हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Update: 2023-10-29 05:00 GMT
High Courts

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (23 अक्टूबर 2023 से 27 अक्टूबर 2023) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

विवाह योग्य आयु से कम होने पर भी लिव-इन जोड़े को सुरक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि विवाह योग्य आयु से कम होने के कारण लिव-इन जोड़े को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत सुरक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा।

जस्टिस अरुण मोंगा ने कहा, "प्रत्येक नागरिक के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करना, संवैधानिक दायित्वों के अनुसार, राज्य का परम कर्तव्य है। मानव जीवन के अधिकार को बहुत ऊंचे स्थान पर माना जाना चाहिए, चाहे कुछ भी हो नागरिक का नाबालिग होना या बालिग होना। केवल यह तथ्य कि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता विवाह योग्य उम्र के नहीं हैं, उन्हें भारत के नागरिक होने के उनके मौलिक अधिकार से वंचित नहीं किया जाएगा, जैसा कि भारत के संविधान में परिकल्पित है।"

टाइटलः एक्स बनाम पंजाब राज्य और अन्य।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

कर्मचारियों की संख्या निर्दिष्ट सीमा से कम हो तो भी ईएसआई अधिनियम के तहत प्रतिष्ठान अंशदान देने के लिए बाध्य: झारखंड हाईकोर्ट

झारखंड हाई‌कोर्ट ने दोहराया है कि अगर कोई संगठन कर्मचारी राज्य बीमा निगम अधिनियम, 1948 के तहत कवर है तो वहां काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या महत्वपूर्ण नहीं है, और ऐसे प्रतिष्ठान कर्मचारी सदस्यता ‌डिपॉजिट को ईएसआई फंड में योगदान करने के लिए बाध्य हैं। न्यायालय ने कहा, इससे अधिनियम के उद्देश्य की पूर्ति सुनिश्चित होगी, जो बीमारी, मातृत्व, रोजगार चोटों और संबंधित मामलों में लाभकारी उपाय प्रदान करना है।

केस टाइटल: बेल्डीह क्लब जमशेदपुर बनाम झारखंड राज्य और अन्य

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

धारा 256 सीआरपीसी | आरोपी को बरी करने की शक्ति को कार्यकारी, सब डिविजनल या डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट धारा 133 के तहत लागू नहीं कर सकतेः केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि कार्यकारी मजिस्ट्रेट, सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट या डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट उपद्रव की रोकथाम के लिए सशर्त आदेश जारी करके सीआरपीसी की धारा 133 से 138 के तहत शक्तियों का उपयोग करते हुए धारा 256 सीआरपीसी के तहत किसी आरोपी को बरी नहीं कर सकते हैं।

जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 133 की कार्यवाही जिला, सब-डिव‌िजनल या कार्यकारी मजिस्ट्रेट को पुलिस रिपोर्ट या अन्य जानकारी के आधार पर उपद्रव हटाने के लिए सशर्त आदेश जारी करने का अधिकार देती है, लेकिन शिकायत के आधार पर नहीं।

केस टाइटल: शम्सुद्दीन बनाम केरल राज्य

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

आवेदन के समय आपराधिक मामला लंबित होना पुलिस विभाग में पद से इनकार करने का वैध आधार : कर्नाटक हाईकोर्ट

कर्नाटक हाईकोर्ट ने नारायण जमादार द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसका पुलिस विभाग में एक पद के लिए आवेदन खारिज कर दिया गया था क्योंकि आवेदन दाखिल करने के समय उसके खिलाफ एक आपराधिक मामला लंबित था।

जस्टिस मोहम्मद नवाज और जस्टिस राजेश राय के की खंडपीठ ने कहा, “ हालांकि याचिकाकर्ता को उक्त अपराधों से बरी कर दिया गया है, आवेदन दाखिल करने की तारीख तक उसके खिलाफ आपराधिक मामला लंबित था और आवेदन में जो बताया जाना आवश्यक था, उसका खुलासा नहीं किया गया था, इसलिए इस रिट याचिका में कोई योग्यता नहीं है और तदनुसार, रिट याचिका खारिज की जाती है।”

केस टाइटल : नारायण जमादार और कर्नाटक राज्य पुलिस विभाग

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

यूपी कोर्ट ने 2010 के गैंगस्टर एक्ट मामले में पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी को दोषी पाया, 10 साल जेल की सजा सुनाई

उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर जिले की एक एमपी/एमएलए अदालत ने कल पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी को 2010 में राज्य पुलिस द्वारा दर्ज किए गए गैंगस्टर मामले में दोषी ठहराया। मुख्तार अंसारी पर पेशे से शिक्षक कपिल देव सिंह की हत्या की साजिश रचने का आरोप था, जिनकी 2009 में हत्या कर दी गई थी।

उन्हें 10 साल की जेल और 500 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई है। उन पर 5 लाख का जुर्माना भी लगाया गया है। 60 वर्षीय अंसारी पांच बार के पूर्व विधायक हैं, जो वर्तमान में बांदा जिला जेल में बंद हैं। पिछले 13 महीनों में यह उनकी छठी सजा है ।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

एक ही संपत्ति पर एक अन्य विवाद में आरोपी के साथ उसके संबंध के आधार पर बाद के खरीदार के खिलाफ आपराधिक मामला कायम नहीं रखा जा सकता : तेलंगाना हाईकोर्ट

तेलंगाना हाईकोर्ट ने माना है कि सूट संपत्ति के बाद के खरीदार के खिलाफ एक आपराधिक मामला कायम नहीं किया जा सकता, क्योंकि खरीदार उस व्यक्ति से संबंधित है जो उक्त संपत्ति पर एक अन्य विवाद में आरोपी है।

जस्टिस ईवी वेणुगोपाल ने यह भी पाया कि वास्तव में शिकायतकर्ता ने लगभग 12 वर्षों के अंतराल के बाद आपराधिक कार्यवाही शुरू की थी, जबकि सिविल कार्यवाही वर्ष 1999 में अंतिम चरण में पहुंच गई थी, और याचिकाकर्ता ने 2002 में मुकदमा संपत्ति खरीदी थी।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

आईपीसी की धारा 354सी के तहत 'अपराधी' ने पीड़िता के यौन साथी को सहमति से बनाए गए रिश्ते से बाहर रखा: तेलंगाना हाईकोर्ट

तेलंगाना हाईकोर्ट ने माना कि आईपीसी की धारा 354-सी के तहत उल्लिखित 'कोई भी पुरुष' 'अपराधी' या 'अपराधी के इशारे पर व्यक्ति' में वह व्यक्ति शामिल नहीं है, जिसके साथ महिला सहमति से यौन संबंध बना रही है। जस्टिस के सुरेंदर ने कहा कि सेशन जज के निष्कर्षों के अनुसार वीडियो किसी तीसरे पक्ष को शेयर नहीं किया गया, इस प्रकार आईपीसी की धारा 354-सी के तहत अन्य मानदंडों को पूरा करने में विफल रहा।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

इविडेंस एक्ट की धारा 25 और 26 के तहत पुलिस के सामने दिए गए इकबालिया बयानों को साक्ष्य के रूप में स्वीकार करना ट्रायल को ख़राब करता है: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को स्पष्ट रूप से माना कि अभियुक्तों द्वारा पुलिस के सामने दिए गए इकबालिया बयानों को स्वीकार करना, जिन पर इविडेंस एक्ट की धारा 25 और 26 के तहत रोक लगाई गई है, मुकदमे को ख़राब कर सकता है और आरोपी को बरी कर सकता है।

डॉ. जस्टिस ए.के. जयशंकरन नांबियार और डॉ. जस्टिस कौसर एडप्पागथ की खंडपीठ ने इस प्रथा को हतोत्साहित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के कई उदाहरणों के बावजूद, अभियुक्तों के संपूर्ण स्वीकारोक्ति बयानों को स्वीकार करने की निचली अदालतों की प्रथा की आलोचना की।

केस टाइटल: के. बाबू बनाम केरल राज्य

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अप्रासंगिक आधार पर हिरासत के आदेश संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं, यह हिरासत में लिए गए लोगों को अदालत से राहत पाने का अधिकार देता है: जेएंडके एंड एल हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि हिरासत आदेश में अप्रासंगिक या गैर-मौजूद आधारों को शामिल करना हिरासत में लिए गए लोगों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, जिससे उन्हें अदालत से राहत पाने की अनुमति मिलती है।

जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने बताया कि इस तरह के समावेशन दो महत्वपूर्ण अधिकारों का उल्लंघन करते हैं: पहला, अप्रासंगिक या गैर-मौजूद आधारों को शामिल करना प्राथमिक अधिकार का उल्लंघन करता है, और दूसरा, स्पष्ट आधारों के बीच अस्पष्ट आधारों को शामिल करना द्वितीयक अधिकार का उल्लंघन करता है।

केस टाइटल: फ़ैयाज़ अहमद वानी बनाम केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और अन्य।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

पॉश अधिनियम के तहत किसी विभागीय प्राधिकारी के पास अपील करने के लिए कोई सक्षम प्रावधान नहीं है : मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में इस बात पर जोर दिया है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न निवारण अधिनियम, 2013 (पीओएसएच अधिनियम) के तहत गठित आंतरिक शिकायत समिति द्वारा एक बार रिपोर्ट तैयार करने के बाद विभागीय प्राधिकरण के पास आगे कोई अपील नहीं की जा सकती है। जस्टिस सुजॉय पॉल की एकल न्यायाधीश पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि पीओएसएच अधिनियम की धारा 18 स्पष्ट रूप से प्रावधान करती है कि अपील केवल अदालत या न्यायाधिकरण में ही की जाएगी।

केस टाइटल : मुकेश खम्परिया बनाम मध्य प्रदेश राज्य थ्री। इसके सचिव गृह मंत्रालय एवं अन्य विभाग।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

एनसीबी पुलिस स्टेशन नहीं, आरोपी इस आधार पर जमानत नहीं मांग सकता कि एजेंसी ने सामान्य डायरी में गोपनीय जानकारी दर्ज नहीं की: गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने एनडीपीएस अधिनियम के तहत एक आरोपी को जमानत देने से इनकार करते हुए स्पष्ट किया है कि नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) एक पुलिस स्टेशन नहीं है, और इस प्रकार एक आरोपी इस आधार पर जमानत नहीं मांग सकता है कि एजेंसी सामान्य डायरी में कॉन्फ़िडेंशियल जानकारी को डॉक्यूमेंट करने करने में विफल रही है।

जस्टिस उमेश ए त्रिवेदी ने कहा, "नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो कोई पुलिस स्टेशन नहीं है, जिसमें रिकॉर्डिंग के लिए वे डायरियां रखी जाएं, और इसलिए, पुलिस स्टेशन में दर्ज की जाने वाली संज्ञेय अपराध से संबंधित जानकारी जमानत के लिए आवेदन के समर्थन में किसी काम की नहीं होगी।"

केस टाइटल: मुहम्मद तय्यब शेख पुत्र मुहम्मद निहाल शेख बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

सीआरपीसी की धारा 320 | शिकायतकर्ता द्वारा अपराध के शमन के लिए आवेदन दाखिल करने मात्र से कोई स्वत: बरी नहीं हो जाता: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को व्यवस्था दी कि कथित अपराधों के समझौते के लिए शिकायतकर्ता द्वारा आवेदन दाखिल करने मात्र से आरोपी स्वत: बरी नहीं हो जाता। जस्टिस के. बाबू की पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 320 अपराधों को दो भागों में वर्गीकृत करती है- उप-धारा (1) के तहत कुछ अपराधों को सूचीबद्ध किया गया है, जिन्हें न्यायालय की अनुमति के बिना समझौता किया जा सकता है। वहीं, उपधारा (2) के अंतर्गत कुछ अपराध सूचीबद्ध हैं, जिनका शमन केवल न्यायालय की अनुमति से ही किया जा सकता है।

केस टाइटल: जॉनसन स्टीफ़न बनाम चिंचुमोल और अन्य।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

पसंद के व्यक्ति से शादी करने का अधिकार संविधान के तहत संरक्षित, यहां तक कि परिवार के सदस्य भी आपत्ति नहीं कर सकते: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले में अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध शादी करने वाले एक जोड़े को पुलिस सुरक्षा प्रदान करते हुए कहा कि जहां पक्षकार बालिग हैं, उनकी पसंद के व्यक्ति से शादी करने का उनका अधिकार भारत के संविधान तहत संरक्षित है और यहां तक कि उनके परिवार के सदस्यों के ऐसे रिश्ते पर आपत्ति नहीं कर सकते। जस्टिस तुषार राव गेडेला ने कहा कि जोड़े के विवाह के अधिकार को किसी भी तरह से कमजोर नहीं किया जा सकता और राज्य अपने नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक संवैधानिक दायित्व के तहत है।

केस टाइटल : श्रीमती. दीपाली और अन्य बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और अन्य

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

आरोपों का जवाब देने में कर्मचारी की विफलता विभाग को जांच में साक्ष्य उपलब्ध कराने से बरी नहीं कर देती: पटना हाईकोर्ट

पटना हाईकोर्ट ने एक निर्णायक फैसले में सीनियर जेल इंस्पेक्टर की बर्खास्तगी को पलट दिया। उक्त बर्खास्तगी को रद्द करते हुए इस बात पर जोर दिया गया कि वित्तीय अनियमितताओं से संबंधित आरोपों का जवाब देने में दोषी कर्मचारी की विफलता मात्र विभाग को जांच के दौरान साक्ष्य प्रदान करने के अपने कर्तव्य से मुक्त नहीं कर देती।

चीफ जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस राजीव रॉय की खंडपीठ ने कहा, "केवल इसलिए कि दोषी कर्मचारी वित्तीय अनियमितताओं से संबंधित आरोपों का जवाब देने में विफल रहा, विभाग जांच में साक्ष्य का नेतृत्व करने और सक्षम बनाने की जिम्मेदारी से मुक्त नहीं है। जांच अधिकारी को जांच में मिले सबूतों के आधार पर अपराध का निष्कर्ष निकालना होगा।''

केस टाइटल: देवेन्द्र प्रसाद बनाम बिहार राज्य

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

वैवाहिक घर में पत्नी को पति की शर्तों पर रहने के लिए संपत्ति या बंधुआ मजदूर के रूप में नहीं माना जा सकता: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि वैवाहिक घर में, पत्नी को पति द्वारा लगाई गई शर्तों के तहत रहने के लिए किराए की संपत्ति या बंधुआ मजदूर के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। पीठ ने यह भी कहा कि यदि पति बिना किसी पर्याप्त कारण के पत्नी से उसके साथ के अलावा किसी अन्य स्थान पर रहने की अपेक्षा करता है और यदि पत्नी उसकी मांग का विरोध करती है, तो यह पत्नी द्वारा की गई क्रूरता नहीं होगी। जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए कहा कि पत्नी की अपने पति से उसे अपने साथ रखने की स्वाभाविक और उचित मांग है।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

आरबीआई ऋणकर्ता के खाते की शेष राशि के बारे में बैंक के ज्ञान, 'क्षतिपूर्ति के अधिकार' के आवेदन का निर्धारण करेगा: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने हाल में माना कि बैंक को वन टाइम सेटलमेंट देते समय ऋणकर्ता के खाते में शेष राशि की जानकारी थी या नहीं, और क्या बैंक 'क्षतिपूर्ति के अधिकार' (Right to Recompense) का प्रयोग कर सकता है, इन सवालों पर बैंक को खुद ही फैसला करना होता है। 'क्षतिपूर्ति का अधिकार' एक उपकरण है, जिसका बैंक और वित्तीय संस्थान तनावग्रस्त संपत्तियों (Stressed Assets) के लिए ऋण पर दी गई छूट की रिकवरी के लिए उपयोग करते हैं।

केस टाइटल: कुरियन ई. कलाथिल बनाम फेडरल बैंक लिमिटेड और अन्य।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

[ओबीसी अधिवक्ता अनुदान योजना] हमें ओबीसी श्रेणी से भी सर्वश्रेष्ठ वकीलों और न्यायाधीशों की आवश्यकता है: केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट ने बुधवार को टिप्पणी की कि ओबीसी वर्ग से संबंधित जूनियर वकीलों का समर्थन करना राज्य का कर्तव्य है। हाईकोर्ट ओबीसी अधिवक्ता अनुदान योजना के तहत कानून की किताबें, गाउन और पोशाक/यूनिफॉर्म खरीदने के लिए ओबीसी वर्ग के जूनियर वकीलों को बारह हजार रुपये के वार्षिक अनुदान का दावा करने के लिए अधिसूचना जारी नहीं करने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

न्यूज़क्लिक अरेस्ट केस : दिल्ली कोर्ट ने यूएपीए मामले में एचआर हेड और प्रबीर पुरकायस्थ को 02 नवंबर तक पुलिस हिरासत में भेजा

दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को न्यूज़क्लिक के संस्थापक प्रबीर पुरकायस्थ और एचआर हेड अमित चक्रवर्ती को पोर्टल पर चीन समर्थक प्रचार के लिए धन प्राप्त करने के आरोपों के बाद दर्ज यूएपीए मामले में 02 नवंबर तक पुलिस हिरासत में भेज दिया। पटियाला हाउस कोर्ट की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश हरदीप कौर ने न्यायिक हिरासत की अवधि समाप्त होने पर दोनों को अदालत में पेश किए जाने के बाद आदेश पारित किया। दिल्ली पुलिस ने पुरकायस्थ और चक्रवर्ती के लिए 9 दिन की कस्टडी रिमांड मांगी थी।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

पैरोल पर फरार होने की संभावना मात्र अस्थायी रिहाई को अस्वीकार करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने हाल ही में हत्या के लिए दोषी ठहराए गए और आजीवन कारावास की सजा पाए एक व्यक्ति को यह कहते हुए पैरोल दे दी कि कैदी के फरार होने की संभावना अस्थायी रिहाई को अस्वीकार करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है। जस्टिस लिसा गिल और जस्टिस रितु टैगोर की खंडपीठ ने इस बात पर जोर दिया कि पैरोल पर फरार होने की संभावना ही इनकार के लिए पर्याप्त आधार नहीं है, क्योंकि यह राज्य की सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरे का संकेत नहीं देता है।

केस टाइटल : कपिल बनाम हरियाणा राज्य और अन्य

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

शपथ ग्रहणकर्ता या ऑफिशियल ट्रांसलेटर द्वारा प्रमाणित अंग्रेजी ट्रांसलेशन की कॉपी ए एंड सी एक्ट की धारा 47(2) का पर्याप्त अनुपालन है: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने माना कि किसी ऑफिशियल ट्रांसलेटर द्वारा प्रमाणित अंग्रेजी ट्रांसेलशन की कॉपी दाखिल करना ए एंड सी एक्ट की धारा 47 (2) की आवश्यकता को पूरा करता है, जो यह प्रावधान करता है कि यदि कोई अवार्ड किसी विदेशी भाषा में है तो अवार्ड की ट्रांसलेटिड कॉपी विदेशी अवार्ड के प्रवर्तन के उद्देश्य से दायर की जानी है और इसे अवार्ड धारक के देश के कांसुलर या राजनयिक एजेंट द्वारा प्रमाणित किया जाना है।

केस टाइटल: सीआरपी खाद्य आयात-निर्यात बनाम कश्मीर केसर मार्ट, एक्सा नंबर 2026/01

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

केवल पत्नी की दलीलों में दोष बताकर पति भरण-पोषण के दायित्व से नहीं बच सकता: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता-पति द्वारा दायर आपराधिक पुनर्विचार आवेदन खारिज करते हुए रेखांकित किया कि भरण-पोषण का दावा करने वाली निराश्रित पत्नी को केवल उसकी दलीलों में दोषों के आधार पर पीड़ित नहीं किया जा सकता है। पति ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसने सीआरपीसी की धारा 127 के तहत भरण-पोषण राशि कम करने के उसके आवेदन को खारिज कर दिया था।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अंतर-धार्मिक जोड़े के 'लिव-इन' रिलेश्नशिप को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बताया 'टाइमपास', कहा- ईमानदारी के बिना मोह अधिक होता है

अंतरधार्मिक लिव-इन जोड़े द्वारा लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के कारण पुलिस से सुरक्षा की मांग करने वाली याचिका खारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि ऐसे रिश्ते बिना किसी ईमानदारी के विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण के बारे में हैं और वे अक्सर टाइमपास में परिणत होते हैं।

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

खेड़ा में मुस्लिम पुरुषों की पिटाई के केस में गुजरात हाईकोर्ट ने अवमानना आदेश में कहा, 'कानून और व्यवस्था के संरक्षकों को नागरिक स्वतंत्रता का हनन करने वाला नहीं बनना चाहिए

गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार को गुजरात पुलिस के चार अधिकारियों को न्यायालय की अवमानना (सुप्रीम कोर्ट के डीके बसु दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए) का दोषी पाया और उन्हें पिछले साल खेड़ा जिले में मुस्लिम पुरुषों को सार्वजनिक रूप से पीटने के लिए 14 दिनों के साधारण कारावास की सजा सुनाई। गुजरात हाईकोर्ट ने कहा कि कानून और व्यवस्था के संरक्षकों को नागरिक स्वतंत्रता का हनन करने वाला नहीं बनना चाहिए।

केस टाइटल - जहिरमिया रहमुमिया मलिक बनाम गुजरात राज्य

आगे पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Tags:    

Similar News