[पोक्सो एक्ट] कथित पीड़िता की एकमात्र गवाही अगर विश्वसनीय पाई जाती है तो इसका उपयोग ये तय करने के लिए किया जा सकता है कि सजा के लिए मामला बनता है या नहीं: मेघालय हाईकोर्ट

Brij Nandan

8 Feb 2023 9:21 AM GMT

  • [पोक्सो एक्ट] कथित पीड़िता की एकमात्र गवाही अगर विश्वसनीय पाई जाती है तो इसका उपयोग ये तय करने के लिए किया जा सकता है कि सजा के लिए मामला बनता है या नहीं: मेघालय हाईकोर्ट

    मेघालय हाईकोर्ट ने कहा कि पोस्को मामले में कथित पीड़ित लड़की की एकमात्र गवाही अगर विश्वसनीय पाई जाती है तो इसका उपयोग ये तय करने के लिए किया जा सकता है कि सजा के लिए मामला बनता है या नहीं।

    सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक आवेदन पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डब्ल्यू डेंगदोह ने ये टिप्पणियां कीं।

    आवेदन में पॉक्सो अधिनियम, 2012 की धारा 3(ए) और 4 के साथ पठित आईपीसी की धारा 376 के तहत विशेष पॉक्सो मामले में आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी।

    याचिकाकर्ता के वकील ने प्रस्तुत किया कि अध्यक्ष, बाल कल्याण समिति, अमपाती द्वारा एक शिकायत की गई थी। जिसमें आरोप लगाया गया था कि एक शादी हुई थी जिसमें याचिकाकर्ता शामिल था और कथित पीड़ित नाबालिग लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम थी, जो एक प्राथमिकी में परिणत हुई।

    वकील ने कहा कि उक्त तिथि पर, लड़की अपनी मां के साथ याचिकाकर्ता के आवास पर आई और उनके रीति-रिवाजों के अनुसार औपचारिक सगाई समारोह हुआ। हालांकि, चूंकि उस समय लड़की की उम्र लगभग 16 वर्ष थी, इसलिए दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हुए कि जब तक वो बालिग नहीं हो जाती, तब तक के लिए वो अपने पैतृक घर वापस चली जाएगी, जिसके बाद एक औपचारिक विवाह समारोह आयोजित किया जाएगा।

    तर्क को पुष्ट करने के लिए वकील ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत कथित पीड़िता के बयान की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित किया। जिसमें यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि हालांकि वो उस तारीख को याचिकाकर्ता के घर गई थी, लेकिन उस दिन या रात को कोई शारीरिक यौन संपर्क नहीं हुआ क्योंकि वह अपनी सास के साथ रही और अगले दिन घर लौट आई।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि पीडब्लू-1 के रूप में अदालत के समक्ष उसके बयान में भी इस बयान को दोहराया गया था।

    याचिका का विरोध करते हुए प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि प्राथमिकी दर्ज होने के तुरंत बाद पीड़ित लड़की की जांच करने वाले डॉक्टर द्वारा प्रस्तुत मेडिकल रिपोर्ट से पता चलता है कि उक्त पीड़ित लड़की का हाइमन 7 बजे की स्थिति में फटा हुआ था, जिसका अर्थ है कि पॉक्सो अधिनियम की धारा 3(ए)/4 के साथ पठित आईपीसी की धारा 376 के तहत आरोपी/याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रथम दृष्टया मजबूत मामला बनता है और इसलिए याचिका खारिज की जानी चाहिए।

    याचिका पर विपरीत दलीलों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि इस मामले में निर्णायक कारक खुद कथित पीड़ित लड़की का बयान है, जब उसने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत अपने बयान में स्पष्ट रूप से कहा है कि कथित घटना की तारीख पर आरोपी/याचिकाकर्ता के साथ कोई यौन संबंध नहीं था और शादी केवल तभी होगी जब वो बालिग हो जाएगी।

    पीठ ने कहा,

    "कथित पीड़ित लड़की की एकमात्र गवाही अगर विश्वसनीय पाई जाती है तो इसका उपयोग ये तय करने के लिए किया जा सकता है कि सजा के लिए मामला बनता है या नहीं।“

    मेडिकल रिपोर्ट से समर्थन प्राप्त करने वाले सरकारी वकील के तर्क को स्वीकार करने से इनकार करते हुए, जिसने संकेत दिया था कि हाइमन 7 बजे की स्थिति में फटा था, अदालत ने कहा कि कथित पीड़ित लड़की की शरीर पर किसी भी तरह की चोट का कोई सबूत नहीं था।

    अदालत ने कहा कि इस बात का भी कोई स्पष्ट निष्कर्ष नहीं है कि फटा हाइमन पुराना था या हाल ही का।

    हस्तक्षेप के लिए उपयुक्त मामला पाते हुए अदालत ने याचिका को स्वीकार कर लिया।

    केस टाइटल: मोमिन मिया बनाम मेघालय राज्य और अन्य।

    साइटेशन: 2023 लाइव लॉ

    कोरम: जस्टिस डब्ल्यू डेंगदोह


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