हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

24 Sep 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (11 सितंबर 2023 से 15 सितंबर 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    [हिंदू विवाह अधिनियम] अवैध विवाह से पैदा हुए बच्चे संयुक्त परिवार की संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा नहीं कर सकते: तेलंगाना हाईकोर्ट

    संपादक का नोट: एक सितंबर को रेवनसिद्दप्पा बनाम मल्लिकार्जुन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू संयुक्त परिवार की संपत्ति में अपने माता-पिता के हिस्से में अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों के अधिकारों को मान्यता दी। यह माना गया कि अमान्य/शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चे अपने मृत माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा पाने के हकदार हैं, जो उन्हें हिंदू सहदायिक संपत्ति के एक काल्पनिक विभाजन पर आवंटित किया गया होगा। हालांकि, ऐसे बच्चे अपने माता-पिता के अलावा किसी अन्य सहदायिक की संपत्ति के हकदार नहीं हैं।

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    सेवा से बर्खास्तगी से पहले कदाचार की गंभीरता, पिछला आचरण और पिछला दंड आवश्यक कारक: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि सेवा से बर्खास्तगी की बड़ी सजा देते समय अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा पिछले रिकॉर्ड के साथ-साथ आसपास के कारकों पर भी विचार किया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा, "कदाचार की गंभीरता पिछला आचरण, कर्तव्यों की प्रकृति, संगठन में स्थिति, पिछला जुर्माना, यदि कोई हो और लागू किए जाने वाले अनुशासन की आवश्यकता, प्रतिवादी को सजा देने से पहले अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा विचार करने के लिए प्रासंगिक है।"

    केस टाइटल: भारत संघ और 3 अन्य बनाम यशपाल

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    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा, घोषित अपराधियों पर आईपीसी की धारा 174ए को सीआरपीसी की धारा 195 के तहत शामिल किया गया है, अपनी राय के पक्ष में "भारतीय न्याय संहिता" का हवाला दिया

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना कि भले ही धारा 195 सीआरपीसी को अपने दायरे में धारा 174 ए आईपीसी को शामिल करने के लिए संशोधित नहीं किया गया था, जिसे 2005 में निर्दिष्ट स्थान और समय पर घोषित अपराधियों की गैर-उपस्थिति को अपराध बनाने के लिए पेश किया गया था, प्रावधान को धारा 174ए सहित पढ़ा जाना चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि कोई भी अदालत सीआरपीसी की धारा 195 के तहत लोक सेवक (न्यायाधीश सहित) की लिखित शिकायत को छोड़कर, धारा 174ए आईपीसी के तहत दंडनीय किसी भी अपराध का संज्ञान नहीं लेगी।

    साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (पीएच) 181

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    यदि अभियोजन मूलभूत तथ्यों की संभावना स्थापित करने में विफल रहता है तो पॉक्सो एक्ट की धारा 29 के तहत आरोपी के अपराध की कोई धारणा नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि यद्यपि बच्चों से यौन अपराधों की रोकथाम अधिनियम (POCSO) के तहत एक आरोपी के अपराध के संबंध में एक वैधानिक धारणा है, लेकिन यह धारणा तब लागू नहीं होगी जब अभियोजन पक्ष मामले के संबंध में कुछ मूलभूत तथ्यों को साबित करने में विफल रहा हो।

    कोर्ट ने कहा, “POCSO अधिनियम के तहत एक मामले में, अभियोजन पक्ष को कुछ मूलभूत तथ्यों को, उचित संदेह से परे नहीं, बल्कि संभावना की प्रबलता के आधार पर साबित करना आवश्यक है। यदि अभियोजन पक्ष संभाव्यता की प्रबलता के आधार पर अपराध के मूलभूत तथ्यों को साबित करने में सक्षम नहीं है, तो अधिनियम की धारा 29 के तहत आरोपी के खिलाफ अनुमान लागू नहीं किया जा सकता है।”

    केस टाइटल: मारियाप्पन बनाम पुलिस इंस्पेक्टर

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    पासपोर्ट अधिनियम - पुलिस को पुलिस वैरिफिकेशन में एफआईआर की पूरी स्थिति का खुलासा करना होगा : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि पुलिस अधिकारी पासपोर्ट वैरिफिकेशन में अधूरी रिपोर्ट भेज रहे हैं जो पासपोर्ट रिजेक्ट करने का मूल कारण बन रही है, कहा है कि पुलिस अधिकारियों को पासपोर्ट जारी करने के लिए किए गए वैरिफिकेशन रिपोर्ट में एफआईआर की पूरी स्थिति का खुलासा करना चाहिए।

    जस्टिस जगमोहन बंसल ने कहा कि मोहन लाल उर्फ मोहना बनाम भारत संघ और अन्य के मामले में भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल द्वारा बुलाई गई बैठक में पुलिस अधिकारी द्वारा दी जाने वाली जानकारी के लिए तैयार किए गए प्रोफार्मा का पालन किया जाना चाहिए।

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    अगर एक दूसरे को स्वीकार्य नहीं है तो फैमिली कोर्ट पक्षकारों को तलाक लेने के लिए मजबूर नहीं कर सकते : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि पारिवारिक अदालतें उन पक्षकारों को तलाक लेने के लिए मजबूर नहीं कर सकती हैं जो एक दूसरे को स्वीकार्य नहीं हैं और उनका दृष्टिकोण सुलहकारी होना चाहिए। जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने पारिवारिक अदालत के आदेश के खिलाफ एक पति की अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें पत्नी के खिलाफ एमओयू का पालन नहीं करने पर पति द्वारा दायर उसकी अवमानना याचिका खारिज कर दी गई थी, जिसके तहत वे आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए सहमत हुए थे।

    केस टाइटल : एबीसी बनाम एक्सवाईजेड

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    चंद्रबाबू नायडू की एफआईआर रद्द करने की मांग वाली याचिका खारिज, आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा, प्राधिकरण द्वारा "अपने लाभ" के लिए सार्वजनिक धन का उपयोग आधिकारिक कार्य नहीं

    आंध्र प्रदेश हईकोर्ट ने करोड़ों रुपये के स्किल डेवेलपमेंट घोटाला मामले में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और तेलुगु देशम पार्टी के नेता एन चंद्रबाबू नायडू द्वारा दायर एफआईआर रद्द करने की मांग वाली याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी। जस्टिस के. श्रीनिवास रेड्डी ने कहा कि नायडू पर मुकदमा चलाने के लिए किसी मंजूरी की आवश्यकता नहीं है क्योंकि सार्वजनिक धन का उपयोग "सत्ता के रंग के तहत लेकिन वास्तव में अपने लाभ के लिए" को उनके आधिकारिक कार्यों के निर्वहन में किया गया कार्य नहीं माना जा सकता।

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    विवाहित व्यक्तियों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप आपराधिक नहीं, अदालतें वयस्कों पर अपनी नैतिकता की धारणा नहीं थोप सकतीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि दो सहमति वाले विवाहित व्यक्तियों के बीच लिव-इन रिलेशनशिप को आपराधिक नहीं बनाया गया है, या इसके खिलाफ कानून नहीं बनाया गया है। कोर्ट ने कहा कि यदि ऐसे विकल्प अवैध या अपराध नहीं हैं तो अदालतें व्यक्तियों पर नैतिकता की अपनी धारणा नहीं थोप सकती।

    जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा, “उनके अनुसार किसी मामले में आपराधिकता नैतिकता के न्यायाधीश द्वारा मूल्यांकन पर निर्भर नहीं हो सकती है। न्यायाधीशों की निष्पक्षता न्याय की निष्पक्षता की कुंजी है और निर्णय देश के कानून के अनुसार निष्पक्ष रूप से निर्धारित होने चाहिए, न कि संबंधित न्यायाधीश के नैतिक सिद्धांतों के अनुसार। भले ही यह स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया गया हो कि कोई कार्य सामाजिक रूप से अवांछनीय हो सकता है। इस न्यायालय को ऐसा कहना अपना काम नहीं लगता, जब तक कि इससे नुकसान न हुआ हो या इसमें आपराधिकता का तत्व न हो।''

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    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा-पति और पत्नी के बीच किसी अप्राकृतिक यौन अपराध की संभावना नहीं, आईपीसी की धारा 375 के तहत मेरिटल सेक्स में सभी संभावित पीनाइल पेनेट्रेशन की छूट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि 2013 में आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) की परिभाषा में किए गए संशोधन के बाद पति और पत्नी के बीच आईपीसी की धारा 377 के अनुसार किसी अप्राकृतिक अपराध की संभावना नहीं रह जाती। हाईकोर्ट की य‌ह टिप्पणी वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण के संबंध में चल रही बहस में एक और कड़ी बन सकती है। न्यायालय ने यह टिप्पणी मध्य प्रदेश के एक विधायक के खिलाफ उनकी पत्नी की ओर से आईपीसी की धारा 377 के तहत अप्राकृतिक अपराध करने का आरोप लगाते हुए दर्ज कराई गई एफआईआर को रद्द करते हुए की।

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    पीएमएलए धारा 5 के तहत अंतिम रूप से संलग्न प्रत्येक संपत्ति के लिए अलग-अलग 'विश्वास करने का कारण' निर्धारित नहीं करता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002, अधिनियम की धारा 5(1) के तहत पारित अंतिम कुर्की आदेश के तहत कुर्क की गई प्रत्येक संपत्ति के लिए अलग विश्वास करने का कारण नहीं बताता है। चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने मेसर्स गोल्ड क्रॉफ्ट प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड द्वारा एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देने वाली अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। इसमें पीएमएलए एडजुडिकेटिंग अथॉरिटी के आदेश को बरकरार रखा गया, जिसमें उसके आवेदन को स्थगित करने की मांग की गई। इस आधार पर पहले की कार्यवाही कि बेंच को "असंयम गैर-न्याय" का सामना करना पड़ा।

    केस टाइटल: गोल्ड क्रॉफ्ट प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम प्रवर्तन निदेशालय

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    व्यवसाय स्थापित करने के लिए 'पर्याप्त साधन' होने के बारे में पत्नी की गलत बयानी हिंदू विवाह अधिनियम के तहत विवाह रद्द करने की मांग के लिए 'धोखाधड़ी' नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि बिजनेस स्थापित करने के लिए 'पर्याप्त साधन' होने के बारे में पत्नी की गलत बयानी को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत ऐसी प्रकृति का नहीं कहा जा सकता कि उसे पति को विवाह को रद्द करने का अधिकार देने वाले भौतिक तथ्य को 'धोखाधड़ी या छुपाने' के समान माना जाए।

    जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के धारा 12(1)(सी) के तहत पत्नी द्वारा धोखाधड़ी के आधार पर शादी को रद्द करने की याचिका खारिज करने के फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली एक पति की अपील को खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं।

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    विशिष्ट अदायगी के लिए मुकदमा | उचित पक्ष को पेश करना अदालत को मामले पर पूरी तरह से निर्णय लेने में सक्षम बनाता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि अनुबंध की विशिष्ट अदायगी के लिए दायर मुकदमे में उचित पक्षों को प्रतिवादी के रूप में शामिल करने से अदालत को लंबित मामले पर पूरी तरह से निर्णय लेने में मदद मिलती है और उसके पास न्यायसंगत और ‌उचत निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पूरे तथ्य और सबूत होते हैं।

    इन्हीं टिप्पणियों के साथ जस्टिस विजयकुमार ए पाटिल की एकल न्यायाधीश पीठ ने चिन्नास्वामी गौड़ा द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें ट्रायल कोर्ट के आदेश पर सवाल उठाया गया था, जिसमें उनकी ओर से दायर मुकदमे में 45 प्रतिवादियों को रिकॉर्ड पर लाने के लिए आदेश एक नियम 10 (2) सीपीसी के तहत एक पक्षकार आवेदन की अनुमति दी गई थी।

    केस टाइटल: चिन्नास्वामी गौड़ा और शिवरामु सी एम शिवरामु और अन्य

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    पटना हाईकोर्ट ने साफ किया, जजमेंट और डिक्री में विसंगतियां हो तो पीड़ित पक्ष क्या करे?

    ऐसे मामलों में जहां जजमेंट और डिक्री के बीच विसंगति हो, अदालत के आदेशों को निष्पादित करने के मामले पर स्पष्टता प्रदान करते हुए, पटना हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया है कि जब ऐसी विसंगति मौजूद होती है, तो इग्जेक्यूटिव कोर्ट डिक्री का अनुसरण नहीं कर सकती और पीड़ित पक्ष को डिक्री में संशोधन की मांग करनी चाहिए।

    जस्टिस सुनील दत्त मिश्रा ने कहा, "जजमेंट और डिक्री के बीच विसंगति के मामले में, इग्जेक्यूटिव कोर्ट डिक्री का अनुसरण नहीं कर सकता और पीड़ित पक्ष को डिक्री में संशोधन की मांग करनी चाहिए। यदि डिक्री खुद जजमेंट हो तो संशोधन का सवाल ही नहीं उठता।

    केस टाइटल: राम कृपाल सिंह बनाम राम शरण प्रसाद सिंह

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    अनुसूचित जाति समुदाय की स्थिति, शारीरिक विकलांगता राज्य के विकास प्राधिकरण द्वारा आवंटित कियोस्क पर असीमित समय तक कब्ज़ा बनाए रखने का कोई आधार नहीं: केरल हाईकोर्ट

    केरल केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि कोई भी व्यक्ति ग्रेटर कोचीन डेवलपमेंट अथॉरिटी (जीसीडीए) के तहत किसी वाणिज्यिक उद्यम पर अनंत काल तक कब्जा बनाए रखने की मांग नहीं कर सकता, भले ही उसकी योग्यता कुछ भी हो। जस्टिस देवन रामचंद्रन ने अनुसूचित जाति समुदाय से संबंधित एक विकलांग व्यक्ति द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया, जिसमें जीसीडीए द्वारा उसे आवंटित कियोस्क पर अपना कब्जा एक साल के लिए बरकरार रखने की मांग की गई थी, हालांकि उसके लाइसेंस की अवधि समाप्त हो गई हो चुकी थी।

    केस टाइटल : कश्यप सहगल बनाम केरल राज्य एवं अन्य।

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    केवल अनुबंध के उल्लंघन के लिए हर मामले में आपराधिक मामला तय नहीं किया जा सकता: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने कहा कि हर विवाद का अंत आपराधिक आरोपों में नहीं होना चाहिए, खासकर जब अंतर्निहित मुद्दा मूल रूप से नागरिक प्रकृति का हो, जैसे कि अनुबंध का उल्लंघन। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 406, 420, 379 और 120बी के तहत दर्ज आरोपों के तहत शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी।

    जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने कहा, “इस न्यायालय के हस्तक्षेप पर कंपनी द्वारा शिकायतकर्ता को फिर से नियुक्ति की पेशकश की गई, जैसा कि यहां ऊपर चर्चा की गई है, जो बताता है कि प्रतिवादी नंबर 2 इस मामले को अनावश्यक रूप से खींच रहा है। यदि कोई मामला है तो यह मामला याचिकाकर्ताओं के खिलाफ यानी दीवानी प्रकृति का है। केवल अनुबंध का उल्लंघन और हर मामले में आरोपी व्यक्तियों पर आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जा सकता।''

    केस टाइटल: आधुनिक पावर एंड नेचुरल रिसोर्सेज लिमिटेड और अन्य बनाम झारखंड राज्य और अन्य

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    फैमिली कोर्ट को 'अपूरणीय विवाह विच्छेद' पर तलाक देने का अधिकार नहीं, उन्हें वैधानिक प्रावधानों तक ही सीमित रहना चाहिए: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि विवाह का अपूरणीय टूटना तलाक मांगने का आधार नहीं है और फैमिली कोर्ट को अपने विचारों को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत वैधानिक प्रावधानों तक सख्ती से सीमित रखना चाहिए। जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विकास महाजन की खंडपीठ ने विवाह टूटने के सिद्धांत पर चर्चा करते हुए कहा कि विवाह का अपूरणीय टूटना अधिनियम के तहत तलाक देने का आधार नहीं है।

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    गार्जियन अपॉइंट करते समय बच्चे की उम्र और माता-पिता से अलग होने के दौरान की परिस्थितियां उसकी 'इंटेलिजेंट परेफरेंस' निर्धारित करने के लिए प्रासंगिक: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि जहां माता-पिता के बीच कटु संबंध हैं, वहां सबसे बुरा शिकार बच्चा होता है। हाईकोर्ट ने कहा कि नाबालिग की उम्र और माता-पिता से अलग होने की अवधि की आसपास की परिस्थितियां उसकी 'इंटेलिजेंट परेफरेंस' पर विचार करते समय प्रासंगिक हैं।

    जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने संरक्षक और वार्ड अधिनियम, 1890 की धारा 17 (3) का जिक्र करते हुए यह टिप्पणी की। इसमें कहा गया कि गार्जियन अपॉइंट करते समय अदालत मामले में नाबालिग की प्राथमिकता पर विचार कर सकती है। साथ ही यह कि वह "इंटेलिजेंट परेफरेंस" बनाने के लिए पर्याप्त उम्र का है।

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    पितृत्व के विशिष्ट खंडन के अभाव में बच्चे के पैटरनिटी संबंध में केवल संदेह को दूर करने के लिए डीएनए टेस्ट नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश बरकरार रखते हुए कहा कि डीएनए टेस्ट केवल इसलिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि पक्षकारों के बीच पितृत्व (पैटरनिटी) के संबंध में कोई विवाद या संदेह है। जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने कहा कि डीएनए टेस्ट या अन्य साइंटिफिकट टेस्ट का सहारा केवल तभी लिया जा सकता है, जब बच्चे के पैटरनिटी से इनकार किया गया हो।

    केस टाइटल: सुजीत कुमार एस वी विनय वी एस

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    स्थानांतरण आदेश प्रशासनिक आवश्यकता में पारित किया जा सकता है लेकिन सजा के रूप में नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में इंदौर स्थित पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी लिमिटेड में सुपरीटेंडेंट इंजीनियर के पद पर कार्यरत एक व्यक्ति को जारी स्थानांतरण आदेश और कार्यमुक्ति आदेश को अमान्य करार दिया। कोर्ट ने आदेशों को दंडात्मक और दुर्भावनापूर्ण बताया।

    जस्टिस एस ए धर्माधिकारी और जस्टिस हिरदेश की खंडपीठ ने कहा, ''बेशक, विवादित स्थानांतरण आदेश और कार्यमुक्ति आदेश पारित करने से पहले प्रबंध निदेशक की मंजूरी होती है। जिन परिस्थितियों में स्थानांतरण किया गया है वह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि यह दुर्भावना का परिणाम है और इसकी प्रकृति दंडात्मक है। विचाराधीन आदेश कानून में द्वेष के सिद्धांत को आकर्षित करेगा क्योंकि यह कारण बताओ नोटिस के किसी भी उत्तर के अभाव में स्थानांतरण आदेश पारित करने के लिए आवश्यक किसी भी कारक पर आधारित नहीं था। इसे बेहद जल्दबाजी और अवैध तरीके से पारित किया गया है।”

    केस टाइटल: गजेंद्र कुमार बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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    मोटर दुर्घटना पीड़ित दुर्घटना में शामिल दो वाहनों में से किसी एक वाहन के मालिक से मुआवजे का दावा करना चुन सकता है: बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि मोटर दुर्घटना मामले में एक दावेदार उस वाहन के मालिक से मुआवजे का दावा करने के लिए बाध्य नहीं है, जिसमें वह यात्रा कर रहा था। उसे केवल दुर्घटना में शामिल अन्य वाहन के मालिक से मुआवजे की मांग करने की अनुमति है। जस्टिस संदीप मार्ने ने कहा कि समग्र लापरवाही के मामलों में दावेदार को संयुक्त यातना देने वालों में से केवल एक पर मुकदमा करने का अधिकार है।

    अदालत ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि मोटर कार का स्वामित्व दावेदारों में से एक के पास है। यही प्रशंसनीय कारण है कि दावेदार मोटर-कार के मालिक या बीमाकर्ता को पक्षकार नहीं बनाना चाहते हैं। जैसा भी हो, चूंकि कानून एक दावेदार को दो संयुक्त-अपराधकर्ताओं में से एक पर मुकदमा करने की अनुमति देता है। ऐसे दावेदार को ट्रिब्यूनल द्वारा अन्य संयुक्त-अपराधकर्ताओं के खिलाफ भी राहत मांगने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।”

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    जीवन साथी चुनने का अधिकार आस्था या धर्म से प्रभावित नहीं हो सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति का जीवन साथी चुनने का अधिकार आस्था और धर्म के मामलों से प्रभावित नहीं हो सकता है। विवाह करने का अधिकार मानवीय स्वतंत्रता की घटना है। जस्टिस सौरभ बनर्जी ने कहा कि यह राज्य या समाज या यहां तक कि इसमें शामिल पक्षकारों के माता-पिता के लिए भी किसी भी तरह से जीवन साथी की पसंद को निर्देशित करने या किसी व्यक्ति के ऐसे अधिकारों को कम करने और सीमित करने के लिए नहीं है, जब इसमें दो सहमति वाले वयस्क शामिल हों।”

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    सीनियर सिटीजन एक्ट | सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट को शक्ति का प्रत्यायोजन वैध आवेदन को सुनवाई योग्य न होने के कारण खारिज नहीं किया जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माता-पिता और सीनियर सिटीजन के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 22(1) सपठित उत्तर प्रदेश माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण एवं कल्याण नियमावली, 2014 नियम 22(2)(i) के तहत जिला मजिस्ट्रेट द्वारा सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट को शक्तियों के प्रत्यायोजन को बरकरार रखा है।

    जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह और जस्टिस राजेंद्र कुमार-IV की खंडपीठ ने कहा, “प्रधान विधायिका के अधिनियम द्वारा शक्ति जिला मजिस्ट्रेट में निहित की जा रही है और उस शक्ति को सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट को सौंपने की अनुमति दी जा रही है, जहां भी किसी सीनियर सिटीजन द्वारा अधिनियम के तहत प्रतिनिधि यानी जिला मजिस्ट्रेट या सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट के समक्ष दायर किए गए किसी भी आवेदन की स्थिरता के बारे में कोई संदेह उत्पन्न हो सकता है। ऐसे आवेदन को कभी भी प्रतिनिधिमंडल के कारण या इसकी कमी के कारण गैर-सुनवाई योग्य के रूप में खारिज नहीं किया जा सकता।”

    केस टाइटल: डॉ वीरेंद्र सिंह बनाम यूपी राज्य। और 8 अन्य [WRIT - C No. - 19524/2023]

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    कर्मचारी मुआवजा अधिनियम | दुर्घटना में शामिल वाहन का बीमाकर्ता दायित्व से नहीं बच सकता: झारखंड हाईकोर्ट

    झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि मुआवजे की गणना दुर्घटना की तारीख से की जानी चाहिए और ब्याज की गणना उसी तारीख से शुरू होनी चाहिए। हाईकोर्ट कर्मचारी मुआवजा अधिनियम, 1923 की धारा 30 के तहत एक अपील से जुड़े मामले की सुनवाई कर रहा था, जिसमें श्रम न्यायालय के फैसले का विरोध किया गया था जिसमें अधिनियम की धारा 4 (ए) द्वारा अनिवार्य ब्याज शामिल नहीं था। अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि दुर्घटनाओं में शामिल मोटर वाहनों के बीमाकर्ता, जिसके कारण कर्मचारियों की मृत्यु या चोट लगी है, मूल अवॉर्ड पर ब्याज का भुगतान करने के दायित्व से खुद को मुक्त नहीं कर सकते हैं।

    केस टाइटल: जुगल किशोर रे बनाम अशोक प्रसाद यादव और अन्य

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    [एनडीपीएस एक्ट] केवल आरोप पत्र के साथ एफएसएल रिपोर्ट दाखिल करना डिफ़ॉल्ट जमानत रद्द करने का आधार नहीं, विशेष कारण दिखाना होगा: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि एनडीपीएस मामले में आरोप पत्र के साथ एफएसएल रिपोर्ट दाखिल करना किसी आरोपी को दी गई डिफ़ॉल्ट जमानत रद्द करने का आधार नहीं होगा।

    जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा, "...यह स्पष्ट किया जाता है कि केवल चालान के साथ एफएसएल रिपोर्ट दाखिल करना ही डिफॉल्ट जमानत रद्द करने का कारण नहीं माना जाएगा।" हालांकि, पीठ ने कहा कि चूंकि डिफॉल्ट जमानत योग्यता के आधार पर नहीं दी जाती, इसलिए अगर आरोपी के खिलाफ गैर-जमानती अपराध का मजबूत मामला बनता है तो आरोपपत्र दाखिल होने के बाद इसे रद्द किया जा सकता है।

    केस टाइटल: भरत कुमार बनाम कुमार राज्य

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