वर्जिनिटी टेस्ट सेक्सिस्ट, सच जानने के नाम पर आरोपी महिला पर यह टेस्ट नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

Avanish Pathak

7 Feb 2023 2:34 PM GMT

  • वर्जिनिटी टेस्ट सेक्सिस्ट, सच जानने के नाम पर आरोपी महिला पर यह टेस्ट नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    Delhi High Court

    दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि एक महिला बंदी या जांच के तहत आरोपी का कौमार्य परीक्षण करना असंवैधानिक है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिए गए गर‌िमा के अधिकार का उल्लंघन है। कोर्ट ने कहा यह "अमानवीय व्यवहार" का एक रूप है।

    ज‌स्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने कहा कि कौमार्य परीक्षण "सेक्सिस्ट" है और एक महिला अभियुक्त के साथ यदि हिरासत में ऐसा परीक्षण किया जाता है तो यह उसके गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करता है।

    यह देखते हुए कि परीक्षण न तो आधुनिक है और न ही वैज्ञानिक, बल्कि "पुरातन और तर्कहीन" है, अदालत ने कहा कि आधुनिक विज्ञान और चिकित्सा कानून महिलाओं पर ऐसे परीक्षणों का संचालन अस्वीकार करते हैं।

    ज‌स्टिस शर्मा ने कहा कि राज्य कौमार्य परीक्षण का सहारा नहीं ले सकता है। यह संविधान की योजना के खिलाफ है, जिसमें अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार भी शामिल है।

    अदालत ने सीआरपीसी की धारा 53 का उल्लेख किया, जिसके तहत ऐसे अपराध में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की चिकित्सा जांच के लिए प्रावधान किए गए है, जिसमें यह माना गया है कि यह विश्वास करने के लिए उचित आधार हों कि परीक्षण अपराध किए जाने के संबंध में साक्ष्य प्रदान करेगा।

    उक्त प्रावधान पर विचार करते हुए, अदालत ने कहा कि कौमार्य परीक्षण का चिकित्सा जांच की ऐसी तकनीक के रूप में उल्लेख नहीं है, जिसके जरिए उन तथ्यों का पता लगाया जा सके, जो सबूत का आधार बन सकें।

    फैसले में कहा गया कि भारतीय संसद ने प्रावधान के लिए स्पष्टीकरण पेश करते हुए और चिकित्सा जांच के कई रूपों को सूचीबद्ध करते हुए, इसके दायरे में और तकनीकों को शामिल करने की गुंजाइश छोड़ दी है।

    कोर्ट ने कहा,

    धारा 53 के 'स्पष्टीकरण' को पढ़ने से पता चलता है कि यह "आधुनिक और वैज्ञानिक तकनीकों के उपयोग" द्वारा आरोपी व्यक्ति की चिकित्सा जांच को अनिवार्य करता है। यहां यह बताना संदर्भ से बाहर नहीं होगा कि किसी भी तरह की जांच से 'कौमार्य परीक्षण' कथित प्रावधान के तहत नहीं आ सकता है। कौमार्य परीक्षण न तो आधुनिक है और न ही वैज्ञानिक, बल्कि पुरातन और तर्कहीन है। आधुनिक विज्ञान और चिकित्सा कानून महिलाओं पर इस तरह के परीक्षण के संचालन को अस्वीकार करते हैं …”

    अदालत ने 1992 में सिस्टर अभया की हत्या के मामले में दोषी ठहराई गई सिस्टर सेफी की उस याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें सीबीआई द्वारा किए गए कौमार्य परीक्षण को असंवैधानिक बताते हुए चुनौती दी गई थी।

    कोर्ट ने हालांकि फैसले में कहा कि सिस्टर सेफी की दलील कि सीबीआई द्वारा कौमार्य परीक्षण की रिपोर्ट को चयनात्मक रूप से लीक करना और हाइमनोप्लास्टी के झूठे सिद्धांत पेश करना मानहानि के समान है, कोर्ट इसकी जांच नहीं कर सकती है। कोर्ट ने कहा कि मुकदमे की समाप्ति के बाद उसके पास कानून का सहारा लेने के लिए अन्य उपाय उपलब्ध हैं।

    कोर्ट ने कहा कि सिस्टर सेफी के खिलाफ हत्या के आरोप की सच्चाई का पता लगाने के लिए कौमार्य परीक्षण का इस्तेमाल किया गया था और यह परीक्षण अपने आप में यौन उत्पीड़‌ित के साथ-साथ हिरासत में किसी अन्य महिला के लिए बेहद दर्दनाक है. . इसमें कहा गया है कि इस तरह के परीक्षण का व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।

    सीबीआई के खिलाफ कार्रवाई की प्रार्थना के संबंध में कोर्ट ने कहा कि 2008 में जब सिस्टर सेफी का परीक्षण किया गया था, तब सुप्रीम कोर्ट के कोई दिशानिर्देश नहीं थे या अन्यथा ऐसे परीक्षणों को असंवैधानिक या मौलिक अधिकार का उल्लंघन घोषित किया गया था।

    अदालत ने मामले का निस्तारण करते हुए निम्नलिखित निर्देश जारी किए,

    - कौमार्य परीक्षण की असंवैधानिकता के संबंध में आवश्यक जानकारी सचिव, केंद्रीय गृह मंत्रालय, सचिव, केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, भारत सरकार के माध्यम से सभी जांच एजेंसियों/हितधारकों को परिचालित की जाए।

    - दिल्ली न्यायिक अकादमी को अपने पाठ्यक्रम में और जांच अधिकारियों, अभियोजकों और अन्य हितधारकों के लिए आयोजित कार्यशालाओं में इस मुद्दे के बारे में जानकारी शामिल करने का निर्देश दिया जाता है।

    - इसी तरह, दिल्ली पुलिस प्रशिक्षण अकादमी भी अपने प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में इस मुद्दे से संबंधित आवश्यक जानकारी शामिल करेगी।

    - पुलिस आयुक्त, दिल्ली को भी यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि जांच अधिकारियों को इस संबंध में सूचित और संवेदनशील बनाया जाए।

    उल्लेखनीय है कि सीबीआई की एक अदालत ने 2020 में सिस्टर सेफी को सिस्टर अभया की हत्या के लिए दोषी पाया था और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने अपनी खोज के समर्थन में कौमार्य परीक्षण के निष्कर्षों पर भरोसा किया था कि सेफी और एक अन्य आरोपी फादर कोट्टूर के बीच गुप्त संबंधों को छिपाने के लिए सिस्टर अभया की हत्या की गई थी।

    केरल हाईकोर्ट ने अपील पर सजा को निलंबित कर रखा है।

    सिस्टर अभया 20 वर्षीय नन थी। 27 मार्च, 1992 को कोट्टायम में सेंट पायर टेंथ कॉन्वेंट के कुएं के अंदर मृत पाई गई थी। स्थानीय पुलिस और केरल पुलिस की अपराध शाखा ने शुरू में इस मामले को आत्महत्या करार देते हुए बंद कर दिया था। हालांकि, बड़े पैमाने पर जनाक्रोश के कारण मामला बाद में सीबीआई को सौंप दिया गया था।

    टाइटल: सिस्टर सेफी बनाम सीबीआई और अन्य।

    आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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