JJ Act अन्य सभी कानूनों से ऊपर: इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
Amir Ahmad
29 Oct 2025 10:51 AM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए यह स्थापित किया कि कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे से जुड़े मामलों में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम 2015 (JJ Act) देश के अन्य सभी कानूनों पर अधिभावी प्रभाव रखता है।
जस्टिस सलील कुमार राय और जस्टिस संदीप जैन की बेंच ने किशोर न्याय अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों का विश्लेषण करने के बाद कहा,
"अधिनियम, 2015 कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे से संबंधित सभी मामलों में विशेष रूप से गिरफ्तारी, कस्टडी, अभियोजन या कारावास के मामलों में उस समय लागू किसी भी अन्य कानून पर अधिभावी प्रभाव रखता है।"
यह मामला याचिकाकर्ता से संबंधित है जिस पर उसके बड़े भाई और माँ के साथ मिलकर अपने सबसे बड़े भाई की कथित हत्या का आरोप था। साल 2017 से सभी आरोपी नैनी सेंट्रल जेल में बंद है। ट्रायल के दौरान याचिकाकर्ता ने अपनी जन्मतिथि 13.12.2002 बताई। स्कूल प्रिंसिपल के बयान के अनुसार अपराध की तारीख पर याचिकाकर्ता की उम्र 14 साल, 3 महीने और 19 दिन थी।
मामले को किशोर न्याय बोर्ड को भेजा गया ने याचिकाकर्ता की उम्र की पुष्टि की। हालांकि बोर्ड का आदेश ट्रायल कोर्ट को दिए जाने के बावजूद याचिकाकर्ता को जेल से रिहा नहीं किया गया।
इसके बाद एक सामाजिक कार्यकर्ता ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) याचिका दायर कर उसकी रिहाई की मांग की।
कोर्ट के समक्ष मुख्य प्रश्न यह था कि क्या किसी न्यायिक आदेश के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी करके रिहा किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका में हिरासत की प्रारंभिक वैधता के बजाय याचिका दायर करने के समय हिरासत की वर्तमान वैधता की जांच की जाती है।
कोर्ट ने माना कि भले ही शुरू में हिरासत कानूनी थी लेकिन किशोर न्याय बोर्ड द्वारा उम्र की पुष्टि के बाद उसे जेल में रखना अवैध हो गया।
कोर्ट ने कहा कि JJ Act की धारा 10 के अनुसार कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे को पुलिस लॉकअप या जेल में किसी भी परिस्थिति में नहीं रखा जा सकता। उम्र का दावा किए जाने के बाद उसे JJ Act की धारा 9(4) के तहत सुरक्षात्मक हिरासत में भेजा जाना चाहिए था।
कोर्ट ने राज्य के इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि याचिकाकर्ता सामान्य आपराधिक कानून के तहत जमानत मांग सकता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानून का उल्लंघन करने वाला बच्चा केवल किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष JJ Act की धारा 12 के तहत ही जमानत मांग सकता है।
चूंकि आरोपी-याचिकाकर्ता को बोर्ड के सामने पेश नहीं किया गया इसलिए कोर्ट ने माना कि वह जमानत के लिए आवेदन भी नहीं कर सकता।
हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को रिहा करने का निर्देश दिया। साथ ही ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया गया कि वह आगे की कार्यवाही के लिए उसे किशोर न्याय बोर्ड के पास भेजे।
इस फैसले के साथ हाईकोर्ट ने कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए किशोर न्याय अधिनियम के सर्वोपरि महत्व को एक बार फिर स्थापित कर दिया।

