विघटित कंपनी की ओर से प्रस्तुत चेकों के अनादर के लिए NI Act की धारा 138 के तहत कार्यवाही मान्य नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
Shahadat
29 Oct 2025 9:26 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई पक्षकार विघटित कंपनी द्वारा प्रस्तुत चेक प्रस्तुत करता है तो उसके द्वारा जारी किए गए चेकों के अनादर के लिए उस पर परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI Act) की धारा 138 के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
जस्टिस अरुण मोंगा ने कहा,
“एक बार जब कोई कंपनी समाप्त हो जाती है और विघटित हो जाती है तो वह अपना न्यायिक अस्तित्व खो देती है। उसकी ओर से किया गया कोई भी कार्य तब तक शून्य हो जाता है, जब तक कि कंपनी को कंपनी अधिनियम की धारा 252 के तहत बहाल नहीं कर दिया जाता। परिणामस्वरूप, ऐसी विघटित कंपनी के नाम पर या उसके द्वारा जारी किए गए चेक को कानूनी रूप से प्रवर्तनीय लिखत नहीं माना जा सकता, क्योंकि कानून में कोई वैध आहरणकर्ता या खाताधारक मौजूद नहीं है। NI Act की धारा 138 के तहत कार्यवाही, जो वैध रूप से जारी किए गए चेक को पूर्वधारणा करती है, ऐसी परिस्थितियों में मान्य नहीं हो सकती।”
ये टिप्पणियां एक कंपनी के निदेशकों द्वारा दायर दो याचिकाओं को स्वीकार करते हुए की गईं, जिन पर उनकी कंपनी द्वारा शिकायतकर्ता कंपनी/प्रतिवादी को जारी किए गए चेक के अनादर का मामला दर्ज किया गया।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता कंपनी को 2018 में कंपनी रजिस्ट्रार द्वारा कंपनी रजिस्टर से हटा दिया गया। इसलिए 2020 में शिकायत दर्ज होने पर उसका अस्तित्व समाप्त हो गया।
यह तर्क दिया गया कि 2020 में NI Act की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज करते समय शिकायतकर्ता कंपनी न तो न्यायिक व्यक्ति थी और न ही एक कानूनी इकाई। इस प्रकार, NI Act की धारा 138 के तहत शिकायतें कानूनी रूप से असमर्थनीय थीं, क्योंकि ये एक अस्तित्वहीन इकाई द्वारा दायर की गईं।
याचिकाकर्ताओं ने कंपनी अधिनियम की धारा 2(20) का हवाला देते हुए तर्क दिया कि केवल अधिनियम के तहत रजिस्टर्ड कंपनी ही कानूनी इकाई के रूप में योग्य है। चूंकि प्रतिवादी का अस्तित्व 2018 तक समाप्त हो चुका है, इसलिए उसके पास कोई शिकायत दर्ज करने की कानूनी क्षमता नहीं है।
यह भी तर्क दिया गया कि विघटन के बाद शिकायतकर्ता कंपनी की सभी संपत्तियां, बैंक खाते और संपत्तियां स्वतः ही सरकार के पास चली गईं। इसलिए इसके पूर्व निदेशकों को शिकायत दर्ज कराने का कोई अधिकार नहीं है।
याचिकाकर्ताओं से सहमति जताते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि चेक प्रस्तुत करना, बाद में कानूनी नोटिस जारी करना और NI Act की धारा 138 के तहत दायर की गई शिकायतें, ये सभी कंपनी के विघटन के बाद की गई कार्रवाइयां हैं।
कोर्ट ने कहा,
"यह क्रम स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि इन लेन-देन के समय कंपनी कानूनी रूप से अस्तित्व में नहीं है। इसलिए वैध रूप से वाणिज्यिक लेनदेन में भाग नहीं ले सकती या बैंक खाते नहीं रख सकती।"
वित्तीय सेवा विभाग द्वारा जारी 05.09.2017 की सरकारी अधिसूचना का भी हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया कि धारा 248(5) के तहत बंद की गई कंपनियां कानूनी रूप से अस्तित्वहीन हो जाती हैं, उनके निदेशक पूर्व निदेशक बन जाते हैं और उनके बैंक खाते तब तक फ्रीज रहते हैं जब तक कि ऐसी कंपनियों को अधिनियम की धारा 252 के तहत बहाल नहीं कर दिया जाता।
कोर्ट ने कहा,
"बड़े पैमाने पर कॉर्पोरेट सफ़ाई के संदर्भ में जारी की गई यह अधिसूचना इस बात पर ज़ोर देती है कि हटाई गई कंपनी द्वारा कोई भी लेन-देन या संचालन उसकी बहाली तक कानूनी रूप से अस्वीकार्य होगा।"
इस प्रकार, कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध लंबित शिकायतों को रद्द कर दिया।
Case title: Mr Krishan Lal Gulati & Anr. v. State Of Nct Of Delhi & Anr.

