मोटर दुर्घटना दावों में आय की हानि की गणना करते समय फैमिली पेंशन नहीं काटी जा सकती: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
Shahadat
29 Oct 2025 8:37 PM IST

जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि मोटर दुर्घटना मुआवज़ा मामले में आय की हानि की गणना करते समय मृतक के आश्रितों को मिलने वाली पेंशन राशि में कटौती करना स्वीकार्य नहीं होगा।
जस्टिस संजय धर ने रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी द्वारा दायर अपील खारिज करते हुए कहा,
"आय की हानि की गणना के लिए पेंशन राशि में कटौती किए बिना मासिक वेतन को स्वीकार किया जाना चाहिए।"
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला सड़क दुर्घटना से उत्पन्न हुआ, जिसमें जम्मू के 54 वर्षीय पूर्व सैनिक विजय कुमार की मृत्यु हो गई। उनकी विधवा संतोष देवी, दो बच्चों और वृद्ध माता-पिता ने मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (MACT), जम्मू के समक्ष दावा याचिका दायर की, जिसमें उनकी मृत्यु के लिए ₹1.85 करोड़ के मुआवजे की मांग की गई। दुर्घटनाग्रस्त वाहन का बीमा रिलायंस जनरल इंश्योरेंस कंपनी के पास था। साक्ष्यों का विश्लेषण करने के बाद न्यायाधिकरण ने दावेदारों को 7.5% ब्याज सहित ₹42,54,900 का भुगतान करने का आदेश दिया और बीमाकर्ता को भुगतान करने के लिए उत्तरदायी ठहराया।
बीमा कंपनी ने MACT के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी और तर्क दिया कि न्यायाधिकरण ने मृतक की आय की गणना में गलती की। कंपनी ने तर्क दिया कि आश्रितता की हानि की गणना करते समय विधवा की फैमिली पेंशन में कटौती की जानी चाहिए थी। ऐसा कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं है, जो यह साबित करता हो कि मृतक दवा की दुकान चलाता था या व्यवसाय से ₹6,000 प्रति माह कमाता था।
न्यायालय की टिप्पणियां
जस्टिस धर ने अभिलेखों का अवलोकन करने के बाद पाया कि मृतक को ₹30,316 की मासिक पेंशन मिल रही थी, जिसकी पुष्टि बैंक स्टेटमेंट और उसकी विधवा संतोष देवी की निर्विवाद गवाही से होती है। न्यायालय ने कहा कि न्यायाधिकरण द्वारा इस पेंशन आय की सही गणना की गई।
न्यायालय ने न्यायाधिकरण के इस निष्कर्ष को भी स्वीकार कर लिया कि मृतक एक दवा की दुकान चलाता था, जो जम्मू-कश्मीर फार्मेसी काउंसिल के पंजीकरण प्रमाणपत्रों और खाद्य एवं औषधि नियंत्रण विभाग के संचार जैसे दस्तावेजों पर आधारित था। हालांकि आय का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया। फिर भी न्यायाधिकरण द्वारा प्रति माह ₹6,000 की व्यावसायिक आय का अनुमान उचित पाया गया।
फैमिली पेंशन में कटौती के संबंध में बीमाकर्ता के तर्क पर विचार करते हुए जस्टिस धर ने सुप्रीम कोर्ट के कई उदाहरणों का हवाला देते हुए इसे दृढ़ता से खारिज कर दिया।
हेलेन सी. रेबेलो (श्रीमती) एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम [(1999) 1 एससीसी 90] पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने उद्धृत किया:
“फैमिली पेंशन कर्मचारी द्वारा अपने परिवार के लाभ के लिए उसकी मृत्यु के बाद उत्तराधिकारियों द्वारा प्राप्त सेवा शर्तों में उसके योगदान के रूप में अर्जित की जाती है। उत्तराधिकारियों को आकस्मिक मृत्यु के अलावा अन्य कारणों से भी फैमिली पेंशन मिलती है। दोनों के बीच कोई सह-संबंध नहीं है।”
न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि भविष्य निधि, पेंशन या जीवन बीमा जैसे आर्थिक लाभ कटौती योग्य नहीं हैं, क्योंकि ये मृतक के अलग संविदात्मक या वैधानिक अधिकारों से उत्पन्न होते हैं, न कि दुर्घटना से।
जस्टिस धर ने भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड बनाम कांता अग्रवाल (2008) 11 एससीसी 366 और सेबेस्टियानी लाकड़ा बनाम नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड (2019) 17 एससीसी 465 का हवाला देते हुए दोहराया कि पेंशन, ग्रेच्युटी या बीमा लाभों के कारण मुआवज़े से कटौती की अनुमति नहीं दी जा सकती।
न्यायालय ने विशेष रूप से हनुमंतराजू बी (मृत) बाय एल.आर. बनाम एम. अकरम पाशा एवं अन्य, एआईआर 2025 एससी 3283 में सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय का उल्लेख किया, जिसमें इस बात की पुष्टि की गई:
“आय की हानि की गणना करते समय पेंशन राशि में कटौती करना स्वीकार्य नहीं होगा और आय की हानि की गणना के लिए पेंशन राशि में कटौती किए बिना मासिक वेतन को स्वीकार किया जाना चाहिए।”
इस सुसंगत कानूनी स्थिति को लागू करते हुए न्यायालय ने माना कि आश्रितता की हानि की गणना करते समय विधवा की फैमिली पेंशन में कटौती नहीं की जा सकती।
इन निष्कर्षों के मद्देनजर, जस्टिस धर ने निष्कर्ष निकाला कि बीमा कंपनी द्वारा दायर अपील में कोई दम नहीं है, इसे खारिज कर दिया तथा दावेदारों के पक्ष में निर्णय को ब्याज सहित बरकरार रखा।
Case Title: Reliance General Insurance Vs Santosh Devi

