अलग होने के समय पिता के साथ रहने वाली बेटी प्राकृतिक अभिभावक के रूप में मां को संरक्षण के अधिकार से वंचित नहीं करती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Amir Ahmad

15 Jan 2025 6:27 AM

  • अलग होने के समय पिता के साथ रहने वाली बेटी प्राकृतिक अभिभावक के रूप में मां को संरक्षण के अधिकार से वंचित नहीं करती: इलाहाबाद हाईकोर्ट

    यह देखते हुए कि मां 4 वर्षीय बेटी की प्राकृतिक अभिभावक है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि भले ही अलग होने के समय नाबालिग बेटी का साथ पति को दे दिया गया हो लेकिन इससे मां को बेटी की संरक्षण के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

    जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और जस्टिस डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने कहा,

    “केवल इसलिए कि मां को उस समय अपनी बेटी के साथ रहने से वंचित किया गया, जब दंपति अलग हुए थे। तथ्य यह है कि बेटी कुछ समय के लिए पिता के साथ रही थी। यह नाबालिग बेटी की संरक्षण मां को देने से इनकार करने के लिए पर्याप्त परिस्थिति नहीं होगी, जो उसकी प्राकृतिक अभिभावक है। चार वर्षीय बेटी की विभिन्न शारीरिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक ज़रूरतें उसकी मां की देखभाल और संरक्षण में बेहतर तरीके से सुरक्षित रहेंगी।”

    पिता-अपीलकर्ता ने 4 वर्षीय बेटी की एकपक्षीय अभिरक्षा मां-प्रतिवादी को दिए जाने के फैमिली कोर्ट के आदेश के विरुद्ध हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दलील दी गई कि पिता बेटी की देखभाल कर रहा था। उसे मां को सौंपने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

    न्यायालय ने पाया कि दोनों पक्षों की शादी 2010 में हुई और उनके एक बेटा और एक बेटी है। पति ने तलाक की याचिका दायर की, जिसमें पत्नी ने बेटी की अभिरक्षा के लिए अर्जी दी। यह देखा गया कि बेटा बोर्डिंग स्कूल में पढ़ रहा था और पिता खर्च उठा रहा था, जबकि बेटी पिता के साथ रह रही थी।

    “मां 5 वर्ष से कम उम्र के नाबालिग बच्चे की प्राकृतिक अभिभावक है। आम तौर पर उसे अपने नाबालिग बच्चे की अभिरक्षा रखने की अनुमति दी जाएगी, जब तक कि विशिष्ट कारणों से एक अलग तरीका जरूरी न हो। यह तय है कि बच्चे की अभिरक्षा के मामले में प्राथमिक चिंता बच्चे का कल्याण और भलाई है।”

    न्यायालय ने पाया कि यह तर्क कि बेटी को पिता की देखभाल से हटाना उसके लिए दर्दनाक होगा, अप्रभावी था। उन्होंने माना कि भले ही हिरासत का हस्तांतरण बच्चे के लिए मनोवैज्ञानिक तनाव का कारण बन सकता है। फिर भी पक्षों के हितों को संतुलित किया जाना चाहिए।

    यह देखा गया कि माँ स्नातक है, अकेली रहती है और माँ द्वारा बेटी को नुकसान पहुंचाने का कोई आरोप नहीं लगाया गया। यह मानते हुए कि माँ बेटी की विभिन्न ज़रूरतों को पूरा कर सकती है, न्यायालय ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।

    यह देखते हुए कि दोनों माता-पिता को मिलने-जुलने का अधिकार दिया गया, न्यायालय ने पिता की अपील खारिज की।

    केस टाइटल: अमित धामा बनाम श्रीमती पूजा और 2 अन्य 2025 लाइव लॉ (एबी) 13 [पहली अपील संख्या - 922/2024]

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