अगर एक दूसरे को स्वीकार्य नहीं है तो फैमिली कोर्ट पक्षकारों को तलाक लेने के लिए मजबूर नहीं कर सकते : दिल्ली हाईकोर्ट

Sharafat

22 Sep 2023 10:45 AM GMT

  • अगर एक दूसरे को स्वीकार्य नहीं है तो फैमिली कोर्ट पक्षकारों को तलाक लेने के लिए मजबूर नहीं कर सकते : दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि पारिवारिक अदालतें उन पक्षकारों को तलाक लेने के लिए मजबूर नहीं कर सकती हैं जो एक दूसरे को स्वीकार्य नहीं हैं और उनका दृष्टिकोण सुलहकारी होना चाहिए।

    जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने पारिवारिक अदालत के आदेश के खिलाफ एक पति की अपील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें पत्नी के खिलाफ एमओयू का पालन नहीं करने पर पति द्वारा दायर उसकी अवमानना ​​याचिका खारिज कर दी गई थी, जिसके तहत वे आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए सहमत हुए थे।

    2017 में शादी करने वाले पक्षकारों ने एमओयू के बाद तलाक की याचिका को प्राथमिकता दी। पहले प्रस्ताव की याचिका को दिसंबर 2020 में अनुमति दी गई थी। हालांकि पत्नी तलाक के दूसरे प्रस्ताव के लिए याचिका दायर करने के लिए आगे नहीं आई और इस प्रकार, पति ने उसके खिलाफ अवमानना ​​याचिका दायर की।

    आक्षेपित आदेश के माध्यम से पारिवारिक न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अदालत को दिए गए किसी भी अंडरटैकिंग का जानबूझकर उल्लंघन नहीं किया गया और पत्नी के खिलाफ कोई अवमानना ​​नहीं की गई।

    पीठ ने अपील खारिज करते हुए कहा कि पत्नी को दूसरे प्रस्ताव के लिए सहमति देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता जो कि पति की एकमात्र प्रार्थना थी।

    अदालत ने कहा, "इस मामले में हमने पाया है कि फैमिली कोर्ट के विद्वान न्यायाधीश ने सही कहा है कि प्रतिवादी ने अदालत की कोई सिविल अवमानना ​​नहीं की है।"

    यह देखते हुए कि वैवाहिक कानूनों का प्राथमिक उद्देश्य पक्षों के बीच सुलह के लिए ईमानदारी से प्रयास करना है, अदालत ने कहा कि मामले में पति और पत्नी दोनों ने अदालत में तलाक की कोई कार्यवाही शुरू किए बिना पारस्परिक रूप से समझौता कर लिया।

    अदालत ने कहा,

    “पहले प्रस्ताव के समय पार्टियों द्वारा समझौता एमओयू प्रस्तुत किया गया। फर्स्ट मोशन के बाद अपने कूलिंग ऑफ पीरियड में प्रतिवादी ने दोबारा विचार किया और तलाक न लेने का फैसला किया।''

    इसमें कहा गया : “प्रासंगिक रूप से प्रतिवादी को तलाक देने की कोई इच्छा नहीं है क्योंकि उसने पहले से ही वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 9 के तहत एक याचिका दायर की है और नाबालिग बेटी की स्थायी कस्टडी की मांग के लिए संरक्षकता याचिका भी दायर की है। उपरोक्त के मद्देनजर हमें नहीं लगता कि प्रतिवादी ने अदालत की अवमानना ​​अधिनियम, 1971 के तहत कोई अवमानना ​​की है। वर्तमान अपील में कोई योग्यता नहीं है, इसलिए इसे खारिज किया जाता है।''

    अपीलकर्ता की ओर से एडवोकेट अमरजीत सिंह साहनी और श्रेया गुप्ता पेश हुए।

    प्रतिवादी की ओर से एडवोकेट विनय चड्ढा शिशबा चावला पेश हुए।

    केस टाइटल : एबीसी बनाम एक्सवाईजेड

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