फ्लाईओवर पर जातिसूचक गाली देना 'सार्वजनिक दृष्टि' के दायरे में आता, भले गवाह न हों: दिल्ली हाईकोर्ट
Praveen Mishra
29 Oct 2025 12:28 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की है कि किसी महिला पर हमला करना और फ्लाईओवर पर उसके खिलाफ जातिगत टिप्पणी करना “सार्वजनिक दृष्टि” (public view) के अंतर्गत आता है, जिससे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के तहत अपराध बनता है।
जस्टिस रविंदर दुडेजा ने यह टिप्पणी एक व्यक्ति की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए की और कहा कि इस मामले में prima facie (प्रथम दृष्टया) अपराध के सभी आवश्यक तत्व पूरे होते हैं।
अदालत ने कहा,“कथित घटना सड़क पर, एक फ्लाईओवर पर हुई थी, जिसे कोई भी देख सकता था। शिकायतकर्ता ने अपनी धारा 183 BNS के तहत दर्ज बयान में कहा कि वहां कई लोग मौजूद थे। भले ही कोई स्वतंत्र गवाह अभी तक सामने नहीं आया है, लेकिन घटना स्थल वास्तव में 'सार्वजनिक दृष्टि' में आने वाला स्थान था। इसलिए, FIR और बयान के आधार पर यह माना जा सकता है कि SC/ST अधिनियम की धारा 3 के तहत अपराध के आवश्यक तत्व पूरे होते हैं।”
आरोपी वीरेंद्र सिंह बिधूड़ी पर आरोप है कि उन्होंने महिला की कार रोककर उस पर हमला किया। महिला ने आरोप लगाया कि आरोपी ने कार की खिड़की तोड़ी, उसे जबरन बाहर निकाला, शारीरिक रूप से हमला किया, छेड़छाड़ की और गालियां दीं।
FIR के अनुसार, आरोपी ने उसके खिलाफ जातिसूचक टिप्पणियां भी कीं और धमकी दी कि अगर उसने पुलिस को बताया तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। इसके बाद महिला ने अपने पति को बुलाया, जिसने मौके पर पहुंचकर PCR कॉल की।
अदालत ने कहा कि SC/ST अधिनियम की धारा 3 के तहत अपराध साबित करने के लिए यह आवश्यक है कि घटना “सार्वजनिक दृष्टि” में हुई हो। यह कोई औपचारिक शर्त नहीं, बल्कि एक अनिवार्य तत्व है जिसे अभियोजन को साबित करना होता है।
हालांकि महिला स्वयं SC/ST समुदाय से नहीं है, लेकिन दिल्ली पुलिस की स्थिति रिपोर्ट के अनुसार उसने अपने पति और पिता के जाति प्रमाणपत्र, विवाह कार्ड और विवाह प्रमाणपत्र प्रस्तुत किए।
प्रमाणपत्रों के अनुसार, उसका पति 'जाटव' जाति का है और उसके पिता 'खटीक' जाति के हैं।
अदालत ने कहा,“इस प्रकार, FIR और बयान से prima facie SC/ST अधिनियम के तहत अपराध बनता है। इसलिए, अधिनियम की धारा 18 के तहत अग्रिम जमानत पर रोक इस मामले में लागू होगी।”

