मामले की जानकारी होने पर पावर ऑफ अटॉर्नी धारक निष्पादन याचिका पर हस्ताक्षर कर सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Praveen Mishra

31 Oct 2025 4:56 PM IST

  • मामले की जानकारी होने पर पावर ऑफ अटॉर्नी धारक निष्पादन याचिका पर हस्ताक्षर कर सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर कोई पावर ऑफ अटॉर्नी धारक (Power of Attorney Holder) मामले की पूरी जानकारी रखता है और अदालत को यह भरोसा हो जाए कि वह तथ्य जानता है, तो वह डिक्री-होल्डर (जिसके पक्ष में कोर्ट का फैसला हुआ है) की जगह निष्पादन याचिका (Execution Application) पर हस्ताक्षर और सत्यापन कर सकता है।

    मामला क्या था

    सहारनपुर के फ़ज़लगंज इलाके में एक दुकान के किराए को लेकर 1978 में मुकदमा शुरू हुआ था। दुकान के मालिक केवाल किशोर ने किराएदार आत्मा राम के खिलाफ किराया न देने और दुकान खाली कराने का केस दायर किया।

    1981 में केवाल किशोर ने अपने पिता गुरुदास मल को पावर ऑफ अटॉर्नी दे दी ताकि वे अदालत में मुकदमे की कार्यवाही संभाल सकें।

    मुकदमा 1993 में केवाल किशोर के पक्ष में तय हुआ। किरायेदार की अपीलें 1994 और फिर 2000 में सुप्रीम कोर्ट तक खारिज हो गईं। इसके बाद 2002 में निष्पादन याचिका दायर की गई, जो आज तक लंबित है।

    विवाद क्या था

    किरायेदारों के उत्तराधिकारियों ने आपत्ति की कि निष्पादन याचिका पर केवाल किशोर ने नहीं बल्कि उनके पिता (गुरुदास मल) ने हस्ताक्षर किए थे, इसलिए वह अमान्य है।

    कोर्ट ने क्या कहा

    कोर्ट ने कहा कि CPC के Order 21 के Rule 10 और 11(2) को साथ पढ़ना चाहिए।

    इन नियमों के मुताबिक, अगर अदालत को भरोसा हो जाए कि पावर ऑफ अटॉर्नी धारक मामले की पूरी जानकारी रखता है, तो वही निष्पादन याचिका दाखिल कर सकता है।

    कोर्ट ने कहा कि गुरुदास मल 1981 से मुकदमे में सक्रिय थे और सारे तथ्य जानते थे, इसलिए उनके हस्ताक्षर मान्य हैं।

    कोर्ट की टिप्पणी

    न्यायालय ने यह भी कहा कि निष्पादन प्रक्रिया इतने लंबे समय तक नहीं चलनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों को 6 महीने के भीतर निपटाया जाना चाहिए।

    अंत में, अदालत ने याचिका खारिज की और निचली अदालत को निर्देश दिया कि मामला दो महीने के भीतर निपटाया जाए।

    Next Story