्दर है तो ऐसे स्थान में निवास करने वाला, उस स्थान का भारसाधक कोई भी व्यक्ति, पूर्वोक्त रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति द्वारा या ऐसे पुलिस अधिकारी द्वारा मांग किये जाने पर उसमे उसे अबाध प्रवेश करने देगा और उसके अन्दर तलाशी लेने के लिए सब उचित सुविधाएँ देगा।"
इसके अलावा, सीआरपीसी की धारा 165 और 166, पुलिस को, बिना किसी तलाशी वारंट के, किसी संज्ञेय अपराध में अन्वेषण के प्रयोजनों के लिए, किसी भी स्थान पर तलाशी के लिए अनुमति देती हैं। इस तरह की तलाशी के संचालन की प्रक्रिया, सीआरपीसी की धारा 100 में अधिनियमित है, और इस धारा की उपधारा (2) में यह प्रावधान है कि धारा 47 (2) के प्रावधान के अनुसार ही, तलाशी के प्रयोजन के लिए उस स्थान के भीतरी द्वार या खिड़की को तोड़कर प्रवेश किया जा सकता है।
पुलिस के कैंपस में प्रवेश को लेकर उठते रहे हैं सवाल
भले वर्ष 2015 में पुलिस द्वारा JNU में प्रवेश करना रहा हो या वर्ष 2016-17 में, सुरक्षाकर्मियों और पुलिस द्वारा पुलवामा विश्वविद्यालय के एक कॉलेज परिसर में प्रवेश करना रहा हो (जहाँ पुलिस द्वारा, भारत विरोधी नारे लगाने के आरोप में बुक किए गए छात्रों को गिरफ्तार करने के लिए प्रवेश किया गया था), हर बार ऐसी घटनाएँ बहुत सारे सवाल छोड़ जाती हैं।
हमने यह भी देखा है कि पुलिस, आम तौर पर विश्वविद्यालय परिसरों में प्रवेश नहीं करती है, क्योंकि छात्रों के खिलाफ कार्रवाई अक्सर अच्छे रूप में नहीं देखी जाती है, और इसके चलते कानून-व्यवस्था बिगड़ने की काफी सम्भावना रहती है। ड्यूटी पर मौजूद पुलिस अधिकारी, इस बाबत निर्णय लेने के लिए सक्षम हैं कि आखिर कब वे कॉलेज/यूनिवर्सिटी में प्रवेश करने के लिए कानूनी रूप से सशक्त हैं। हालाँकि पुलिस द्वारा इस सम्बन्ध में निर्णय बहुत सोच समझ कर ही लिया जाना चाहिए, और सीआरपीसी के अंतर्गत पुलिस को प्रदत्त शक्तियों की सीमाओं के भीतर ही ऐसे निर्णयों को अंजाम दिया जाना चाहिये|
यह जरुर है कि पुलिस का कर्तव्य, कानून-व्यवस्था को बनाये रखना है, लेकिन पुलिस के लिए इस कर्तव्य के साथ उचित सावधानी बरतनी भी आवश्यक है, और इसलिए कॉलेज/यूनिवर्सिटी परिसर में प्रवेश करने का कोई भी कदम, कभी भी मनमाना नहीं होना चाहिए|
अंत में, मौजूदा कानून में ऐसा कुछ भी नहीं है, जिसके चलते पुलिस को किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के लिए, जिसकी गिरफ्तारी का अधिकार पुलिस के पास है, या तलाशी के लिए, विश्वविद्यालय में प्रवेश करने से लिए पहले विश्वविद्यालय के कुलपति (वीसी) से औपचारिक रूप से अनुमति लेनी चाहिए। यह केवल एक शिष्टाचार के तौर पर है कि आम तौर पर पुलिस एक शैक्षणिक संस्थान के उच्च अधिकारियों को ऐसा कुछ भी करने से पूर्व विश्वास में लेती है (या तो उसकी अनुमति लेकर या अग्रिम में उसे सूचित करके)।