[गुजरात स्लम-निवासी बेदखली] प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत भुगतान समय-सीमा को पूरा करने में असमर्थ आबंटित संबंधित अधिकारियों से अनुरोध कर सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

15 July 2022 4:58 AM GMT

  • [गुजरात स्लम-निवासी बेदखली] प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत भुगतान समय-सीमा को पूरा करने में असमर्थ आबंटित संबंधित अधिकारियों से अनुरोध कर सकते हैं: सुप्रीम कोर्ट

    गुजरात हाईकोर्ट के आदेश का विरोध करने वाली याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पुनर्वास के पात्र हैं। लेकिन भुगतान समय-सीमा को पूरा करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है, इसके लिए संबंधित अधिकारियों से संपर्क कर सकते हैं।

    गुजरात हाईकोर्ट ने अपने उक्त आदेश में सितंबर 2020 में गांधीनगर रेलवे स्टेशन क्षेत्र से सरकारी अधिकारियों द्वारा बेदखल किए गए झुग्गीवासियों को राहत देने से इनकार कर दिया था।

    जस्टिस ए.एम. खानविलकर और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ को सूरत नगर निगम की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी और एएसजी और पश्चिम रेलवे के वकील के.एम. नटराज बताया कि रेलवे संपत्ति के संबंधित खंड पर अतिक्रमण को हटा दिया गया है।

    प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत अतिक्रमण हटाने से प्रभावित लोगों का पुनर्वास किया जाना है। योजना के तहत आवंटियों को 6 लाख रुपए की राशि का भुगतान करना है।

    मुकुल रोहतगी ने बताया ने कि 2450 आवेदन जमा किए। इनमें से 1901 आवेदन स्वीकृत हुए। लेकिन वह चिंतित है कि ऐसी बड़बड़ाहट थी कि आवंटी समय के अनुसार भुगतान करने में सक्षम नहीं हो सकते।

    याचिकाकर्ताओं के वकील ने प्रस्तुत किया कि भुगतान की समय सीमा अधिक होने के कारण इसे थोड़ा लचीला बनाया जा सकता है।

    उन्होंने प्रस्तुत किया,

    "हम भुगतान करेंगे। लेकिन अगर समय दिया जाए तो।"

    बेंच ने कहा कि कोर्ट संबंधित अधिकारियों को समय बढ़ाने का निर्देश नहीं देगा। इसमें कहा गय कि आवंटी उनसे संपर्क कर सकते हैं। यदि अधिकारियों के पास समय बढ़ाने की शक्ति है तो वे संबंधित आवंटियों द्वारा किए गए प्रतिनिधित्व पर उसी के संबंध में कॉल कर सकते हैं।

    बेंच ने कहा,

    "अगर प्राधिकरण के पास समय बढ़ाने की शक्ति है तो वे करेंगे। हम कुछ नहीं कहेंगे।"

    जैसा कि वकील ने अदालत को यह कहकर मनाने की कोशिश की कि कुछ आबंटित गरीबी रेखा से नीचे हैं, इस पर जस्टिस खानविलकर ने कहा कि 'गरीबी रेखा से नीचे' वालों को भी कानून के शासन का पालन करना होता है।

    उन्होंने कहा,

    "पहले से ही इन लोगों के प्रति भोग दिखाया गया है, वे रेलवे की संपत्ति पर अतिक्रमणकारी हैं ... गरीबी रेखा के नीचे भी कानून के शासन का पालन करना पड़ता है।"

    चर्चा को देखते हुए बेंच ने आदेश में दर्ज किया,

    "ऐसे व्यक्ति संबंधित अधिकारियों से अनुरोध कर सकते हैं, जिस पर तदनुसार विचार किया जा सकता है। इस तरह के भोग के बावजूद, यदि आवंटी शर्तों का पालन करने की स्थिति में नहीं है तो कानून के अनुसार निर्णय लेने का अधिकार है। हमें इसका मतलब नहीं समझा जा सकता कि अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं करेंगे जैसा कि वर्तमान मामले की वास्तविक स्थिति में आवश्यक होगा।"

    रोहतगी ने आश्वासन दिया कि वह अधिकारियों से कुछ नरमी दिखाने के लिए कहेंगे।

    बेंच ने कहा कि यह उन आवेदकों के लिए खुला है, जिनके आवेदनों को खारिज कर दिया गया है। वे अधिकारियों के आदेशों को चुनौती देने के लिए कानून में उचित उपाय तलाश सकते हैं।

    यह दर्ज किया गया कि संबंधित विभागों को गलती करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए और पहले से शुरू की गई अनुशासनात्मक कार्यवाही को उसके तार्किक निष्कर्ष पर ले जाना चाहिए।

    झुग्गीवासियों को बेदखल करने के पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं के संबंध में बेंच ने मामले को 15 जुलाई, 2022 तक के लिए स्थगित कर दिया और सुनवाई के लिए हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण के वकील को उपस्थित होने के लिए कहा गया।

    एएसजी के.एम. नटराज ने पीठ को सूचित किया कि दिल्ली-मुंबई हाई स्पीड रेलवे लाइन से संबंधित एक और ऐसा ही मामला है।

    उन्होंने प्रस्तुत किया कि पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने इस संबंध में बेदखली आदेश पारित होने के बाद भी अतिक्रमणकारियों को नहीं हटाने का अंतरिम आदेश पारित किया है।

    पीठ ने नोटिस जारी किया और 27 जुलाई को इस पर सुनवाई करने का फैसला किया।

    इसके साथ ही कोर्ट ने हाईकोर्ट के समक्ष आगे की कार्यवाही पर रोक लगा दी।

    [मामला टाइटल: उतरन से बेस्टन रेलवे झोपडपट्टी विकास मंडल बनाम भारत सरकार और अन्य जुड़े मामले]

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