2013 संशोधन से पहले के मामलों में बलात्कार दोषसिद्धि के लिए पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से कम साबित करना जरूरी: दिल्ली हाईकोर्ट
Praveen Mishra
29 Oct 2025 9:42 AM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि 2013 के आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम लागू होने से पहले दर्ज हुए बलात्कार के मामलों में, अभियोजन पक्ष को यह साबित करना आवश्यक है कि पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से कम थी, तभी आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है।
जस्टिस स्वर्णा कांत शर्मा की एकल पीठ ने यह टिप्पणी करते हुए एक व्यक्ति को बरी किया, जिसे वर्ष 2005 में 11 वर्षीय बच्ची के बलात्कार के आरोप में दोषी ठहराया गया था। अदालत ने कहा कि अपराध 2005 में हुआ था, जब भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के तहत सहमति की आयु 16 वर्ष थी, न कि 18 वर्ष, जैसा कि 2013 में संशोधन के बाद किया गया। इसलिए, दोषसिद्धि के लिए अभियोजन को यह साबित करना आवश्यक था कि पीड़िता 16 वर्ष से कम आयु की थी।
कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि 2013 के संशोधन के बाद सहमति की आयु को 18 वर्ष कर दिया गया था, जिससे 18 वर्ष से कम उम्र के व्यक्ति के साथ यौन संबंध को अपराध की श्रेणी में रखा गया।
आरोपी ने अपनी सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी। उसे पांच वर्ष की कठोर कारावास की सजा मिली थी, जो 2008 में अपील लंबित रहने के दौरान निलंबित कर दी गई थी। अदालत ने पाया कि आरोपी और पीड़िता दोनों ने यह स्वीकार किया था कि उन्होंने विवाह किया था और पति-पत्नी के रूप में साथ रहते हुए आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाए थे।
कोर्ट ने यह भी देखा कि पीड़िता के स्कूल का प्रवेश रजिस्टर और शपथपत्र, जिनके आधार पर उसकी जन्मतिथि दर्ज की गई थी, ट्रायल कोर्ट में प्रस्तुत नहीं किए गए। इसके अलावा, जब पुलिस ने पीड़िता को बरामद किया और मेडिकल परीक्षण कराया, तो उसकी उम्र 14 वर्ष दर्ज की गई, जबकि अभियोजन का दावा था कि वह 11 वर्ष 7 महीने की थी। अदालत ने यह भी कहा कि जांच अधिकारी ने उम्र को लेकर उचित जांच नहीं की और पूरा मामला केवल स्कूल की प्रधानाचार्या द्वारा जारी प्रमाणपत्र पर आधारित था, जो विश्वसनीय साक्ष्य नहीं माना जा सकता।
साथ ही, हड्डियों की जांच (Ossification Test) भी नहीं कराई गई, जिससे उम्र के अंतर को स्पष्ट किया जा सके। अदालत ने कहा कि घटना 2005 की है, जब सहमति की वैधानिक आयु 16 वर्ष थी, और यह साबित नहीं हुआ कि पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से कम थी — विशेष रूप से जब पीड़िता ने स्वयं कहा कि वह उस समय 16 वर्ष से अधिक थी।
इस आधार पर अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन यह साबित करने में विफल रहा कि पीड़िता की उम्र 16 वर्ष से कम थी, और इसलिए आरोपी को संदेह का लाभ मिलना चाहिए। अदालत ने धारा 376 के तहत दी गई दोषसिद्धि और सजा को रद्द करते हुए आरोपी को सभी आरोपों से बरी कर दिया।

