संदिग्ध लेन-देन मिलने पर पुलिस बैंक अकाउंट फ्रीज कर सकती है; राहत के लिए मजिस्ट्रेट से संपर्क किया जा सकता है: इलाहाबाद हाईकोर्ट
Praveen Mishra
1 Nov 2025 3:14 PM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह कहा है कि यदि जांच के दौरान पुलिस को किसी बैंक खाते में संदिग्ध लेन-देन का संदेह होता है, तो वह उस खाते को फ्रीज करने (जमाने) का निर्देश दे सकती है। जांच पूरी हो जाने के बाद, संबंधित व्यक्ति मजिस्ट्रेट के समक्ष जाकर अपने खाते को डी-फ्रीज (खोलने) का अनुरोध कर सकता है।
जस्टिस अजीत कुमार और जस्टिस स्वरूपमा चतुर्वेदी की खंडपीठ ने तेस्ता अतुल सेतलवाड़ बनाम गुजरात राज्य (2018) मामले का हवाला देते हुए कहा,“यदि जांच के दौरान पुलिस यह निष्कर्ष निकालती है कि किसी बैंक खाते में संदिग्ध लेन-देन हुआ है, तो वह बैंक को ऐसे खाते को फ्रीज करने का निर्देश दे सकती है। यह फ्रीजिंग जांच के परिणाम पर निर्भर करेगी। प्रभावित पक्ष जांच पूरी होने के बाद और यदि चार्जशीट दायर हो जाती है, तो मजिस्ट्रेट से यह अनुरोध कर सकता है कि खाते को केवल उतनी राशि तक सीमित किया जाए जो अपराध से संबंधित है।”
याचिकाकर्ता ने बताया कि वह प्राथमिक विद्यालय, सखाधा, ब्लॉक मूरतगंज, जिला कौशांबी में शिक्षामित्र के रूप में कार्यरत हैं और उनका वेतन उनके बैंक खाते में जमा होता है। लेकिन आनंद साइबर क्राइम ब्रांच, गुजरात पुलिस के निर्देश पर उनके खाते को फ्रीज कर दिया गया, क्योंकि एक मुस्ताक अली नामक व्यक्ति ने उनके खाते में ₹35,000/- ट्रांसफर किए थे।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि कई बार निवेदन करने के बावजूद उनका खाता डी-फ्रीज नहीं किया गया, जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की।
तेस्ता अतुल सेतलवाड़ बनाम गुजरात राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यदि जांच अधिकारी के पास ऐसे साक्ष्य हैं जो अपराध के संदेह को दर्शाते हैं, तो वह धारा 102 दंड प्रक्रिया संहिता (BNSS की धारा 106) के तहत बैंक खातों को जब्त (फ्रीज) कर सकता है। इस प्रक्रिया में मजिस्ट्रेट से पूर्व अनुमति लेना आवश्यक नहीं है, केवल जब्ती की सूचना देना पर्याप्त है।
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता अपने बैंक खाते को डी-फ्रीज कराने के लिए जांच एजेंसियों या सक्षम न्यायालय के समक्ष उचित आवेदन प्रस्तुत कर सकती हैं।

