बयान को 'डाइंग डिक्लेरेशन' मानने के लिए मृत्यु का आसन्न होना आवश्यक नहीं : सुप्रीम कोर्ट

Praveen Mishra

5 Dec 2025 3:56 PM IST

  • बयान को डाइंग डिक्लेरेशन मानने के लिए मृत्यु का आसन्न होना आवश्यक नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (4 दिसंबर) को एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा कि सिर्फ इस आधार पर कि बयान दर्ज करते समय मृत्यु आसन्न नहीं थी, किसी कथन को dying declaration (मरणोपरांत कथन) मानने से इनकार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने मृतक महिला के ससुराल वालों को समन बहाल करते हुए यह टिप्पणी की।

    जस्टिस संजय करोल और जस्टिस एन. कोटिस्वर सिंह की खंडपीठ उस मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें अपीलकर्ता ने अपनी बहन को उसके पति द्वारा गोली मारने के बाद एफआईआर दर्ज कराई थी। शुरू में पीड़िता ने अपने धारा 161 दं.प्र.सं. के बयान में केवल अपने पति को आरोपी बताया था, लेकिन बाद में दिए गए 161 CrPC बयान में उसने अपनी सास, ससुर और देवर को भी आरोपी बनाया, यह आरोप लगाते हुए कि इन्होंने उसके पति को उसे गोली मारने के लिए उकसाया।

    इन गंभीर आरोपों के बावजूद पुलिस ने सिर्फ पति के खिलाफ ही चार्जशीट दाखिल की। ट्रायल के दौरान अभियोजन ने गवाहों के बयानों के आधार पर धारा 319 दं.प्र.सं. के तहत ससुराल पक्ष को अतिरिक्त आरोपियों के रूप में बुलाने का अनुरोध किया, लेकिन ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने इसे यह कहते हुए ठुकरा दिया कि उनके खिलाफ “मजबूत और ठोस साक्ष्य” नहीं हैं।

    हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि पीड़िता के बयान dying declaration नहीं माने जा सकते, क्योंकि बयान दर्ज होने और मृत्यु के बीच लगभग दो महीने का अंतर था, और न तो मजिस्ट्रेट और न ही डॉक्टर द्वारा कोई प्रमाणन किया गया था।

    सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन

    हाईकोर्ट की इस reasoning से असहमति जताते हुए न्यायमूर्ति करोल द्वारा लिखे गए निर्णय में कहा गया, “हाईकोर्ट ने यह मानकर गलती की कि सिर्फ इसलिए इन बयानों को dying declaration नहीं माना जा सकता क्योंकि मृतका की मृत्यु इन बयानों के काफी समय बाद हुई। ऐसा दृष्टिकोण कानून के अनुरूप नहीं है, क्योंकि कानून यह नहीं कहता कि बयान दर्ज करते समय व्यक्ति को मृत्यु का भय होना ही चाहिए या मृत्यु निकट होनी चाहिए। यहाँ घटना और मृत्यु के बीच का अंतर दो महीने से कम है। किसी भी स्थिति में, साक्ष्य अधिनियम की धारा 32 में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि बयान मृत्यु के कारण या उसके आसपास की परिस्थितियों से संबंधित हो।”

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