सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप : सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

सुप्रीम कोर्ट में पिछले सप्ताह (24 फरवरी, 2025 से 28 फरवरी, 2025 तक) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं सुप्रीम कोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
Motor Accident Claims | प्रत्यक्ष या पुष्टिकारक साक्ष्य के बिना सहभागी लापरवाही नहीं मानी जा सकती : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि प्रत्यक्ष या पुष्टिकारक साक्ष्य के बिना मोटर वाहन दुर्घटनाओं में सहभागी लापरवाही नहीं मानी जा सकती। कोर्ट ने जीजू कुरुविला बनाम कुंजुजम्मा मोहन (2013) 9 एससीसी 166 में निर्धारित अनुपात को लागू किया, जहां यह माना गया कि रिकॉर्ड पर किसी भी प्रत्यक्ष या पुष्टिकारक साक्ष्य के अभाव में यह नहीं माना जा सकता कि दुर्घटना दोनों वाहनों की तेज गति और लापरवाही से ड्राइविंग के कारण हुई।
केस टाइटल: प्रभावती और अन्य बनाम प्रबंध निदेशक बैंगलोर मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन
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लोन लाभ कमाने के लिए लिया गया था तो उधारकर्ता 'उपभोक्ता' नहीं है, बैंक के खिलाफ उपभोक्ता शिकायत सुनवाई योग्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि यदि लोन लाभ कमाने के उद्देश्य से लिया गया था तो उधारकर्ता उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2 (1) (डी) (ii) के तहत "उपभोक्ता" की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आएगा। न्यायालय ने माना कि उधारकर्ता द्वारा बैंक के खिलाफ दायर की गई शिकायत उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि यह "व्यावसायिक उद्देश्य के लिए विशुद्ध रूप से व्यवसाय-से-व्यवसाय लेनदेन" था।
जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि उधारकर्ता को 'उपभोक्ता' नहीं कहा जा सकता, क्योंकि विचाराधीन लेनदेन - यानी परियोजना लोन प्राप्त करना - का लाभ कमाने वाली गतिविधि से घनिष्ठ संबंध था।
केस टाइटल : मुख्य प्रबंधक सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया बनाम एड ब्यूरो एडवरटाइजिंग प्राइवेट लिमिटेड
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'अपरिवर्तनीय' शब्द के इस्तेमाल मात्र से पावर ऑफ अटॉर्नी अपरिवर्तनीय नहीं हो जाती; पावर ऑफ अटॉर्नी की प्रकृति उसके टाइटल से निर्धारित होती है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पावर ऑफ अटॉर्नी की प्रकृति उसके टाइटल से नहीं बल्कि उसके विषय से निर्धारित होती है। पावर ऑफ अटॉर्नी को चाहे सामान्य कहा जाए या विशेष, उसका नामकरण उसकी प्रकृति निर्धारित नहीं करता।
जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने कहा, “किसी पावर ऑफ अटॉर्नी में 'सामान्य' शब्द का अर्थ विषय-वस्तु के संबंध में दी गई शक्ति से है। पावर ऑफ अटॉर्नी की प्रकृति निर्धारित करने का जांच वह विषय-वस्तु है, जिसके लिए इसे निष्पादित किया गया। पावर ऑफ अटॉर्नी का नामकरण उसकी प्रकृति निर्धारित नहीं करता। यहां तक कि 'सामान्य पावर ऑफ अटॉर्नी' कहे जाने वाले पावर ऑफ अटॉर्नी में भी विषय-वस्तु के संबंध में विशेष शक्तियां दी जा सकती हैं। इसी तरह 'विशेष पावर ऑफ अटॉर्नी' में भी विषय-वस्तु के संबंध में सामान्य प्रकृति की शक्तियां दी जा सकती हैं। सार शक्ति में निहित है, विषय-वस्तु में नहीं।”
केस टाइटल: एम.एस. अनंतमूर्ति और अन्य बनाम जे. मंजुला आदि, सिविल अपील संख्या 3266-3267/2025
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S. 14 Partnership Act | साझेदार का योगदान फर्म की संपत्ति बन जाता है, कानूनी उत्तराधिकारी स्वामित्व का दावा नहीं कर सकते : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पार्टनर द्वारा पार्टनरशिप फर्म में किया गया योगदान पार्टनरशिप एक्ट, 1932 की धारा 14 (S. 14 Partnership Act) के अनुसार फर्म की संपत्ति बन जाता है और पार्टनर या उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को पार्टनर की मृत्यु या रिटायरमेंट के बाद फर्म की संपत्ति पर कोई विशेष अधिकार नहीं होगा, सिवाय पार्टनरशिप फर्म में किए गए योगदान के अनुपात में लाभ में हिस्सेदारी के।
कोर्ट ने कहा कि पार्टनरशिप फर्म को संपत्ति हस्तांतरित करने के लिए कोई औपचारिक दस्तावेज बनाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि हस्तांतरण पार्टनर द्वारा फर्म में किए गए योगदान के आधार पर होता है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि पार्टनरशिप फर्म को संपत्ति के हस्तांतरण को औपचारिक रूप देने के लिए त्याग विलेख बनाया जा सकता है।
केस टाइटल: सचिन जायसवाल बनाम मेसर्स होटल अलका राजे और अन्य
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'कस्टम अधिकारी' 'पुलिस अधिकारी' नहीं, उन्हें गिरफ़्तारी से पहले 'विश्वास करने के कारणों' की उच्च सीमा को पूरा करना होगा: सुप्रीम कोर्ट
कस्टम एक्ट (Custom Act) के दंडात्मक प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'कस्टम अधिकारी' 'पुलिस अधिकारी' नहीं हैं। उन्हें किसी आरोपी को गिरफ़्तार करने से पहले 'विश्वास करने के कारणों' की उच्च सीमा को पूरा करना होगा।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कस्टम एक्ट, CGST/SGST Act आदि में दंडात्मक प्रावधानों को CrPC और संविधान के साथ असंगत बताते हुए चुनौती देने वाली 279 याचिकाओं के एक समूह पर फैसला सुनाते हुए यह टिप्पणी की।
केस टाइटल: राधिका अग्रवाल बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी. (सीआरएल.) नंबर 336/2018 (और संबंधित मामले)
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GST Act के तहत अपराध के बारे में पर्याप्त निश्चितता होने पर टैक्स देयता के अंतिम निर्धारण के बिना भी गिरफ्तारी की जा सकती है: सुप्रीम कोर्ट
वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम (GST Act) और सीमा शुल्क अधिनियम (Customs Act) के तहत गिरफ्तारी की शक्तियों से निपटने वाले अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि गिरफ्तारी करने के लिए टैक्स देयता का क्रिस्टलीकरण अनिवार्य नहीं है। कुछ मामलों में जब इस बात की पर्याप्त निश्चितता होती है कि टैक्स चोरी की गई राशि अपराध है तो आयुक्त सामग्री और साक्ष्य के आधार पर विश्वास करने के लिए "स्पष्ट" कारण दर्ज करने के बाद गिरफ्तारी को अधिकृत कर सकता है।
कोर्ट ने कहा, "हम स्वीकार करेंगे कि सामान्य रूप से मूल्यांकन कार्यवाही कर चोरी की गई राशि आदि का परिमाणन करेगी और यह दर्शाएगी कि क्या GST Act की धारा 132 की उपधारा (1) के खंड (ए) से (डी) के अनुसार कोई उल्लंघन हुआ है और उपधारा (1) का खंड (आई) आकर्षित होता है। लेकिन ऐसे मामले हो सकते हैं, जहां मूल्यांकन के औपचारिक आदेश के बिना भी विभाग/राजस्व निश्चित है कि यह धारा 132 की उपधारा (1) के खंड (ए) से (डी) के तहत अपराध का मामला है। टैक्स चोरी की गई राशि आदि GST Act की धारा 132 की उपधारा (1) के खंड (आई) के अंतर्गत पर्याप्त निश्चितता के साथ आती है।
केस टाइटल: राधिका अग्रवाल बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी. (सीआरएल.) नंबर 336/2018 (और संबंधित मामले)
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MSME Act | खरीद आदेश 2012 में कानून की ताकत, प्राधिकरण न्यायिक पुनर्विचार के अधीन: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 (MSME Act) के अनुसार जारी खरीद आदेश 2012 में कानून की ताकत है और यह लागू करने योग्य है। कोर्ट ने आगे कहा कि MSME Act और खरीद आदेश 2012 किसी व्यक्तिगत MSE के लिए 'लागू करने योग्य अधिकार' नहीं बनाते हैं, लेकिन इसके तहत बनाए गए वैधानिक प्राधिकरण और प्रशासनिक निकाय लागू करने योग्य कर्तव्यों से प्रभावित हैं। वे जवाबदेह हैं और न्यायिक पुनर्विचार के अधीन हैं।
केस टाइटल: लाइफकेयर इनोवेशन प्राइवेट लिमिटेड बनाम भारत संघ, रिट याचिका (सी) नंबर 1301/2021
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GST Act के तहत गिरफ्तारी के खिलाफ अग्रिम जमानत आवेदन सुनवाई योग्य: सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले निर्णय खारिज किए
सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले निर्णयों को खारिज किया, जिनमें कहा गया था कि माल और सेवा कर अधिनियम (GST Act) के तहत अपराधों के संबंध में अग्रिम जमानत आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) संजीव खन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस बेला त्रिवेदी की तीन जजों की पीठ ने गुजरात राज्य बनाम चूड़ामणि परमेश्वरन अय्यर और अन्य तथा भारत भूषण बनाम जीएसटी खुफिया महानिदेशक, नागपुर क्षेत्रीय इकाई अपने जांच अधिकारी के माध्यम से मामले में दो जजों की पीठ के निर्णयों को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि GST Act के तहत समन किए गए व्यक्ति को अग्रिम जमानत आवेदन दायर नहीं किया जा सकता और संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका दायर करना ही एकमात्र उपाय है।
केस टाइटल: राधिका अग्रवाल बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी. (सीआरएल.) नंबर 336/2018 (और संबंधित मामले)
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धन से वंचित व्यक्ति को ब्याज के भुगतान से क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार, सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्स्थापन के सिद्धांत की व्याख्या की
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कहा कि जिस व्यक्ति को उस धन के उपयोग से वंचित किया जाता है जिसका वह हकदार है, उसे ब्याज के रूप में इस वंचितता के लिए मुआवजा पाने का अधिकार है।
कोर्ट ने कहा, “इस प्रकार, जब किसी व्यक्ति को उसके उस धन के उपयोग से वंचित किया जाता है जिसका वह वैध रूप से हकदार है, तो उसे उस वंचितता के लिए मुआवजा पाने का अधिकार है जिसे ब्याज या मुआवजा कहा जा सकता है। ब्याज सामान्य शब्दों में धन के उपयोग से वंचित करने के लिए दिया जाता है जो किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति की राशि के उपयोग या प्रतिधारण के लिए वापस किया जाता है।”
केस टाइटल: डॉ. पूर्णिमा आडवाणी एवं अन्य बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार एवं अन्य
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गिरफ्तार व्यक्तियों के अधिकारों पर BNSS/CrPC प्रावधान GST & Customs Acts पर भी लागू: सुप्रीम कोर्ट: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने GST & Customs Acts के तहत गिरफ्तारी की शक्तियों पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने माना कि अभियुक्त व्यक्तियों के अधिकारों पर दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)) के प्रावधान GST & Customs Acts दोनों के तहत की गई गिरफ्तारियों पर समान रूप से लागू होते हैं।
अरविंद केजरीवाल मामले में यह कथन कि धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत गिरफ्तारी तभी की जानी चाहिए जब "विश्वास करने के लिए कारण" हों, GST & Customs गिरफ्तारियों के संदर्भ में भी लागू किया गया है। कोर्ट ने कहा कि PMLA की धारा 19(1) और Customs Acts की धारा 104 वस्तुतः एक जैसी हैं। दोनों प्रावधान गिरफ्तारी की शक्ति से संबंधित हैं। कोर्ट ने GST Act के तहत गिरफ्तारी के प्रावधान के लिए भी यही माना।
केस टाइटल: राधिका अग्रवाल बनाम भारत संघ और अन्य, डब्ल्यू.पी. (सीआरएल.) नंबर 336/2018 (और संबंधित मामले)
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अभियुक्त के खुलासे के आधार पर बरामदगी साबित नहीं होती तो साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 अभियोजन पक्ष की सहायता नहीं कर सकती : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के अपराध में दोषी ठहराए गए दो व्यक्तियों को बरी करते हुए कहा कि मृतक के शव की खोज के लिए जिम्मेदार परिस्थितियां अपीलकर्ता के विरुद्ध सभी उचित संदेह से परे साबित नहीं हुई थीं। यह अवलोकन साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के संबंध में किया गया था, जो अभियुक्त से प्राप्त जानकारी के बारे में बात करती है जिसे साबित किया जा सकता है। यदि खोज को इकबालिया बयान के आगे साबित नहीं किया गया था, तो इकबालिया बयान को साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के अनुसार स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
केस: एमडी बानी आलम मजीद @ धन बनाम असम राज्य, आपराधिक अपील संख्या 1649/ 2011
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अनुपस्थिति को असाधारण अवकाश के रूप में नियमित किया गया तो कर्मचारी को 'सेवा में व्यवधान' का हवाला देकर पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिटायर सरकारी कर्मचारी को पेंशन लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता, जिसकी ड्यूटी से अनधिकृत अनुपस्थिति को असाधारण अवकाश माना गया, जिससे उसकी सेवा नियमित हो गई।
कोर्ट ने कहा कि यदि कर्मचारी के सेवा से लंबे समय तक अनुपस्थित रहने के बावजूद, उसकी अनुपस्थिति को असाधारण अवकाश मानकर उसकी सेवा को नियमित किया जाता है तो पेंशन लाभ से वंचित करने के लिए अनुपस्थिति को 'सेवा में व्यवधान' नहीं माना जा सकता।
केस टाइटल: जया भट्टाचार्य बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अन्य।
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किरायेदार मकान मालिक को दूसरी संपत्ति खाली कराने का आदेश नहीं दे सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मकान मालिक या संपत्ति का मालिक सबसे अच्छा न्यायाधीश है कि किराए के परिसर के किस हिस्से को उनकी विशिष्ट जरूरतों को पूरा करने के लिए खाली किया जाना चाहिए, और किरायेदार केवल इस आधार पर बेदखली का विरोध नहीं कर सकता है कि मकान मालिक अन्य संपत्तियों का मालिक है।
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CrPC की धारा 197 के तहत 'मान्य स्वीकृति' की कोई अवधारणा नहीं : सुप्रीम कोर्ट
पूर्व स्वीकृति के अभाव में लोक सेवक के खिलाफ मामला खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (25 फरवरी) को कहा कि निर्धारित समय के भीतर स्वीकृति प्रदान करने में स्वीकृति देने वाले प्राधिकारी की विफलता स्वीकृति को 'मान्य स्वीकृति' नहीं बनाती, क्योंकि दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 197 के तहत ऐसी कोई अवधारणा मौजूद नहीं है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने कहा, "CrPC की धारा 197 में मान्य स्वीकृति की अवधारणा की परिकल्पना नहीं की गई।"
केस टाइटल: सुनीति टोटेजा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य
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'विधायी निर्णय' न्यायिक पुनर्विचार से मुक्त नहीं; अनुच्छेद 212(1) के तहत संरक्षण केवल 'विधानमंडल में कार्यवाही' के लिए है: सुप्रीम कोर्ट
'विधायी निर्णय' और 'विधानमंडल में कार्यवाही' के बीच अंतर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में फैसले में कहा कि 'विधानमंडल में कार्यवाही' 'प्रक्रियात्मक अनियमितताओं' के आरोप के आधार पर पुनर्विचार से मुक्त है, लेकिन 'विधायी निर्णयों' की न्यायिक समीक्षा पर कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं है।
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एनके सिंह की खंडपीठ ने राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी के लिए बिहार विधान परिषद से RJD MLC सुनील कुमार सिंह के निष्कासन को खारिज करते हुए फैसले में यह टिप्पणी की।
केस टाइटल: सुनील कुमार सिंह बनाम बिहार विधान परिषद और अन्य, डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 530/2024
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'बच्चा एक सक्षम गवाह': सुप्रीम कोर्ट ने बाल गवाह की गवाही पर कानून की समरी प्रस्तुत की
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (24 फरवरी) अपनी पत्नी की हत्या के आरोपी एक व्यक्ति को बरी करने के फैसले को पलटते हुए कहा कि उसकी सात वर्षीय बेटी की गवाही विश्वसनीय है। कोर्ट ने परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर आरोपी को दोषी पाया और माना कि अपनी पत्नी की मौत की परिस्थितियों को स्पष्ट करने में उसकी विफलता, जो उसके घर की चारदीवारी के भीतर हुई थी और उस समय केवल उनकी बेटी मौजूद थी, साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के अनुसार एक प्रासंगिक परिस्थिति थी।
केस टाइटलः मध्य प्रदेश राज्य बनाम बलवीर सिंह
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Challenge To Delhi HC's Senior Designations | स्थायी समिति नामों की सिफारिश नहीं कर सकती, केवल अंक दे सकती है: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक न्यायालय की स्थायी समिति का काम सीनियर एडवोकेट के रूप में डेजिग्नेशन के लिए उम्मीदवारों को अंक देने तक सीमित है। उसके पास सिफारिशें करने का अधिकार नहीं है। जस्टिस अभय एस ओक और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा 70 वकीलों को सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित करने को चुनौती देने वाली रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
जस्टिस ओक ने कहा, "किस कानून के तहत समिति सिफारिश कर सकती है? इंदिरा जयसिंह मामले में दिए गए फैसले में सिफारिश करने का कोई अधिकार नहीं है। समिति का काम केवल अंक देना है। कृपया इंदिरा जयसिंह मामले में दिए गए फैसले को पढ़ें। सिफारिश जैसा कुछ नहीं है। दूसरे दिन हमने फैसला सुनाया कि स्थायी समिति का काम केवल अंक देने से ही खत्म हो जाता है। यही उसका काम है।"
केस टाइटल- रमन उर्फ रमन गांधी बनाम रजिस्ट्रार जनरल, दिल्ली हाईकोर्ट
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Prevention Of Corruption Act | लोक सेवक के खिलाफ FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (Prevention Of Corruption Act) के तहत लोक सेवक के खिलाफ FIR दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच अनिवार्य नहीं है। इसके अलावा, भ्रष्टाचार के मामलों में FIR दर्ज करने से पहले आरोपी को प्रारंभिक जांच का दावा करने का अधिकार नहीं है।
यह स्पष्ट है कि भ्रष्टाचार के आरोपी लोक सेवक के खिलाफ मामला दर्ज करने के लिए प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य नहीं है। हालांकि PC Act के तहत आने वाले मामलों सहित कुछ श्रेणियों के मामलों में प्रारंभिक जांच वांछनीय है, लेकिन यह न तो आरोपी का निहित अधिकार है और न ही आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए अनिवार्य शर्त है।
केस टाइटल: कर्नाटक राज्य बनाम टी.एन. सुधाकर रेड्डी