हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (15 अप्रैल, 2024 से 19 अप्रैल, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
अडल्ट्री तलाक का आधार, लेकिन यह बच्चे की कस्टडी से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि अडल्ट्री तलाक का आधार है लेकिन यह बच्चे की कस्टडी से इनकार करने का आधार नहीं हो सकता। जस्टिस राजेश पाटिल ने अडल्ट्री के आधार पर अपनी अलग रह रही पत्नी से अपनी नौ वर्षीय बेटी की कस्टडी की मांग करने वाले पूर्व विधायक के बेटे द्वारा दायर रिट याचिका खारिज कर दी।
अदालत ने कहा "अडल्ट्री किसी भी मामले में तलाक का आधार है लेकिन यह कस्टडी न देने का आधार नहीं हो सकता।"
केस टाइटल - अभिषेक अजीत चव्हाण बनाम गौरी अभिषेक चव्हाण
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
[Stamp Act] धारा 47-ए (3) गिफ्ट डीड के मामले में लागू नहीं होगी क्योंकि "बाजार मूल्य" "संपत्ति के मूल्य" के समान नहीं है : इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि जहां संपत्ति गिफ्ट डीड के माध्यम से स्थानांतरित की गई है वहां भारतीय स्टाम्प अधिनियम की धारा 47-ए (3) को लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि धारा 47-ए उन उपकरणों पर लागू होती है जहां स्टाम्प शुल्क "बाजार मूल्य" पर निर्धारित किया गया है, न कि "संपत्ति के मूल्य" पर जैसा कि गिफ्ट डीड में होता है।
भारतीय स्टाम्प अधिनियम की धारा 47-ए में प्रावधान है कि यदि किसी लिखित में बताई गई संपत्ति का बाजार मूल्य अधिनियम के तहत निर्धारित न्यूनतम मूल्य से कम है, तो पंजीकरण अधिकारी बाजार मूल्य निर्धारित करने के लिए ऐसे लिखत को पंजीकृत करने से पहले उस पर देय शुल्क के लिए इसे कलेक्टर को संदर्भित करेगा ।
केस : शील मोहन बंसल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 2 अन्य [ रिट सी नंबर- 18282 / 2023]
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
SC/ST आयोग के पास SBI को अनुकंपा के आधार पर व्यक्ति को नियुक्त करने की सिफारिश करने का कोई अधिकार नहीं: कर्नाटक हाइकोर्ट
कर्नाटक हाइकोर्ट ने माना कि कर्नाटक राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग भारतीय स्टेट बैंक को अनुकंपा के आधार पर प्रतिवादी को रोजगार प्रदान करने की सिफारिश नहीं कर सकता।
जस्टिस सचिन शंकर मगदुम की सिंगल जज बेंच ने भारतीय स्टेट बैंक द्वारा दायर याचिका स्वीकार करते हुए आयोग का वह आदेश रद्द कर दिया, जिसमें बैंक को चेतना सदाशिव कंबले सेवानगर को रोजगार प्रदान करने की सिफारिश की गई थी।
केस टाइटल- भारतीय स्टेट बैंक और कर्नाटक राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
[साइबर अपराध] यदि आईटी अधिनियम के तहत धाराएं अपराध के सभी तत्वों को संबोधित नहीं करती हैं तो साथ में आईपीसी को लागू किया जा सकता है: बॉम्बे हाईकोर्ट पूर्ण पीठ
बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 साइबर अपराधों को संबोधित करने के लिए एक विशेष अधिनियम है और इसका अत्यधिक प्रभाव पड़ता है, लेकिन यह उन मामलों में आईपीसी के आवेदन को नहीं रोकता है, जहां आईटी अधिनियम के तहत अपराधों को पर्याप्त रूप से संबोधित नहीं किया गया है।
अदालत ने माना कि धारा 43 (कंप्यूटर को नुकसान पहुंचाने के लिए जुर्माना) सहपठित धारा 66 (धोखाधड़ी या बेईमानी से कंप्यूटर को नुकसान पहुंचाना) और आईटी अधिनियम की धारा 72 (गोपनीयता और निजता का उल्लंघन) धोखाधड़ी और विश्वास का आपराधिक हनन के अपराधों के सभी तत्वों को शामिल नहीं करती है, जैसा कि आईपीसी के तहत परिभाषित किया गया है।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
सेशन कोर्ट सीआरपीसी की धारा 319 के चरण तक प्रतीक्षा किए बिना अभी तक आरोप-पत्र दाखिल नहीं किए गए अभियुक्तों के विरुद्ध संज्ञान ले सकता है: राजस्थान हाइकोर्ट
राजस्थान हाइकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि सेशन कोर्ट सीआरपीसी की धारा 319 के तहत निर्धारित चरण तक प्रतीक्षा किए बिना पुलिस द्वारा अभी तक आरोप-पत्र दाखिल नहीं किए गए अभियुक्तों के विरुद्ध संज्ञान ले सकता है।
संबंधित केस कानूनों की विस्तृत चर्चा के बाद जस्टिस अनूप कुमार ढांड की सिंगल जज बेंच इस निष्कर्ष पर पहुंची कि एडिशनल सेशन कोर्ट ने मूल अधिकार क्षेत्र की अदालत के रूप में मजिस्ट्रेट द्वारा मामले को सौंपे जाने के बाद सीआरपीसी की धारा 193 के तहत शेष अभियुक्तों के विरुद्ध सही ढंग से संज्ञान लिया।
केस टाइटल: बाबू शेख और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
मृतक सरकारी कर्मचारी के परिवार के सदस्य अनुकंपा नियुक्ति के लिए बार-बार दावा नहीं कर सकते: केरल हाइकोर्ट
केरल हाइकोर्ट ने कहा कि अधिकारियों से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे मृतक कर्मचारी के कानूनी उत्तराधिकारियों को अनुकंपा के आधार पर लगातार नियुक्ति प्रदान करें।
जस्टिस ईश्वरन एस. ने कहा, "यह नहीं माना जा सकता कि अनुकंपा नियुक्ति की योजना परिवार के सदस्यों को नियुक्ति के लिए बार-बार दावा करने की अनुमति देती है। हमें यह याद रखना चाहिए कि अनुकंपा नियुक्ति, नियुक्ति का तरीका नहीं है। इसका उद्देश्य केवल मृतक के परिवार को हुई गरीबी से उबरना है।"
केस टाइटल- बी आनंदन बनाम भारत संघ
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
जब अभियुक्त वकील की अनुपस्थिति में दोषी होने की दलील देता है तो इस बात का जोखिम रहता है कि ऐसी दलील पूरी तरह से सूचित या स्वैच्छिक नहीं हो सकती: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने दोषसिद्धि आदेश खारिज करते हुए कहा कि जब कोई अभियुक्त दोषी होने की दलील देता है, लेकिन उसका प्रतिनिधित्व कोई वकील नहीं करता है तो इस बात का जोखिम रहता है कि उसकी दलील पूरी तरह से सूचित या स्वैच्छिक नहीं हो सकती है, जो अनुच्छेद 21 में निहित निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांतों का उल्लंघन करेगी।
याचिकाकर्ताओं ने आईपीसी की धारा 188 के तहत अपनी दोषसिद्धि को इस आधार पर चुनौती दी कि उन्होंने वकील द्वारा प्रतिनिधित्व किए जाने का अवसर दिए बिना ही दोषी होने की दलील दी।
केस टाइटल- मुनीश कुमार धवन और अन्य बनाम यूटी चंडीगढ़ राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
समान तथ्यों पर परस्पर विरोधी निर्णयों को रोकने के लिए क्रॉस केसों की सुनवाई एक ही न्यायालय द्वारा की जाएगी: केरल हाइकोर्ट
केरल हाइकोर्ट ने दोहराया कि एक ही न्यायालय क्रॉस केसों की सुनवाई करेगा। क्रॉस केसों की सुनवाई से संबंधित न्यायिक मिसालों का विश्लेषण करने पर न्यायालय ने यह बताने के लिए निम्नलिखित कारण बताए कि एक ही न्यायालय क्रॉस केसों की सुनवाई करेगा।
जस्टिस के बाबू ने कहा, "न्यायिक मिसालें इस तरह की प्रक्रिया के कारणों को रेखांकित करती हैं, जैसे (a) यह किसी अभियुक्त को उसके पूरे मामले के न्यायालय में आने से पहले दोषी ठहराए जाने के खतरे को रोकती है (b) यह समान तथ्यों पर दिए जाने वाले परस्पर विरोधी निर्णयों को रोकती है (c) वास्तव में मामला और प्रति-मामला सभी इरादों और उद्देश्यों के लिए एक ही घटना के अलग-अलग या परस्पर विरोधी संस्करण हैं।"
केस टाइटल- फैजल बनाम केरल राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
खोजी पत्रकारिता को विशेष सुरक्षा प्राप्त नहीं; सार्वजनिक हित बिना किसी सच्चाई के प्रतिष्ठा कम करने वाले प्रकाशन की अनुमति नहीं देता: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा के अधिकार के साथ प्रेस की स्वतंत्रता को संतुलित करने के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि हालांकि खोजी पत्रकारिता समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, लेकिन यह व्यक्तियों को बदनाम करने की कीमत पर नहीं हो सकती है।
कोर्ट ने कहा, "एक पत्रकार के रूप में, हालांकि वह जनता को उन तथ्यों और आंकड़ों से अवगत कराने के लिए बाध्य हो सकता है जो उनके हित में हैं, लेकिन निश्चित रूप से वादी को बदनाम करने की कीमत पर इसका प्रयास नहीं किया जा सकता है। प्रेस की स्वतंत्रता, जिसे जो भाषण के एक प्रकार रूप में विकसित हो रही है, उसे निश्चित रूप से किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा के अधिकार के साथ संतुलित होना होगा।"
केस टाइटलः खंजन जगदीशकुमार ठक्कर बनाम वाहिद अली खान और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
नाबालिग सौतेली बेटी से बार-बार बलात्कार करने वाले दोषी को समय से पहले रिहाई का हकदार नहीं माना जाना चाहिए: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने बलात्कार के दोषी को समय से पहले रिहाई देने से इनकार किया, जिसने अपनी नाबालिग सौतेली बेटी पर बार-बार यौन हमला करने के परिणामस्वरूप उसे गर्भवती कर दिया।
जस्टिस निधि गुप्ता ने राहत देने से इनकार करते हुए कहा कि चंडीगढ़ में दोषियों को समय से पहले रिहाई के लिए लागू 1991 की नीति के अनुसार नाबालिग पीड़िता के साथ बार-बार बलात्कार करना समय से पहले रिहाई के प्रयोजनों के लिए नीति में परिभाषित 'जघन्य अपराध' की सूची में शामिल नहीं है।"
केस टाइटल- XXX बनाम XXX
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
प्रोडक्शन वारंट जारी करने के गंभीर परिणाम होते हैं, ट्रायल कोर्ट के लिए सीआरपीसी की धारा 267 के अनुरूप आदेश पारित करना अनिवार्य: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक पेशी आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि आदेश इस बात पर चुप है कि जिस कैदी को पेश करने का निर्देश दिया गया था, वह उस मामले में आरोपी था या जांच के लिए आवश्यक था।
सीआरपीसी की धारा 267 के अनुसार, किसी जांच, मुकदमे या अन्य कार्यवाही के दौरान यदि आपराधिक न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि जेल में बंद या हिरासत में लिए गए व्यक्ति को उसके खिलाफ किसी कार्यवाही के उद्देश्य से न्यायालय के समक्ष लाया जाना चाहिए, न्यायालय एक आदेश दे सकता है जिसमें जेल के प्रभारी अधिकारी को ऐसी कार्यवाही के प्रयोजन के लिए ऐसे व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष पेश करने की आवश्यकता होगी।
केस टाइटल: नवीन डबास @ बाली बनाम हरियाणा राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
धारा 50, पीएमएलए | ईडी सोने का अधिकार छीनकर किसी व्यक्ति का रात में बयान दर्ज नहीं कर सकती: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने पीएमएलए की धारा 50 के तहत बुलाए गए व्यक्तियों के बयान देर रात दर्ज करने की प्रवर्तन निदेशालय की प्रैक्टिस की आलोचना की। कोर्ट ने नींद के अधिकार को बुनियादी मानवीय आवश्यकता के रूप में रेखांकित किया।
कोर्ट ने कहा, ''सोने का अधिकार'/'पलक झपकाने का अधिकार' एक बुनियादी मानवीय आवश्यकता है, इसे प्रदान न करना किसी व्यक्ति के मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है। यह किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, उसकी मानसिक क्षमताओं, संज्ञानात्मक कौशल आदि को ख़राब कर सकता है। इस प्रकार बुलाए गए उक्त व्यक्ति को उचित समय से परे एजेंसी द्वारा उसके बुनियादी मानव अधिकार यानी सोने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है। बयान आवश्यक रूप से कामकाज के घंटों के दौरान दर्ज किए जाने चाहिए, न कि रात में जब व्यक्ति की संज्ञानात्मक कौशल क्षीण हो सकता है।”
केस टाइटल- राम कोटुमल इसरानी, बनाम प्रवर्तन निदेशालय और अन्य।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
यदि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री अपराध का संकेत देती है तो समझौते का हलफनामा आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले को रद्द करने का कोई आधार नहीं: केरल हाइकोर्ट
केरल हाइकोर्ट ने धारा 306 के तहत दंडनीय अपराध के लिए कार्यवाही रद्द करने की याचिका खारिज कर दी। इसमें कहा गया कि यदि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री अपराध के होने का संकेत देती है तो पीड़ित के रिश्तेदार द्वारा दिया गया हलफनामा मामला रद्द करने का आधार नहीं हो सकता।
जस्टिस ए बदरुद्दीन ने कहा, “जब मामले के तथ्यों और अन्य सामग्रियों पर रखे गए तथ्यों से प्रथम दृष्टया यह पता चलता है कि आरोपी व्यक्तियों द्वारा आईपीसी की धारा 306 के तहत दंडनीय अपराध किया गया तो केवल इसलिए कि पहले आरोपी की बहन ने समझौते के बारे में हलफनामा दायर किया, उसे रद्द करने का आधार नहीं होगा।”
केस टाइटल- निमेश और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
अगर कोई प्रेमी प्रेम में असफल होने के कारण आत्महत्या करता है तो महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता: दिल्ली हाइकोर्ट
दिल्ली हाइकोर्ट ने कहा कि जहां कोई प्रेमी प्रेम में असफल होने के कारण आत्महत्या करता है, वहां महिला को पुरुष को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। जस्टिस अमित महाजन ने फैसला सुनाया कि कमजोर या दुर्बल मानसिकता वाले व्यक्ति द्वारा लिए गए गलत निर्णय के लिए किसी अन्य व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
अदालत ने कहा, "अगर कोई प्रेमी प्रेम में असफल होने के कारण आत्महत्या करता है, कोई स्टूडेंट परीक्षा में अपने खराब प्रदर्शन के कारण आत्महत्या करता है, कोई मुवक्किल इसलिए आत्महत्या करता है, क्योंकि उसका मामला खारिज हो गया है, तो महिला, परीक्षक, वकील को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।”
केस टाइटल- आरुषि गुप्ता बनाम दिल्ली राज्य सरकार और अन्य संबंधित मामले
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
मजिस्ट्रेट "शिकायत के सच या झूठ का पता लगाने के लिए" अभिव्यक्ति का उपयोग सीआरपीसी के Chapter XVI के तहत आगे बढ़ने के इरादे को इंगित करता है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि संहिता की धारा 202 के संदर्भ में शिकायत की सच्चाई या झूठ का पता लगाने के लिए अभिव्यक्ति का उपयोग करना दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के chapter 16 के तहत आगे बढ़ने की मंशा को इंगित करता है, जो शिकायतों की पूछताछ और जांच से संबंधित है।
जस्टिस संजय धर ने आगे विस्तार से बताया कि संहिता की धारा 156 (3) के तहत निर्देश जारी करते समय "सच या झूठ का पता लगाने के लिए" अभिव्यक्ति का उपयोग नहीं किया जाता है।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत पेंशन कर्मचारी का संवैधानिक अधिकारः झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने हाल ही में बिरसा एग्रिकल्चर यूनिवर्सिटी बनाम झारखंड राज्य के मामले में एक लेटर्स पेटेंट अपील पर दिए निर्णय में माना कि किसी कर्मचारी को पेंशन लाभ से वंचित करना, उसे संविधान के अनुच्छेद 300 ए के तहत पेंशन के रूप में संवैधानिक अधिकार से वंचित करना है।
कार्यवाहक चीफ जस्टिस श्री चंद्रशेखर और जस्टिस नवनीत कुमार की खंडपीठ ने कहा कर्मचारी पेंशन अपनी सराहनीय सेवाओं के कारण अर्जित करता है। निर्णय में अदालत ने कहा कि प्रतिवादी ने लगभग तीन दशकों तक यूनिवर्सिटी में काम किया है, इसलिए पेंशन लाभ के लिए उनकी पिछली सेवाओं पर विचार किया जाना चाहिए।
केस टाइटलः बिरसा एग्रिकल्चरल यूनिवर्सिटी बनाम झारखंड राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पिछली याचिका खारिज होने के बाद भी लगातार अग्रिम जमानत याचिकाएं सुनवाई योग्य: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 438 के तहत दायर की गई लगातार जमानत याचिकाएं तब भी सुनवाई योग्य हैं, जब पिछली याचिका खारिज कर दी गई हो।
जस्टिस सुमीत गोयल ने कहा, "दूसरी/लगातार अग्रिम जमानत याचिकाएं सुनवाई योग्य हैं, चाहे पिछली याचिका वापस ले ली गई हो/अभियोजन पक्ष के लिए दबाव न डाले जाने के कारण खारिज कर दी गई हो/या फिर पहले की याचिका को गुण-दोष के आधार पर खारिज कर दी गई हो।"
केस टाइटल- XXX बनाम XXX
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
[चेक अनादरण] जब आरोपी का बचाव विश्वसनीय न हो तो अदालत यह अनुमान लगा सकती है कि उसने लेनदेन के लिए चेक जारी किया था: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि एनआई एक्ट के तहत पंजीकृत चेक के अनादरण के मामले में जब आरोपी का बचाव विश्वसनीय नहीं है तो अदालत यह निष्कर्ष निकाल सकती है कि उसने शिकायतकर्ता के साथ लेनदेन किया था और उक्त लेनदेन के लिए चेक जारी किया गया था।
जस्टिस एस राचैया की सिंगल जज बेंच ने अधिनियम की धारा 138 के तहत निचली अदालत द्वारा पारित दोषसिद्धि के आदेश के खिलाफ रंगास्वामी की याचिका को खारिज करते हुए यह बात कही। पीठ ने कहा कि यह कानून का स्थापित सिद्धांत है कि आरोपी को अपने मामले को साबित करने के लिए ठोस सबूत पेश करके धारणा का खंडन करना होगा।
केस टाइटल: रंगास्वामी और रवि कुमार
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
पत्नी द्वारा अपने माता-पिता की आर्थिक मदद करने पर पति का आपत्ति करना क्रूरता के समान: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पति अपने माता-पिता को आर्थिक रूप से समर्थन देने की पत्नी के कृत्य पर आपत्ति जताता है, तो यह क्रूरता होगी। जस्टिस रोहित आर्य और जस्टिस संजीव एस कलगांवकर की पीठ ने यह भी कहा कि पत्नी के नियोक्ताओं से शिकायत करना कि उन्होंने उसकी (पति की) अनुमति के बिना उसे नौकरी पर कैसे रखा, पत्नी के साथ "गुलाम" के रूप में व्यवहार करना, उससे उसकी पहचान का अधिकार छीनना है। इस प्रकार क्रूरता बनती है।
केस टाइटलः पवन कुमार बनाम डॉ बबीता जैन
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
समझौते में उल्लिखित व्हाट्सएप नंबर और ईमेल पते पर सर्विस वैध सर्विस: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने माना कि पार्टियों के बीच समझौते में उल्लिखित व्हाट्सएप नंबर और ईमेल पते पर याचिका की तामील एक वैध सेवा है। जस्टिस प्रतीक जालान की सिंगल जज बेंच ने यह टिप्पणी की।
पार्टियों ने 21 मार्च 2018 को एक पट्टा समझौता किया, जिसमें याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी नंबर 1 को एक वाहन पट्टे पर दिया। समझौते का खंड 10.2 मध्यस्थता खंड था। पक्षों के बीच विवाद उत्पन्न हो गया, जिसके कारण याचिकाकर्ता को मध्यस्थता का आह्वान करना पड़ा। उसने अपनी ओर से अग्रेषित 3 नामों में से मध्यस्थ की नियुक्ति का प्रस्ताव रखा, हालांकि, प्रतिवादी की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। जिसके बाद याचिकाकर्ता ने मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
केस टाइटल: लीज प्लान इंडिया प्राइवेट लिमिटेड बनाम रुद्रकाश फार्मा डिस्ट्रीब्यूटर, ARB.P. NO. 1273/2023
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
मध्यस्थ के समक्ष प्रभावी समाधान उपलब्ध होने पर रिट सुनवाई योग्य नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर पीठ ने माना कि जब याचिकाकर्ता मध्यस्थ के समक्ष प्रभावी संविदात्मक उपाय का लाभ उठाने में विफल रहे तो रिट पर विचार नहीं किया जाएगा।
जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया की पीठ ने कहा कि केवल इसलिए कि नामित मध्यस्थ प्रतिवादी निगम का प्रबंध निदेशक है, यह नहीं माना जा सकता है कि वह मध्यस्थ के रूप में अपने कार्यों का निष्पक्ष रूप से निर्वहन नहीं कर पाएगा।
केस टाइटलः रमेश कुमार खंडेलवाल बनाम मध्य प्रदेश राज्य, WP No 11123/2019
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
भारत में कानून का शासन, बिना किसी आपराधिक मामले के नागरिकों को कस्टडी में लेकर उनसे पूछताछ नहीं की जा सकती: जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाइकोर्ट ने शोपियां जिला मजिस्ट्रेट द्वारा 26 वर्षीय व्यक्ति जफर अहमद पार्रे पर लगाया गया निवारक निरोध आदेश रद्द कर दिया। इसमें कहा गया कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में पुलिस और मजिस्ट्रेट से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वे नागरिकों को कस्टडी में लेकर उनसे पूछताछ करें और उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किए बिना निवारक निरोध का आधार बनाएं।
केस टाइटल- जफर अहमद पार्रे बनाम जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
नाम से पहचाने जाने का अधिकार व्यक्ति की पहचान के लिए मौलिक: दिल्ली हाइकोर्ट
दिल्ली हाइकोर्ट ने हाल ही में कहा कि किसी व्यक्ति का नाम उसकी पहचान का प्रतीक है और नाम से पहचाने जाने का अधिकार व्यक्ति की पहचान के लिए मौलिक है।
जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा, “यह मौलिक आवश्यकता है और न्यायालय को इस संबंध में याचिका दायर किए जाने पर यह सुनिश्चित करना होगा कि यदि अनुरोध वास्तविक है तो उसे स्वीकार किया जाए।"
केस टाइटल- प्रगति श्रीवास्तव बनाम सचिव, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
बिना खेल के मैदानों वाले स्कूलों को बंद कर देना चाहिए: हाईकोर्ट का राज्य सरकार को निर्देश
केरल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है वह प्रत्येक श्रेणी के स्कूलों में आवश्यक खेल के मैदान और आवश्यकतानुसार निकटवर्ती सुविधाओं को निर्धारित करते हुए दिशानिर्देश तैयार करे।
जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन ने कहा, “शिक्षा का अधिकार बच्चों का मौलिक अधिकार है। शिक्षा में खेल और अन्य पाठ्येतर गतिविधियां शामिल हैं। यदि स्कूलों में खेलों के लिए कोई उपयुक्त खेल का मैदान नहीं है, जैसा कि केरल शिक्षा नियम (केईआर) में प्रदान किया गया है तो सरकार को उन स्कूलों को बंद करने सहित कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।”
केस टाइटल: प्रकाश एन बनाम जीडब्ल्यूएलपी स्कूल, थेवयूर साउथ और अन्य।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
अवमानना के तहत नोटिस जारी करने के आदेश के खिलाफ अंतर-अदालत अपील सुनवाई योग्य नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि अवमानना क्षेत्राधिकार में बैठे सिंगल जज द्वारा पारित पक्षकारों को नोटिस जारी करने के आदेश के खिलाफ इंट्रा-कोर्ट अपील सुनवाई योग्य नहीं है।
अवमानना याचिका में, सिंगल जज ने नोटिस जारी किए और जिला प्रशासन को निर्देश दिया कि वह उन व्यक्तियों के निर्माण को न रोके, जो 2022 के आदेश संख्या 334 से पहली अपील में पक्षकार नहीं हैं। अंतरिम आदेश से व्यथित होकर, न्यायालय के समक्ष इस आधार पर अवमानना अपील दायर की गई कि विभिन्न प्रतिवादियों के प्रतिशोध भी एफएएफओ में हाईकोर्ट के निर्णय से बाध्य थे।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
S. 397 CrPc | यदि पुनर्विचार न्यायालय संज्ञेय अपराध में पुलिस जांच के लिए मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर देता है तो एफआईआर रद्द नहीं होगी: बॉम्बे हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ
बॉम्बे हाइकोर्ट ने हाल ही में माना कि उसके पुनर्विचार क्षेत्राधिकार में न्यायालय सीआरपीसी की धारा 156(3) के तहत पुलिस को संज्ञेय अपराध की जांच करने के लिए मजिस्ट्रेट के आदेश के अनुसार दर्ज एफआईआर रद्द नहीं कर सकता।
जस्टिस रेवती मोहिते-डेरे, जस्टिस एनजे जमादार और जस्टिस शर्मिला यू देशमुख की फुल बेंच ने कहा कि एफआईआर जांच एजेंसी की वैधानिक शक्ति है और यदि पुनर्विचार न्यायालय मजिस्ट्रेट का आदेश रद्द करता है तो इसे रद्द नहीं किया जा सकता।
केस टाइटल - अरुण पी. गिध बनाम चंद्रप्रकाश सिंह और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
PMLA Act| मनी लॉन्ड्रिंग राष्ट्र की प्रगति में बाधा डालती है, धारा 45 के तहत जमानत की कठोरता को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए: पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट ने 1626.7 करोड़ रुपये की वित्तीय धोखाधड़ी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया।
न्यायालय ने कहा कि धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA Act) की धारा 45 के तहत जमानत देने के लिए बहुत ही उच्च मानदंड निर्धारित किए गए। धारा 45 के अनुसार, धन शोधन मामले में आरोपी को जमानत तभी दी जा सकती है, जब दो शर्तें पूरी हों - पहली नजर में यह संतुष्टि होनी चाहिए कि आरोपी ने कोई अपराध नहीं किया है और जमानत पर रहते हुए उसके कोई अपराध करने की संभावना नहीं है।
केस टाइटल- सुरजीत कुमार बंसल बनाम केंद्रीय जांच ब्यूरो और अन्य