जीवन साथी चुनने का अधिकार आस्था या धर्म से प्रभावित नहीं हो सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

Shahadat

19 Sept 2023 10:52 AM IST

  • जीवन साथी चुनने का अधिकार आस्था या धर्म से प्रभावित नहीं हो सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति का जीवन साथी चुनने का अधिकार आस्था और धर्म के मामलों से प्रभावित नहीं हो सकता है। विवाह करने का अधिकार मानवीय स्वतंत्रता की घटना है।

    जस्टिस सौरभ बनर्जी ने कहा कि यह राज्य या समाज या यहां तक कि इसमें शामिल पक्षकारों के माता-पिता के लिए भी किसी भी तरह से जीवन साथी की पसंद को निर्देशित करने या किसी व्यक्ति के ऐसे अधिकारों को कम करने और सीमित करने के लिए नहीं है, जब इसमें दो सहमति वाले वयस्क शामिल हों।”

    अदालत ने कहा,

    "जब भारत का संविधान प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी धर्म का स्वतंत्र रूप से अभ्यास करने, मानने और प्रचार करने का अधिकार देता है तो यह विवाह के मामलों में इन पहलुओं के लिए प्रत्येक व्यक्ति को स्वायत्तता की भी गारंटी देता है।"

    अदालत ने एक जोड़े को सुरक्षा प्रदान करते हुए यह टिप्पणी की, जिन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें महिला के परिवार के सदस्यों से लगातार धमकियां मिल रही है। दोनों बालिग जोड़े ने 31 जुलाई को विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत शादी कर ली थी।

    उन्होंने यह दावा करते हुए पुलिस सुरक्षा मांगी कि महिला का परिवार उन्हें धमकी दे रहा है, क्योंकि वे अलग-अलग धर्मों से हैं और उन्होंने माता-पिता की इच्छा के खिलाफ शादी की है।

    अदालत ने याचिका स्वीकार करते हुए कहा,

    “शादी करने का अधिकार मानवीय स्वतंत्रता की घटना है। अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार न केवल मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा में रेखांकित किया गया है, बल्कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न पहलू भी है, जो जीवन के अधिकार की गारंटी देता है।”

    जस्टिस बनर्जी ने यह भी कहा कि महिला के माता-पिता को उस जोड़े के जीवन और स्वतंत्रता को खतरे में डालने की अनुमति नहीं दी जा सकती, जिन्हें अपने व्यक्तिगत निर्णयों और विकल्पों के लिए किसी सामाजिक अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है।

    अदालत ने कहा,

    “भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 सभी व्यक्तियों को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा देता है, जिसके तहत व्यक्तिगत पसंद का चुनाव करना, विशेष रूप से विवाह से संबंधित मामले में, प्रत्येक व्यक्ति का अंतर्निहित अधिकार है। इस प्रकार, इस न्यायालय की राय में याचिकाकर्ता वास्तव में भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सुरक्षा के हकदार हैं।”

    जस्टिस बनर्जी ने निर्देश दिया कि संबंधित बीट कांस्टेबल और एसएचओ का संपर्क नंबर दंपति को दिया जाएगा, जो जरूरत पड़ने पर उनमें से किसी को भी कॉल करने या संपर्क करने के लिए स्वतंत्र होंगे।

    अदालत ने कहा,

    “कहने की जरूरत नहीं कि संबंधित एसएचओ और बीट कांस्टेबल भी याचिकाकर्ताओं को कानून के अनुसार, आवश्यकतानुसार पर्याप्त सहायता और सुरक्षा प्रदान करने के लिए हर संभव कदम उठाएंगे।”

    याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील गुरप्रीत सिंह और कमल पेश हुए।

    राज्य की ओर से एएससी संजीव भंडारी उपस्थित हुए।

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