जिन व्यक्तियों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल नहीं किया गया, उन्हें भी मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया जा सकता है: पटना हाईकोर्ट

Amir Ahmad

14 Jan 2025 12:35 PM IST

  • जिन व्यक्तियों के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल नहीं किया गया, उन्हें भी मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया जा सकता है: पटना हाईकोर्ट

    पटना हाईकोर्ट ने माना कि जिन व्यक्तियों के खिलाफ पुलिस ने आरोप-पत्र दाखिल नहीं किया, उन्हें भी भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 319 के तहत मुकदमे का सामना करने के लिए बुलाया जा सकता है, यदि मुकदमे के दौरान उनके खिलाफ मजबूत और ठोस सबूत सामने आते हैं।

    जस्टिस जितेंद्र कुमार ने द्रौपदी कुंवर और अन्य द्वारा दायर आपराधिक पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए कहा,

    "यदि न्यायालय को चल रहे मुकदमे के दौरान प्रस्तुत साक्ष्यों के आधार पर ऐसा प्रतीत होता है कि उसने अपराध किया है तो न्यायालय को अभियुक्त के साथ मुकदमा चलाने के लिए किसी भी व्यक्ति को बुलाने का अधिकार है।"

    यह मामला एक FIR से उत्पन्न हुआ, जिसमें आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ताओं ने केशव मिश्रा के साथ मिलकर इंफॉर्मेंट की झोपड़ी में आग लगा दी, जिससे घरेलू सामान, अनाज की बोरियाँ और 4-5 लाख रुपये के उपकरण को भारी नुकसान पहुंचा।

    पुलिस ने जांच के बाद केवल केशव मिश्रा के खिलाफ आरोप-पत्र दायर किया, जबकि याचिकाकर्ताओं को दोषमुक्त कर दिया। हालांकि, मुकदमे के दौरान, अभियोजन पक्ष के तीन गवाहों- शिवनाथ शाह (पी.डब्लू.-1), बाबूलाल मिश्रा (पी.डब्लू.-2) और लालबाबू मिश्रा (पी.डब्लू.-3) ने अपराध में याचिकाकर्ताओं की संलिप्तता की गवाही दी। इस गवाही के आधार पर अभियोजन पक्ष ने धारा 319 CrPC के तहत एक आवेदन दायर किया, जिसे ट्रायल कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।

    न्यायालय ने साक्ष्य का विश्लेषण करते हुए कहा,

    “पी.डब्लू.-1, शिवनाथ शाह, कथित घटना के प्रत्यक्षदर्शी हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से बयान दिया कि याचिकाकर्ताओं ने मुखबिर के घर में आग लगा दी थी, जिसके परिणामस्वरूप उनका घर और घरेलू सामान नष्ट हो गया। उनके साक्ष्य उनके जिरह के बाद भी नष्ट नहीं हुए प्रतीत होते हैं।”

    न्यायालय ने आगे कहा कि पी.डब्लू.-2 और पी.डब्लू.-3 की गवाही अभियोजन पक्ष के दावों की पुष्टि करती है और क्रॉस एक्जामिनेशन के दौरान बरकरार रही।

    याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि जांच के दौरान उन्हें निर्दोष पाया गया और इसलिए उन्हें तलब नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने इस तर्क को खारिज किया और हरदीप सिंह बनाम पंजाब राज्य (2014) के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि धारा 319 CrPC के तहत शक्ति उन व्यक्तियों तक विस्तारित होती है, जिनके खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल नहीं किया गया यदि मुकदमे के दौरान मजबूत सबूत सामने आते हैं।

    न्यायालय ने अपने फैसले में अपराध के लिए एक मकसद की ओर इशारा करते हुए कहा,

    “अभियोजन पक्ष के साक्ष्य से यह भी प्रतीत होता है कि आरोपी-याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच उस जमीन को लेकर विवाद है, जिस पर शिकायतकर्ता का झोपड़ीनुमा घर खड़ा था और आग से नष्ट हो गया। इस तरह याचिकाकर्ताओं की ओर से अपराध करने के लिए एक मजबूत मकसद प्रतीत होता है।”

    निष्कर्ष में न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट का समन आदेश बरकरार रखते हुए कहा कि चल रहे मुकदमे में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज किए गए सबूत मजबूत और ठोस हैं। यह प्रथम दृष्टया मामला नहीं है। इस प्रकार, आरोपित आदेश में कोई अवैधता या त्रुटि नहीं है, जो वर्तमान याचिका को खारिज करने योग्य बनाती है।

    केस टाइटल: द्रौपदी कुंवर @ द्रौपती कुंवर और अन्य बनाम बिहार राज्य और अन्य

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