हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

12 Feb 2023 4:30 AM GMT

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (06 फरवरी, 2023 से 10 फरवरी, 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के अनुपालन के लिए सहमति/गैर-सहमति मेमो तैयार करने के समय के संबंध में अनिश्चितता को दूर करने की आवश्यकता: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने राज्य को एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 के अनुपालन / गैर-सहमति मेमो तैयार करने की जगह, तारीख और समय के बारे में अनिश्चितता को दूर करने के लिए एक मैकेनिज्म तैयार करने के लिए कहा। जस्टिस पंकज जैन की पीठ ने कहा कि अनिश्चितता को दूर करने के लिए जांच एजेंसियों को और अधिक सक्रिय होने की आवश्यकता है और जांच को और अधिक मजबूत बनाने की आवश्यकता है।

    केस टाइटल - प्रकाश सिंह बनाम पंजाब राज्य [CRA-S No.496-SB of 2005]

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    न्यायिक कार्यवाही के दरमियान वकीलों की ओर से दिए गए बयान को 'पूर्ण विशेषाधिकार', उन पर मानहानि के मुकदमे नहीं किए जा सकते: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि न्यायिक कार्यवाही के दरमियान एक वकील को ओर से दिए गए बयानों को "पूर्ण विशेषाधिकार" प्रदान किया गया है और प्रस्तुतियां के लिए उसके खिलाफ मानहानि, बदनामी या परिवाद की कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती।

    यह देखते हुए कि इस तरह के बयान को "मानहानि के किसी भी आरोप के खिलाफ पूर्ण सुरक्षा" है, जस्टिस मिनी पुष्करणा ने कहा कि सुनवाई के दरमियान उसकी ओर से दिए गए किसी भी बयान के लिए "अगर वकीलों को खुद कानून का डर हो" तो न्याय प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

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    लोक सेवक द्वारा जारी की गई सामान्य अधिसूचना आईपीसी की धारा 188 के तहत दंडनीय अपराध के लिए अभियुक्तों की ओर से 'ज्ञान' की शर्त को पूरा नहीं करेगी: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि लोक सेवक द्वारा जारी की गई सामान्य अधिसूचना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 188 के तहत दंडनीय अपराध के लिए अभियुक्तों की ओर से 'ज्ञान' की शर्त को पूरा नहीं करेगी।

    जस्टिस राजेंद्र कुमार वर्मा की पीठ ने कहा, जैसा कि पहले देखा गया कि आईपीसी की धारा 188 के तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को लोक सेवक के आदेश का वास्तविक ज्ञान होना चाहिए, जिसमें उसे कुछ कार्य करने या न करने की आवश्यकता होती है। ऐसा ज्ञान प्राप्त करना या प्राप्त करना पूर्व-आवश्यकता है। लोक सेवक द्वारा जारी सामान्य अधिसूचना का कोई भी प्रमाण आवश्यकता को पूरा नहीं करेगा।

    केस टाइटल: प्रसाद कोरी बनाम म.प्र. राज्य और अन्य।

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    मुख्य परीक्षा में गवाह का साक्ष्य केवल इसलिए अस्वीकार्य नहीं हो जाता क्योंकि उससे जिरह नहीं की जा सकती थी: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने दोहराया है कि एक गवाह द्वारा अपनी मुख्य परीक्षा में दिए गए साक्ष्य को केवल इसलिए पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है कि विरोधी पक्ष द्वारा उसकी जिरह नहीं की जा सकती थी। जस्टिस सुनील दत्ता मिश्रा की एकल न्यायाधीश पीठ ने रेखांकित किया कि इस तरह के साक्ष्य को स्वीकार्य बनाया जा सकता है लेकिन इस तरह की गवाही से जुड़ा वजन तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।

    केस टाइटल: अनामिका प्रणव बनाम अनिल कुमार चौधरी

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    पत्नी अगर यह साबित कर दे कि उसने पति को गहने सौंपे थे तो दहेज निरोधक अधिनियम के तहत उन्हें वापस पाने का दावा किया जा सकता हैः केरल ‌हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि पत्नी के नाम पर लॉकर में रखे गए सोने के आभूषणों को पति या पति के परिवार को सौंपे जाने के समान नहीं माना जा सकता है और इस प्रकार तलाक की कार्यवाही में इसकी वसूली शुरू नहीं की जा सकती है।

    जस्टिस अनिल के नरेंद्रन और जस्टिस पीजी अजित कुमार ने कहा कि पर्याप्त सबूत के अभाव में कि शादी के समय पत्नी को दिए गए सोने के गहने उसके द्वारा अपने पति या ससुराल वालों को सौंपे गए थे, दहेज रोकथाम अधिनियम के तहत उसे वापस पाना संभव नहीं होगा।

    केस टाइटल: बी बनाम एच

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    स्थगन के अनुरोध का जवाब नहीं देना, उसके बाद किसी भी समय मामले को उठाने की प्रथा जब मूल्यांकन अधिकारी उचित समझे तो समर्थन योग्य नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने कहा कि स्थगन के अनुरोध का जवाब नहीं देने और उसके बाद किसी भी समय मामले को उठाने की प्रथा जब मूल्यांकन अधिकारी उचित समझे तो समर्थन योग्य नहीं है।

    जस्टिस सोनिया गोकानी और जस्टिस संदीप एन. भट की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि आयकर अधिनियम की धारा 148 के तहत 148ए(डी) और नोटिस जारी करने का आदेश पुनर्विचार के योग्य है। दोनों को रद्द करने की जरूरत है। मामला 25.3.2022 को दायर जवाब पर विचार करने के चरण में वापस जाता है।

    केस टाइटल: श्री सिद्धि फूड्स बनाम एसीआईटी

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    आर्बिट्रल ट्रिब्यूनल द्वारा सीपीसी के अनुसार सत्यापित ना होने पर दावा याचिका को खारिज करना, न्यायोचित नहीं: गुजरात हाईकोर्ट

    bने एक फैसले में कहा कि प्रक्रियात्मक कानूनों का पालन करने में विफलता मध्यस्थ कार्यवाही के लिए घातक नहीं होगी और इस प्रकार, मध्यस्थ न्यायाधिकरण को केवल इस आधार पर दावा याचिका/दावों के बयान को खारिज करने में न्यायोचित नहीं ठहराया जाएगा कि उन्हें जैसा कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (सीपीसी) के आदेश VI नियम 15 के तहत विचार किया गया, वैसे सत्यापित नहीं किया गया है।

    चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष शास्त्री की खंडपीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट की अधीक्षण की शक्ति के मद्देनजर, एकल न्यायाधीश का यह निष्कर्ष है कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण का आदेश रिट क्षेत्राधिकार के लिए उत्तरदायी नहीं था, मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 (A&C अधिनियम) की धारा 34 के तहत उपलब्ध एक वैकल्पिक उपाय होने के नाते, टिकाऊ नहीं था।

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    पीसी एक्ट के तहत विशेष न्यायाधीश जांच एजेंसी को आगे की जांच का आदेश देते समय अभियोजन स्वीकृति प्राप्त करने का निर्देश नहीं दे सकते: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने वाले विशेष न्यायाधीश को सीआरपीसी की धारा 173 के तहत आगे की जांच का आदेश देते हुए आरोपी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए अधिनियम की धारा 19 के तहत मंजूरी प्राप्त करने के लिए जांच एजेंसी को निर्देश देने का अधिकार नहीं है।

    जस्टिस के बाबू की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा, "यह जांच एजेंसी का वैधानिक कर्तव्य और जिम्मेदारी है कि वह मामले की पूरी तरह से जांच करे और फिर संबंधित न्यायालय को रिपोर्ट प्रस्तुत करे, या तो आरोप की पुष्टि हो या आरोप का समर्थन करने के लिए कोई सामग्री न मिले। यह न्यायालय की क्षमता के भीतर नहीं है। निर्देश जारी करने के लिए जरूरी है कि मामले की न केवल जांच की जानी चाहिए, बल्कि इस आशय की रिपोर्ट भी प्रस्तुत की जानी चाहिए कि एकत्रित सामग्री द्वारा आरोपों का समर्थन किया गया है।"

    केस टाइटल: एम.एम. अब्दुल अज़ीज़ व अन्य बनाम केरल राज्य

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    अनुच्छेद 20(3) कंपल्सरी टेस्टिमोनिअल के खिलाफ अभियुक्त की रक्षा करता है, इसलिए सीआरपीसी की धारा 91 आरोपी पर लागू नहीं होती: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

    छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि संविधान का अनुच्छेद 20(3) अभियुक्त को कंपल्सरी टेस्टिमोनिअल के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है, इसलिए सीआरपीसी की धारा 91 [दस्तावेज या अन्य चीज पेश करने के लिए समन] आरोपी पर लागू नहीं होती है।

    जस्टिस संजय के अग्रवाल और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की पीठ ने पिता-पुत्री की एक जोड़ी (धोखाधड़ी के मामले में आरोपी) की ओर से दायर दो रिट याचिकाओं को स्वीकार करते हुए यह टिप्पणी की, जिन्होंने एक थाना प्रभारी की ओर से भेजी गई दो नोटिसों को चुनौती दी गई थी, जिसमें जांच के दरमियान कुछ दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया गया था।

    केस टाइटलः कु ऊर्जा जैन बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य संबंधित रिट याचिका के साथ

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    सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अंतरिम भरण-पोषण आदेश को अंतर्वर्ती नहीं माना जा सकता, फैमिली कोर्ट के तहत संशोधन दायर किया जा सकता है: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने हाल ही में माना कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत दिए गए अंतरिम भरण-पोषण के आदेश के खिलाफ फैमिली कोर्ट एक्ट की धारा 19 (4) के तहत आपराधिक पुनरीक्षण को प्राथमिकता दी जा सकती है। जस्टिस राजेंद्र कुमार (वर्मा) ने कहा कि गुजारा भत्ता का आदेश किसी व्यक्ति के अधिकारों को काफी हद तक प्रभावित करता है और इसलिए, इसे एक अंतर्वर्ती आदेश के रूप में नहीं माना जा सकता है।

    केस टाइटल: आरके बनाम आरबी

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    ट्रिब्यूनल के पास उनके समक्ष पेश होने वाले वकीलों के ड्रेस कोड पर निर्देश जारी करने का कोई अधिकार नहीं: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने एनसीएलटी के रजिस्ट्रार द्वारा जारी वह अधिसूचना रद्द कर दी जिसमें एनसीएलटी की किसी भी पीठ के समक्ष पेश होने वाले वकीलों के लिए गाउन पहनना अनिवार्य किया गया था। जस्टिस के रविचंद्रबाबू (सेवानिवृत्त होने के बाद) और जस्टिस टीएस शिवगणनम की खंडपीठ ने इससे पहले आदेश के संचालन पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया था, जिसमें कहा गया कि यह बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियमों के विपरीत है, जो कि गाउन पहनना अनिवार्य है। वकील केवल तभी गाउन पहन सकते हैं, जब वह सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में पेश हो रहा/रही हो।

    केस टाइटल: आर राजेश बनाम भारत संघ और अन्य

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    [पोक्सो एक्ट] कथित पीड़िता की एकमात्र गवाही अगर विश्वसनीय पाई जाती है तो इसका उपयोग ये तय करने के लिए किया जा सकता है कि सजा के लिए मामला बनता है या नहीं: मेघालय हाईकोर्ट

    मेघालय हाईकोर्ट ने कहा कि पोस्को मामले में कथित पीड़ित लड़की की एकमात्र गवाही अगर विश्वसनीय पाई जाती है तो इसका उपयोग ये तय करने के लिए किया जा सकता है कि सजा के लिए मामला बनता है या नहीं। सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डब्ल्यू डेंगदोह ने ये टिप्पणियां कीं। आवेदन में पॉक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 3(ए) और 4 के साथ पठित आईपीसी की धारा 376 के तहत विशेष पॉक्सो मामले में आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी।

    केस टाइटल: मोमिन मिया बनाम मेघालय राज्य और अन्य।

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    अनुच्छेद 226 के तहत याचिका तब भी दायर की जा सकती है जब मौलिक अधिकार को खतरा हो, बशर्ते आशंका अच्छी तरह से स्थापित हो: जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट

    जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने मंगलवार को दोहराया कि अनुच्छेद 226 के तहत याचिका पर तब भी विचार किया जा सकता है जब किसी नागरिक के मौलिक अधिकार को खतरा हो और किसी को इसे दायर करने के लिए वास्तविक पूर्वाग्रह या प्रतिकूल प्रभावों की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है, बशर्ते उसकी आशंका अच्छी तरह से स्थापित हो।

    जस्टिस राजेश सेखरी ने उस याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं, जिसके संदर्भ में याचिकाकर्ताओं ने उत्तरदाताओं को उन्हें वैध और उचित लाइसेंस के तहत आवंटित खाद्य उचित मूल्य की दुकानों के संचालन के संबंध में उन्हें अलग न करने का आदेश देते हुए परमादेश की रिट जारी करने के लिए रिट अधिकार क्षेत्र का आह्वान किया था।

    केस टाइटल: फारूक अहमद भट बनाम यूटी ऑफ जम्मू एंड कश्मीर

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    वर्जिनिटी टेस्ट सेक्सिस्ट, सच जानने के नाम पर आरोपी महिला पर यह टेस्ट नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि एक महिला बंदी या जांच के तहत आरोपी का कौमार्य परीक्षण करना असंवैधानिक है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए गर‌िमा के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा यह "अमानवीय व्यवहार" का एक रूप है। ज‌स्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि कौमार्य परीक्षण "सेक्सिस्ट" है और एक महिला अभियुक्त के साथ यदि हिरासत में ऐसा परीक्षण किया जाता है तो यह उसके गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करता है।

    टाइटल: सिस्टर सेफी बनाम सीबीआई और अन्य।

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    एक विशेष समुदाय के सदस्यों को आतंकवादी के रूप में चित्रित करने वाला कोई पुलिस मॉक ड्रिल आयोजित नहीं की जाए : बॉम्बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ के समक्ष दायर एक जनहित याचिका में तीन मॉक ड्रिल का हवाला देते हुए पुलिस मॉक ड्रिल के लिए दिशा-निर्देश मांगे गए हैं, जहां एक पुलिस कांस्टेबल एक आतंकवादी की भूमिका निभाते हुए मुस्लिम के रूप में कपड़े पहने हुए था और ड्रिल के दौरान गिरफ्तार किए जाने के बाद "नारा-ए-तकबीर, अल्लाह हू अकबर" के नारे लगा रहा था।

    याचिकाकर्ता सैयद उस्मा ने जनहित याचिका में आरोप लगाया, " याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि उपरोक्त मॉक ड्रिल में पुलिस अधिकारियों द्वारा एक मुस्लिम समुदाय को जानबूझकर 'आतंकवादी' के रूप में दिखाया है और इस ड्रिल में राज्य स्पष्ट रूप से मुस्लिम समुदाय के खिलाफ अपने पूर्वाग्रह को दर्शाता है और एक संदेश देता है कि आतंकवादियों का एक विशेष धर्म है और यह कृत्य पुलिस मुस्लिम समुदाय को बदनाम करने के समान है।”

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    यदि आवेदक अपील में हुई देरी के लिए 'पर्याप्त कारण' दिखाने में विफल रहता है तो देरी को माफ नहीं किया जा सकता: झारखंड हाईकोर्ट ने दोहराया

    झारखंड हाईकोर्ट ने दोहराया कि अदालत को अपील में हुई देरी की माफी के आवेदन को तब तक अनुमति नहीं देनी चाहिए जब तक कि आवेदक अदालत को संतुष्ट न कर दे कि उसे किसी 'पर्याप्त कारण' से मुकदमा चलाने से रोका गया।

    जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने दूसरी अपील खारिज करते हुए कहा, "आवेदक को न्यायालय को संतुष्ट करना चाहिए कि उसे अपने मामले पर मुकदमा चलाने से किसी भी "पर्याप्त कारण" से रोका गया। इसके साथ ही जब तक कोई संतोषजनक स्पष्टीकरण प्रस्तुत नहीं किया जाता है, तब तक न्यायालय को देरी की माफी के लिए आवेदन की अनुमति नहीं देनी चाहिए। न्यायालय को यह जांच करनी है कि क्या गलती वास्तविक है या केवल गुप्त उद्देश्य को पूरा करने के लिए ऐसा किया गया है।"

    केस टाइटल: पुष्पा दवे @ देवी और अन्य बनाम उदय कुमार राजगढ़िया और अन्य।

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    भविष्य निधि वैधानिक कटौती, कर्मचारी को इससे लालच नहीं दिया जा सकता; कटौती ना होना धोखाधड़ी नहीं : कर्नाटक हाईकोर्ट

    कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि एक कर्मचारी की ओर से भविष्य निधि में योगदान वैधानिक कटौती है और कर्मचारी के खाते में नियोक्ता की ओर से भविष्य नि‌धि भुगतान न करना धोखाधड़ी के अपराध को आकर्षित नहीं कर सकता है। जस्टिस एम नागप्रसन्ना की सिंगल जज बेंच ने सीएच केएस प्रसाद नामक व्यक्ति की ओर से दायर याचिका को स्वीकार करते हुए और उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 409 और 420 के तहत दर्ज अपराधों को खारिज करते हुए यह अवलोकन किया।

    केस टाइटलः सीएच केएस प्रसाद @ केएस प्रसाद और कर्नाटक राज्य और एएनआर

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    अभिभावक और प्रतिपाल्य अधिनियम की धारा 9 के तहत "सामान्य रूप से रहता है" एक विशेष स्थान पर समय बिताने से संबंधित नहीं, बल्‍कि निवास करने का इरादा है: एमपी हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर स्थित खंडपीठ ने हाल ही में दोहराया कि गार्डियन एंड वार्ड एक्ट की धारा 9 के तहत "सामान्य रूप से निवास" शब्द का निर्धारण किसी विशेष स्थान पर रहने वाले संबंधित व्यक्ति के वहां पहुंचने के इरादे के आधार पर किया जाता है। गार्डियन एंड वार्ड एक्ट की धारा 9 कुछ आवेदनों के संबंध में न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से संबंधित है। जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की पीठ ने कहा कि "सामान्य रूप से निवास करता है" शब्द का किसी विशेष स्थान पर बिताए गए समय से कोई लेना-देना नहीं है।

    केस टाइटल: कल्याणी सारस्वत बनाम गजेंद्र व अन्य।

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    कर्मचारी की सर्विस की अवधि और नियोक्ता का आचरण पिछला वेतन देते समय प्रासंगिक विचार: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने कहा कि बैक-वेज देते समय कर्मचारी की सर्विस की अवधि को ध्यान में रखा जाना चाहिए और साथ ही नियोक्ता के आचरण को भी देखा जाना चाहिए। जस्टिस संजय द्विवेदी की पीठ संविधान के अनुच्छेद 226/227 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें लेबर कोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई, जिसके माध्यम से जगदीश प्रसाद साहू (प्रतिवादी नंबर 2) को पूरे पिछले वेतन के साथ सर्विस में बहाल किया गया।

    केस टाइटल: कार्यकारी निदेशक, पर्यावरण योजना और समन्वय संगठन (एमपी) और अन्य बनाम पीठासीन अधिकारी, लेबर कोर्ट, रीवा (मप्र) और अन्य।

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    यदि प्रथम दृष्टया दोषसिद्धि की प्रबल संभावना है तो केवल पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर हत्या का आरोप रद्द नहीं किया जा सकता : केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 307 के तहत हत्या के प्रयास के आरोपी व्यक्ति के खिलाफ एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया, जबकि आरोपी और वास्तविक शिकायतकर्ता के बीच विवाद सुलझा लिया गया। जस्टिस ए बदरुद्दीन आईपीसी की धारा 324 और 307 और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (रोकथाम) की धारा 3(1)(एस), 3(2)(वीए) के तहत अपराध के आरोपी व्यक्ति द्वारा दायर दो याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे थे।

    केस टाइटल: सुधीश बाबू बनाम केरल राज्य

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    अंतरिम उपाय प्रदान करने के लिए मध्यस्थ की शक्ति मध्यस्थता अधिनियम की धारा 9 के तहत न्यायालय की शक्तियों के समान : कलकत्ता हाईकोर्ट

    कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि 2015 के संशोधन अधिनियम के बाद, मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 17 के तहत अंतरिम उपाय प्रदान करने के लिए मध्यस्थ की शक्तियां अधिनियम की धारा 9 तहत न्यायालय की शक्तियों के समान (Pari Passu) हैं। ज‌स्टिस शेखर बी सराफ की पीठ ने टिप्पणी की कि धारा 9 के तहत अंतरिम सुरक्षा प्रदान करने के लिए लागू परीक्षण धारा 17 के तहत मध्यस्थ द्वारा पारित आदेश की वैधता का परीक्षण करने के लिए भी लागू होगा।

    केस टाइटल: जाग्रति ट्रेड सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम दीपक भार्गव व अन्य।

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    क्रूरता, परित्याग, व्यभिचार जैसे नए तथ्यों के आधारों पर स्‍थापित तलाक की दूसरी याचिका रेस ज्यूडिकाटा से प्रभावित नहीं होती: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जहां तक विवाह विच्छेद के आधारों का संबंध है, वे सतत प्रकृति के हैं। जस्टिस जीके इलानथिरैयन ने कहा कि जब कार्रवाई का कारण निरंतर और आवर्ती प्रकृति का है, तो तलाक के लिए बाद की याचिका रेस ज्यूडिकाटा से प्रभावित नहीं होगी।

    कोर्ट ने कहा, "तथ्य जो क्रूरता, परित्याग या व्यभिचार के आधार का गठन करते हैं, जैसा भी मामला हो, प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर कार्रवाई के विभिन्न कारणों को जन्म देने के लिए अलग-अलग होने की संभावना है। जब कार्रवाई का कारण निरंतर और आवर्ती प्रकृति का हो , पूर्व ओपी की बर्खास्तगी की अवहेलना करते हुए उसी आधार पर लाए गए तलाक के बाद के मुकदमे को रेस-जुडिकाटा द्वारा प्रतिबंधित नहीं किया जाएगा।"

    केस टाइटल: एस वीवी

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