हाईकोर्ट वीकली राउंड अप : पिछले सप्ताह के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र
Shahadat
19 Jan 2025 4:30 AM

देश के विभिन्न हाईकोर्ट में पिछले सप्ताह (13 जनवरी, 2025 से 17 जनवरी, 2024) तक क्या कुछ हुआ, जानने के लिए देखते हैं हाईकोर्ट वीकली राउंड अप। पिछले सप्ताह हाईकोर्ट के कुछ खास ऑर्डर/जजमेंट पर एक नज़र।
महिला की पवित्रता अमूल्य संपत्ति, पति द्वारा चरित्र हनन पत्नी के लिए अलग रहने और भरण-पोषण का दावा करने का वैध आधार: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि यदि पति बेवफाई के बारे में सबूत पेश किए बिना पत्नी के चरित्र हनन में लिप्त है, तो यह उसके लिए अलग रहने का पर्याप्त आधार है और उसे दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125(4) के अनुसार भरण-पोषण का दावा करने से वंचित नहीं किया जाएगा।
फैमिली कोर्ट द्वारा पारित भरण-पोषण के आदेश को बरकरार रखते हुए, जस्टिस गौरीशंकर सतपथी की एकल पीठ ने कहा, " पत्नी के लिए अपने पति के साथ रहने से इंकार करना बिल्कुल स्वाभाविक है, जिसने उसकी पवित्रता पर संदेह किया है, क्योंकि एक महिला की पवित्रता न केवल उसके लिए सबसे प्रिय है, बल्कि उसके लिए एक अमूल्य संपत्ति भी है। इस प्रकार, जब पत्नी के चरित्र पर उसके पति द्वारा बिना किसी सबूत के संदेह किया जाता है, तो उसके पास अपने पति से अलग रहने का पर्याप्त कारण है।"
केस टाइटलः आईएम बनाम एमएम
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कार्य की प्रारंभिक प्रकृति के आधार पर भेदभाव करके सही तिथि से नियमितीकरण से इनकार करना मनमाना, अनुच्छेद 14, 16 का उल्लंघन: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने राज्य सरकार का आदेश रद्द कर दिया, जिसमें एक व्यक्ति को इस आधार पर नियमित नहीं किया गया था कि उसका दैनिक वेतन पर प्रारंभिक कार्य उसके समकक्षों से भिन्न था. इस विचार को अप्रासंगिक करार दिया और राज्य की कार्रवाई को भेदभावपूर्ण और अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन करने वाला बताया।
जस्टिस अरुण मोंगा ने कहा, "समानता का सिद्धांत तुलनीय स्थितियों में कर्मचारियों के लिए समान व्यवहार की गारंटी देता है। हालांकि प्रतिवादियों ने बिना किसी उचित औचित्य के मनमाना भेदभाव करते हुए याचिकाकर्ता को 16.01.1992 से प्रभावी LDC के रूप में नियुक्त किया। यह कार्रवाई शत्रुतापूर्ण भेदभाव के बराबर है। उल्लेखनीय रूप से प्रतिवादियों ने स्वीकार किया कि समकक्षों को एक ही अधिसूचना के तहत नियमित किया गया। उनका तर्क कि याचिकाकर्ता का दैनिक वेतन पर प्रारंभिक कार्य अलग है। नियमितीकरण की शर्तों को पूरा करने के बाद अप्रासंगिक है। सही तिथि से नियमितीकरण से इनकार करना याचिकाकर्ता के समान कार्य के लिए समान वेतन और संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के तहत संरक्षण के अधिकारों का उल्लंघन है, जो कानून के समक्ष समानता सुनिश्चित करते हैं और रोजगार में भेदभाव को रोकते हैं।”
केस टाइटल: अब्दुल हामिद बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य।
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ब्रेकअप के बाद शादी से इनकार करना आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज करने का आधार नहीं: बॉम्बे हाईकोर्ट
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर स्थित बेंच ने बुधवार को कहा कि केवल इसलिए कि एक पुरुष ने एक महिला के साथ अपने 'लंबे समय से चले आ रहे रिश्ते' को तोड़ दिया, जिसके बाद महिला ने आत्महत्या कर ली, पुरुष पर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज नहीं किया जा सकता।
जस्टिस उर्मिला जोशी-फाल्के ने मामले में एक ऐसे व्यक्ति को बरी कर दिया, जिस पर एक महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया गया था, जिसके साथ वह 9 साल से रिलेशनशिप में था।
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Samsung India Electronics सैमसंग कोरिया का 'स्थायी प्रतिष्ठान' नहीं, भारत में कर नहीं लगाया जा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि दक्षिण कोरिया स्थित सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी सैमसंग इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स प्राइवेट लिमिटेड (SIEL) भारत में उसकी स्थायी प्रतिष्ठान (PE) नहीं है, इसलिए यहां कर लगाने योग्य नहीं है।
जस्टिस यशवंत वर्मा और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने ITAT के इस निष्कर्ष से सहमति जताई कि सैमसंग कोरिया द्वारा कर्मचारियों की नियुक्ति केवल एसआईईएल की गतिविधियों को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से की गई थी, न कि अपने स्वयं के।
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इलेक्ट्रिसिटी विनियामक आयोगों द्वारा प्राप्त टैरिफ, लाइसेंस शुल्क कर योग्य नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इलेक्ट्रिसिटी विनियामक आयोगों द्वारा फाइलिंग शुल्क, टैरिफ शुल्क, लाइसेंस शुल्क, वार्षिक रजिस्ट्रेशन शुल्क और विविध शुल्क के अंतर्गत प्राप्त राशि कर योग्य नहीं है।
जस्टिस यशवंत वर्मा और जस्टिस धर्मेश शर्मा की खंडपीठ ने GST विभाग द्वारा जारी किए गए कारण बताओ नोटिस के खिलाफ केंद्रीय इलेक्ट्रिसिटी विनियामक आयोग और दिल्ली इलेक्ट्रिसिटी विनियामक आयोग द्वारा दायर याचिकाओं को स्वीकार कर लिया।
केस टाइटल: केंद्रीय विद्युत विनियामक आयोग बनाम जीएसटी खुफिया महानिदेशालय (डीजीजीआई) के अतिरिक्त निदेशक और अन्य
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सूक्ष्म एवं लघु उद्यमों को दी गई छूट कार्य अनुबंधों को कवर नहीं करती, 2012 की सार्वजनिक खरीद नीति के अंतर्गत नहीं आती: गुवाहाटी हाईकोर्ट
गुवाहाटी हाईकोर्ट ने हाल ही में माना कि कार्य अनुबंध केंद्र सरकार द्वारा जारी सार्वजनिक खरीद नीति 2012 के दायरे में नहीं आते हैं और सूक्ष्म एवं लघु उद्यम (MSE) को दी गई छूट कार्य अनुबंधों को कवर नहीं करती है।
जस्टिस माइकल ज़ोथनखुमा ने कहा, "PPP-2012 और भारत सरकार द्वारा दिनांक 31.08.2023 के पत्र द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण पर विचार करने के बाद विभिन्न हाईकोर्ट के निर्णयों के साथ जिनका उल्लेख ऊपर किया गया, यह न्यायालय मानता है कि कार्य अनुबंध PPP-2012 के दायरे में नहीं आते हैं, अर्थात MSE को दी गई छूट कार्य अनुबंधों को कवर नहीं करती है।"
केस टाइटल: नॉर्थईस्ट इंजीनियरिंग एंड कंस्ट्रक्शन बनाम भारत संघ और अन्य।
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किराएदार को मकान मालिक की मर्जी पर निर्भर रहना चाहिए, उसे संपत्ति तभी छोड़नी चाहिए जब मालिक को उसकी निजी इस्तेमाल के लिए जरूरत हो: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि किराएदार आमतौर पर मकान मालिक की मर्जी पर निर्भर रहता है और अगर मकान मालिक चाहे तो उसे संपत्ति छोड़नी होगी। कोर्ट ने कहा कि किराएदार के खिलाफ फैसला सुनाने से पहले कोर्ट को यह देखना चाहिए कि क्या मकान मालिक की जरूरत वास्तविक है।
जस्टिस अजीत कुमार ने कहा, "किराएदार को इस मायने में मकान मालिक की मर्जी पर निर्भर रहना चाहिए कि जब भी मकान मालिक को अपनी निजी इस्तेमाल के लिए संपत्ति की जरूरत होगी तो उसे उसे छोड़ना होगा। कोर्ट को बस यह देखना है कि जरूरत वास्तविक है या नहीं।"
केस टाइटल: जुल्फिकार अहमद और 7 अन्य बनाम जहांगीर आलम [अनुच्छेद 227 के तहत मामले संख्या - 6479 वर्ष 2021]
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अलग होने के समय पिता के साथ रहने वाली बेटी प्राकृतिक अभिभावक के रूप में मां को संरक्षण के अधिकार से वंचित नहीं करती: इलाहाबाद हाईकोर्ट
यह देखते हुए कि मां 4 वर्षीय बेटी की प्राकृतिक अभिभावक है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि भले ही अलग होने के समय नाबालिग बेटी का साथ पति को दे दिया गया हो लेकिन इससे मां को बेटी की संरक्षण के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।
जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने कहा, “केवल इसलिए कि मां को उस समय अपनी बेटी के साथ रहने से वंचित किया गया, जब दंपति अलग हुए थे। तथ्य यह है कि बेटी कुछ समय के लिए पिता के साथ रही थी। यह नाबालिग बेटी की संरक्षण मां को देने से इनकार करने के लिए पर्याप्त परिस्थिति नहीं होगी, जो उसकी प्राकृतिक अभिभावक है। चार वर्षीय बेटी की विभिन्न शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक ज़रूरतें उसकी मां की देखभाल और संरक्षण में बेहतर तरीके से सुरक्षित रहेंगी।”
केस टाइटल: अमित धामा बनाम श्रीमती पूजा और 2 अन्य 2025 लाइव लॉ (एबी) 13 [पहली अपील संख्या - 922/2024]
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बिना तलाक के अलग रहने वाली महिला बिना पति की सहमति के गर्भपात करा सकती: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि तलाक प्राप्त किए बिना अपने पति से अलग रहने वाली महिला मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत पति से सहमति लिए बिना गर्भावस्था को समाप्त कर सकती है।
जस्टिस कुलदीप तिवारी ने एक्स बनाम प्रधान सचिव, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग और अन्य और द मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी रूल्स, 2003 के नियम 3 (B) (c) का उल्लेख करते हुए कहा, "अभिव्यक्ति "वैवाहिक स्थिति में परिवर्तन" की एक उद्देश्यपूर्ण व्याख्या देते हुए, यह न्यायालय सुरक्षित रूप से निष्कर्ष निकाल सकता है कि हालांकि याचिकाकर्ता "विधवा या तलाकशुदा" के दायरे में नहीं आता है, हालांकि, चूंकि उसने कानूनी रूप से तलाक प्राप्त किए बिना अपने पति की कंपनी से अलग रहने का फैसला किया है, इसलिए वह गर्भपात के लिए पात्र है।"
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साझा घर में एक साथ रहना 'विवाह की प्रकृति' का रिश्ता भी घरेलू संबंध, जो DV Act के अंतर्गत आता है: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस अमित महाजन ने कहा, "अन्यथा भी, अधिनियम की धारा 2 (एफ) के अनुसार, "विवाह की प्रकृति" वाले रिश्ते के माध्यम से एक साथ रहने वाले पक्षों का संबंध भी घरेलू संबंध की परिभाषा के अंतर्गत आएगा।"
न्यायालय ने पति की अपील को स्वीकार करने वाले सेनश कोर्ट का आदेश खारिज कर दिया और पत्नी का आवेदन खारिज करने वाले सेशन कोर्ट का आदेश खारिज कर दिया, जिसमें घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act (DV Act))की धारा 12 के तहत शिकायत की स्थिरता पर सवाल उठाया गया। पत्नी ने शिकायत दर्ज कराई कि उसके और पति के बीच विवाह 2006 में हुआ था, जिसके बाद वह लगभग सात वर्षों तक अपने वैवाहिक घर में उसके साथ रही, जहां उसके साथ क्रूरता की गई। हालांकि, पति ने विभिन्न दस्तावेजों के आधार पर विवाह को विवादित बताया, जिसमें उल्लेख किया गया कि महिला की पहली शादी उसके भाई से हुई और मैत्री समझौते के निष्पादन के बाद उसके और महिला के बीच विवाह संपन्न हुआ।
केस टाइटल: X बनाम Y
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जिन व्यक्तियों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल नहीं किया गया, उन्हें भी मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया जा सकता है: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने माना कि जिन व्यक्तियों के खिलाफ पुलिस ने आरोप-पत्र दाखिल नहीं किया, उन्हें भी भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 319 के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया जा सकता है, यदि मुकदमे के दौरान उनके खिलाफ मजबूत और ठोस सबूत सामने आते हैं।
जस्टिस जितेंद्र कुमार ने द्रौपदी कुंवर और अन्य द्वारा दायर आपराधिक पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए कहा, "यदि न्यायालय को चल रहे मुकदमे के दौरान प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि उसने अपराध किया है तो न्यायालय को अभियुक्त के साथ मुकदमा चलाने के लिए किसी भी व्यक्ति को बुलाने का अधिकार है।"
केस टाइटल: द्रौपदी कुंवर @ द्रौपती कुंवर और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य
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S.498A IPC | पत्नी के लंबित क्रूरता मामले के कारण पति को सरकारी नौकरी लेने से रोकने वाला सर्कुलर अनुच्छेद 14, 21 का उल्लंघन: राजस्थान हाईकोर्ट
राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने धारा 498ए आईपीसी के तहत लंबित क्रूरता मामले के आधार पर याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी खारिज करने का आदेश रद्द किया, यह फैसला सुनाते हुए कि याचिकाकर्ता "केवल विचाराधीन व्यक्ति" है और मुकदमे के परिणाम के आधार पर उसका भाग्य अभी तय होना बाकी है।
इसके अलावा, अदालत ने कहा कि विवाह के टूटने मात्र को इस तरह नहीं माना जा सकता कि पति "एकमात्र दोषी पक्ष" है, क्योंकि उसकी पत्नी ने उसके खिलाफ आपराधिक आरोप लगाए हैं, जो अभी साबित होने बाकी हैं।
केस टाइटल: अमृत पाल बनाम राजस्थान राज्य और अन्य।
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UAPA के तहत आतंकवादी संगठन को आर्थिक या नेटवर्किंग के माध्यम से समर्थन देना प्रतिबंधित: दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि आतंकवादी संगठन को आर्थिक या नेटवर्किंग या बैठकों के रूप में समर्थन देना गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनिय 1976 (UAPA) के तहत स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित है।
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि UAPA आतंकवादियों और आतंकवादी संगठनों के खिलाफ विभिन्न उपाय करने की अनुमति देता है, जिसमें देश की सुरक्षा और आतंकवादी कृत्यों को होने से रोकने के लिए संपत्ति को जब्त करना शामिल है।
केस टाइटल: ज़फ़र अब्बास @ जाफ़र बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी
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'X' जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर यूजर्स की प्रतिक्रिया सेवा प्रदाता के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का स्वीकार्य तरीका: तेलंगाना हाईकोर्ट
तेलंगाना हाईकोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया शिकायतों को औपचारिक लिखित शिकायतों के विपरीत गंभीरता की कमी के रूप में नहीं देखा जा सकता। साथ ही कहा कि सोशल मीडिया पर शिकायतें/यूजर प्रतिक्रिया शिकायत दर्ज करने का एक अच्छी तरह से स्वीकृत तरीका है। ऐसी शिकायतों को गंभीरता से न लेने का शुतुरमुर्ग रुख नहीं अपनाया जा सकता है।
जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य ने अपने आदेश में कहा कि, "सोशल मीडिया पर शिकायतों को औपचारिक लिखित शिकायतों के विपरीत गंभीरता की कमी के रूप में नहीं देखा जा सकता। सोशल मीडिया पर शिकायतें/यूजर प्रतिक्रिया सेवा प्रदाता के खिलाफ शिकायत दर्ज करने का स्वीकृत तरीका है। याचिकाकर्ता आज के समय में इस बहाने शुतुरमुर्ग नीति नहीं अपना सकता कि सोशल मीडिया शिकायतों को गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए।"
केस टाइटल: एस मथुरा प्रसाद एंड संस बनाम भारत संघ और अन्य
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बिना कारण बताए दूसरे कमिश्नर की नियुक्ति CPC के आदेश 26 नियम 10(3) का उल्लंघन: झारखंड हाईकोर्ट
झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में दिए गए अपने फैसले में इस बात पर जोर दिया कि प्रथम कमिश्नर की रिपोर्ट को नजरअंदाज करने के लिए बिना कारण बताए दूसरे प्लीडर कमिश्नर की नियुक्ति सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 26, नियम 10(3) के प्रावधानों का उल्लंघन है और इसकी निंदा की जानी चाहिए।
इस मामले की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस संजय कुमार द्विवेदी ने निचली अदालत के फैसले की आलोचना करते हुए कहा, "पहले कमिश्नर रिपोर्ट पर औपचारिक रूप से आपत्ति दर्ज किए बिना दूसरे कमिश्नर की नियुक्ति करने की प्रथा बिना इस बात पर विचार किए कि पहले आयुक्त की रिपोर्ट को रद्द किया जाना चाहिए या नहीं, एक ऐसी प्रथा है, जिसकी बहुत कड़ी निंदा नहीं की जा सकती। पहले कमिश्नर रिपोर्ट को रद्द करने के कारणों को न्यायालय द्वारा लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिए।"
केस टाइटल: माया राम बनाम आशा राम और अन्य।