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National Security Act में निरोध आदेश रद्द करना
इस एक्ट में दिया गया कोई भी निरोध का आदेश रद्द भी किया जा सकता है। इस एक्ट की धारा 14 में निरोध के आदेश को रद्द करने के संबंध में प्रावधान है-"(1) | जनरल क्लाजेज एक्ट, 1897 (1897 का क्रमांक 10) की धारा 21 के उपबन्ध को हानि पहुँचाये बिना निरोधादेश किसी भी समय उपांतरित या रद्द किया जा सकेगा।(क) भले ही वह आदेश धारा 3 की उपधारा (3) में वर्णित राज्य सरकार द्वारा जिसका कि वह अधिकारी अधीनस्थ है या केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया हो;(ख) भले ही वह आदेश राज्य सरकार द्वारा बनाया गया हो या केन्द्रीय सरकार...
Sales of Goods Act, 1930 की धारा 18 से 22 तक - अनुबंध के प्रभाव और संपत्ति का हस्तांतरण
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय III अनुबंध के प्रभावों (Effects of the Contract) से संबंधित है, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण पहलू विक्रेता (Seller) और खरीदार (Buyer) के बीच माल में संपत्ति का हस्तांतरण (Transfer of Property in Goods) है।माल में संपत्ति के हस्तांतरण का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह आमतौर पर जोखिम (Risk) के हस्तांतरण (Passing of Risk) को निर्धारित करता है। जिस पक्ष के पास माल का स्वामित्व (Ownership) होता है, वही आमतौर पर उसके नुकसान या क्षति (Loss or...
क्या प्राथमिक कक्षा में पढ़ाने के लिए केवल B.Ed. डिग्रीधारी शिक्षक योग्य माने जा सकते हैं?
अनुच्छेद 21A और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का महत्व (Article 21A and Importance of Quality Education)भारत के संविधान का अनुच्छेद 21A (Article 21A) यह गारंटी देता है कि हर बच्चे को 14 वर्ष की आयु तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा (Free and Compulsory Education) मिले। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने देवेश शर्मा बनाम भारत संघ (2023) मामले में यह साफ किया कि यह अधिकार केवल स्कूल जाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (Quality Education) भी शामिल है। गुणवत्ता कोई अतिरिक्त या वैकल्पिक चीज़ नहीं है,...
नीलामी की निष्पक्षता, भुगतान की शर्तें और पुनः बिक्री की प्रक्रिया – राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 240 से 245
नीलामी की निष्पक्षता, भुगतान की शर्तें और पुनः बिक्री की प्रक्रिया – राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 240 से 245 राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 (Rajasthan Land Revenue Act, 1956) की धाराएँ 240 से 245 नीलामी (Auction) की प्रक्रिया को निष्पक्ष, पारदर्शी और कानूनी रूप से संरक्षित बनाए रखने के उद्देश्य से लागू की गई हैं। जब किसी डिफॉल्टर की भूमि या अचल संपत्ति को बकाया राजस्व या किराया वसूलने हेतु नीलाम किया जाता है, तो यह धाराएँ सुनिश्चित करती हैं कि प्रक्रिया का दुरुपयोग न हो, समय पर...
Indian Partnership Act, 1932 की धारा 4-8 : भागीदारी की प्रकृति
भागीदारी क्या है? (What is Partnership?)भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 4 (Section 4) हमें बताती है कि भागीदारी (Partnership) उन व्यक्तियों के बीच का संबंध है, जिन्होंने एक व्यवसाय के मुनाफे (Profits) को साझा करने के लिए सहमति दी है। यह व्यवसाय उन सभी द्वारा या उनमें से किसी एक द्वारा चलाया जा सकता है, जो सभी के लिए काम कर रहा हो। जो व्यक्ति एक-दूसरे के साथ भागीदारी में आते हैं, उन्हें व्यक्तिगत रूप से 'भागीदार' (Partners) कहा जाता है, और सामूहिक रूप से...
सिविल और आपराधिक मामलों समन की पूरी प्रक्रिया
भारतीय कानूनी प्रणाली के जटिल परिदृश्य में, एक "समन" एक मूलभूत कानूनी साधन के रूप में कार्य करता है, कानून की अदालत से एक औपचारिक सूचना जो गति में न्याय के पहियों को गति प्रदान करती है। यह एक लिखित आदेश है जो किसी व्यक्ति की उपस्थिति को मजबूर करता है, चाहे वह दीवानी मुकदमे में प्रतिवादी हो या आपराधिक मामले में अभियुक्त, या एक गवाह जिसकी गवाही को महत्वपूर्ण माना जाता है। समन जारी करना और लागू करना सिविल और आपराधिक मामलों के लिए अलग-अलग प्रक्रियात्मक कानूनों द्वारा शासित होता है, अर्थात् सिविल...
National Security Act में लोक व्यवस्था किसे कहा गया है?
इस एक्ट में लोक व्यवस्था शब्द महत्वपूर्ण है क्योंकि इस एक्ट के अंतर्गत निरोध का आदेश पारित किये जाने के लिए लोक व्यवस्था बनाये रखने का कारण ज़रूर होना चाहिए। समाज के स्वरूप को विखंड़ित करने के लिए किसी व्यक्ति द्वारा समस्त लोक की संचना अथवा सुचारू व्यवस्था को किसी तरह क्षति पहँचाई जाती है, प्रतिदिन के जन-जीवन को सुव्यवस्थित बनाए रखने में बाधा उत्पन्न की जाती है, आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता में व्यवधान उत्पन्न किया जाता है।वस्तुओं का अनुचित लाभ प्राप्त करने के तरीके से व्यापार अथवा व्यवसाय किया...
National Security Act की धारा 5, 7,8 के प्रावधान
धारा 5 के अनुसार-प्रत्येक व्यक्ति जिसके लिए निरोधादेश बनाया गया है, उत्तरदायी होगा(क) निरुद्ध रहने के लिए ऐसे स्थान से और परिस्थितियों के अधीन अनुशासन और व्यवस्था के प्रतिबंधों के सहित और अनुशासनहीनता के लिए दंड जो उपयुक्त सरकार द्वारा सामान्य या विशेष आदेश में निर्दिष्ट हो, और(ख) हटाये जाने के लिए निरोध के एक स्थान से अन्य स्थान को, भले ही उसी राज्य में या अन्य राज्यों में समुचित सरकार के आदेश द्वारा,परन्तु यह प्रतिबंध है कि खंड (ख) के अधीन राज्य सरकार के द्वारा एक राज्य से अन्य राज्य में जब तक...
माल की गुणवत्ता और नमूने द्वारा बिक्री: Sales of Goods Act की धारा 15, 16 और 17
वर्णन द्वारा बिक्री (Sale by Description)माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 की धारा 15 'वर्णन द्वारा बिक्री' (Sale by Description) की अवधारणा (Concept) से संबंधित एक महत्वपूर्ण निहित शर्त (Implied Condition) निर्धारित करती है। धारा 15 के अनुसार, जहाँ माल की बिक्री का अनुबंध वर्णन द्वारा (by description) होता है, तो एक निहित शर्त (Implied Condition) होती है कि माल उस वर्णन के अनुरूप (Correspond with the Description) होगा। यह खरीदार के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा है, यह सुनिश्चित करती है...
क्या केवल संदेहपूर्ण आरोपों के आधार पर दर्ज FIR को खारिज किया जा सकता है जब यह दुर्भावना से की गई हो?
FIR रद्द करने की न्यायिक रूपरेखा (Judicial Framework for Quashing FIRs)सुप्रीम कोर्ट ने सलीब @ शालू @ सलीम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य (2023) के निर्णय में यह स्पष्ट किया कि किसी FIR (First Information Report) को रद्द (Quash) करने की शक्ति विशेष परिस्थितियों में सावधानीपूर्वक और सीमित रूप में प्रयोग की जानी चाहिए। जब आरोप इतने अवास्तविक (Absurd) हों कि वे कानूनी अपराध की कोई स्पष्ट जानकारी न दें या आरोप स्पष्ट रूप से बदले की भावना (Private Vengeance) से प्रेरित हों, तब न्यायालय FIR को रद्द कर...
Indian Partnership Act, 1932: एक व्यापक अवलोकन
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932, भारत में भागीदारी फर्मों (Partnership Firms) के गठन, विनियमन और विघटन (Dissolution) से संबंधित कानून को नियंत्रित करता है। यह अधिनियम व्यापारिक समुदायों के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी ढांचा प्रदान करता है, जिससे व्यक्तियों के समूह को एक साथ मिलकर व्यवसाय चलाने और लाभ साझा करने की अनुमति मिलती है।अधिनियम की पृष्ठभूमि और उद्देश्य (Background and Objectives of the Act) भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932, ब्रिटिश भारत में पारित किया गया था। इससे पहले, भागीदारी से संबंधित...
अन्य अचल संपत्ति से वसूली की शक्ति : राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 237 से 239
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 (Rajasthan Land Revenue Act, 1956) के अध्याय में जब राजस्व या किराया बकाया (Arrear of Revenue or Rent) होता है और सामान्य प्रक्रिया से वसूली संभव नहीं होती, तब कुछ विशेष शक्तियाँ (Special Powers) कलेक्टर को प्रदान की गई हैं।धाराएँ 237 से 239 तक इस स्थिति में लागू होती हैं, जहां डिफॉल्टर की किसी अन्य अचल संपत्ति (Immovable Property) से वसूली की जा सकती है और उस संपत्ति को नीलाम किया जा सकता है। इस लेख में हम इन धाराओं का सरल हिंदी में विश्लेषण करेंगे और समझेंगे कि...
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 88, 89 और 90 : साइबर नियमन सलाहकार समिति का गठन
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 भारत में डिजिटल लेन-देन, साइबर सुरक्षा और ऑनलाइन सेवाओं को नियंत्रित करने वाला प्रमुख कानून है। यह अधिनियम न केवल कंप्यूटर संसाधनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि डिजिटल दुनिया में पारदर्शिता, जवाबदेही और सुरक्षा बनी रहे।पिछले खंडों में हमने देखा कि किस प्रकार केंद्र सरकार और नियंत्रक (Controller) को नियम और विनियम बनाने की शक्ति दी गई है। अब हम जिन धाराओं पर चर्चा करने जा रहे हैं, वे हैं धारा 88, 89 और...
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 234 से 236: डिफॉल्टर की भूमि का स्वामित्वांतरण और बिक्री की प्रक्रिया
राजस्व वसूली के सुसंगठित ढांचे के अंतर्गत, राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएँ 234, 235 और 236 उन विशेष परिस्थितियों की व्याख्या करती हैं जब डिफॉल्टर (बकाया राजस्व देने में असफल भू-स्वामी) की भूमि या उसका हिस्सा राज्य सरकार द्वारा किसी अन्य सह-स्वामी को सौंपा जा सकता है या नीलामी द्वारा बेचा जा सकता है।धारा 234 – डिफॉल्टर के हिस्से का स्वामित्वांतरण (Transfer of Defaulter's Share) इस धारा के अनुसार यदि किसी सम्पत्ति के हिस्से, पट्टी (Patti) या सम्पूर्ण एस्टेट (Estate) पर राजस्व बकाया है,...
क्या राष्ट्रीयकृत बैंक का अधिकारी सरकारी मंज़ूरी के बिना Section 197 CrPC की सुरक्षा का हकदार हो सकता है?
सुप्रीम कोर्ट ने ए. श्रीनिवास रेड्डी बनाम राकेश शर्मा व अन्य (Criminal Appeal No. 2339 of 2023, निर्णय दिनांक 8 अगस्त 2023) में यह स्पष्ट किया कि क्या राष्ट्रीयकृत (Nationalised) बैंक के एक अधिकारी को दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973 - CrPC) की धारा 197 के तहत सरकारी मंज़ूरी के बिना अभियोजन (Prosecution) से सुरक्षा प्राप्त हो सकती है।इस फैसले में कोर्ट ने यह साफ किया कि सभी पब्लिक सर्वेंट (Public Servant) को इस धारा के तहत सुरक्षा नहीं मिलती, विशेष रूप से जब वे ऐसे...
शर्तें और वारंटी: Sales of Goods Act, 1930 की धारा 11, 12, 13 और 14
समय संबंधी शर्त (Stipulations as to Time)माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय III शर्तों (Conditions) और वारंटियों (Warranties) से संबंधित महत्वपूर्ण अवधारणाओं (Important Concepts) की पड़ताल करता है। इन अवधारणाओं को समझना महत्वपूर्ण है क्योंकि वे उल्लंघन (Breach) की स्थिति में खरीदार (Buyer) और विक्रेता (Seller) दोनों के अधिकारों और उपायों (Rights and Remedies) को निर्धारित करती हैं। धारा 11 अनुबंध में समय (Time) के महत्व से संबंधित है। यह स्पष्ट करती है कि, जब तक अनुबंध की...
National Security Act में निरोध का आर्डर
इस एक्ट में धारा 3 निरोध में रखे जाने का आदेश दिए जाने की शक्ति स्टेट को देती है। इस धारा के अनुसार-(1) केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार(क) यदि किसी व्यक्ति के संबंध में संतुष्ट है, कि भारत की प्रतिरक्षा की किसी हानिकारक कार्य को रोकने के दृष्टि से जो कि भारत की सुरक्षा वैदेशिक शक्तियों से भारत के संबंध में, या(ख) यदि किसी भी विदेशी के बारे में इस बात से संतुष्ट हैं कि वह अपनी लगातार उपस्थिति भारत में विनियमित करने की दृष्टि से या भारत से स्वयं को भगाने की व्यवस्था करने की दृष्टि से प्रयत्न कर रहा...
National Security Act क्राइम रोकने का कानून
कानूनों में कुछ क़ानून ऐसे होते हैं जो रोकथाम का काम करते हैं। NSA भी ऐसा ही क़ानून है जो अपराध रोकने के उद्देश्य से बनाया गया है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 व्यक्तियों को प्राण और दैहिक स्वतंत्रता प्रदान करता है परंतु अनुच्छेद 22(3) में प्रावधान निवारक निरोध के संबंध में उल्लेख करते हैं। किसी भी राज्य का यह कर्तव्य है कि राज्य सामूहिक हितों की रक्षा करें और ऐसी रक्षा करते समय उसे इस प्रकार के अधिनियम की आवश्यकता है।यदि कोई व्यक्ति बार-बार अपराधों में संलिप्त है तथा वह आए दिन कोई न कोई अपराध...
क्या PMLA मामले में ED गिरफ्तारी के बाद CrPC को दरकिनार कर पुलिस कस्टडी मांग सकती है?
PMLA और CrPC के तहत गिरफ्तारी का दायरा (Scope of Arrest under PMLA and CrPC)सुप्रीम कोर्ट ने वी. सेंथिल बालाजी बनाम राज्य (2023) में यह तय किया कि प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट, 2002 (Prevention of Money Laundering Act – PMLA) के तहत प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate – ED) गिरफ्तारी कर सकता है और अपराध प्रक्रिया संहिता 1973 (Code of Criminal Procedure – CrPC) की धारा 167 के तहत कस्टडी (Custody) की मांग भी कर सकता है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि ED के अधिकारी पारंपरिक अर्थों में...
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 87: नियम बनाने की केंद्र सरकार की शक्ति
सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 का उद्देश्य डिजिटल युग में साइबर अपराधों को नियंत्रित करना, डिजिटल दस्तावेजों की वैधता को सुनिश्चित करना और ऑनलाइन लेन-देन को कानूनी सुरक्षा प्रदान करना है। इस अधिनियम में केंद्र सरकार को विभिन्न धाराओं के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए नियम (Rules) बनाने का अधिकार भी दिया गया है। यह अधिकार विशेष रूप से अधिनियम की धारा 87 में बताया गया है। इस लेख में हम धारा 87 को विस्तार से समझेंगे, साथ ही इसमें उल्लिखित अन्य धाराओं का संक्षेप में उल्लेख करते हुए यह जानेंगे कि ये...



















