गजराज फैसले के दायरे से बाहर भूमिधारक 10% आबादी भूमि के हकदार नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Praveen Mishra
30 Oct 2025 3:21 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह फैसला दिया है कि जिन भूमिधारकों ने Gajraj and Others vs. State of UP and Others (2011) में दाखिल याचिकाओं में पक्षकार के रूप में भाग नहीं लिया था, उन्हें 10% आबादी (अबादी) भूमि के आवंटन का लाभ नहीं मिल सकता, जैसा कि उस फैसले में निर्देशित किया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि:
गजराज मामले में भूमि अधिग्रहण अधिनियम की धारा 4 के तहत 31 अगस्त 2007 को जारी अधिसूचना को चुनौती दी गई थी। पूर्ण पीठ (Full Bench) ने माना था कि सरकार ने “तात्कालिकता प्रावधान” (Urgency Clause) का गलत प्रयोग किया और धारा 5A के तहत आपत्तियों की प्रक्रिया को अनुचित रूप से समाप्त कर दिया था।
इस आधार पर कोर्ट ने 64.70% अतिरिक्त मुआवज़ा देने और याचिकाकर्ताओं को अधिग्रहीत भूमि के 10% हिस्से तक, अधिकतम 2500 वर्ग मीटर तक विकसित आबादी भूमि देने का निर्देश दिया था।
हालाँकि, जिन भूमिधारकों ने अधिग्रहण को अदालत में चुनौती नहीं दी थी, उनके लिए कोर्ट ने यह निर्णय विकास प्राधिकरण पर छोड़ दिया था कि वे चाहे तो 64.70% अतिरिक्त मुआवज़ा और 10% आबादी भूमि का लाभ दे सकते हैं।
यह फैसला बाद में सुप्रीम कोर्ट ने Savitri Devi vs. State of UP and Others में बरकरार रखा, लेकिन यह भी स्पष्ट किया कि गजराज फैसला अपने “विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों” में दिया गया था और इसे भविष्य के मामलों के लिए उदाहरण (precedent) नहीं माना जाएगा।
वर्तमान मामला:
जस्टिस महेश चंद्र त्रिपाठी और जस्टिस अनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने उन याचिकाओं पर सुनवाई की, जिनमें याचिकाकर्ताओं ने 10% आबादी भूमि के आवंटन की मांग की थी।
कोर्ट ने कहा:
“सभी भूमिधारकों को पहले ही 64.70% अतिरिक्त मुआवज़ा दिया जा चुका है। गजराज मामला केवल उन भूमिधारकों तक सीमित था जिन्होंने रिट याचिका दाखिल की थी। सुप्रीम कोर्ट ने सावित्री देवी के मामले में भी स्पष्ट किया है कि वे निर्देश भविष्य के मामलों में लागू नहीं होंगे। अतः याचिकाकर्ताओं को समानता के आधार पर लाभ का कोई वैध अधिकार प्राप्त नहीं है और उन्हें मांगी गई राहत नहीं दी जा सकती।”
मामले के तथ्यों के अनुसार, याचिकाकर्ताओं के पूर्वजों को अधिग्रहण के दौरान लगभग 80% मुआवज़ा मिल चुका था और भूमि नोएडा क्षेत्र में योजनाबद्ध विकास के लिए बिल्डरों को हस्तांतरित कर दी गई थी।
2011 में गजराज फैसला आने के बाद याचिकाकर्ताओं को 64.7% अतिरिक्त मुआवज़ा और 6% आबादी भूमि दी गई थी।
6% भूमि से असंतुष्ट होकर उन्होंने कई प्रतिवेदन दिए। विकास प्राधिकरण ने वर्ष 2020 में अपनी 117वीं बोर्ड बैठक में 10% आबादी भूमि देने का प्रस्ताव किया, पर बाद में यह निर्णय वापस ले लिया गया क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने कभी अधिग्रहण को अदालत में चुनौती नहीं दी थी।
कोर्ट ने Mange @ Mange Ram vs. State of UP और Khatoon & Others vs. State of UP पर भरोसा करते हुए कहा कि 10% अतिरिक्त आबादी भूमि न देना न तो भेदभावपूर्ण है और न ही मनमाना। पूर्ण पीठ का निर्णय सभी पर स्वतः लागू नहीं होता।
कोर्ट का निष्कर्ष:
कोर्ट ने कहा,“संविधान का अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) किसी अवैधता या त्रुटिपूर्ण निर्णय को दोहराने के लिए नहीं है। यदि किसी को गलती से कोई लाभ मिल गया हो, तो अन्य लोग उस आधार पर समान लाभ नहीं मांग सकते। गलत निर्णय किसी अन्य पक्ष के लिए अधिकार उत्पन्न नहीं करता।”
इस आधार पर कोर्ट ने माना कि भूमिधारकों को पहले ही विधिक रूप से देय मुआवज़े से अधिक अतिरिक्त लाभ मिल चुका है, इसलिए उन्हें 10% आबादी भूमि का हक नहीं है।
अंततः, हाईकोर्ट ने सभी याचिकाएं खारिज कर दीं।

