धारा 353, भारतीय न्याय संहिता, 2023: लोक उपद्रव फैलाने वाले बयानों पर कानूनी दृष्टिकोण

Himanshu Mishra

24 Jan 2025 12:24 PM

  • धारा 353, भारतीय न्याय संहिता, 2023: लोक उपद्रव फैलाने वाले बयानों पर कानूनी दृष्टिकोण

    भारतीय न्याय संहिता, 2023 (Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023) में ऐसे प्रावधान शामिल हैं जो सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने, व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करने और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए बनाए गए हैं।

    इसमें धारा 353 उन मामलों को संबोधित करती है, जिनमें झूठे बयान, अफवाहें या रिपोर्ट्स (Reports) बनाने, प्रकाशित करने या प्रसारित करने से लोक व्यवस्था बाधित होती है। यह कानून ऐसे कृत्यों को रोकने और दंडित करने का प्रावधान करता है, जिनसे सामाजिक अशांति या वर्ग संघर्ष हो सकता है।

    धारा 353 का परिचय: लोक उपद्रव (Public Mischief) के माध्यम से गलत बयानबाजी

    धारा 353 विशेष रूप से झूठे बयानों, अफवाहों या रिपोर्ट्स को प्रकाशित करने या प्रसारित करने की क्रिया को अपराध घोषित करती है। इसमें यह भी शामिल है कि ये कार्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (Electronic Means) के जरिए किए गए हों। इसका मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक शांति बनाए रखना, सशस्त्र बलों की सुरक्षा सुनिश्चित करना और विभिन्न समुदायों के बीच दुश्मनी को रोकना है।

    उपधारा (1): राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक शांति पर प्रभाव डालने वाले बयान

    धारा 353 की पहली उपधारा उन कृत्यों को अपराध मानती है, जो सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान पहुंचाते हैं या सार्वजनिक शांति को भंग करते हैं।

    इसमें उन बयानों या अफवाहों को शामिल किया गया है जो:

    • सशस्त्र बलों के सदस्यों को विद्रोह (Mutiny) या कर्तव्य पालन में चूक के लिए उकसाते हैं।

    • जनता में भय (Fear) या चिंता उत्पन्न करते हैं, जिससे राज्य (State) या सार्वजनिक शांति के खिलाफ अपराध हो सकता है।

    • एक वर्ग या समुदाय को दूसरे वर्ग या समुदाय के खिलाफ अपराध करने के लिए प्रेरित करते हैं।

    उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति अफवाह फैलाता है कि सेना के जवानों को अपनी ड्यूटी छोड़ने के आदेश दिए गए हैं और इससे बलों में अशांति फैलती है, तो यह इस उपधारा के तहत अपराध होगा।

    उपधारा (2): वर्गों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना

    दूसरी उपधारा उन बयानों या रिपोर्ट्स को अपराध मानती है, जो विभिन्न धार्मिक, जातीय, भाषाई, क्षेत्रीय या जातिगत समूहों के बीच दुश्मनी, घृणा (Hatred) या शत्रुता को बढ़ावा देते हैं। यह प्रावधान समाज में सामुदायिक असहमति और विभाजन को रोकने के लिए बनाया गया है।

    उदाहरण के तौर पर, यदि कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर झूठी जानकारी साझा करता है कि एक विशेष धार्मिक समूह दूसरे के खिलाफ षड्यंत्र कर रहा है, और इससे सामुदायिक तनाव उत्पन्न होता है, तो यह इस उपधारा के तहत अपराध माना जाएगा।

    उपधारा (3): धार्मिक या अनुष्ठानिक स्थलों पर अपराध

    तीसरी उपधारा उन अपराधों को संबोधित करती है जो पूजा स्थलों (Places of Worship) या धार्मिक अनुष्ठानों (Religious Ceremonies) के दौरान किए जाते हैं। ऐसे मामलों में अपराध की गंभीरता को देखते हुए कठोर दंड का प्रावधान किया गया है।

    उदाहरण के लिए, यदि किसी धार्मिक उत्सव के दौरान कोई झूठा दावा करता है कि एक पवित्र स्थल का अपमान किया गया है, और इससे दो समुदायों के बीच हिंसा होती है, तो इस उपधारा के तहत अपराधी को पांच साल तक की सजा और जुर्माना देना होगा।

    अपवाद: सद्भावना और उचित विश्वास

    धारा 353 में एक महत्वपूर्ण अपवाद दिया गया है, जो सद्भावना (Good Faith) में किए गए कार्यों को संरक्षित करता है। यदि कोई व्यक्ति यह मानते हुए कि उसकी दी गई जानकारी सही है और बिना दुर्भावनापूर्ण इरादे के उसे साझा करता है, तो वह इस धारा के तहत दोषी नहीं माना जाएगा।

    उदाहरण के लिए, यदि एक पत्रकार विश्वसनीय स्रोतों (Credible Sources) के आधार पर किसी घटना की रिपोर्ट करता है, लेकिन बाद में वह जानकारी झूठी साबित होती है, तो उसे इस धारा के तहत दोषी नहीं माना जाएगा, बशर्ते उसने यह काम सद्भावना में किया हो।

    आधुनिक संदर्भ और चुनौतियाँ

    आज के डिजिटल युग (Digital Era) में, झूठी जानकारी के माध्यम से लोक उपद्रव फैलाने की संभावना कई गुना बढ़ गई है। सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक संचार (Electronic Communication) अफवाहों और झूठे बयानों को तेजी से फैलाने का माध्यम बन गए हैं। धारा 353 में इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों को शामिल करके इन आधुनिक चुनौतियों को संबोधित करने की क्षमता है।

    उदाहरण के लिए, यदि व्हाट्सएप (WhatsApp) पर एक संदेश वायरल हो जाता है जिसमें यह झूठा दावा किया जाता है कि किसी क्षेत्र में सांप्रदायिक तनाव है, तो इससे तुरंत डर और अराजकता उत्पन्न हो सकती है। इस प्रकार, यह प्रावधान ऐसे मामलों में जिम्मेदारी सुनिश्चित करता है।

    सामाजिक समरसता और सार्वजनिक शांति का महत्व

    धारा 353 भारत जैसे विविध देश में सामाजिक समरसता (Communal Harmony) और सार्वजनिक शांति (Public Order) के महत्व को रेखांकित करती है। यह उन कृत्यों को दंडित करके इन मूल्यों की रक्षा करती है, जो इन्हें बाधित करते हैं।

    संबंधित धाराओं से जुड़ाव

    धारा 353 का संबंध भारतीय न्याय संहिता की अन्य धाराओं से भी है, जैसे धारा 352 (जानबूझकर अपमान) और धारा 351 (आपराधिक धमकी)। ये धाराएँ मिलकर एक व्यापक कानूनी ढांचा बनाती हैं जो सार्वजनिक शांति और व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने वाले अपराधों को रोकती हैं।

    उदाहरण के लिए, जहाँ धारा 352 तत्काल सार्वजनिक व्यवधान पैदा करने वाले अपमान पर ध्यान केंद्रित करती है, वहीं धारा 353 व्यापक और पूर्वनियोजित लोक उपद्रव को संबोधित करती है।

    भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 353 झूठे बयानों, अफवाहों या रिपोर्ट्स के माध्यम से लोक उपद्रव फैलाने वाले कृत्यों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह प्रावधान इन अपराधों को दंडित करके सामाजिक समरसता और सार्वजनिक शांति को बनाए रखने में मदद करता है।

    इसकी अपवाद शर्त, जो सद्भावना में किए गए कार्यों को संरक्षित करती है, इसे और अधिक न्यायसंगत बनाती है। कठोर दंड और आधुनिक संदर्भ में इसकी प्रासंगिकता के माध्यम से धारा 353 जिम्मेदार संचार को प्रोत्साहित करती है और समाज में शांति और समरसता सुनिश्चित करती है।

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