अलग हुए दंपत्ति के बीच समझौता न होने पर वैवाहिक FIR रद्द नहीं की जा सकती: दिल्ली हाईकोर्ट
Shahadat
31 Oct 2025 10:00 AM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अगर अलग हुए दंपत्ति के बीच समझौता न हो तो वैवाहिक FIR रद्द नहीं की जा सकती।
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने 2005 में दुबई में रहने वाले एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज FIR रद्द करने से इनकार कर दिया, जिसमें उस पर पत्नी द्वारा दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाया गया।
यह फैसला तब सुनाया गया, जब कोर्ट ने पाया कि दंपत्ति के बीच हुए समझौता समझौते पर कभी अमल नहीं किया गया।
इस प्रकार, कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 498ए और 406 के तहत दर्ज FIR रद्द करने की मांग करने वाले व्यक्ति की याचिका खारिज की।
2018 में दंपत्ति ने आपसी सहमति से तलाक के लिए याचिका दायर की। उनके बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत पति अपनी पत्नी और दो बच्चों को 37 लाख रुपये देने पर सहमत हुआ।
COVID-19 के बीच 2021 में अभियोजन न होने के कारण तलाक की याचिका खारिज कर दी गई और बाद में दायर अपीलें भी खारिज कर दी गईं।
पत्नी ने तर्क दिया कि हालांकि उनके बीच समझौता हो गया। हालांकि, समझौते के दायित्वों को पूरा न करने और अन्य कारणों से समझौता सफल नहीं हो सका और फैमिली कोर्ट ने तलाक की याचिका खारिज की।
याचिका खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि हालांकि दोनों पक्षों के बीच समझौता हुआ था, लेकिन उस पर कभी कोई अमल या क्रियान्वयन नहीं हुआ।
कोर्ट ने कहा,
"केवल कुछ राशि के चेक जमा कर देना, जो आज तक प्रतिवादी को जारी नहीं किए गए, समझौता नहीं कहा जा सकता।"
साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि तलाक की कार्यवाही की विफलता के लिए पति स्वयं जिम्मेदार है।
जस्टिस कृष्णा ने याचिका में कोई दम न पाते हुए कहा कि केवल समझौते की शर्तों के पूरा न होने के आधार पर FIR रद्द नहीं की जा सकती और याचिका खारिज की।
कोर्ट ने कहा,
"उपर्युक्त के मद्देनजर, ऐसा कुछ भी नहीं है, जिससे यह पता चले कि याचिकाकर्ता ने इस समझौते पर कभी अमल किया। उसने केवल कुछ राशियों के चेक जमा किए, जो आज तक प्रतिवादी संख्या 2 को जारी नहीं किए गए, क्योंकि आपसी सहमति से कोई तलाक नहीं हुआ। केवल इसलिए कि याचिकाकर्ता ने फैमिली कोर्ट में उपस्थित होने में विफलता दिखाई, जिसके परिणामस्वरूप तलाक की याचिका खारिज कर दी गई। उपरोक्त परिस्थितियों में यह नहीं माना जा सकता कि पक्षों ने समझौते पर अमल किया।"
Title: ARVIND BHATNAGAR v. STATE & ANR

