हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

Shahadat

1 Nov 2025 10:00 PM IST

  • हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र

    देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (27 अक्टूबर, 2025 से 31 अक्टूबर, 2025) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।

    संदिग्ध लेन-देन मिलने पर पुलिस बैंक अकाउंट फ्रीज कर सकती है; राहत के लिए मजिस्ट्रेट से संपर्क किया जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहा है कि यदि जांच के दौरान पुलिस को किसी बैंक खाते में संदिग्ध लेन-देन का संदेह होता है, तो वह उस खाते को फ्रीज करने (जमाने) का निर्देश दे सकती है। जांच पूरी हो जाने के बाद, संबंधित व्यक्ति मजिस्ट्रेट के समक्ष जाकर अपने खाते को डी-फ्रीज (खोलने) का अनुरोध कर सकता है।

    जस्टिस अजीत कुमार और जस्टिस स्वरूपमा चतुर्वेदी की खंडपीठ ने तेस्ता अतुल सेतलवाड़ बनाम गुजरात राज्य (2018) मामले का हवाला देते हुए कहा,“यदि जांच के दौरान पुलिस यह निष्कर्ष निकालती है कि किसी बैंक खाते में संदिग्ध लेन-देन हुआ है, तो वह बैंक को ऐसे खाते को फ्रीज करने का निर्देश दे सकती है। यह फ्रीजिंग जांच के परिणाम पर निर्भर करेगी। प्रभावित पक्ष जांच पूरी होने के बाद और यदि चार्जशीट दायर हो जाती है, तो मजिस्ट्रेट से यह अनुरोध कर सकता है कि खाते को केवल उतनी राशि तक सीमित किया जाए जो अपराध से संबंधित है।”

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    बिना टिकट व्यक्तियों को ट्रेन में चढ़ने से रोकने में रेलवे की विफलता सहभागी लापरवाही: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने माना कि बिना टिकट और अनधिकृत व्यक्तियों को ट्रेन में चढ़ने से रोकने में रेलवे की विफलता सहभागी लापरवाही है, इसलिए रेलवे को भीड़भाड़ के कारण मरने वाले वास्तविक यात्री के आश्रितों को मुआवजा देने का दायित्व है।

    जस्टिस हिमांशु जोशी की पीठ ने कहा, रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 123(सी) और 124ए के तहत रेलवे यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और आकस्मिक मृत्यु सहित किसी भी अप्रिय घटना के लिए क्षतिपूर्ति करने के लिए बाध्य है, जहां लापरवाही या वैधानिक कर्तव्य का उल्लंघन सिद्ध होता है। बिना टिकट यात्रियों के ट्रेन में चढ़ने पर निगरानी और नियंत्रण रखने में रेलवे अधिकारियों की विफलता, उनकी देखभाल और सतर्कता के कर्तव्य में एक गंभीर चूक है, जिससे वैध यात्रियों का जीवन और सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। टिकट वाली यात्रा की पवित्रता को प्रवेश नियंत्रणों के सख्त प्रवर्तन और नियमित निगरानी द्वारा बनाए रखा जाना चाहिए। इस संबंध में किसी भी चूक को क्षमा नहीं किया जा सकता, खासकर जब इससे निर्दोष लोगों की जान जाती हो। इसलिए यह माना जाता है कि ऐसी विफलता रेलवे प्रशासन की ओर से सहभागी लापरवाही है।

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    2013 Rape Case | राजस्थान हाईकोर्ट ने आसाराम को 6 महीने की अंतरिम ज़मानत दी, उनकी 'बेहोशी की हालत' का हवाला दिया

    राजस्थान हाईकोर्ट ने आसाराम की सज़ा छह महीने के लिए निलंबित की, जिन्हें 2013 के एक बलात्कार मामले में दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उनकी मेडिकल स्थिति को देखते हुए कि वह "बेहोशी की हालत" में थे और जेल में आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं।

    जोधपुर सेशन कोर्ट ने अप्रैल, 2018 में आसाराम को 2013 में अपने आश्रम में नाबालिग से बलात्कार के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। अदालत याचिकाकर्ता की सज़ा को निलंबित करने की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसकी दोषसिद्धि और सज़ा के खिलाफ अपील 2018 से लंबित है।

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    JJ Act : FIR दर्ज करने का निर्देश देने का अधिकार बाल कल्याण समिति को नहीं, केवल उल्लंघन की रिपोर्ट दे सकती है : इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 (JJ Act) के तहत गठित बाल कल्याण समिति (CWC) के पास पुलिस को FIR दर्ज करने का निर्देश देने की कोई शक्ति नहीं है। जस्टिस चवन प्रकाश ने यह भी कहा कि यदि CWC बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 का उल्लंघन पाती है तो वह केवल किशोर न्याय बोर्ड या संबंधित पुलिस प्राधिकरण को रिपोर्ट भेज सकती है।

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    आधार कार्ड पर मद्रास हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, कहा- आधार कार्ड में बदलाव कराना मौलिक अधिकार

    मद्रास हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि आधार कार्ड धारक को अपने कार्ड में विवरण में बदलाव की मांग करने का मौलिक अधिकार है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जनसांख्यिकीय जानकारी में बदलाव की सुविधा स्थानीय स्तर पर उपलब्ध होनी चाहिए।

    जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन ने अपने आदेश में कहा कि चूंकि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ प्राप्त करने का अधिकार मौलिक अधिकार है और आधार कार्ड वह अनिवार्य माध्यम है, जिसके जरिए यह लाभ प्राप्त किया जा सकता है, इसलिए कार्ड धारक को आधार अधिनियम की धारा 31 के तहत अपने कार्ड में जनसांख्यिकीय जानकारी को बदलने की मांग करने का सहवर्ती मौलिक अधिकार है।

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    मामले की जानकारी होने पर पावर ऑफ अटॉर्नी धारक निष्पादन याचिका पर हस्ताक्षर कर सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर कोई पावर ऑफ अटॉर्नी धारक (Power of Attorney Holder) मामले की पूरी जानकारी रखता है और अदालत को यह भरोसा हो जाए कि वह तथ्य जानता है, तो वह डिक्री-होल्डर (जिसके पक्ष में कोर्ट का फैसला हुआ है) की जगह निष्पादन याचिका (Execution Application) पर हस्ताक्षर और सत्यापन कर सकता है।

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    अलग हुए दंपत्ति के बीच समझौता न होने पर वैवाहिक FIR रद्द नहीं की जा सकती: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अगर अलग हुए दंपत्ति के बीच समझौता न हो तो वैवाहिक FIR रद्द नहीं की जा सकती। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने 2005 में दुबई में रहने वाले एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने से इनकार कर दिया, जिसमें उस पर पत्नी द्वारा दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाया गया। यह फैसला तब सुनाया गया, जब कोर्ट ने पाया कि दंपत्ति के बीच हुए समझौता समझौते पर कभी अमल नहीं किया गया।

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    ड्यूटी पर तैनात लोक सेवक को चोट पहुंचाना गंभीरता से लिया जाना चाहिए, 6 महीने की सज़ा ज़्यादा नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि सरकारी ड्यूटी के दौरान किसी लोक सेवक को लगी चोट को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और ऐसे मामलों में छह महीने की सज़ा ज़्यादा नहीं है। जस्टिस राकेश कैंथला ने टिप्पणी की: "छह महीने की सज़ा ज़्यादा नहीं कही जा सकती, क्योंकि एक लोक सेवक अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए घायल हुआ और ऐसे कृत्यों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।"

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    RTE Act के तहत विद्यालय प्रबंधन समिति वैधानिक निकाय, वित्तीय अनियमितताओं की वसूली किसी शिक्षक से नहीं की जा सकती: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चों के निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 (RTE Act) की धारा 21 के तहत विद्यालय प्रबंधन समिति वैधानिक निकाय है और वित्तीय अनियमितताओं की वसूली किसी एक शिक्षक पर नहीं थोपी जा सकती। कोर्ट ने आगे टिप्पणी की कि प्रबंधन समिति ही सामूहिक रूप से सरकारी अनुदानों की निगरानी करती है, इसलिए अन्य सदस्यों को शामिल किए बिना केवल सदस्य पर वसूली का दायित्व डालना, प्राकृतिक न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों का उल्लंघन है।

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    अगर आरोप अलग हों तो दूसरी FIR पर रोक नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 'दूसरी FIR' (Second FIR) पर लगी रोक को स्पष्ट करते हुए कहा कि यदि बाद में दर्ज की गई FIR नए और अलग अपराधों पर आधारित हो तथा नए तथ्य उजागर करती हो, तो उसे दर्ज करने पर कोई कानूनी रोक नहीं है।

    जस्टिस चंद्र धारी सिंह और जस्टिस लक्ष्मी कांत शुक्ला की खंडपीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के T.T. Antony बनाम स्टेट ऑफ केरल (2001) फैसले में एक ही घटना या लेनदेन पर दूसरी FIR दर्ज करने पर प्रतिबंध लगाया गया था, लेकिन जब नई FIR किसी भिन्न घटना, नई साजिश या नए तथ्यों से जुड़ी हो, तो यह रोक लागू नहीं होती।

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    अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान जैसे मदरसे भी राज्य के शैक्षणिक नियमों से मुक्त नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत अल्पसंख्यकों को प्रदत्त अधिकार—अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका संचालन करने का—राज्य सरकार द्वारा बनाए गए तार्किक नियमों और शैक्षणिक मानकों के ढांचे के भीतर ही प्रयोग किया जाना चाहिए, ताकि शिक्षा की गुणवत्ता और उत्कृष्टता बनी रहे। जस्टिस मंजू रानी चौहान की पीठ ने गोरखपुर स्थित मदरसा अरबिया शम्सुल उलूम सिकरीगंज (एहाता नवाब) के नाज़िम/प्रबंधक द्वारा बिना किसी सरकारी दिशा-निर्देश के जारी की गई सहायक अध्यापक और क्लर्क की नियुक्ति संबंधी विज्ञप्ति को रद्द करते हुए कहा—

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    गजराज फैसले के दायरे से बाहर भूमिधारक 10% आबादी भूमि के हकदार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह फैसला दिया है कि जिन भूमिधारकों ने Gajraj and Others vs. State of UP and Others (2011) में दाखिल याचिकाओं में पक्षकार के रूप में भाग नहीं लिया था, उन्हें 10% आबादी (अबादी) भूमि के आवंटन का लाभ नहीं मिल सकता, जैसा कि उस फैसले में निर्देशित किया गया था।

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    अनुकंपा नियुक्ति वित्तीय संकट के तहत निचले पद की स्वीकृति उच्च पद के दावे पर रोक नहीं लगाती: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट की जस्टिस संजीव कुमार और जस्टिस संजय परिहार की खंडपीठ ने कहा कि जब निचले पद पर अनुकंपा नियुक्ति वित्तीय दबाव में स्वीकार की जाती है और अपेक्षित योग्यता रखने वाले आवेदक द्वारा तुरंत चुनौती दी जाती है तो विबंधन का सिद्धांत लागू नहीं होता।

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    विघटित कंपनी की ओर से प्रस्तुत चेकों के अनादर के लिए NI Act की धारा 138 के तहत कार्यवाही मान्य नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई पक्षकार विघटित कंपनी द्वारा प्रस्तुत चेक प्रस्तुत करता है तो उसके द्वारा जारी किए गए चेकों के अनादर के लिए उस पर परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI Act) की धारा 138 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

    जस्टिस अरुण मोंगा ने कहा, “एक बार जब कोई कंपनी समाप्त हो जाती है और विघटित हो जाती है तो वह अपना न्यायिक अस्तित्व खो देती है। उसकी ओर से किया गया कोई भी कार्य तब तक शून्य हो जाता है, जब तक कि कंपनी को कंपनी अधिनियम की धारा 252 के तहत बहाल नहीं कर दिया जाता। परिणामस्वरूप, ऐसी विघटित कंपनी के नाम पर या उसके द्वारा जारी किए गए चेक को कानूनी रूप से प्रवर्तनीय लिखत नहीं माना जा सकता, क्योंकि कानून में कोई वैध आहरणकर्ता या खाताधारक मौजूद नहीं है। NI Act की धारा 138 के तहत कार्यवाही, जो वैध रूप से जारी किए गए चेक को पूर्वधारणा करती है, ऐसी परिस्थितियों में मान्य नहीं हो सकती।”

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    दिल्ली हाईकोर्ट ने गुजारा भत्ता निर्धारित करने के लिए प्रमुख सिद्धांत निर्धारित किए, फैमिली कोर्ट से तर्कसंगत आदेश देने का आह्वान किया

    दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को पत्नी और बच्चे के लिए गुजारा भत्ता निर्धारित करते समय अपनाए जाने वाले प्रमुख सिद्धांतों को निर्धारित किया। साथ ही राष्ट्रीय राजधानी में पारिवारिक और महिला न्यायालयों से तर्कसंगत आदेश देने का भी आह्वान किया। जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वैवाहिक मामलों में अंतरिम गुजारा भत्ता देने के आदेश आय और परिस्थितियों के स्पष्ट और तर्कसंगत आकलन पर आधारित होने चाहिए, न कि अनुमान या अनुमान पर।

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    नीलामी क्रेता को "जैसी है जहां है" बिक्री में बकाया राशि का सत्यापन करना होगा, अघोषित देनदारियों के लिए बैंक उत्तरदायी नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में व्यवस्था दी कि नीलामी क्रेता का यह कर्तव्य है कि वह नीलाम की जा रही संपत्ति पर बकाया राशि और देनदारियों की "जैसी है जहां है", "जैसी है जो है" और "जो कुछ भी है" के आधार पर जांच करे।

    जस्टिस अजीत कुमार और जस्टिस स्वरूपमा चतुर्वेदी की खंडपीठ ने कहा: "जब कोई व्यक्ति किसी नीलामी में भाग लेता है और उसे पता होता है कि संपत्ति "जैसी है जहां है", "जैसी है जो है और "जो कुछ भी है" की शर्तों के साथ ई-नीलामी की जा रही है तो संभावित बोलीदाता, जो मामले के तथ्यों के अनुसार क्रेता है, का यह कर्तव्य है कि वह बकाया राशि और देनदारियों की जाँच करते समय पूरी सावधानी बरते।"

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    अविवाहित बेटी की ओर से नानी-नानी द्वारा किया गया दत्तक-पत्र उसकी सहमति से ही मान्य होगा: मद्रास हाईकोर्ट

    मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि अविवाहित महिला के बच्चे को गोद लेने के मामले में नाना-नानी द्वारा किया गया दत्तक-पत्र तभी मान्य होगा, जब यह दर्शाया गया हो कि माँ ने इस दत्तक-पत्र के लिए सहमति दी थी। अदालत ने कहा, "सिर्फ़ यह तथ्य कि बच्चे के नाना-नानी ने दत्तक-पत्र पर हस्ताक्षर किए, दत्तक-पत्र को अमान्य नहीं कर सकता, बशर्ते कि दत्तक-पत्र बच्चे की माँ, जो कोई और नहीं बल्कि बच्चे के नाना-नानी की बेटी है, की सहमति से किया गया हो।"

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    मोटर दुर्घटना दावों में आय की हानि की गणना करते समय फैमिली पेंशन नहीं काटी जा सकती: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट

    जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि मोटर दुर्घटना मुआवज़ा मामले में आय की हानि की गणना करते समय मृतक के आश्रितों को मिलने वाली पेंशन राशि में कटौती करना स्वीकार्य नहीं होगा। जस्टिस संजय धर ने रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी द्वारा दायर अपील खारिज करते हुए कहा, "आय की हानि की गणना के लिए पेंशन राशि में कटौती किए बिना मासिक वेतन को स्वीकार किया जाना चाहिए।"

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    फ्लाईओवर पर जातिसूचक गाली देना 'सार्वजनिक दृष्टि' के दायरे में आता, भले गवाह न हों: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की है कि किसी महिला पर हमला करना और फ्लाईओवर पर उसके खिलाफ जातिगत टिप्पणी करना “सार्वजनिक दृष्टि” (public view) के अंतर्गत आता है, जिससे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अपराध बनता है। जस्टिस रविंदर दुडेजा ने यह टिप्पणी एक व्यक्ति की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए की और कहा कि इस मामले में prima facie (प्रथम दृष्टया) अपराध के सभी आवश्यक तत्व पूरे होते हैं।

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    “साली” शब्द अभद्र गाली है, लेकिन जानबूझकर अपमान नहीं: हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने धारा 504 IPC की सजा रद्द की

    हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा है कि सिर्फ “साली” शब्द का इस्तेमाल, भले ही वह अभद्र गाली हो, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 504 के तहत “जानबूझकर अपमान” नहीं माना जा सकता — जब तक कि वह व्यक्ति को शांति भंग करने के लिए उकसाए या ऐसी संभावना उत्पन्न करे। जस्टिस राकेश कंठला ने टिप्पणी की — “वर्तमान मामले में 'साली' शब्द का प्रयोग अभद्र गाली के रूप में किया गया है। लेकिन पीड़िता या सूचनाकर्ता ने यह नहीं कहा कि इस शब्द या इन गालियों ने उसे शांति भंग करने के लिए उकसाया।”

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    JJ Act अन्य सभी कानूनों से ऊपर: इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह स्थापित किया कि कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे से जुड़े मामलों में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 (JJ Act) देश के अन्य सभी कानूनों पर अधिभावी प्रभाव रखता है।

    जस्टिस सलील कुमार राय और जस्टिस संदीप जैन की बेंच ने किशोर न्याय अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों का विश्लेषण करने के बाद कहा, "अधिनियम, 2015 कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे से संबंधित सभी मामलों में विशेष रूप से गिरफ्तारी, कस्टडी, अभियोजन या कारावास के मामलों में उस समय लागू किसी भी अन्य कानून पर अधिभावी प्रभाव रखता है।"

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    बैंकों को मानहानि के लिए आरोपी के रूप में समन नहीं किया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने यह व्यवस्था दी कि बैंकों को मानहानि के लिए आरोपी के रूप में समन नहीं किया जा सकता, क्योंकि उनमें अपराध के गठन के लिए आवश्यक आपराधिक मनःस्थिति या दुर्भावना की कमी होती है। जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बैंकों द्वारा किसी कंपनी को धोखाधड़ी घोषित करने का कार्य जो उन्होंने अपने बैंकिंग गतिविधियों के निर्वहन और सद्भाव में किया, वह मानहानि नहीं माना जा सकता है।

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    2013 संशोधन से पहले के मामलों में बलात्कार दोषसिद्धि के लिए पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से कम साबित करना जरूरी: दिल्ली हाईकोर्ट

    दिल्ली हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि 2013 के आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम लागू होने से पहले दर्ज हुए बलात्कार के मामलों में, अभियोजन पक्ष को यह साबित करना आवश्यक है कि पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से कम थी, तभी आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है।

    जस्टिस स्वर्णा कांत शर्मा की एकल पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए एक व्यक्ति को बरी किया, जिसे वर्ष 2005 में 11 वर्षीय बच्ची के बलात्कार के आरोप में दोषी ठहराया गया था। अदालत ने कहा कि अपराध 2005 में हुआ था, जब भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत सहमति की आयु 16 वर्ष थी, न कि 18 वर्ष, जैसा कि 2013 में संशोधन के बाद किया गया। इसलिए, दोषसिद्धि के लिए अभियोजन को यह साबित करना आवश्यक था कि पीड़िता 16 वर्ष से कम आयु की थी।

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    उम्र निर्धारण की जांच के दौरान भी नाबालिग को जेल में नहीं रखा जा सकता: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि किशोर न्याय अधिनियम (JJ Act), 2015 के तहत कोई भी आरोपी जो यह दावा करता है कि अपराध के समय वह नाबालिग था, उसे उम्र निर्धारण की जांच के दौरान भी जेल या पुलिस लॉकअप में नहीं रखा जा सकता। जस्टिस सलील कुमार राय और जस्टिस संदीप जैन की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि — “कानून के साथ संघर्ष में बालक (child in conflict with law) को 21 वर्ष की आयु तक जेल में नहीं रखा जा सकता, जब तक कि वह गंभीर अपराध में दोषी न हो और बोर्ड व बाल न्यायालय यह न तय करें कि उसका ट्रायल वयस्क के रूप में हो।”

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    'महर' की वापसी केवल 'खुला नामा' से ही नहीं, पक्षकारों के बयान से भी सुनिश्चित की जा सकती है: केरल हाईकोर्ट

    केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि 'महर' (विवाह में पति द्वारा पत्नी को दिया जाने वाला प्रतिफल) की वापसी केवल 'खुला नामा' से ही नहीं, बल्कि 'खुला' द्वारा तलाक की घोषणा के लिए मुस्लिम पत्नी की याचिका पर विचार करते समय पक्षकारों के बयान से भी सुनिश्चित की जा सकती है। जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस एम.बी. स्नेहलता की खंडपीठ, फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए तलाक को चुनौती देने वाली पति द्वारा दायर अपील पर विचार कर रही थी।

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