जानिए हमारा कानून
Sales of Goods Act, 1930 की धारा 31- 35: विक्रेता और खरीदार के कर्तव्य
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय IV अनुबंध के प्रदर्शन (Performance of the Contract) से संबंधित है, जिसमें विक्रेता (Seller) और खरीदार (Buyer) दोनों के कर्तव्य (Duties) और अधिकार (Rights) शामिल हैं जब वे अनुबंध के तहत अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करते हैं।यह अध्याय बिक्री लेनदेन के अंतिम चरण पर ध्यान केंद्रित करता है - माल की सुपुर्दगी (Delivery of Goods) और कीमत का भुगतान (Payment of Price)। विक्रेता और खरीदार के कर्तव्य (Duties of Seller and Buyer) धारा 31 अनुबंध के...
सरकार द्वारा वसूली, न्यायिक क्षेत्र और शक्तियों के हस्तांतरण को लेकर प्रावधान – राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 258 से 260
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 एक ऐसा व्यापक कानून है जो न केवल भूमि से जुड़ी राजस्व वसूली की प्रक्रिया तय करता है, बल्कि यह भी स्पष्ट करता है कि किन मामलों में दीवानी अदालतों (Civil Courts) का अधिकार क्षेत्र सीमित होगा और किन सरकारी अधिकारियों को कौन-से कार्य सौंपे जा सकते हैं। इस लेख में हम धाराएँ 258, 259 और 260 का सरल, क्रमवार और व्याख्यात्मक विश्लेषण करेंगे।धारा 258 – लागत और अन्य देनदारियों की वसूली (Recovery of Costs etc.)इस धारा के अनुसार, जो भी दरें (rates), लागत (costs), शुल्क...
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 19-24: भागीदारों का तीसरे पक्ष से संबंध
भागीदार फर्म का एजेंट होता है (Partner to be Agent of the Firm)भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 18 (Section 18) यह स्पष्ट करती है कि इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन रहते हुए, एक भागीदार फर्म के व्यवसाय के उद्देश्यों के लिए फर्म का एजेंट (Agent) होता है। इसका मतलब है कि एक भागीदार के कार्य फर्म को वैसे ही बाध्य करते हैं जैसे एक प्रिंसिपल (Principal) के एजेंट के कार्य प्रिंसिपल को बाध्य करते हैं। यह भागीदारी की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है, जिसे...
Sales of Goods Act, 1930 की धारा 27-30 : बिक्री के बाद विक्रेता या खरीदार का कब्ज़ा
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय III माल में संपत्ति (Property in Goods) के हस्तांतरण के महत्वपूर्ण पहलुओं को जारी रखता है। यहाँ शीर्षक का हस्तांतरण (Transfer of Title) एक केंद्रीय विषय है, जिसका अर्थ है माल का स्वामित्व (Ownership) कैसे और कब एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को वैध रूप से गुजरता है।ये धाराएँ 'निमो डेट क्वाड नॉन हैबेट' (Nemo Dat Quod Non Habet) के सामान्य नियम के अपवादों (Exceptions) को स्थापित करती हैं, जिसका अर्थ है "कोई भी व्यक्ति वह नहीं दे सकता जो उसके पास...
क्या केवल कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो जाने से मैटरनिटी बेनिफिट रोका जा सकता है?
भारत में मातृत्व लाभ (Maternity Benefit) का कानूनी आधार (Legal Basis)मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 (Maternity Benefit Act, 1961) का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कामकाजी महिलाओं को गर्भावस्था, प्रसव और उससे जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी ज़रूरतों के दौरान सुरक्षा और वित्तीय सहायता मिले। इस अधिनियम की धारा 5 (Section 5) के तहत महिला को अधिकतम 26 सप्ताह तक का वेतन सहित मातृत्व लाभ प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है। धारा 5(2) कहती है कि यदि महिला ने प्रसव से पहले के 12 महीनों में कम से कम 80 दिन कार्य...
क्या सरकार द्वारा देय सभी बकायों की वसूली 'बकाया भू-राजस्व' की तरह हो सकती है? – राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 256 और 257
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 में यह सुनिश्चित किया गया है कि राज्य सरकार को देय विभिन्न प्रकार की धनराशियों की वसूली भू-राजस्व (Land Revenue) की तरह की जा सके। इसके लिए धाराएँ 256 और 257 विशेष रूप से यह अधिकार प्रदान करती हैं कि सरकार या उसके अधिकारियों को किसी भी प्रकार की राशि, चाहे वह टैक्स हो, फीस हो, जुर्माना हो या ठेका सम्बंधित राशि हो, उसे भू-राजस्व की तरह वसूल किया जा सके। इस लेख में इन दोनों धाराओं का सरल हिन्दी में विवरण प्रस्तुत है।धारा 256 – विविध (Miscellaneous) राजस्व और अन्य...
भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 की धारा 13 - 17: भागीदारों के आपसी अधिकार, दायित्व और फर्म की संपत्ति
भागीदारों के आपसी अधिकार और दायित्व (Mutual Rights, and Liabilities of Partners)भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 13 (Section 13) भागीदारों के आपसी अधिकारों और देनदारियों को स्पष्ट करती है, बशर्ते भागीदारों के बीच कोई विपरीत अनुबंध (Contract) न हो: • (क) पारिश्रमिक का अधिकार नहीं (Not Entitled to Remuneration): एक भागीदार को व्यवसाय के संचालन में भाग लेने के लिए पारिश्रमिक (Remuneration) यानी वेतन या मजदूरी प्राप्त करने का अधिकार नहीं होता है। सामान्यतः,...
Arbitration And Conciliation Act में Arbitral Award और International Commercial Arbitration
इस एक्ट की धारा 2 (1) (c) के अनुसार "मध्यस्थ पंचाट" के अन्तर्गत एक अन्तरिम पंचाट का उल्लेख किया गया है।यह धारा "माध्यस्थम् पंचाट" को परिभाषित नहीं करती बल्कि यह बताती है कि माध्यस्थम् पंचाट में अन्तरिम पंचाट भी शामिल है। इस प्रकार माध्यस्थम् पंचाट में दो भाग है-Interim AwardFinal Awardसामान्य तौर पर मध्यस्थ पंचाट पक्षकारों द्वारा चयनित न्यायाधिकरण के द्वारा अन्तिम अन्तरिम निर्णय या अविनिश्चिय होता है जो संविदा से पैदा होता है। भारत संघ बनाम जे० एन० मिश्र, AIR 1970 SC 753 के मामले में सुप्रीम...
Arbitration And Conciliation Act में Arbitration और Arbitration Agreement
इस एक्ट की धारा 2 (1) (a) के अनुसार माध्यस्थम् से अभिप्रेत है कोई भी मध्यस्थ चाहे स्थाई माध्यस्थम् संस्था द्वारा प्रायोजित किया जाये या न किया जाये।इस परिभाषा में वे व्यक्ति भी शामिल हैं जो व्यक्तिगत पक्षकारों के स्वैच्छिक करार पर आधारित हो या विधि के प्रावधानों के फलस्वरूप अस्तित्व में आये हों। पर परिभाषा यह नहीं बताती है कि कौन मध्यस्थ है बल्कि यह उल्लेखित करती है कि कौन-कौन मध्यस्थ हैं। पुराने अधिनियम में भी मध्यस्थ की परिभाषा नहीं दी गई थी।सामान्य भाषा में माध्यस्थम् का अर्थ पक्षकारों के...
Indian Partnership Act, 1932 की धारा 9-12 : भागीदारों के आपसी संबंध
भागीदारों के सामान्य कर्तव्य (General Duties of Partners)भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 9 (Section 9) भागीदारों के सामान्य कर्तव्यों (General Duties) को परिभाषित करती है। इसके अनुसार, भागीदारों को फर्म का व्यवसाय सबसे बड़े सामान्य लाभ (Greatest Common Advantage) के लिए चलाना चाहिए। उन्हें एक-दूसरे के प्रति न्यायपूर्ण (Just) और ईमानदार (Faithful) होना चाहिए। इसके अलावा, फर्म को प्रभावित करने वाली सभी चीजों की सही जानकारी (True Accounts) और पूरी जानकारी...
क्या क्लब की बैंक डिपॉज़िट से अर्जित ब्याज म्युचुअलिटी सिद्धांत के तहत टैक्स से मुक्त हो सकता है?
मूल प्रश्न की समझ (Understanding the Core Issue)सुप्रीम कोर्ट ने Secunderabad Club बनाम आयकर आयुक्त (Commissioner of Income Tax) के फैसले में यह तय किया कि क्या क्लब द्वारा बैंक में की गई फिक्स्ड डिपॉज़िट (Fixed Deposit) से अर्जित ब्याज आय (Interest Income) को म्युचुअलिटी के सिद्धांत (Principle of Mutuality) के तहत इनकम टैक्स से छूट मिल सकती है। म्युचुअलिटी का मतलब होता है – "कोई व्यक्ति स्वयं से लाभ नहीं कमा सकता"। यानी अगर क्लब के सदस्य ही फंड में योगदान करते हैं और वही सेवाएं लेते हैं, तो...
Sales of Goods Act, 1930 : जोखिम का हस्तांतरण - धारा 26
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय III अनुबंध के प्रभावों (Effects of the Contract) को समझना जारी रखता है, और इसमें धारा 26 एक अत्यंत महत्वपूर्ण सिद्धांत (Crucial Principle) स्थापित करती है: जोखिम का हस्तांतरण (Passing of Risk)। यह धारा इस बात को निर्धारित करती है कि माल के नुकसान या क्षति (Loss or Damage) का दायित्व (Liability) कब विक्रेता (Seller) से खरीदार (Buyer) को हस्तांतरित होता है।जोखिम प्रथम दृष्टया संपत्ति के साथ गुजरता है (Risk Prima Facie Passes with Property) ...
नीलामी के बाद खरीदार के अधिकार और सह-स्वामियों के Pre-emption अधिकार : राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 251 से 254
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 के अंतर्गत जब किसी भूमि या अचल संपत्ति की नीलामी की जाती है और उसे अंतिम रूप से अनुमोदन (Confirmation) मिल जाता है, तो उसके बाद उस संपत्ति का स्वामित्व, कब्जा, और उससे संबंधित दायित्वों का निर्धारण कानून के अनुसार किया जाता है। धाराएँ 251 से 254 इसी प्रक्रिया को स्पष्ट करती हैं। यह लेख इन धाराओं का सरल भाषा में विश्लेषण करता है।धारा 251 – खरीदार को कब्जा दिलाना और प्रमाणपत्र देना (Purchaser to be Put in Possession – Certificate of Purchase) जब किसी भूमि या अचल...
Arbitration And Conciliation Act को बनाये जाने की जरूरत क्यों थी?
संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विधि आयोग ने अंतरराष्ट्रीय वाणिज्य माध्यस्थम पर संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विधि आयोग आदेश विधि को स्वीकार कर लिया था, जिस कारण भारत में भी ऐसी ही विधि की आवश्यकता थी। संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग ने संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग ने उन नियमों को स्वीकार कर लिया था, इसलिए भारत में 2016 विधि संबंधी नियमों की आवश्यकता थी।अंतर्राष्ट्रीय माध्यस्थम तथा सुलह संबंधी प्रक्रिया को ध्यान में रखकर उचित विधि की आवश्यकता थी जो कि...
Arbitration And Conciliation Act सुलह का कानून
महत्वपूर्ण और बड़े विवादों को सुलझाने के लिए Arbitration And Conciliation Act का क़ानून बनाया गया है। इस अधिनियम में कुल 86 धाराएं हैं तथा जिसे अलग-अलग भागों में बांटा गया है। इस अधिनियम के अंतर्गत 3 अनुसूचियां भी शामिल की गई हैं। इसके पहले के माध्यस्थम अधिनियम 1940 में अंतरराष्ट्रीय माध्यस्थम संबंधी कोई प्रावधान नहीं था। वह सिर्फ घरेलू माध्यस्थम तक ही सीमित था।इस विधि को अधिक स्पष्ट किया गया है। इस अधिनियम के द्वारा माध्यस्थम न्यायाधिकरण की परिकल्पना की गई है। संविधानिक माध्यस्थ को न्यायाधिकरण का...
नीलामी रद्द कराने की प्रक्रिया और अधिकार – राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धाराएँ 246 से 250
राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 में यह सुनिश्चित किया गया है कि यदि किसी भूमि या अचल संपत्ति की नीलामी की गई है, तो उस प्रक्रिया में त्रुटि (Irregularity) या अन्य कारणों से नीलामी को चुनौती देने के लिए उचित व्यवस्था मौजूद हो। धाराएँ 246 से 250 न केवल प्रभावित व्यक्ति को राहत प्रदान करती हैं बल्कि खरीदार के अधिकारों और प्रक्रिया की वैधता को भी संतुलित रूप से संभालती हैं। यह लेख इन धाराओं का क्रमवार और सरल भाषा में विश्लेषण करता है।धारा 246 – बकाया जमा कर नीलामी रद्द करवाने का आवेदन (Application...
क्या सेल्फ-रेस्पेक्ट मैरिज को वैध होने के लिए सार्वजनिक घोषणा जरूरी है?
तमिलनाडु में सेल्फ-रेस्पेक्ट विवाह का कानूनी आधारसुप्रीम कोर्ट ने इलावरसन बनाम पुलिस अधीक्षक (2023) केस में यह तय किया कि क्या हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act) की धारा 7A के तहत होने वाले सेल्फ-रेस्पेक्ट विवाह को वैध (Valid) बनाने के लिए सार्वजनिक रूप से घोषित (Publicly Declared) करना आवश्यक है। तमिलनाडु राज्य ने 1967 में इस धारा को विशेष संशोधन (Amendment) के जरिए जोड़ा ताकि "सयमरियाथाई" और "सीरथिरुथ्था" जैसे विवाहों को कानूनी मान्यता दी जा सके, जो पारंपरिक धार्मिक रीति-रिवाजों...
Indian Partnership Act, 1932 की धारा 9-12 : भागीदारों के आपसी संबंध
भागीदारों के सामान्य कर्तव्य (General Duties of Partners)भारतीय भागीदारी अधिनियम, 1932 (Indian Partnership Act, 1932) की धारा 9 (Section 9) भागीदारों के सामान्य कर्तव्यों (General Duties) को परिभाषित करती है। इसके अनुसार, भागीदारों को फर्म का व्यवसाय सबसे बड़े सामान्य लाभ (Greatest Common Advantage) के लिए चलाना चाहिए। उन्हें एक-दूसरे के प्रति न्यायपूर्ण (Just) और ईमानदार (Faithful) होना चाहिए। इसके अलावा, फर्म को प्रभावित करने वाली सभी चीजों की सही जानकारी (True Accounts) और पूरी जानकारी...
Sales of Goods Act, 1930 की धारा 23-25 : अनिश्चित माल की बिक्री और विनियोजन
माल विक्रय अधिनियम (Sales of Goods Act), 1930 का अध्याय III माल की बिक्री के अनुबंधों के प्रभावों (Effects of the Contract) को समझना जारी रखता है, विशेष रूप से विक्रेता (Seller) और खरीदार (Buyer) के बीच माल में संपत्ति (Property in Goods) के हस्तांतरण के संबंध में। धारा 23 से 25 कुछ विशिष्ट परिदृश्यों (Specific Scenarios) से निपटती हैं जहाँ संपत्ति का हस्तांतरण जटिल हो सकता है।अनिश्चित माल की बिक्री और विनियोजन (Sale of Unascertained Goods and Appropriation) धारा 23(1) उस नियम को निर्धारित करती...
National Security Act में सलाहकार बोर्ड होना और बोर्ड को डायरेक्शन
इस एक्ट में सलाहकार बोर्ड का गठन किया गया है जो किसी भी निरोध के आदेश की समीक्षा करता है। धारा 9 के अनुसार-(1) केन्द्रीय सरकार और प्रत्येक राज्य सरकार जब आवश्यक समझे इस अधिनियम के लिए एक या अधिक सलाहकार बोर्ड का गठन कर सकेगा ।(2) ऐसे प्रत्येक बोर्ड तीन व्यक्तियों से मिलकर बनेंगे जो हाईकोर्ट के न्यायाधीश की नियुक्ति के योग्य हों या रह चुके हों और ऐसे व्यक्ति समुचित सरकार द्वारा नियुक्त किए जाएँगे।(3) समुचित सरकार सलाहकार बोर्ड के सदस्यों में से एक जो हाईकोर्ट का न्यायाधीश हो या रह चुका हो उसको...


















