पितृत्व के विशिष्ट खंडन के अभाव में बच्चे के पैटरनिटी संबंध में केवल संदेह को दूर करने के लिए डीएनए टेस्ट नहीं किया जा सकता: केरल हाईकोर्ट
Shahadat
20 Sept 2023 10:23 AM IST
केरल हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट द्वारा पारित आदेश बरकरार रखते हुए कहा कि डीएनए टेस्ट केवल इसलिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि पक्षकारों के बीच पितृत्व (पैटरनिटी) के संबंध में कोई विवाद या संदेह है।
जस्टिस ए. बदरुद्दीन ने कहा कि डीएनए टेस्ट या अन्य साइंटिफिकट टेस्ट का सहारा केवल तभी लिया जा सकता है, जब बच्चे के पैटरनिटी से इनकार किया गया हो।
उन्होंने कहा,
“आगे यह मानना होगा कि जब बच्चे के पैटरनिटी के विशिष्ट खंडन के अभाव में बच्चे के पैटरनिटी के बारे में संदेह को दूर करने के लिए डीएनए टेस्ट का सहारा नहीं लिया जा सकता है। उपरोक्त कानूनी स्थिति के मद्देनजर, याचिकाकर्ता द्वारा बच्चे के पैटरनिटी के संबंध में अपना संदेह/संशय दूर करने के उद्देश्य से डीएनए टेस्ट कराने के लिए दिए गए आवेदन खारिज करना ही उचित ठहराया जा सकता है।''
याचिकाकर्ता और प्रतिवादी की शादी 2004 में हुई थी और उनका वर्ष 2006 में एक बच्चा पैदा हुआ, जिसके पैटरनिटी पर फैमिली कोर्ट के समक्ष विवाद हुआ। याचिकाकर्ता ने बच्चे के पैटरनिटी के बारे में संदेह का आरोप लगाया, क्योंकि प्रतिवादी पत्नी की मानसिक बीमारी के कारण वे एक साथ नहीं रह रहे थे। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि उसे पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने का कोई मौका नहीं मिला, क्योंकि उसे मानसिक समस्याएं थीं। फैमिली कोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा पैटरनिटी टेस्ट कराने के लिए दायर आवेदन खारिज कर दिया, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई।
जस्टिस बदरुद्दीन ने पाया कि फैमिली कोर्ट ने विवाह के अस्तित्व के दौरान जन्म की धारणा पर साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 पर भरोसा करते हुए याचिकाकर्ता का आवेदन खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास ऐसा कोई मामला नहीं है कि उसकी अपनी पत्नी तक पहुंच नहीं थी। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को बच्चे के पितृत्व के बारे में केवल संदेह था और उसके पास बच्चे के पितृत्व से इनकार करने वाला कोई सुसंगत मामला नहीं था।
न्यायालय ने साक्ष्य अधिनियम की धारा 112 की जांच की और माना कि डीएनए टेस्ट केवल 'बच्चे के पैटरनिटी से इनकार करने के निर्णायक सबूत' का खंडन करने के लिए किया गया था। न्यायालय ने अपर्णा अजिंक्य फिरोदिया बनाम अजिंक्य अरुण फिरोदिया (2023) और पट्टू राजन बनाम तमिलनाडु राज्य (2019) में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भरोसा करते हुए कहा कि केवल इसलिए कि पैटरनिटी के संबंध में पक्षों के बीच विवाद था, न्यायालय को इसकी आवश्यकता है कि वह डीएनए टेस्ट या अन्य साइंटिफिक टेस्ट करने की अनुमति न दें। न्यायालय ने यह भी कहा कि विशेषज्ञ साक्ष्य प्रकृति में केवल सलाहकारी थे।
न्यायालय ने पाया कि पक्षकारों को बच्चे के पैटरनिटी से इनकार दिखाने के लिए अन्य सबूत पेश करने होंगे। यह देखा गया कि डीएनए टेस्ट या अन्य साइंटिफिक टेस्ट की अनुमति न्यायालय द्वारा केवल दुर्लभ और असाधारण मामलों में ही दी जा सकती है, जब न्यायालय संतुष्ट हो कि बच्चे के पैटरनिटी के संबंध में पक्षों के बीच विवाद को सुलझाने का कोई अन्य साधन नहीं है।
न्यायालय ने कहा,
“इस प्रकार, कानून यह कहता है कि केवल इसलिए कि पक्षकारों के बीच पितृत्व के बारे में विवाद है, इसका मतलब यह नहीं है कि अदालत को विवाद को सुलझाने के लिए डीएनए या ऐसे अन्य टेस्ट का निर्देश देना चाहिए। ऐसी परिस्थितियों में पक्षकारों को पैटरनिटी के तथ्य के विवाद को साबित करने के लिए साक्ष्य का नेतृत्व करने का निर्देश दिया जाना चाहिए और केवल जब अदालत को ऐसे साक्ष्य के आधार पर निष्कर्ष निकालना असंभव लगता है, या विवाद को डीएनए टेस्ट के बिना हल नहीं किया जा सकता है तो इसे डीएनए टेस्ट का निर्देश दे सकता है, अन्यथा नहीं।”
उपरोक्त निष्कर्षों पर न्यायालय ने याचिकाकर्ता द्वारा दायर मूल याचिका खारिज कर दी, जिसमें बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने की अनुमति मांगी गई थी।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व एडवोकेट आई.एस. लैला ने किया।
केस टाइटल: सुजीत कुमार एस वी विनय वी एस
केस नंबर: ओपी(CRL.) नंबर 631/2023
जजमेंट को डाउनलोड करने/पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें