सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2025-12-06 16:30 GMT

सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (01 दिसंबर, 2025 से 05 दिसंबर, 2025 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

को-ऑपरेटिव सोसाइटियों के लिए स्टाम्प ड्यूटी में राहत, कानून के तहत ज़रूरी नहीं एक्स्ट्रा वेरिफिकेशन पर आधारित नहीं हो सकती: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (5 दिसंबर) को झारखंड सरकार के उस मेमो को रद्द कर दिया, जिसमें को-ऑपरेटिव सोसाइटियों को अपने सदस्यों को प्रॉपर्टी ट्रांसफर रजिस्टर करने के लिए इंडियन स्टाम्प (बिहार अमेंडमेंट) एक्ट की धारा 9A के तहत स्टाम्प ड्यूटी में छूट का दावा करने से पहले असिस्टेंट रजिस्ट्रार की सिफारिश लेनी ज़रूरी है।

जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस अतुल एस चंदुरकर की बेंच ने कहा, “फर्जी कोऑपरेटिव सोसाइटी को धारा 9A का फायदा उठाने से रोकने के लिए कोऑपरेटिव सोसाइटी की जगह को उसके मेंबर्स के हक में बिना स्टांप ड्यूटी के ट्रांसफर करने वाले इंस्ट्रूमेंट को रजिस्टर करने के लिए असिस्टेंट रजिस्ट्रार, को-ऑपरेटिव सोसाइटी की सिफारिश की ज़रूरत, हमारी राय में एक गैर-ज़रूरी बात है, जिससे काम में गैर-कानूनीपन होता है। ऐसी कोई भी शर्त साफ तौर पर फालतू और असल में गैर-ज़रूरी है।”

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अगर कोर सब्जेक्ट पढ़ा है तो सिर्फ़ डिग्री टाइटल न होने पर कैंडिडेट को डिसक्वालिफाई नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब किसी कैंडिडेट ने अपने करिकुलम के हिस्से के तौर पर ज़रूरी मेन सब्जेक्ट पढ़ा है तो सिर्फ़ इस आधार पर उसका कैंडिडेट अप्लाई रिजेक्ट नहीं किया जा सकता कि उसकी डिग्री किसी दूसरे स्पेशलाइज़ेशन में है।

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की बेंच ने एक एम.कॉम (कॉमर्स) ग्रेजुएट की मॉनिटरिंग और इवैल्यूएशन कंसल्टेंट के तौर पर नियुक्ति को फिर से बहाल कर दिया। यह एक ऐसा पद था जिसके लिए स्टैटिस्टिक्स में पोस्टग्रेजुएट डिग्री ज़रूरी थी। उसकी सर्विस सिर्फ़ इसलिए खत्म कर दी गई, क्योंकि उसके पास स्टैटिस्टिक्स में फॉर्मल PG डिग्री नहीं थी, जबकि उसने एम.कॉम के दौरान बिज़नेस स्टैटिस्टिक्स और इंडियन इकोनॉमिक स्टैटिस्टिक्स को मेन सब्जेक्ट के तौर पर पढ़ा था।

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बयान को 'डाइंग डिक्लेरेशन' मानने के लिए मृत्यु का आसन्न होना आवश्यक नहीं : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (4 दिसंबर) को एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि सिर्फ इस आधार पर कि बयान दर्ज करते समय मृत्यु आसन्न नहीं थी, किसी कथन को dying declaration (मरणोपरांत कथन) मानने से इनकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने मृतक महिला के ससुराल वालों को समन बहाल करते हुए यह टिप्पणी की।

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की खंडपीठ उस मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें अपीलकर्ता ने अपनी बहन को उसके पति द्वारा गोली मारने के बाद एफआईआर दर्ज कराई थी। शुरू में पीड़िता ने अपने धारा 161 दं.प्र.सं. के बयान में केवल अपने पति को आरोपी बताया था, लेकिन बाद में दिए गए 161 CrPC बयान में उसने अपनी सास, ससुर और देवर को भी आरोपी बनाया, यह आरोप लगाते हुए कि इन्होंने उसके पति को उसे गोली मारने के लिए उकसाया।

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CrPC की धारा 319 के तहत दायर आवेदन पर फैसला करते समय कोर्ट को सबूतों की क्रेडिबिलिटी टेस्ट करने की ज़रूरत नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (4 दिसंबर) को इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें मृतक के ससुराल वालों को एडिशनल आरोपी के तौर पर बुलाने से मना कर दिया गया था। कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि कोर्ट CrPC की धारा 319 के तहत किसी एप्लीकेशन पर फैसला करते समय मिनी-ट्रायल नहीं कर सकतीं या गवाह की क्रेडिबिलिटी का अंदाज़ा नहीं लगा सकतीं।

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PG और हॉस्टल को किराये पर देने पर भी लागू होगी GST छूट: सुप्रीम कोर्ट

एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आवासीय मकान के किराये पर मिलने वाली GST छूट तब भी लागू होगी जब किरायेदार उस संपत्ति को आगे सब-लीज़ देकर हॉस्टल या पेइंग गेस्ट (PG) आवास उपलब्ध कराए। कोर्ट ने कहा कि 28 जून 2017 की GST छूट अधिसूचना (एंट्री 13, नोटिफिकेशन 9/2017) में यह अनिवार्य नहीं है कि किरायेदार स्वयं उस संपत्ति का उपयोग निवास के रूप में करे, बल्कि अंतिम उपयोग आवासीय होना पर्याप्त है।

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विश्वविद्यालयों को UGC के दिशा-निर्देशों का पालन करना अनिवार्य : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में यह स्पष्ट किया कि विश्वविद्यालयों पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के दिशा-निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है। यह टिप्पणी कोर्ट ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से जुड़े एक मामले का निपटारा करते हुए की।

जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्र और जस्टिस विपुल एम. पंचोली की खंडपीठ 2013 में सहायक प्रोफेसरों की नियुक्तियों से संबंधित मामले पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ता धर्मेंद्र कुमार और बृजेश कुमार तिवारी ने इन नियुक्तियों को पारदर्शिता के अभाव और UGC विनियम, 2013—जिनमें 50% वेटेज अकादमिक रिकॉर्ड, 30% शिक्षण कौशल और केवल 20% इंटरव्यू को दिया जाना है—के अनुरूप न होने के आधार पर चुनौती दी थी।

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SIR ड्यूटी पर लगाए गए सरकारी कर्मचारी काम करने के लिए बाध्य, कठिनाई होने पर अतिरिक्त स्टाफ तैनात किया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उन राज्य सरकारों के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए, जिनके कर्मचारी चुनाव आयोग के लिए स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया में बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) के रूप में तैनात किए गए और जो इस दौरान कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं।

अदालत ने साफ कहा कि जिन कर्मचारियों को राज्य सरकारों या राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के पास प्रतिनियुक्त किया गया है, वे वैधानिक दायित्व के तहत अपनी ड्यूटी निभाने के लिए बाध्य हैं।

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S. 354C IPC | बिना इजाज़त महिला की फोटो लेना जुर्म नहीं, अगर वह कोई प्राइवेट काम नहीं कर रही हो तो: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी महिला की फ़ोटो खींचना और उसकी सहमति के बिना मोबाइल फ़ोन पर उसका वीडियो बनाना, जब वह कोई "प्राइवेट काम" नहीं कर रही हो तो भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 354C के तहत वॉयरिज्म (तांक-झांक करना) का अपराध नहीं माना जाएगा।

इस तरह, जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने एक आदमी को बरी कर दिया, जिस पर शिकायतकर्ता को उसके फ़ोटो खींचकर और अपने मोबाइल फ़ोन पर वीडियो बनाकर धमकाने का आरोप था, जिसके बारे में उसने दावा किया कि उसके काम ने उसकी प्राइवेसी में दखल दिया और उसकी इज़्ज़त को ठेस पहुंचाई।

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सिर्फ़ माता-पिता का वर्क-फ़्रॉम-होम स्टेटस बच्चे की कस्टडी तय नहीं कर सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सिर्फ़ इसलिए कि कोई माता-पिता घर से काम कर रहा है, उसे बच्चे की कस्टडी का हक़ नहीं मिल जाता। कोर्ट ने ज़ोर देकर कहा कि माता-पिता हमेशा बच्चे के साथ मौजूद नहीं रह सकते। साथ ही उन्हें रोज़ी-रोटी कमाने के लिए बाहर जाना पड़ता है, जिससे माता-पिता को बच्चे की कस्टडी लेने से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

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दिव्यांगों के अधिकार: सुप्रीम कोर्ट ने UPSC को एग्जाम से 7 दिन पहले तक स्क्राइब बदलने की इजाज़त देने का दिया निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने एक फ़ैसला सुनाया, जिससे दिव्यांग UPSC कैंडिडेट्स के लिए स्क्राइब का नाम बदलना आसान हो जाएगा और जिन्हें देखने में दिक्कत है, उनके लिए स्क्रीन रीडर सॉफ्टवेयर लागू करने में भी मदद मिलेगी।

कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक, UPSC एग्जाम में बैठने वाले कैंडिडेट्स, जो स्क्राइब के लिए एलिजिबल हैं, उन्हें एग्जाम से कम-से-कम 7 दिन पहले तक स्क्राइब का नाम बदलने की रिक्वेस्ट करने की इजाज़त होगी। इसके अलावा, UPSC अपने एग्जाम में देखने में दिक्कत वाले कैंडिडेट्स के लिए स्क्रीन रीडर सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल के लिए 2 महीने के अंदर एक प्लान बनाकर कोर्ट के सामने रखेगा।

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तलाकशुदा मुस्लिम महिला शादी में पति को दिए गए तोहफ़े वापस पाने की हकदार: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (2 दिसंबर) को कहा कि एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) एक्ट, 1986 के तहत शादी के समय अपने पति द्वारा अपने पिता से लिए गए कैश और सोने के गहने वापस पाने की हकदार है।

जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कलकत्ता हाईकोर्ट का फैसला पलट दिया, जिसमें एक तलाकशुदा मुस्लिम महिला के 7 लाख रुपये और शादी के रजिस्टर (क़ाबिलनामा) में बताए गए सोने के गहनों के दावे को खारिज कर दिया गया, जो उसके पिता ने उसके पूर्व पति को तोहफ़े के तौर पर दिए।

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आने वाले HCBA नागपुर चुनावों में महिलाओं के लिए पांच पोस्ट रिज़र्व की जाएं: सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, नागपुर के आने वाले चुनावों में वाइस प्रेसिडेंट का एक पद, ट्रेज़रर का पद और एग्जीक्यूटिव मेंबर्स के तीन पद महिला मेंबर्स के लिए रिज़र्व करने का निर्देश दिया। चीफ़ जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने कहा कि एसोसिएशन के ऑफिस बेयरर्स 12 दिसंबर, 2025 को होने वाले चुनाव में इन पांच पोस्ट को महिला मेंबर्स के लिए तय करने पर सहमत हो गए।

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Maharashtra Slum Areas Act | ज़मीन खरीदने का राज्य का अधिकार मालिक के खास अधिकार पर निर्भर: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (2 दिसंबर) को मुंबई के मलाड में मनोरंजन के मैदान (RG) के तौर पर रिज़र्व 2,005-स्क्वायर-मीटर के प्लॉट के ज़रूरी अधिग्रहण की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि महाराष्ट्र स्लम एरिया (इम्प्रूवमेंट, क्लियरेंस और रीडेवलपमेंट) एक्ट, 1971 (स्लम एक्ट) (Maharashtra Slum Areas Act) के तहत स्लम-प्रभावित प्रॉपर्टी को रीडेवलप करने के ज़मीन मालिक के खास कानूनी अधिकार को ओवरराइड करने के लिए राज्य के ज़रूरी अधिग्रहण के अधिकार का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

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इंटरव्यू के बाद चयन मानदंड नहीं बदले जा सकते : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने यह दोहराते हुए कि मूल्यांकन के अंतिम चरण के पूरा होने के बाद चयन मानदंड बदले नहीं जा सकते, जम्मू-कश्मीर सर्विसेज़ सेलेक्शन बोर्ड (JKSSB) की उस अपील को खारिज कर दिया जिसमें हाई कोर्ट द्वारा प्रभावित उम्मीदवारों के लिए एक अतिरिक्त पद सृजित करने का निर्देश दिया गया था। यह निर्देश उस स्थिति में दिया गया था जब इंटरव्यू के बाद बोर्ड ने फॉरेस्टर भर्ती के लिए मूल्यांकन मानदंड बदल दिए थे।

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सुप्रीम कोर्ट ने CBI को डिजिटल अरेस्ट स्कैम के मामलों की जांच करने का निर्देश दिया

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को CBI को डिजिटल अरेस्ट स्कैम के मामलों की जांच करने का आदेश दिया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच ने डिजिटल अरेस्ट के मुद्दे पर खुद से लिए गए मामले में यह आदेश दिया। बेंच ने कहा कि इन स्कैम पर देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी को “तुरंत ध्यान” देना चाहिए। कोर्ट ने निर्देश दिया कि CBI पहले उन मामलों की जांच करेगी, जिनमें सीधे डिजिटल अरेस्ट स्कैम की रिपोर्ट की गई, जबकि बाद के फेज में साइबर क्राइम के दूसरे तरीकों की जांच की जा सकती है।

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मुकदमा दायर होने से पहले बेची गई संपत्ति पर कुर्की नहीं लगाई जा सकती : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी संपत्ति का रजिस्टर्ड सेल डीड के माध्यम से मुकदमा दायर होने से पहले ही हस्तांतरण हो चुका है तो उस संपत्ति को सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 38 नियम 5 के तहत निर्णय से पहले कुर्क नहीं किया जा सकता। अदालत ने कहा कि इस प्रावधान के तहत कुर्की केवल उसी संपत्ति पर लगाई जा सकती है, जो मुकदमा दायर होने की तारीख पर प्रतिवादी की स्वामित्व वाली हो।

जस्टिस बी. वी. नागरत्ना एवं जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने केरल हाईकोर्ट और ट्रायल कोर्ट के फैसलों को पलटते हुए यह व्यवस्था दी, जिनमें पहले से बिक चुकी संपत्ति पर भी कुर्की को वैध माना गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आदेश 38 नियम 5 एक असाधारण और सुरक्षात्मक उपाय है लेकिन इसका दायरा उस संपत्ति तक सीमित है, जो मुकदमे की तारीख पर प्रतिवादी की हो। जो संपत्ति पहले ही असली खरीदार को हस्तांतरित हो चुकी हो उस पर इस प्रावधान के तहत कुर्की नहीं हो सकती।

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Arbitration | आर्बिट्रेटर अपॉइंट करने के ऑर्डर के खिलाफ कोई रिव्यू या अपील नहीं हो सकती: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्बिट्रेटर के अपॉइंटमेंट के ऑर्डर के खिलाफ रिव्यू या अपील की इजाज़त नहीं है। कोर्ट ने कहा, “एक बार आर्बिट्रेटर अपॉइंट हो जाने के बाद आर्बिट्रेशन प्रोसेस बिना किसी रुकावट के आगे बढ़ना चाहिए। धारा 11 के तहत किसी ऑर्डर के खिलाफ रिव्यू या अपील का कोई कानूनी प्रोविज़न नहीं है, जो एक सोची-समझी कानूनी पसंद को दिखाता है।”

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