हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (सात मार्च, 2022 से 11 मार्च, 2022) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी को पेंशन लाभ देने में देरी के लिए अनिश्चित वित्तीय स्थिति कोई आधार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि निगम की अनिश्चित वित्तीय स्थिति सेवानिवृत्त कर्मचारियों के कारण होने वाले पेंशन लाभों के भुगतान में देरी का आधार नहीं हो सकती। जस्टिस इरशाद अली की खंडपीठ ने शिव कुमार बहादुर सिंह द्वारा दायर एक याचिका पर यह टिप्पणी की।
बहादुर ने ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 की धारा 4 के संशोधित प्रावधानों के मद्देनजर ब्याज सहित ग्रेच्युटी की पूरी राशि का भुगतान करने के लिए सरकारी अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की।
केस शीर्षक: शिव कुमार बहादुर सिंह बनाम यूपी राज्य, के माध्यम से प्रिं. सचिव डेयरी विकास और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
धारा 409 आईपीसीः अभियोजन पक्ष को साबित करना चाहिए कि अभियुक्त ने "लोक सेवक की क्षमता" में सौंपी गई संपत्ति के मामले में भरोसे का आपराधिक उल्लंघन किया है: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि "धारा 409 आईपीसी के तहत एक अपराध का गठन करने के लिए, अभियोजन को यह साबित करने की आवश्यकता है कि आरोपी को एक लोक सेवक की क्षमता में संपत्ति सौंपी गई थी और उसने उस संपत्ति के लिए आपराधिक विश्वासघात किया था।"
जस्टिस संदीप शर्मा ने यह टिप्पणी नायब तहसीलदार की अदालत में एक प्रोसेस सर्वर के रूप में कार्यरत श्याम लाल द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई करते हुए की थी, जब उन्होंने पार्टियों द्वारा उन्हें न्यायालय के एक अधिकारी की क्षमता से सौंपे गए जुर्माने का गलत इस्तेमाल किया था।
केस शीर्षक: श्याम लाल बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
माल के मालिक द्वारा किसी भी धोखाधड़ी के लिए वाहन का मालिक वैकल्पिक रूप से उत्तरदायी नहीं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab & Haryana High Court) ने कहा कि वाहन का मालिक जो केवल वाहन को छोड़ने की मांग कर रहा है, वह जब्त किए गए सामान (Goods) के लिए जुर्माना देने के लिए उत्तरदायी नहीं है।
न्यायमूर्ति अजय तिवारी और पंकज जैन की खंडपीठ ने देखा है कि वाहन के मालिक को माल पर कर और जुर्माना भरने के लिए मजबूर करने का मतलब यह होगा कि सीजीएसटी अधिनियम की धारा 130 की उप धारा 2 के प्रावधान के तहत वाहन के मालिक को भी किसी भी गलत घोषणा/धोखाधड़ी के लिए माल के मालिक द्वारा जुर्माना भरना पड़ेगा।
केस का शीर्षक: विजय ममगैन बनाम हरियाणा राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
स्थानांतरण योग्य नौकरी में कर्मचारी को एक ही स्थान पर पदस्थ रहने का कोई निहित अधिकार नहीं है, अदालतें तुरंत स्थानांतरण आदेश में हस्तक्षेप ना करें: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कि स्थानांतरण योग्य नौकरी में एक कर्मचारी को एक ही स्थान पर तैनात रहने का कोई निहित अधिकार नहीं है, कहा है कि अदालतों को तब तक सार्वजनिक हित में और प्रशासनिक कारणों से किए गए स्थानांतरण आदेश में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, जब तक कि स्थानांतरण आदेश किसी अनिवार्य वैधानिक नियम के उल्लंघन में या दुर्भावना के आधार पर नहीं किया जाता है।
जस्टिस मनमोहन और जस्टिस नवीन चावला की खंडपीठ ने कहा कि अगर अदालतें सरकार या उसके अधीनस्थ अधिकारियों द्वारा जारी किए गए दिन-प्रतिदिन के स्थानांतरण आदेशों में हस्तक्षेप करना जारी रखती हैं तो प्रशासन में पूरी तरह से अराजकता होगी, जो सार्वजनिक हित के अनुकूल नहीं होगा।
केस शीर्षक: अमरजीत सिंह डागर बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
'कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे को धारा 436-ए सीआरपीसी के तहत विचाराधीन कैदी नहीं माना जा सकता': मध्य प्रदेश हाईकोर्ट
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने हाल ही में कहा कि कानून का उल्लंघन करने वाले एक बच्चे (सीसीएल) को धारा 436-ए सीआरपीसी के तहत विचाराधीन कैदी के रूप में नहीं माना जा सकता है, क्योंकि किशोर न्याय (देखभाल और बच्चों का संरक्षण) अधिनियम, 2015 में गिरफ्तारी/ कारावास/ हिरासत पर विचार नहीं किया गया है।
जस्टिस आनंद पाठक दरअसल निचली अदालत द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए एक सीसीएल द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण से निपट रहे थे। निचली अदालत ने सीसीएल की अपील खारिज कर दी थी और किशोर न्याय बोर्ड द्वारा पारित आदेश की पुष्टि की गई थी।
केस शीर्षकः विधि का उल्लंघन करने वाला बालक बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
बहू अनुकंपा के आधार पर उचित मूल्य की दुकान के आवंटन की हकदारः इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना है कि एक बहू अनुकंपा के आधार पर उचित मूल्य की दुकान (फेयर प्राइस शॉप) का आवंटन पाने की पूरी तरह हकदार है।
जस्टिस मनीष माथुर की खंडपीठ ने हाईकोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए एक फैसले पर भरोसा किया है, जिसमें यह माना गया था कि एक विधवा बहू अनुकंपा के आधार पर उचित मूल्य की दुकान के आवंटन के लिए योग्य/पात्र है।
केस का शीर्षक-श्रीमती शर्मा देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य(अतिरिक्त मुख्य सचिव, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति लखनऊ के माध्यम से) व अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
जमानत आवेदनों पर फैसला करते समय मुकदमे की सुनवाई में देरी एक महत्वपूर्ण विचार: गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने पुष्टि की है कि "जमानत आवेदनों पर निर्णय लेने में एक महत्वपूर्ण कारक जिसे निश्चित रूप से अदालत द्वारा ध्यान में रखा जाना चाहिए, वह है मुकदमे के समापन में विलंब।" उक्त टिप्पणियों के साथ जस्टिस गीता गोपी की खंडपीठ ने केंद्रीय माल और सेवा अधिनियम, 2017 के तहत एक आरोपी को जमानत दे दी।
केस शीर्षक: मोहसिन सलीम भाई कुरैशी बनाम गुजरात राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
सशस्त्र बल न्यायाधिकरण अधिनियम अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट की न्यायिक पुनरीक्षा की शक्ति को कम नहीं कर सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सशस्त्र बल न्यायाधिकरण अधिनियम, 2007 संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट को दी गई न्यायिक पुनरीक्षा (judicial review) की शक्ति को न तो हटाता है और न ही हटा सकता है।
जस्टिस अंजनी कुमार मिश्रा और जस्टिस विक्रम डी चौहान की खंडपीठ ने कहा, "भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत क्षेत्राधिकार असाधारण और विवेकाधीन प्रकृति का है। यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि अनुच्छेद 226 और 227 के तहत हाईकोर्ट द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियां संवैधानिक शक्तियां हैं और इसे कानून द्वारा बाहर नहीं किया जा सकता है। सशस्त्र बल न्यायाधिकरण अधिनियम संविधान के तहत शक्तियों को कम नहीं कर सकता है।"
केस शीर्षक: राम हर्ष बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और 4 अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
चतुर्थ श्रेणी के किसी भी कर्मचारी को सामान्यत: जिले से बाहर ट्रांसफर नहीं किया जाना चाहिए: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने सोमवार को कहा कि चतुर्थ श्रेणी के किसी भी कर्मचारी को सामान्य रूप से जिले से बाहर ट्रांसफर नहीं किया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की खंडपीठ ने चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के खिलाफ पारित एक स्थानांतरण आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की क्योंकि यह नोट किया गया कि यह प्रकृति में दंडात्मक है।
केस का शीर्षक - माया बनाम यूपी राज्य के माध्यम से प्रिं. सचिव चिकित्सा स्वास्थ्य एंड अन्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
अज्ञात व्यक्तियों से खतरा होने पर संपत्ति के कब्जे की रक्षा के लिए 'जॉन डो' निषेधाज्ञा आदेश पारित किया जा सकता है: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने अज्ञात व्यक्तियों (जिसे जॉन डो आदेश के रूप में भी जाना जाता है) को बेंगलुरु में एक महिला की संपत्ति पर शांतिपूर्ण कब्जे में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए अस्थायी निषेधाज्ञा का आदेश पारित किया है।
जस्टिस श्रीनिवास हरीश कुमार ने मीरा अजित की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, "आदेश XXXIX नियम 1 (ए) सीपीसी में कहा गया है कि वाद के किसी भी पक्ष के खिलाफ अस्थायी निषेधाज्ञा का आदेश दिया जा सकता है। खंड (बी) और (सी) के अनुसार, वादी के पक्ष में और प्रतिवादी के खिलाफ निषेधाज्ञा दी जा सकती है। वाद में पक्षकारों के नाम और पहचान का खुलासा होना चाहिए। लेकिन इस मामले में जो स्थिति सामने आई है, अगर अज्ञात व्यक्ति/ओं द्वारा वादी के कब्जे को खतरा है तो क्या यह कहना संभव है कि निषेधाज्ञा नहीं दी जा सकती है। मुझे नहीं लगता कि निषेधाज्ञा से इनकार किया जा सकता है, यदि परिस्थितियां ऐसी हैं कि अज्ञात व्यक्तियों द्वारा वादी के कब्जे के लिए गंभीर खतरा है। "
केस शीर्षक: मीरा अजित बनाम जॉन डो उर्फ अशोक कुमार
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
वास्तविक नुकसान/क्षति के बिना केवल अनुबंध के उल्लंघन के मामले में अनुबंध अधिनियम की धारा 73, 74 के तहत कोई मुआवजा नहीं: केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में फैसला सुनाया है कि अनुबंध के उल्लंघन के मामले में, भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 73 और 74 के तहत कोई मुआवजा नहीं दिया जा सकता है, जब तक कि इस तरह के उल्लंघन के परिणामस्वरूप विपरीत पक्ष को वास्तविक नुकसान या क्षति न हो।
न्यायमूर्ति पी.बी. सुरेश कुमार और न्यायमूर्ति सीएस सुधा ने कहा कि 'नुकसान या क्षति' शब्द अनिवार्य रूप से इंगित करेगा कि उल्लंघन की शिकायत करने वाले पक्ष को वास्तव में कुछ नुकसान या क्षति का सामना करना पड़ा होगा।
केस का शीर्षक: मेसर्स देवचंद कंस्ट्रक्शन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
संपत्ति कुर्क करने का अधिकार जिला मजिस्ट्रेट को, बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका आयुक्त को नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि संपत्ति को अटैच करने का अधिकार जिला मजिस्ट्रेट के पास है, न कि न कि बेंगलुरु महानगर पालिका आयुक्त के पास। जस्टिस एसपी संदेश की सिंगल बेंच ने कहा कि बीबीएमपी के आयुक्त के पास विशेष जेएमएफसी (बिक्री कर) न्यायालय के आदेश के अनुसार संपत्ति को कुर्क करने का कोई अधिकार नहीं है और इसे सीआरपीसी की धारा 421 (1) (बी) के तहत जिला कलेक्टर के माध्यम से लागू किया जाना चाहिए।
केस शीर्षक: मेसर्स प्रशांति संबद्ध बनाम वाणिज्यिक कर उपायुक्त
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अधिनियम- यदि कोई प्रथम दृष्टया अपराध नहीं बनता है तो अग्रिम जमानत दी जा सकती है: गुजरात हाईकोर्ट
गुजरात हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 323, 332, 504, 506(2), 114 और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(2)(5-ए) के तहत अपराधों के लिए जमानत आवेदन को रद्द करने के खिलाफ दायर एक आपराधिक अपील स्वीकार कर लिया है।
जस्टिस बीएन करिया की खंडपीठ ने कहा है कि अपीलकर्ता ने यहां शिकायतकर्ता की जाति के बारे में किसी भी अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया था और शिकायतकर्ता की जाति से भी अवगत नहीं था।
केस शीर्षक: चौधरी प्रवीणभाई रेवाभाई बनाम गुजरात राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
धारा 377 आईपीसी तब भी आकर्षित होती है, जब योनि के अलावा शरीर के किसी भी हिस्से में यौन इरादे से पेनेट्रेशन होता है: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 के दायरे को विस्तृत करते हुए माना है कि यह अपराध उस स्थिति में भी आकर्षित होता है, जहां यौन इरादे से किसी व्यक्ति के शरीर के किसी अन्य भाग में भी पेनेट्रेशन किया जाता है।
जस्टिस विनोद एस भारद्वाज की खंडपीठ ने कहा कि धारा 375 आईपीसी (बलात्कार/ लिंग-योनि प्रवेश) के तहत जो विचार किया गया है, उसके अलावा यौन इरादे से शरीर के किसी हिस्से में प्रवेश की स्थिति में धारा 377 आकर्षित होती है।
केस शीर्षक- अंकित और अन्य बनाम हरियाणा राज्य
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
भ्रष्टाचार ही गरीबी, असमानता, निरक्षरता, सामाजिक अशांति जैसी सभी समस्याओं का मूल कारण; यह एक दीमक की तरह है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने हाल ही में समाज में भ्रष्टाचार के बढ़ते खतरे पर महत्वपूर्ण टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने कहा कि भ्रष्टाचार हर सिस्टम में एक दीमक की तरह है। एक बार सिस्टम में प्रवेश करने के बाद यह और बड़ा होता जाता है।
अदालत ने टिप्पणी की, "भ्रष्टाचार हर व्यवस्था में एक दीमक है। एक बार यह व्यवस्था में प्रवेश कर जाता है तो यह बढ़ता ही जाता है। आज यह बड़े पैमाने पर है और एक दिनचर्या बन गया है। भ्रष्टाचार गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा, प्रदूषण, बाहरी खतरे, अविकसितता, असमानता, सामाजिक अशांति जैसी सभी समस्याओं का मूल कारण है। खतरे को ध्यान में रखना होगा। अपराध समाज के खिलाफ है। न्यायालय को अभियुक्तों के मौलिक अधिकारों को समाज की वैध चिंताओं के साथ-साथ जांच एजेंसी को बड़े पैमाने पर संतुलित करना है।"
केस का शीर्षक - डॉ. राजीव गुप्ता एम.डी. बनाम स्टेट ऑफ यू.पी. के माध्यम से एसपी सीबीआई/एसीबी नवल किशोर
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
शिक्षक की ओर से दायर रिकवरी सूट पर सुनवाई सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र में : कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने माना कि सिविल कोर्ट के पास वेतन बकाया का दावा कर रही एक शिक्षक के मुकदमे पर सुनवाई और फैसला लेने का अधिकार है, यदि शिक्षक को स्कूल बंद होने के कारण कार्यमुक्त कर दिया गया और स्कूल प्रबंधन ने उसके बकाया वेतन के दावों पर कोई आदेश पारित नहीं किया है।
जस्टिस डॉ एचबी प्रभाकर शास्त्री और जस्टिस एस रछैया की खंडपीठ ने हाल ही में सिविल कोर्ट द्वारा पारित 9 नवंबर, 2020 के आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें उसने एक उर्दू शिक्षक की याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया था कि उसे इस पर सुनवाई का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं था। सूट की कोशिश करने के लिए।अदालत ने निचली अदालत को कानून के मुताबिक मामले में आगे बढ़ने का निर्देश दिया।
केस शीर्षक: राबिया अब्दुल हमीद बेपारी बनाम अध्यक्ष, स्कूल प्रबंध समिति, वोल्कार्ट अकादमी।
आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
अदालतों को स्टांप शुल्क की कमी पर प्री-अप्वाइंटमेंट स्टेज में मध्यस्थता को रोकने की आवश्यकता नहीं है: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को सिंगल जज एके मेनन के माध्यम से विचार किया कि क्या ऑर्बिट्रेशन को प्री-अप्वाइंटमेंट स्टेज और प्री-रिफरेंस स्टेज में आयोजित किया जाना चाहिए या क्या पार्टी को रिफरेंस के बाद प्रक्रियाओं का पालन करने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए और अपनी चुनौतियों को आगे बढ़ाने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए।
केस शीर्षक: विवेक मेहता और अन्य। वी / एस। केआरआर डिजाइन एवं विकास एवं अन्य।