ट्रायल, अपील या पुनरीक्षण के खत्म होने में एक अस्पष्ट, परिहार्य और लंबे समय तक देरी जमानत पर विचार करने के लिए एक कारक होगी : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

12 July 2022 10:31 AM IST

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को देश में प्रचलित जमानत प्रणाली के संबंध में जांच एजेंसी के साथ-साथ न्यायालयों को कई दिशा-निर्देश पारित करते हुए कहा कि एक ट्रायल, अपील या पुनरीक्षण के खत्म होने में एक अस्पष्ट, परिहार्य और लंबे समय तक देरी जमानत पर विचार करने के लिए एक कारक होगी।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एम एम सुंदरेश ने कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि अदालतें सीआरपीसी की धारा 309 का पालन करेंगी, जो हालांकि दिन-प्रतिदिन के आधार पर कार्यवाही करने पर विचार करती है, अपवादों को कम करती है और अदालतों को कार्यवाही स्थगित या टालने की शक्ति प्रदान करती है। हालांकि, बेंच का विचार था कि किसी भी अनुचित देरी के मामले में, आरोपी को इसका लाभ मिलना चाहिए, भले ही वह लाभ जो आरोपी को संहिता की धारा 436 ए (निर्णय के पैरा 41) के तहत मिल सकता है।

    आरोपी व्यक्तियों पर देरी के प्रतिकूल प्रभाव को प्रदर्शित करने के लिए, बेंच ने हुसैनारा खातून और अन्य बनाम गृह सचिव, बिहार राज्य, हुसैन और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य और सुरिंदर सिंह @ शिंगारा सिंह बनाम पंजाब राज्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के प्रासंगिक भागों का उल्लेख किया।

    हुसैनारा खातून के फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया था कि 'अत्यधिक असंतोषजनक' जमानत प्रणाली गरीब विचाराधीन कैदियों को लगातार न्याय से वंचित करने के लिए कानूनी और न्यायिक प्रणाली के कारणों में से एक है। इसने नोट किया कि देरी मामलों के निपटान में एक अन्य कारक है।

    त्वरित सुनवाई की आवश्यकता पर बल देते हुए न्यायालय ने कहा था-

    "शीघ्र ट्रायल आपराधिक न्याय का सार है और इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि ट्रायल में देरी अपने आप में न्याय से इनकार करती है। यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में, त्वरित ट्रायल संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकारों में से एक है ... हमें लगता है कि हमारे संविधान के तहत भी, हालांकि त्वरित सुनवाई को विशेष रूप से मौलिक अधिकार के रूप में शामिल नहीं किया गया है, यह मेनका गांधी बनाम भारत संघ [(1978) 2 SCR 621 : (1978) 1 l SCC 248] में इस न्यायालय द्वारा व्याख्या किए गए अनुच्छेद 21 की व्यापक व्यापकता और सामग्री में निहित है।"

    इसने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के एक अभिन्न और अनिवार्य हिस्से के रूप में त्वरित ट्रायल को मान्यता दी थी।

    हुसैन (सुप्रा) में, सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों से अनुरोध किया था कि वे विचाराधीन कैदियों के लंबित मामलों के निपटान में तेजी लाने के लिए प्रशासनिक और न्यायिक पक्ष पर उचित निगरानी तंत्र विकसित करें। फिर से, सुरिंदर सिंह (सुप्रा) में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि लंबित ट्रायल की अवधि अनावश्यक रूप से लंबी हो जाती है, तो अनुच्छेद 21 द्वारा सुनिश्चित निष्पक्षता को झटका लगेगा और इसने अपील के चरण में देरी के प्रभाव पर भी चर्चा की।

    निर्देश जारी

    कोर्ट ने कई निर्देश इस प्रकार जारी किए:

    ए) भारत सरकार जमानत अधिनियम की प्रकृति में एक अलग अधिनियम की शुरूआत पर विचार कर सकती है ताकि जमानत के अनुदान को सुव्यवस्थित किया जा सके।

    बी) जांच एजेंसियां ​​और उनके अधिकारी संहिता की धारा 41 और 41 ए के आदेश और अर्नेश कुमार (सुप्रा) में इस न्यायालय द्वारा जारी निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं। उनकी ओर से किसी भी प्रकार की लापरवाही को अदालत द्वारा उच्च अधिकारियों के संज्ञान में लाया जाना चाहिए

    ग) अदालतों को संहिता की धारा 41 और 41ए के अनुपालन पर खुद को संतुष्ट करना होगा। कोई भी गैर-अनुपालन आरोपी को जमानत देने का अधिकार देगा

    डी) सभी राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को रिट याचिका (सी) संख्या 7608/ 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट के दिनांक 07.02.2018 के आदेश का अनुपालन करने और दिल्ली पुलिस द्वारा जारी स्थायी आदेश यानी स्थायी आदेश संख्या 109, 2020 के तहत संहिता की संहिता की धारा 41 और 41 ए के तहत पालन की जाने वाली प्रक्रिया के लिए निर्देशित किया जाता है।

    ई) संहिता की धारा 88, 170, 204 और 209 के तहत आवेदन पर विचार करते समय जमानत आवेदन पर जोर देने की आवश्यकता नहीं है।

    च) सिद्धार्थ मामले में इस अदालत के फैसले में निर्धारित आदेश का कड़ाई से अनुपालन करने की आवश्यकता है (जिसमें यह माना गया था कि जांच अधिकारी को चार्जशीट दाखिल करते समय प्रत्येक आरोपी को गिरफ्तार करने की आवश्यकता नहीं है)।

    छ) राज्य और केंद्र सरकारों को विशेष अदालतों के गठन के संबंध में इस न्यायालय द्वारा समय-समय पर जारी निर्देशों का पालन करना होगा। हाईकोर्ट को राज्य सरकारों के परामर्श से विशेष न्यायालयों की आवश्यकता पर एक अभ्यास करना होगा। विशेष न्यायालयों के पीठासीन अधिकारियों के पदों की रिक्तियों को शीघ्रता से भरना होगा।

    ज) हाईकोर्ट को उन विचाराधीन कैदियों का पता लगाने की क़वायद शुरू करने का निर्देश दिया जाता है जो जमानत की शर्तों का पालन करने में सक्षम नहीं हैं। ऐसा करने के बाद रिहाई को सुगम बनाने वाली संहिता की धारा 440 के आलोक में उचित कार्रवाई करनी होगी।

    i) जमानत पर जोर देते समय संहिता की धारा 440 के जनादेश को ध्यान में रखना होगा।

    जे) जिला न्यायपालिका स्तर और हाईकोर्ट दोनों में संहिता की धारा 436 ए के आदेश का पालन करने के लिए एक समान तरीके से एक अभ्यास करना होगा जैसा कि पहले भीम सिंह (सुप्रा) में इस न्यायालय द्वारा निर्देशित किया गया था, उसके बाद उचित आदेश होंगे।

    के) जमानत आवेदनों का निपटारा दो सप्ताह की अवधि के भीतर किया जाना चाहिए, सिवाय इसके कि प्रावधान अन्यथा अनिवार्य हो, अपवाद हस्तक्षेप करने वाला आवेदन है। किसी भी हस्तक्षेप करने वाले आवेदन के अपवाद के साथ अग्रिम जमानत के लिए आवेदन छह सप्ताह की अवधि के भीतर निपटाए जाने की उम्मीद है।

    एल) सभी राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों और हाईकोर्ट को चार महीने की अवधि के भीतर हलफनामे/ स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है।

    मामले का विवरण

    सतेंद्र कुमार अंतिल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो | 2022 लाइव लॉ ( SC) 577 | एमए 1849/ 2021 | 11 जुलाई 2022

    पीठ: जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश

    हेडनोट्स: दंड प्रक्रिया संहिता, 1973; धारा 41, 41ए - संहिता की धारा 41 और 41ए के अनुपालन पर अदालतों को खुद को संतुष्ट करना होगा। कोई भी गैर-अनुपालन अभियुक्त को जमानत देने का अधिकार देगा - जांच एजेंसियां ​​और उनके अधिकारी संहिता की धारा 41 और 41ए के आदेश और अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य, (2014) 8 SCC 273 में जारी निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं। - उनकी ओर से किसी भी प्रकार की लापरवाही को अदालत द्वारा उच्च अधिकारियों के संज्ञान में लाया जाना चाहिए, जिसके बाद उचित कार्रवाई की जानी चाहिए - राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को स्थायी आदेशों की सुविधा के लिए संहिता की धारा 41 और 41ए की प्रक्रिया के पालन के लिए निर्देश जाता है।

    गिरफ्तारी और जमानत - मनमाने ढंग से गिरफ्तारी को रोकने और जमानत देने की प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिए अदालत ने कई निर्देश जारी किए (पैरा 73)

    ऑर्डर डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



    Next Story