[एनडीपीएस एक्ट] केवल आरोप पत्र के साथ एफएसएल रिपोर्ट दाखिल करना डिफ़ॉल्ट जमानत रद्द करने का आधार नहीं, विशेष कारण दिखाना होगा: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Shahadat

18 Sep 2023 5:38 AM GMT

  • [एनडीपीएस एक्ट] केवल आरोप पत्र के साथ एफएसएल रिपोर्ट दाखिल करना डिफ़ॉल्ट जमानत रद्द करने का आधार नहीं, विशेष कारण दिखाना होगा: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि एनडीपीएस मामले में आरोप पत्र के साथ एफएसएल रिपोर्ट दाखिल करना किसी आरोपी को दी गई डिफ़ॉल्ट जमानत रद्द करने का आधार नहीं होगा।

    जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा,

    "...यह स्पष्ट किया जाता है कि केवल चालान के साथ एफएसएल रिपोर्ट दाखिल करना ही डिफॉल्ट जमानत रद्द करने का कारण नहीं माना जाएगा।"

    हालांकि, पीठ ने कहा कि चूंकि डिफॉल्ट जमानत योग्यता के आधार पर नहीं दी जाती, इसलिए अगर आरोपी के खिलाफ गैर-जमानती अपराध का मजबूत मामला बनता है तो आरोपपत्र दाखिल होने के बाद इसे रद्द किया जा सकता है।

    कोर्ट ने दोहराया कि डिफ़ॉल्ट जमानत अपरिहार्य अधिकार है और इसे केवल आरोप पत्र दाखिल करने से रद्द नहीं किया जा सकता।

    यह स्पष्टीकरण भरत कुमार द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका में आया है, जिसमें एएसजे झज्जर द्वारा सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत डिफॉल्ड जमानत के लिए दायर आवेदन पर चालान और एफएसएल रिपोर्ट दाखिल होने तक केवल अंतरिम जमानत देने का आदेश रद्द करने की मांग की गई।

    पुलिस ने कुमार के पास 21.54 ग्राम एमडीएमए पाया, जिसके बाद उ, पर नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस एक्ट) की धारा 22 के तहत मामला दर्ज किया गया।

    चूंकि जांच एजेंसी 90 दिनों के भीतर सीआरपीसी की धारा 173(2) के तहत रिपोर्ट दाखिल करने में विफल रही, जिसे 180 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है, कुमार ने न्यायिक हिरासत में 196 दिन बिताने के बाद डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए आवेदन किया।

    एएसजे ने आवेदन इस हद तक स्वीकार कर लिया कि याचिकाकर्ता को चालान के साथ एफएसएल रिपोर्ट अदालत में पेश होने तक अंतरिम जमानत दे दी गई।

    याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि सीआरपीसी की धारा 167(2) में चालान पेश होने तक किसी अंतरिम जमानत की परिकल्पना नहीं की गई है। यदि अभियोजन निर्धारित अवधि के भीतर सीआरपीसी की धारा 173 के तहत आरोप पत्र दाखिल करने में विफल रहता है तो आरोपी को हिरासत से रिहा करने का वैधानिक अधिकार है।

    दलीलों पर विचार करते हुए अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत देने के अपरिहार्य अधिकार को रद्द नहीं किया जा सकता। भले ही डिफ़ॉल्ट जमानत के लिए आवेदन दाखिल करने के बाद जांच एजेंसी द्वारा आरोप पत्र दायर किया गया हो।

    केंद्रीय जांच ब्यूरो बनाम टी. गंगी रेड्डी उर्फ येर्रा गंगी रेड्डी के माध्यम से राज्य का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा,

    "केवल आरोप-पत्र दाखिल होने पर सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत दी गई डिफ़ॉल्ट जमानत रद्द नहीं की जा सकती, लेकिन यदि आरोप-पत्र के आधार पर मजबूत मामला बनता है और आरोप पत्र से विशेष कारण सामने आने पर कि आरोपी ने गैर जमानती अपराध किया है और सीआरपीसी की धारा 437(5) और धारा 439(2) में निर्धारित आधारों पर विचार किया जाए तो उसकी जमानत गुण-दोष के आधार पर रद्द की जा सकती है..."

    नतीजतन, अदालत ने आदेश को इस हद तक संशोधित किया कि हालांकि याचिकाकर्ता को सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत स्वीकार कर ली गई है, लेकिन यदि अभियोजन पक्ष मजबूत मामला बनाने में सक्षम है कि आरोपी ने अपराध किया है तो गैर-जमानती अपराध और सीआरपीसी की धारा 437(5) और धारा 439(2) के तहत निर्धारित आधारों पर विचार करके इसे रद्द किया जा सकता है।"

    अपीयरेंस: याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट राकेश नेहरा, एडवोकेट हिमानी आनंद और विपुल शेरवाल, एएजी, हरियाणा।

    केस टाइटल: भरत कुमार बनाम कुमार राज्य

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