'महर' की वापसी केवल 'खुला नामा' से ही नहीं, पक्षकारों के बयान से भी सुनिश्चित की जा सकती है: केरल हाईकोर्ट
Shahadat
27 Oct 2025 1:30 PM IST

केरल हाईकोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि 'महर' (विवाह में पति द्वारा पत्नी को दिया जाने वाला प्रतिफल) की वापसी केवल 'खुला नामा' से ही नहीं, बल्कि 'खुला' द्वारा तलाक की घोषणा के लिए मुस्लिम पत्नी की याचिका पर विचार करते समय पक्षकारों के बयान से भी सुनिश्चित की जा सकती है।
जस्टिस देवन रामचंद्रन और जस्टिस एम.बी. स्नेहलता की खंडपीठ, फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए तलाक को चुनौती देने वाली पति द्वारा दायर अपील पर विचार कर रही थी।
अपीलकर्ता व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हुए उन्होंने तर्क दिया कि फैमिली कोर्ट का आदेश वैध नहीं है, क्योंकि 'खुला' के माध्यम से तलाक देने की दो शर्तें पूरी नहीं हुईं। उन्होंने तर्क दिया कि प्रतिवादी पत्नी द्वारा खुला नामा जारी करने से पहले पक्षों के बीच कोई सुलह का प्रयास नहीं किया गया और खुला नामा में 'महार' की वापसी के प्रस्ताव का कोई उल्लेख नहीं है।
प्रतिवादी के वकील ने दलील दी कि हालांकि पत्नी द्वारा लिखे गए खुलानामा में महर वापस करने की पेशकश का कोई ज़िक्र नहीं है, फिर भी उसने याचिका में कहा कि खुलानामा जारी होने से पहले ही अपीलकर्ता ने महार ले लिया। फैमिली कोर्ट में उसकी गवाही में भी यही बात कही गई।
यह भी बताया गया कि प्रतिवादी और उसके परिवार के सदस्यों की ओर से दो मध्यस्थों के माध्यम से सुलह के प्रयास किए गए। हालांकि, अपीलकर्ता ने इसे स्वीकार नहीं किया और किसी अन्य व्यवहार्य समझौते के लिए भी सहमत नहीं हुई।
तर्कों पर विचार करते हुए कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ता ने फैमिली कोर्ट या हाईकोर्ट के समक्ष प्रतिवादी के उपरोक्त कथनों का खंडन करने के लिए कोई बयान दायर नहीं किया।
उसने अपीलकर्ता के इस तर्क को भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया कि उचित सुलह संभव नहीं है, क्योंकि प्रतिवादी द्वारा उल्लिखित दोनों मध्यस्थ उसके पारिवारिक सदस्य हैं। दूसरी ओर, न्यायालय ने महसूस किया कि इस तर्क ने फैमिली कोर्ट के इस निष्कर्ष को पुष्ट किया कि सुलह का प्रयास किया गया।
असबी.के.एन. बनाम हाशिम.एम.यू. के निर्णय का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा:
“असबी.के.एन. (सुप्रा) मामले में इस न्यायालय द्वारा फैमिली कोर्ट द्वारा मूल्यांकन के तीन तरीके घोषित किए गए। पहला, यह मूल्यांकन करके कि क्या पत्नी ने “खुलानामा” में ही “महर” लौटाने का प्रस्ताव दिया था। दूसरा, यदि जारी किया गया तो क्या पत्र में ऐसा कहा गया। अंत में पक्षकारों के बयान दर्ज करके।”
न्यायालय ने पाया कि वर्तमान मामले में चूंकि अपीलकर्ता ने इसके विपरीत कोई बयान दर्ज नहीं किया, इसलिए प्रतिवादी के कथन पर विश्वास किया जाना चाहिए।
इसने आगे कहा:
“इस प्रकार, जब सुलह के प्रयास और प्रतिवादी के साथ “महर” की अनुपस्थिति का तथ्य प्रथम दृष्टया स्थापित हो जाता है तो हमें फैमिली कोर्ट के विचारों और निर्णयों पर संदेह करने या उन्हें गलत मानने का कोई कारण नहीं मिलता।”
कोर्ट ने अपील खारिज की और फैमिली कोर्ट का फैसला बरकरार रखा, जिसमें न्यायिकेतर तलाक को मंजूरी दी और घोषित किया।
Case Title: Muhammed Ashar K. v. Muhsina P.K.

