UAPA के तहत आतंकवादी संगठन को आर्थिक या नेटवर्किंग के माध्यम से समर्थन देना प्रतिबंधित: दिल्ली हाईकोर्ट
Amir Ahmad
13 Jan 2025 9:10 AM

दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि आतंकवादी संगठन को आर्थिक या नेटवर्किंग या बैठकों के रूप में समर्थन देना गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनिय 1976 (UAPA) के तहत स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित है।
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और जस्टिस अमित शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि UAPA आतंकवादियों और आतंकवादी संगठनों के खिलाफ विभिन्न उपाय करने की अनुमति देता है, जिसमें देश की सुरक्षा और आतंकवादी कृत्यों को होने से रोकने के लिए संपत्ति को जब्त करना शामिल है।
न्यायालय ने कहा,
“UAPA की धारा 38 आतंकवादी संगठन की सदस्यता से संबंधित है और धारा 39 आतंकवादी संगठन को समर्थन देने पर रोक लगाती है। इस तरह के समर्थन में मौद्रिक समर्थन, बैठकों की व्यवस्था करने में सहायता, आतंकवादी संगठन की गतिविधि का समर्थन करने या उसे आगे बढ़ाने के लिए बैठकों का प्रबंधन करना, धन प्राप्त करना आदि शामिल हो सकते हैं। इसलिए मोटे तौर पर आतंकवादी संगठन को नेटवर्किंग, बैठकों आदि के रूप में मौद्रिक या अन्यथा समर्थन देना स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित है।”
इसमें कहा गया कि वैश्विक संचार की आज की दुनिया में ऐसे आतंकवादी संगठन के साथ बैठक केवल एक शारीरिक बैठक नहीं होनी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि यह इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल प्लेटफॉर्म या इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से बैठकों की व्यवस्था या प्रबंधन भी हो सकता है।
कोर्ट ने कहा कि इसके अलावा जब लश्कर जैसा आतंकवादी संगठन शामिल होता है, जिसने पहले ही भारत में विभिन्न आतंकवादी हमलों की जिम्मेदारी ली है, तो ऐसे संगठन को मौन या सक्रिय समर्थन किसी भी तरह से माफ नहीं किया जा सकता है।
खंडपीठ ने UAPA के तहत एक आरोपी की तीसरी जमानत याचिका को ट्रायल कोर्ट द्वारा खारिज करने के फैसले को बरकरार रखते हुए ये टिप्पणियां कीं।
कोर्ट ने कथित आतंकी फंडिंग मामले के संबंध में जफर अब्बास द्वारा दायर अपील खारिज की।
NIA का मामला था कि पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर ए-तैयबा (LET) ने भारत के विभिन्न हिस्सों में अपनी आतंकवादी गतिविधियों की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में सहायता प्रदान करने के लिए गुर्गों या जमीनी कार्यकर्ताओं का एक व्यापक नेटवर्क स्थापित किया था।
अब्बास पर फर्जी पैन कार्ड और अन्य दस्तावेजों का उपयोग करके फर्जी बैंक अकाउंट खोलने, उक्त बैंक अकाउंट के माध्यम से विभिन्न अवैध और गैरकानूनी गतिविधियों के लिए धन हस्तांतरित करने, जिसमें लश्कर के अन्य OGW को मौद्रिक लाभ पहुंचाना शामिल है, उसका आरोप लगाया गया। उस पर फर्जी बैंक अकाउंट के माध्यम से हस्तांतरित धन को वितरित करने का भी आरोप लगाया गया।
अपील खारिज करते हुए न्यायालय ने पाया कि अब्बास प्रथम दृष्टया कुछ सह-आरोपी व्यक्तियों के साथ साजिश कर रहा था, जिन्होंने उसे गैर-मौजूद व्यक्तियों के नाम पर या व्यक्तियों की जानकारी के बिना फर्जी तरीके से सिम कार्ड प्राप्त करने में सक्षम बनाया।
न्यायालय ने कहा,
"उपर्युक्त साक्ष्य स्पष्ट रूप से UAPA की धारा 43डी(5) के तहत परीक्षणों को संतुष्ट करते हैं। प्रथम दृष्टया, अपीलकर्ता इस स्तर पर अपनी बेगुनाही साबित करने में असमर्थ रहा है। वास्तव में साक्ष्यों की श्रृंखला लश्कर सहित उसके संचालकों और ऑपरेटरों के साथ उसके संबंध स्थापित करती है।"
केस टाइटल: ज़फ़र अब्बास @ जाफ़र बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी