SIR ड्यूटी पर लगाए गए सरकारी कर्मचारी काम करने के लिए बाध्य, कठिनाई होने पर अतिरिक्त स्टाफ तैनात किया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट
Amir Ahmad
4 Dec 2025 4:39 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उन राज्य सरकारों के लिए महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए, जिनके कर्मचारी चुनाव आयोग के लिए स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया में बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) के रूप में तैनात किए गए और जो इस दौरान कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। अदालत ने साफ कहा कि जिन कर्मचारियों को राज्य सरकारों या राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा भारत निर्वाचन आयोग (ECI) के पास प्रतिनियुक्त किया गया है, वे वैधानिक दायित्व के तहत अपनी ड्यूटी निभाने के लिए बाध्य हैं।
चीफ जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ ने कहा कि चुनाव आयोग के कार्यों के लिए राज्य सरकारों द्वारा उपलब्ध कराए गए अधिकारी और कर्मचारी SIR समेत सभी निर्धारित जिम्मेदारियां निभाने के लिए उत्तरदायी हैं। हालांकि, अदालत ने यह भी माना कि कई जगह कर्मचारियों पर दोहरा बोझ पड़ रहा है नियमित काम के साथ-साथ चुनाव आयोग की अतिरिक्त ड्यूटी जिससे उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
इन स्थितियों को देखते हुए कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे आवश्यकता पड़ने पर अतिरिक्त स्टाफ चुनाव आयोग को उपलब्ध कराने पर विचार करें ताकि पहले से तैनात कर्मचारियों के काम के घंटे आनुपातिक रूप से कम किए जा सकें। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि यदि किसी कर्मचारी के पास किसी विशेष कारण से चुनाव ड्यूटी से छूट मांगने का आधार है तो राज्य सरकार का सक्षम प्राधिकारी प्रत्येक मामले को व्यक्तिगत रूप से विचार कर सकता है और उस कर्मचारी की जगह किसी अन्य को नियुक्त कर सकता है। हालांकि इसका यह अर्थ नहीं होगा कि बिना वैकल्पिक व्यवस्था किए कर्मचारियों को हटा लिया जाए। राज्य सरकारों पर यह जिम्मेदारी बनी रहेगी कि वे चुनाव आयोग के पास जरूरी कार्यबल उपलब्ध कराती रहें भले ही उसकी संख्या जरुरत के मुताबिक बढ़ाई जाए।
बूथ लेवल अधिकारियों को एसआईआर ड्यूटी के दौरान जान गंवाने के मामलों में अनुग्रह राशि (एक्स-ग्रेशिया) मुआवजे से जुड़ी अन्य मांगों पर पीठ ने साफ किया कि संबंधित प्रभावित व्यक्ति या याचिकाकर्ता भविष्य में अलग से आवेदन दाखिल कर सकते हैं।
यह सुनवाई एक्टर विजय की पार्टी तमिलगा वेत्रि कझगम (TVK) की ओर से दायर उस याचिका पर हुई, जिसमें चुनाव आयोग द्वारा SIR ड्यूटी में लापरवाही के आरोप में आरपी एक्ट की धारा 32 के तहत BLOs पर हो रही कथित दंडात्मक कार्रवाइयों पर रोक लगाने की मांग की गई।
TVK की ओर से सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि उत्तर प्रदेश में कई BLOs के खिलाफ FIR दर्ज की गईं। उन्होंने कहा कि अधिकांश BLO आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और शिक्षक हैं, जिन्हें इतनी कम अवधि में SIR जैसी जिम्मेदारी निभाने के लिए पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं किया गया। वे सुबह-शाम अपनी नियमित नौकरी के बाद देर रात तक SIR का काम करने के लिए मजबूर हैं।
उन्होंने अदालत को बताया कि कई कर्मचारी सुबह स्कूल में पढ़ाते हैं। फिर पूरी रात फॉर्म भरने और जांच का काम करते हैं। उन्होंने एक दुखद घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि एक कर्मचारी ने शादी में शामिल होने के लिए छुट्टी मांगी थी, जिसे मना कर दिया गया और उसे निलंबित कर दिया गया, जिसके बाद उसने आत्महत्या कर ली। उन्होंने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में यदि कर्मचारियों पर आपराधिक मुकदमे किए जा रहे हैं तो यह बेहद कठोर है और मानवीय दृष्टिकोण से गलत है।
इस पर चीफ जस्टिस सूर्य कांत ने कहा कि चुनाव आयोग अपने आप अकेले सारे काम नहीं कर सकता और राज्य सरकारों के अधिकारियों की सहायता लेनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार इस जिम्मेदारी से भाग नहीं सकती। यदि किसी व्यक्तिगत मामले में कठिनाई है तो राज्य सरकार उस कर्मचारी को छूट दे सकती है और उसकी जगह किसी अन्य को तैनात कर सकती है।
गोपाल शंकरनारायणन ने सवाल किया कि BLOs पर FIR दर्ज करने की ज़रूरत क्यों पड़ रही है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि यह कोई नई बात नहीं है पहले भी इस तरह की कार्रवाइयां होती रही हैं। इस दौरान सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने BLOs पर पड़ रहे दबाव को कटु वास्तविकता बताते हुए सवाल उठाया कि उत्तर प्रदेश में जब चुनाव 2027 में होने हैं तो केवल एक महीने में SIR पूरा करने का दबाव क्यों बनाया जा रहा है।
हालांकि, बेंच ने यह भी उल्लेख किया कि अब तक किसी भी राज्य सरकार ने औपचारिक रूप से अदालत के समक्ष यह शिकायत नहीं की कि उन्हें SIR प्रक्रिया में व्यावहारिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
चुनाव आयोग की ओर से सीनियर एडवोकेट मणिंदर सिंह ने कहा कि तमिलनाडु में 90 प्रतिशत से अधिक फॉर्मों का वितरण पूरा हो चुका है। आयोग ने आपराधिक कार्रवाई केवल उन्हीं मामलों में की है, जहां BLOs ने अपने कर्तव्यों का पालन करने से इनकार किया या गंभीर लापरवाही बरती। इसके जवाब में कपिल सिब्बल ने कहा कि कई जगह BLO केवल फॉर्म अपलोड कर रहे हैं सत्यापन नहीं हो रहा फिर भी चुनाव आयोग कार्य पूरा होने के दावे कर रहा है।
अंत में सुप्रीम कोर्ट ने संतुलित रुख अपनाते हुए यह स्पष्ट किया कि BLOs को ड्यूटी निभानी ही होगी लेकिन अगर वे अतिभार या व्यक्तिगत कारणों से समस्या झेल रहे हैं तो राज्य सरकारें अतिरिक्त स्टाफ तैनात कर या आवश्यक छूट देकर समाधान कर सकती हैं।

