मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा-पति और पत्नी के बीच किसी अप्राकृतिक यौन अपराध की संभावना नहीं, आईपीसी की धारा 375 के तहत मेरिटल सेक्स में सभी संभावित पीनाइल पेनेट्रेशन की छूट

Avanish Pathak

22 Sep 2023 8:12 AM GMT

  • मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा-पति और पत्नी के बीच किसी अप्राकृतिक यौन अपराध की संभावना नहीं, आईपीसी की धारा 375 के तहत मेरिटल सेक्स में सभी संभावित पीनाइल पेनेट्रेशन की छूट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि 2013 में आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) की परिभाषा में किए गए संशोधन के बाद पति और पत्नी के बीच आईपीसी की धारा 377 के अनुसार किसी अप्राकृतिक अपराध की संभावना नहीं रह जाती।

    हाईकोर्ट की य‌ह टिप्पणी वैवाहिक बलात्कार के अपराधीकरण के संबंध में चल रही बहस में एक और कड़ी बन सकती है।

    न्यायालय ने यह टिप्पणी मध्य प्रदेश के एक विधायक के खिलाफ उनकी पत्नी की ओर से आईपीसी की धारा 377 के तहत अप्राकृतिक अपराध करने का आरोप लगाते हुए दर्ज कराई गई एफआईआर को रद्द करते हुए की।

    न्यायालय ने कहा कि जब धारा 375 आईपीसी (2013 संशोधन अधिनियम द्वारा संशोधित) में पति द्वारा पत्नी में लिंग के प्रवेश के सभी संभावित हिस्सों को शामिल किया गया है और जब इस तरह के कृत्य के लिए सहमति महत्वहीन है, तो जहां पति और पत्नी यौन कृत्यों में शामिल हों वहां आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती है।

    महत्वपूर्ण बात यह है कि न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि पति और पत्नी के बीच का रिश्ता केवल संतानोत्पत्ति के उद्देश्य से उनके यौन संबंधों तक ही सीमित नहीं रह सकता है, और इसलिए, अगर उनके बीच प्राकृतिक संभोग के अलावा कुछ भी किया जाता है, तो उसे भी 'अप्राकृतिक' नहीं माना जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा,

    “पति और पत्नी के बीच वैवाहिक रिश्ते में प्यार शामिल होता है, जिसमें अंतरंगता, करुणा और त्याग होता है, हालांकि पति और पत्नी की भावनाओं को समझना मुश्किल है, लेकिन यौन सुख एक-दूसरे के साथ उनके निरंतर बंधन का अभिन्न अंग है। इसलिए, मेरी राय में, पति और पत्नी के बीच यौन संबंधों में कोई बाधा नहीं डाली जा सकती।

    इस प्रकार, मुझे यह संभव लगता है कि धारा 375 की संशोधित परिभाषा के मद्देनजर, पति और पत्नी के बीच 377 के अपराध के लिए कोई जगह नहीं है और इस तरह यह मामला नहीं बनता है।''

    अपने 24 पेज के फैसले में, आईपीसी की धारा 375 की संशोधित परिभाषा को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने रेखांकित किया कि यदि अपराधी पीड़ित पति और पत्नी हैं तो सहमति महत्वहीन है और धारा 375 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है और आईपीसी की धारा 376 के तहत कोई सजा नहीं है।

    न्यायालय ने कहा कि जब धारा 375 की परिभाषा के अनुसार एक ही कार्य (पति द्वारा अपनी पत्नी में लिंग प्रवेश के सभी संभावित हिस्सों सहित) अपराध नहीं है, तो उसे आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध नहीं माना जा सकता है।

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